हमने घर बैठे-बैठे ही, सारा मंज़र देख लिया...
- दुष्यंत कुमार
ख्यात कवि दुष्यंत कुमार जिस घर में बैठकर यह अनचाहा मंज़र देखने की बात कर रहे थे, क्या पता था, भविष्य उसके साथ इतना क्रूर व्यवहार करने वाला है! प्रधानमंत्री के सपनों की स्मार्ट सिटी बनाने के लिए मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में जो कुछ हुआ, वह गमगीन करने वाला है. अपने गीत-ग़ज़लों और विभिन्न रचनाओं से नया आयाम रच देने वाले कवि दुष्यंत त्यागी के आवास को बलशाली बुलडोज़र चलाकर जमींदोज़ कर दिया गया. अब बारी उसी इलाके में उनके नाम पर बने दुष्यंत संग्रहालय की है. इस जगह को सालों की मेहनत से खड़ा किया गया है.
आज वीरान अपना घर देखा,
तो कई बार झांक कर देखा,
पांव टूटे हुए नज़र आए,
एक ठहरा हुआ खंडहर देखा,
रास्ता काट कर गई बिल्ली,
प्यार से रास्ता अगर देखा,
नालियों में हयात देखी,
गालियों में बड़ा असर देखा,
हम खड़े थे, कि ये ज़मीं होगी,
चल पड़ी तो इधर-उधर देखा...
आखिर अपने इतिहास को क्यों बचाकर रखा जाना चाहिए, और क्या यह सवाल इतना बड़ा है, जिस पर कोई हंगामा खड़ा किया जाना चाहिए, इसका जवाब इतना कठिन नहीं है. इतिहास जीवन का एक सबक होता है, जिसके सहारे हम भविष्य की बुनियाद रखते हैं. इतिहास परम्परा देता है, सभ्यता देता है, ज्ञान देता है, जीवन के आयाम देता है, यदि इन्हें ही मिटा और भुला दिया जाएगा तो याद रखिए कि आपको भी इतिहास होना है, आप अपने इतिहास को याद रखने की परम्परा को खुद ही बिसरा रहे हैं, तो अपने लिए भी कोई उम्मीद न रखिए, हम उस कमज़ोर समय में जी रहे हैं, जहां तकनीक ने समय की गति को दोगुना कर दिया है, बाज़ार के आंगन में विकास रॉक डांस कर रहा है, और इसमें जो शामिल नहीं, वह पिछड़ा है.
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ऐसे वक्त में तो अपनी सांस्कृतिक-साहित्यिक चेतना को और मजबूत किया जाना चाहिए, पर ऐसा हो रहा लगता नहीं. हो रहा होता, तो हम दुष्यंत और ऐसी ही चेतनाओं को बचाने की कोशिश करते नज़र आ रहे होते, और मज़ाक तो यह है कि यह सब विकास के नाम पर हो रहा है.
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भोपाल ही क्यों, नर्मदा घाटी को ले लीजिए. घाटी में भू वैज्ञानिक अरुण सोनकिया ने नर्मदा मानव की खोज की थी. मानव खोपड़ी की इस खोज ने विश्व इतिहास में एक सनसनी इसलिए मचा दी थी, क्योंकि इससे पता चलता है कि धरती के इस भूभाग में सबसे पहले मानव सभ्यता ने आकार लिया था. इसी नर्मदा के किनारे धार जिले के गांव में ठीक नर्मदा के किनारे भू और पुरातत्व विज्ञानियों ने धरती के नीचे ऐसी सभ्यता का पता लगाया था, जो मोहनजोदड़ो से भी पुरानी हो सकती थी. इस संभावना वाली जगह का काम बीच में क्यों रोक दिया गया, इस सवाल का ठीक-ठीक जवाब किसी के पास नहीं है, अलबत्ता ऐसी जगह को अब सरदार सरोवर के डूब इलाके के हवाले कर दिया जा रहा है, तो क्या इस जगह की संभावना को केवल इसलिए खत्म कर दिया गया, क्योंकि यदि इसकी पूरी खुदाई हो गई होती, तो इसे संरक्षित करना पड़ता. इस खुदाई के बारे में पुरा-वैज्ञानिक डॉ ओटा की रिपोर्ट में ज़िक्र ज़रूर मिलता है. 2017 के बाद इस जगह पर नहीं जाया जा सकेगा, क्योंकि यह जगह पूरी तरह पानी में डूब जाएगी.
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नर्मदा किनारे ऐतिहासिक मंदिरों की बात तो छोड़ दीजिए, उन तीन-चार हजार साधुओं की बात भी छोड़ दो. उन चालीस हजार लोगों की बात तो छोड़ ही दो, जो बिना उचित पुनर्वास लिए गांव नहीं खाली करने की ज़िद पर घाटी में ही बैठे हैं. और देखिए, दुष्यंत इसके लिए भी सालों पहले लिख गए थे -
बाढ़ की संभावना सामने है,
और नदियों के किनारे घर बने हैं,
चीड़ वन में आंधियों की बात मत कर,
इन दरख्तों के बहुत नाज़ुक तने हैं,
आपके कालीन देखेंगे किसी दिन,
इस समय तो पांव कीचड़ में सने हैं,
जिस तरह चाहो बजाओ इस सभा में,
हम नहीं हैं आदमी, झुनझुने हैं...
केवल यह गांव ही क्यों, महात्मा गांधी की समाधि को लीजिए, बड़वानी के पास राजघाट नाम की यह जगह देश की अकेली ऐसी जगह थी, जहां बापू, कस्तूरबा और महादेव भाई देसाई की समाधि है, और एक ही जगह तीनों के अस्थि कलशों को रखा गया था. इन कलशों के साथ जैसा व्यवहार किया गया, वह इतिहास में याद रखा जाएगा, रात को 3 बजे जेसीबी मशीन से इस समाधि को तोड़ा गया, ताकि कोई विरोध न कर सके. आखिर चोरों की तरह इस स्थान को तोड़े जाने की क्या आवश्यकता थी...? पिछले दिनों ख्यात व्यंग्यकार हरिशंकर परसाईं की जन्मस्थली जमानी गांव में आयोजित संगोष्ठी में किसी ने कहा था कि परसाईं इस वक्त ऐसा लिख रहे होते, तो जेल में होते, संभवत: दुष्यंत को भी रोज़-ब-रोज़ ट्रोल कर दिया जाता.
कहां तो तय था चरागां हर एक घर के लिए,
कहां चराग मयस्सर नहीं, शहर के लिए,
यहां दरख्तों के साये में धूप लगती है,
चलो यहां से चलें और उम्र भर के लिए,
न हो कमीज़ तो पैरों से पांव ढक लेंगे,
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिए...
हम वक्त को भुला रहे हैं, सो, तय है कि वक्त हमें भी उतनी ही जल्दी भुला देगा, याद रखिएगा...
राकेश कुमार मालवीय एनएफआई के पूर्व फेलो हैं, और सामाजिक सरोकार के मसलों पर शोधरत हैं...
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