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This Article is From Jun 15, 2015

प्रियदर्शन की बात पते की : जो मामूली होते हैं वो मारे जाते हैं

Priyadarshan, Saad Bin Omer
  • Blogs,
  • Updated:
    जून 16, 2015 00:00 am IST
    • Published On जून 15, 2015 23:51 pm IST
    • Last Updated On जून 16, 2015 00:00 am IST
वह एक मामूली सा पत्रकार था। बड़े-बड़े लोगों के बारे में ओछी बातें लिखता था। शाहजहांपुर के बाहर उसे कोई जानता नहीं था। जिस तरह वह सीधे-सीधे बड़े लोगों पर आरोप लगा देता था, उससे भी लगता है कि वह अपने सारे धंधों के बीच या बावजूद आख़िरकार पत्रकार ही रहा होगा।

भले ही उसकी कलम उतनी सधी हुई नहीं होगी, उसकी भाषा उतनी चमकीली नहीं होगी। उसके पास वह पेशेवर तराश नहीं होगी, जो किसी ख़बर में आक्रोश भी पैदा करती है और किसी मुजरिम के लिए बच निकलने के लिए सूराख भी छोड़ देती है।

उसने किसी के घोटाले को सीधे घोटाला लिखा, उसने बलात्कार को सीधे बलात्कार लिखा, उसने नाम लेकर आरोप लगाए। यह बहुत हिम्मत का काम है। यह हिम्मत हमारे समय में कोई नहीं दिखाता। उसने दिखाई और उसे उसकी हैसियत बता दी गई। उसे धमकी दी गई, उसे जला दिया गया।

उसने मरने से पहले मजिस्ट्रेट के सामने बयान दिया। फेसबुक पर अपने ज़ख़्मों के बारे में लिखा, लेकिन कानून अपना काम कर रहा है। उसे मौत के पहले दिया गया बयान भी नहीं दिख रहा। उसे कई आरोपों से घिरा- जिनमें अब एक हत्या का आरोप भी शमिल है- एक मंत्री दिख रहा है। उसे बचाने वाली क्रूर और बेशर्म सत्ता दिख रही है। यानी क़ानून सबकुछ देख रहा है, वह किताब नहीं देख रहा जिसका नाम भारतीय दंड संहिता है। वह नहीं देखेगा, क्योंकि हम नहीं देख रहे।

हमारी निगाह में भी वह एक मामूली पत्रकार है जो मारा गया, क्योंकि उसने अपनी लक्ष्मणरेखा लांघ ली। उसने पत्रकारिता के क़ायदों पर अमल नहीं किया। जिस देश में तमाम तरह के मुजरिम बड़ी शान से घूमते रहते हैं, वहां वह एक तड़फती हुई मौत मरा। लेकिन जो लोग अपने-आप को वीआइपी समझते हैं, बड़ा पत्रकार समझते हैं, जो अपने संपर्कों के भरम में ये सोचते हैं कि उनका कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता, उनके लिए इस मौत में एक सबक है। जिस दिन उन्होंने सत्ता के चेहरे का नकाब हटाने की कोशिश की, उस दिन वह मारे जाएंगे।

50 बरस पहले मुक्तिबोध ने लिखा था, हाय-हाय मैंने उसको नंगा देख लिया है, इसकी मुझे सज़ा मिलेगी, ज़रूर मिलेगी। हमारे समय में वह अंधेरा और घना और विराट है- एक मामूली मौत इसी की तस्दीक कर रही है। यह हम सबके लिए खतरे की घंटी है और रघुवीर सहाय के शब्दों में इसे राजा बजा रहा है।

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