जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लगने के आसार बनते जा रहे हैं। राज्य में संवैधानिक संकट तब पैदा होता नजर आया जब कार्यवाहक मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला इस पद पर बने रहने के इच्छुक नहीं दिखे। राज्यपाल एनएन वोहरा ने राज्य में पैदा हुए गतिरोध को लेकर केन्द्र को अपनी रिपोर्ट भेज दी।
राष्ट्रपति को भेजी रिपोर्ट में समझा जाता है कि उन्होंने दो या तीन सुझाव दिए हैं। इनमें निश्चित समय के लिए राज्यपाल शासन लगाने का विकल्प शामिल है क्योंकि विधानसभा चुनाव के बाद आए खंडित जनादेश के चलते कोई भी पार्टी सरकार गठन के लिए अभी तक आवश्यक संख्याबल नहीं जुटा पाई है। राज्यपाल ने यह रिपोर्ट तब भेजी है, जबकि एक दिन पहले उमर ने कल रात लंदन से लौटने के बाद दिल्ली में उनसे मुलाकात की थी। उन्होंने कार्यवाहक मुख्यमंत्री के पद से हटने की अपनी मंशा जतायी थी।
उमर ने ट्वीट कर कहा, 'महज यह पुष्टि करना चाहता हूं कि मैं कल रात राज्यपाल वोहरा साहिब से मिला था और कहा कि मुझे कार्यवाहक मुख्यमंत्री के दायित्व से मुक्त किया जाए। मैंने अस्थायी रूप से रहने की सहमति जताई थी।'
विधानसभा चुनाव के 23 दिसंबर को आए नतीजों में उनकी पार्टी नेशनल कांफ्रेंस की पराजय के बाद उमर ने 24 दिसंबर को इस्तीफा दे दिया था और उनसे कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में काम देखने को कहा गया था। विधानसभा चुनाव में नेशनल कांफ्रेंस को महज 15 सीटें मिली थीं। 87 सदस्यीय विधानसभा में 28 सीटों के साथ पीडीपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई जबकि भाजपा को 25 सीटें मिली। उमर ने कहा कि उनकी यह धारणा थी कि सरकार एक हफ्ते या 10 दिनों में गठित हो जाएगी। 'आज हमें लग रहा है कि 10 दिन पहले हम जहां थे, आज हम लक्ष्य से और भी दूर चले गए हैं।'
खंडित जनादेश के बाद भाजपा सरकार गठन के लिए नेशनल कांफ्रेंस, कांग्रेस एवं पीडीपी दोनों से संपर्क बनाए हुए है, लेकिन गतिरोध समाप्त करने के लिए अभी तक कुछ भी सामने नहीं आ पाया है। नेशनल कांफ्रेंस भाजपा के साथ हाथ मिलाने के पक्ष में प्रतीत नहीं हो रही है, जबकि पीडीपी को भगवा पार्टी के साथ हाथ मिलाने के लिए अपने कार्यकर्ताओं को मनाने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है।
वैसे नई सरकार का गठन 19 जनवरी से पहले किया जाना जरूरी है, जब मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। तब तक नई सरकार का गठन नहीं होने की स्थिति में राज्यपाल शासन अपरिहार्य लग रहा है। उमर के इस फैसले का अर्थ होगा कि इस प्रकार का शासन पहले लागू किया जाए।
वैसे राज्यपाल को अब एक रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपनी होगी, जिसमें वह संवैधानिक गतिरोध को दूर करने के लिए राज्यपाल के शासन की सिफारिश कर सकते हैं। याद रहे राज्य का अपना अलग संविधान होने के कारण सीधे राष्ट्रपति शसन लागू नहीं होता बल्कि पहले छह महीने यहां पर राज्यपाल का शासन लागू होता है और उसके बाद राष्ट्रपति शासन लागू किया जाता है।