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This Article is From Mar 14, 2019

भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद से प्रियंका गांधी की मुलाकात के क्या हैं मायने

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मार्च 14, 2019 00:41 am IST
    • Published On मार्च 14, 2019 00:41 am IST
    • Last Updated On मार्च 14, 2019 00:41 am IST

मंगलवार को गांधीनगर में अपने पहले राजनीतिक भाषण के बाद अगले दिन प्रियंका गांधी मेरठ चली आईं. उनका मेरठ आना पहले राजनीतिक भाषण से कहीं ज़्यादा राजनीतिक था. उत्तर प्रदेश की राजनीति पर नज़र रखने वाले इस मुलाकात को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकेंगे. भीम आर्मी के नेता चंशेखर आजाद से अभी तक बड़े नेता दूरी बना कर चल रहे थे. कारण यह था कि चंद्रशेखर की अपनी एक स्वतंत्र राजनीतिक विचारधारा है और संगठन है. लगातार जेल में रहने और भाषण देने से रोके जाने के कारण चंद्रशेखर का सियासी व्यक्तित्व भी स्वायत्त हो चुका है. इसके बाद भी प्रियंका गांधी का चंद्रशेखर आज़ाद से मिलना घोर सियासी कदम था, जिसे लेकर खलबली चंद्रशेखर को गिरफ्तार करने वाले योगी सरकार के खेमे में भी मचेगी और चंद्रशेखर को नज़रअंदाज़ करने वाले बसपा खेमे में भी.

प्रियंका का मेरठ दौरा आखिरी वक्त में ही लिया गया निर्णय होगा, या फिर यह निर्णय इतनी जल्दी लिया गया होगा कि दिल्ली से संवाददाता उनके काफिले का पीछा नहीं कर पाए. मगर उनके मेरठ के आनंद अस्पताल पहुंचने से पहले मीडिया तैनात हो गया था. सबको पता है सहारनपुर के चंद्रशेखर आज़ाद की भीम आर्मी की लड़ाई का इलाके में क्या महत्व है. चंद्रशेखर सहारनपुर के देवबंद में बहुजन अधिकार यात्रा निकाल रहे थे. पुलिस ने हिरासत में ले लिया. आरोप था कि मोटरसाइकिल रैली में अनुमति से अधिक बाइक का इस्तेमाल कर आचार संहिता तोड़ी गई. जिस चंद्रशेखर की गिरफ्तारी दिल्ली की मीडिया के लिए सामान्य ख़बर भी नहीं थी, प्रियंका के पहुंचते ही अब गेम घूम गया है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया लखनऊ से पहुंचे और प्रियंका गांधी दिल्ली से.

सहारनपुर के रहने वाले हैं चंद्रशेखर आज़ाद. 2015 में सहारनपुर के छुटमलपुर गांव में भीम आर्मी का गठन हुआ था. यही चंद्रशेखर आज़ाद का गांव भी है. लोगों से चंदा लेकर गरीब लड़कियों की शादी कराना, रक्त दान जैसे सामाजिक कार्य करने का दावा करती है. भीम आर्मी के सदस्य ने बताया कि आस-पास के इलाके में 246 निशुल्क कोचिंग सेंटर चल रहे हैं जिसमें ग़रीब बच्चों को खासकर कोचिंग दी जाती है. 4 साल के इतने कम अंतराल में ऐसा क्या हो गया कि भीम आर्मी से कोई दूरी बना रहा है, कोई भीम आर्मी को दूर कर रहा है तो कोई भीम आर्मी के करीब जा रहा है.

यह वीडियो इसी सोमवार यानी 11 मार्च का है. सहारनपुर के देवबंद से भीम आरमी की बहुजन अधिकार यात्रा का है. मोटरसाइकिल की यह रैली इलाके से होते हुए 15 मार्च को दिल्ली पहुंचने वाली थी जहां कांशीराम की जयंती पर रैली होनी थी. मगर प्रशान ने बताया कि आचार संहिता का उल्लंघन हुआ. अनुमति से अधिक गाड़ियां होने के कारण गिरफ्तारी हुई. गिरफ्तार होते ही चंद्रशेखर आज़ाद की तबीयत बिगड़ी और अस्तपाल में भर्ती कराया गया. भीम आर्मी ने इलाके के नवयुवकों का मज़बूत संगठन बनता जा रहा है. सामाजिक मकसद से शुरू हुए यह संगठन पूरी तरह से राजनीतिक हो चुका है. खासकर मई 2017 में सहारनपुर में अंबेडकर की मूर्ति लगाने को लेकर ठाकुर समुदाय और अनुसूचित समुदाय के बीच टकराव हो गई. उसके बाद की हिंसा की घटनाओं के आरोप में चंद्रशेखर आज़ाद को गिरफ्तार किया गया. चंद्रशेखर कई महीने तक जेल में रहे. जब ज़मानत मिली तो अगले दिन रासुका लगाकर जेल में फिर बंद कर दिया गया और इस तरह सितंबर 2018 में रिहा हुए.

भीम आर्मी का एक फेसबुक पेज भी है. जिस पर चंद्रशेखर की राजनीतिक गतिविधियों की तस्वीरें हैं. चंद्रशेखर खुद को बिकाऊ की जगह टिकाऊ और नीम की तरह कड़वा बोलने वाले की तरह पेश करते हैं. सितंबर 2018 में जेल से रिहा होते ही चंद्रशेखर ने शिखा त्रिवेदी से फोन पर कहा था कि मैं हर दलित से अपील करता हूं कि वह 2019 में बीजेपी सरकार को उखाड़ फेकें. 

भीम आर्मी ने अभी कोई चुनाव नहीं लड़ा है. उसकी राजनीतिक ताकत आप ज़ीरो मान सकते हैं, मगर ये आर्मी ज़ीरो होती तो फिर चंदशेखर आज़ाद से इतनी दिक्कत क्यों होती. यही तो सवाल है कि जिस पार्टी ने अभी अपना राजनीतिक वजूद साबित नहीं किया है उसके आने से किस-किस को अपना वजूद ख़तरे में लगता है. चंद्रशेखर आज़ाद खुद को कांशीराम के बताए रास्ते पर चलने वाला बताते हैं. चंद्रशेखर ने मायावती को बुआ कहा था, मगर मायावती ने बयान दिया था कि रावण का उनसे कोई रिश्ता नहीं है. कुछ लोग फायदे के लिए उनसे रिश्ता जोड़ते रहते हैं. इस रिश्ते के खारिज किए जाने के दो महीने बाद यानी नवंबर 2018 में चंद्रशेखर आज़ाद का एक बयान है कि मैं किसी भी दल का समर्थन नहीं करूंगा. सिर्फ बहुजन समाज पार्टी को सपोर्ट करूंगा.

आज चंद्रशेखर आज़ाद ने हमारे सहयोगी सौरभ शुक्ला से बात करते हुए एक राजनीतिक एलान किया. कहा कि वे वाराणसी में नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे. प्रियंका गांधी मिलने आईं मगर किसी दल के साथ न जाएंगे और न सपोर्ट करेंगे. 
चंद्रशेखर ने प्रियंका को बहन कहा. ये नहीं कहा कि कांग्रेस को सपोर्ट करेंगे. भाई और बहन का यह आदान-प्रदान राजनीतिक होते हुए भी इतना गैर राजनीतिक नहीं हो सकता है. माहौल ही चुनाव का है. पिछली बार अरविंद केजरीवाल प्रधानमंत्री मोदी से लड़ने गए थे. जीत नहीं सके. इस बार चंद्रशेखर रावण ने खुद की उम्मीदवारी घोषित कर दी. राजनीति के लिए चंद्रशेखर भी नए हैं. क्या प्रधानमंत्री का मुकाबला कोई नया उम्मीदवार कर पाएगा. रावण ने कहा था कि अगर महागठबंधन मज़बूत उम्मीदवार घोषित नहीं करेगा तो भीम आर्मी अपना उम्मीदवार उतारेगी. आज चंद्रशेखर रावण खुद का ऐलान कर दिया. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 2014 में वाराणसी ने 80,000 अनुसूचित जाति के मतदाता थे. वहां 15 लाख से अधिक मतदाता हैं. रावण के लिए वाराणसी नई जगह होगी.

अब क्या महागठबंधन चंद्रशेखर आजाद को सपोर्ट करेगा या कांग्रेस चंद्रशेखर आज़ाद को सपोर्ट करेगी. चंद्रशेखर आज़ाद ने साफ कर दिया कि वे कांग्रेस के साथ नहीं जाएंगे मगर कांग्रेस उनके पास गई है तो कोई तो मतलब होगा. प्रियका गांधी ने साफ-साफ कह दिया कि वे चंद्रशेखर के संघर्ष को समझती हैं, सरकार उन्हें दबाती है इसलिए उनको सपोर्ट करने आई थीं. गुजरात विधानसभा में कांग्रेस ने अपना जीता हुआ उम्मीदावार वापस लेकर अनुसूचित जाति के नेता जिग्नेश मेवाणी को सपोर्ट किया था और जीते थे. हार्दिक पटेल अब कांग्रेस में हैं. अल्पेश ठाकोर कांग्रेस में हैं. तो इन उदाहरणों को भी सामने रखा जा सकता है.

अब आते हैं राफेल के मसले पर. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी लड़कियों के कॉलेज 'स्टेला मेरी' में उनके बीच थे. कई तरह के सवालों का सामना करते हुए राहुल गांधी के सामने एक ऐसा सवाल आया, जिसकी उम्मीद नहीं की की होगी. कॉलेज की एक छात्रा ने उनसे रॉबर्ट वाड्रा से जुड़ा सवाल कर लिया. छात्रा ने राहुल से कहा कि भ्रष्टाचार को लेकर कई नाम लिए मगर रॉबर्ट वाड्रा का नाम नहीं लिया. अच्छी बात रही कि उस छात्रा की किसी ने हूटिंग नहीं की. न ही राहुल ने उसे हड़काया और न ही उसे पुड्डूचेरी वणक्कम कहा. बजाए इसके राहुल आगे आए और जवाब दिया.

आम तौर पर ऐसे आयोजनों की यह छवि बन गई है कि सवाल पहले से तैयार किए जाते हैं. प्रधानमंत्री का मेरा बूथ सबसे मज़बूत कार्यक्रम आपको याद होगा. पुड्डुचेरी के कार्यकर्ता निर्मल जैन ने अचानक सवाल कर लिया कि सारा ध्यान टैक्स वसूली पर है मगर मिडिल क्लास को करों में राहत नहीं मिल रही हो तो प्रधानमंत्री ने जल्दी ही कह दिया कि चलिए पुड्डुचेरी को वणक्कम. यानी जवाब देने की जगह हाथ जोड़ नमस्ते कर लिया.

राहुल गांधी वाड्रा के ऊपर पूछे गए सवाल पर आगे आए और जवाब दिया. अंग्रेज़ी में कहा कि ज़रूर वाड्रा के खिलाफ जांच होनी चाहिए मगर राफेल मामले में प्रधानमंत्री की भी जांच होनी चाहिए. नरेंद्र मोदी ने राफेल डील पर एक मिनट के लिए अपना मुंह नहीं खोला है. ये अच्छा है कि राहुल गांधी ने रॉबर्ट वाड्रा को लेकर पूछे गए सवाल पर जवाब दिया. जांच की बात कही. रॉबर्ट वाड्रा से मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में प्रत्यर्पण निदेशालय पूछताछ कर रहा है. राहुल के जवाब से कहीं ज्यादा अच्छा रहा, उस लड़की का सवाल पूछना. चेन्नई की उस छात्रा को दिल्ली से वणक्कम. पुड्डुचेरी को भी वणक्कम. दिल्ली में बीजेपी ने प्रेस कांफ्रेंस कर आज एक और आरोप लगाया कि भगोड़ा हथियार का सौदागर संजय भंडारी और राहुल गांधी में संबंध होने की मीडिया में खबर आई है. कांग्रेस के रणदीप सुरजेवाला ने इसे आधारहीन मामला बताया है.

राहुल गांधी को कितनी बार पप्पू कहा गया. कितना मज़ाक उड़ाया गया. मगर राहुल ने कुछ नहीं कहा, लेकिन जब चेन्नई में एक लड़की ने राहुल को सर कह दिया तो फिर क्या हुआ. यह सब मुद्दा तो होना चाहिए मगर अफसोस नौकरी पर कोई बात नहीं कर रहा है. हो सकता है युवाओं ने नौकरी के सवाल को छोड़ दिया हो मगर मुझे नहीं लगता. आज भी एक मैसेज आया है कि ऑर्डिनेंस फैक्ट्री दमदम में मज़दूर के लिए जून 2015 में नोटिफिकेशन आया था. 50 पदों के लिए. 2015 से चल कर यह परीक्षा 14 फरवरी 2017 में पूरी हुई. दो साल लग गए. तब से लेकर नियुक्ति पत्र का इंतज़ार करते रहे सब. 

2 मार्च 2019 को इस परीक्षा का रिज़ल्ट कैंसिल कर दिया गया. यानी परीक्षा पास कर नियुक्ति का इंतज़ार करते रहे, इंतज़ार इंतज़ार ही रह गया. रक्षा मंत्री आज कल मीडिया कॉन्क्लेव में जाती हैं. वहां मीठे-मीठे सवाल पूछे जाते हैं. कभी एंकर ये सब सवाल पूछ लें कि वैकेंसी क्यों निकाली, परीक्षा क्यों ली, जब फाइनल हो गया तो परीक्षा ही रद्द कर दी. दो साल जो नौजवान का गया उसका क्या. इम्तहानों के सताए हुए नौजवानों से अलग से सर्वे होना चाहिए. तब पता चलेगा कि किसी नेता या किसी सरकार के लिए कोई लहर है या नहीं. और अब एक और अहम ख़बर... 2013 के मुज़फ़्फ़रनगर दंगों से जुड़े एक अहम गवाह की सोमवार को दिन दहाड़े खतौली के भरे बाज़ार में गोली मारकर हत्या कर दी गई... असबाब नाम का ये युवक दंगों में मारे गए अपने दो भाइयों शाहिद और नवाब की हत्या में वादी और चश्मदीद गवाह था और इस केस में 25 मार्च को उसकी गवाही होनी थी... असबाब के परिवार का आरोप है कि उनको लगातार आरोपियों से धमकियां मिल रही थीं और इन आरोपियों ने ही असबाब की हत्या की है... 

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