फ्रांस से 36 लड़ाकू विमान खरीदने के फैसले पर रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने सोलह आने सच कहा है कि इससे भारतीय वायुसेना को ऑक्सीजन मिलेगी। इसमें कोई दो राय नहीं कि पिछले कई वर्षों से भारतीय वायुसेना की मारक क्षमता लगातार घट रही है। खासकर चीन और पाकिस्तान से मिलने वाली चुनौतियों को देखते हुए। हालांकि वायुसेना की जरूरतों को देखते हुए इस ऑक्सीजन से फौरी राहत तो मिल जाएगी, लेकिन आगे के लिए कोई ठोस इंतजाम करना होगा।
दशकों से चल रही एमएमआरसीए यानि की मीडियम मल्टी रोल कॉम्बेट एयरकाफ्ट डील की जगह अब सीधे फ्रांस की दासों कंपनी से चार बिलियन डॉलर यानि करीब चार हजार करोड़ रुपये के आस पास की डील होगी। सीधा मतलब है एक रफाल विमान की कीमत 600 करोड़ के लगभग आएगी। बड़ी बात यह है कि इन विमानों की आपूर्ति दो खेप में और दो साल के भीतर हो जाएगी। फिलहाल ना तो यह देश में बनेगा और ना ही ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी की कोई शर्त है। तत्कालिक रूप से देखें तो इससे दो फायदे होंगे एक तो वायुसेना को जल्द विमान मिलेंगे, कीमत कम और बेहतर होगी।
वायुसेना के पूर्व प्रमुख एयरचीफ मार्शल एसपी त्यागी कहते है कि 2001 से आप लड़ाकू विमान खरीदने का सोच रहे थे, लेकिन फैसला नहीं ले पा रहे थे, मौजूदा हालात में इससे बेहतर कोई और फैसला नही हो सकता है।
वैसे भी वायुसेना की ताकत घटती जा रही थी 15 साल हो गए जब कोई विमान खरीदा गया था। मिग पुराने पड़ते जा रहे है और कई स्कावड्रन तो महज कागजों पर चल रहे हैं। साल 2020 तक वायुसेना के 12 स्कावड्रन रिटायर हो रहे हैं, तो फिर इनकी जगह लेने वाले विमान है कहां?
हिंदुस्तान एरोनेटिक्स लिमिटेड यानि कि एचएएल जिस रफ्तार से लाइट कॉम्बेट एयरकाफ्ट बना रही है तो पता नहीं कब वह भारतीय वायुसेना की सही मायने में ताकत बन पाएंगे। वायुसेना मौजूदा एलसीएस की जगह मार्क-2 एलसीए चाह रही है, लेकिन अभी तक उसका कोई अता पता नहीं है। अभी यह भी तय नहीं कि उसमें इंजन कौन सा लगेगा।
ऐसे हालात में गिनती के ही विकल्प बचते हैं, मसलन और सुखोई खरीदे जाएं। लेकिन अभी तक इसके इंजन और इजेक्शन में दिक्कत बनी हुई है, जिसे दूर किए बगैर काम नहीं चलेगा। ऊपर से यह भी कहा जा रहा है सुखोई है तो सस्ता, लेकिन इसका लाइफ साईकिल कॉस्ट मंहगा पड़ता है। रही सही कसर रूस की खस्ता हालत पूरी कर देता है। तभी तो वायुसेना के ही एक अन्य पूर्व प्रमुख एयर चीफ मार्शल पीवी नायक कहते हैं रफाल से बेहतर डील कुछ और नहीं हो सकती थी। फिलहाल तो यह विमान आएंगे, उससे अनुभव लेकर बाद में जरूरत पड़ने पर और विमान भी ख़रीदे जा सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो फंसी हुई डील को बाहर निकालकर वायुसेना की जरूरत को समझा है।
यह सही है कि वायुसेना को तुरंत लड़ाकू विमान चाहिए, क्योंकि ये एक ऑपरेशनल जरूरत है। सरकार के पास बहुत ज्यादा विकल्प नही थे। इसी वजह से यह सौदा किया गया। वैसे भी पाकिस्तान की तुलना में भी भारतीय वायुसेना की मारक क्षमता कम होती जा रही थी। वायुसेना की जरूरत करीब 40 स्कावड्रन की है और फिलहाल 28 के आसपास ही स्कावड्रन बचे हैं। इनमें से 12 स्काड्रवन तो पुराने मिग के हैं।
हालांकि कई कह सकते हैं कि एक सुखोई तो छह मिग के बराबर होता है, तो ऐसे में कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन ये कहने की बातें है जब भी जंग हुई है तो हमारी बेहतर हथियार की कमियां उजागर हुई। चाहे 1962 की बात करे या फिर 1999 में हुई करगिल जंग की। वायुसेना के अफसर तो खुलकर इस सौदे को लेकर नहीं बोल रहे हैं, लेकिन वह कह रहे हैं कि हमनें तो 126 लड़ाकू विमान मांगे थे और मिल रहे हैं महज 36, जबकि चुनौतियां घटने के बजाय बढ़ ही रही हैं।
फोर्स मैगजीन के संपादक प्रवीण साहनी की मानें तो पहली बात सरकार के पास अभी इतना पैसा नहीं है कि वह वायुसेना पर बीस बिलियन डॉलर से ज्यादा खर्च कर 126 लड़ाकू विमान खरीदे। आज हालत यह है कि वायुसेना को जो विमान मिलेंगे उसे उन्हीं से काम चलाना पड़ेगा। ये और बात है कि वह इसके अलावा कर भी क्या कर सकती है?
ये विमान करीब 40 साल तक चलेगा ही। वायुसेना ने ही इस विमान को कई दूसरों विमानों के बावजूद ओके किया था। हां इस विमान के आने से मेंटनेंस और दूसरे अन्य इंतजाम जरूर करने पड़ेंगे जो आसान नहीं होगा।
शायद बहुत से लोगों को नहीं पता होगा कि वायुसेना के पास एक नहीं अब तो छह तरह के लड़ाकू विमान हैं और सातवां आने वाला है। अगर रूस के साथ मिलकर बन रहा पांचवी पीढ़ी का लड़ाकू विमान बन जाता है तो आठवीं तरह का विमान होगा। दुनिया में ऐसा और देश नहीं है, जिसके पास इतने तरह के विमान हैं। हर विमान का रख रखाव अलग तरह से होता है। कल पूर्जा अलग है। समझा जा सकता है कि इन विमानों को फिट रखने में वायुसेना को कितनी दिक्कत आती होगी।
एक और बड़ा सवाल पीएम के मेक इन इंडिया का क्या होगा? विमान के लेने के बाद इसका विकल्प खुला है। अगर बात बनती है तो और अगर रफाल विमान खरीदते हैं तो उसे हिन्दुस्तान में बना सकते हैं। बर्शते एचएएल की हालत में और सुधार हो जिससे वह वायुसेना और दासों का विश्वास जीत पाए और वर्ल्ड क्लास लड़ाकू विमान बनाए।