आप कितना भी कुछ कर लीजिए चुनावी भाषणों में भावुकता के सवाल होंगे, नेताओं के अपने अतीत के सवाल होंगे, उनके परिवार के सवाल होंगे, उसी पर आरोप होगा, उसी पर रोना धोना होगा. चुनाव किसी भी राज्य का हो, भाषणों का स्तर और दायरा वही है. जो जितना वीर- रस में बोलेगा वही अच्छा वक्ता कहलाएगा. पक्ष-विपक्ष के पास एक ही किताब है और जनता कई चुनावों से बंद कमरे में उसी किताब से वही भाषण सुन रही है. अच्छी बात है कि रानी पद्मावति का मसला धीमा पड़ गया है, उम्मीद है कि इसी हफ्ते से या अगले हफ्ते से टीवी के लिए नए-नए मुद्दे लांच हो जाएंगे, कोई नया ईवेंट आने वाला होगा, जिसे लेकर फिर घमासान बहस होगी. टीवी देखते देखते पता ही नहीं चलेगा कि कितने नौजवानों की नौकरी की उम्र भी गुज़र गई.
देश भर के कॉलेजों में इतिहास की कक्षा में पढ़ाने वाले इतिहासकार नहीं हैं, सैंकड़ों की संख्या में पद ख़ाली हैं, जहां कुछ शिक्षक हैं उनमें से भी कई योग्य नहीं है, मगर आप जब न्यूज़ चैनल खोलेंगे तो आपको इतिहासकार की कमी नहीं खलेगी. लगेगा कि भारत की गलियां इतिहासकारों से भरी हुई हैं. यूनिवर्सिटी सीरीज़ में आज हम आपको देश की कृषि शिक्षा के एक महत्वपूर्ण गढ़ से ख़बर दे रहे हैं. हमारा यह 27 वां अंक है. पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय भारत का पहला कृषि विश्वविद्यालय है. 1960 में बनी इस यूनिवर्सिटी की विरासत बहुत गहरी है. अमरीका की ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी, कंसास स्टेट यूनिवर्सिटी, इलिनोइस यूनिवर्सिटी, पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी और मिसौरी यूनिवर्सिटी ने अपना सहयोग दिया था. इसके लिए 1959 में इलिनोइस यूनिवर्सिटी ने ब्लू प्रिंट तैयार किया था. तब जाकर भारत में पहला कृषि विश्व विद्यालय कायम हुआ था. जिसका बाद में नाम पड़ा गोविंदबल्लभ पंत कृषि और प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय.
भारत और अमरीका की यह साझेदारी इतनी कामयाब रही कि इससे पूरे देश में 31 अन्य कृषि विश्वविद्लाय कायम हुए. इसके छात्र कृषि के क्षेत्र में दुनिया भर में छाए हुए हैं. अमेरिका में जब क्लिंटन राष्ट्रपति थे तब उनके कृषि मंत्रालय के डिप्टी सेक्रेट्री इस्लाम सिद्दीकी इसी यूनिवर्सिटी के छात्र थे. यूनिवर्सिटी का कैंपस इतना बड़ा है कि इसके भीतर सड़कों का जाल है, कॉलोनी है, अस्पताल है, बाज़ार है, 6 प्राइमरी स्कूल हैं, 3 सेकेंडरी स्कूल हैं. उत्तराखंड के उधमसिंह नगर में यह विश्वविद्यालय आपको मिल जाएगा.
यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर लिखा है कि यहां 763 शिक्षक हैं, इसके अलावा 59 टेक्निकल स्टाफ हैं और बाकी सब मिलाकर 2878 कर्मचारी हैं. 2800-3000 छात्र यहां पढ़ते हैं. एक शिक्षक पर 6 छात्रों का औसत है. हम चौंक गए कि एक शिक्षक पर सिर्फ छह छात्र. भारत की किसी भी यूनिवर्सिटी में यह अनुपात शायद ही मिले. यूनिवर्सिटी सीरीज़ में आपने देखा ही कि कई जगहों पर एक शिक्षक पर 500 से 1200 छात्रों का अनुपात है. हमारे सहयोगी दिनेश मानसेरा ने जो रिपोर्ट भेजी है हम वह भी देख लेते हैं. दिनेश के मुताबिक यहां 4500 छात्र पढ़ते हैं जबकि वेबसाइट पर लिखा है कि 2800 से 3000 पढ़ते हैं. शिक्षक संघ के अध्यक्ष ने जो शिक्षकों की संख्या बताई है वो वेबसाइट पर दी गई उससे काफी अलग है.
हां कई साल से करीब दौ सौ शिक्षकों के पद ख़ाली हैं. ढाई हज़ार से ज़्यादा कर्मचारियों के पद ख़ाली हैं. इनमें लैब कर्मचारी, स्टाफ, दूसरे सहायक पद शामिल हैं. कई पद तो यहां बीस-बीस साल से ख़ाली बताए गए हैं.
1959 में किस सपने से इस विश्वविद्यालय को बनाया गया और 2017 में आप इस सपने का खंडहर देख रहे हैं. ये बात आप किसी नेता के भाषण में नहीं सुनेंगे. भाषणों का भी अजीब हाल है. लाखों करोड़ों रुपये ख़र्च कर रैलियां आयोजित की जाती हैं ताकि कोई नेता ख़ुद को ग़रीब बता सके. इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है. पंत नगर यूनिवर्सिटी में 14 शोध कॉलेज चलते हैं. 9 ज़िलों में इसके इसके शोध संस्थान फैले हुए हैं. मगर यहां के हॉस्टलों में गंदा पानी आता है, शौचालय टूटे फूटे हैं, सीलन भरी दीवारें हैं और ख़राब खाने की शिकायत तो आम बात है. एक और बात पता चली कि एक बजे से तीन बजे का लंच टाइम होता है इस दौरान कई काम बंद हो जाते हैं. छात्रों की हालत यह है कि वे फेसबुक पर ही इंडिया की डेमोक्रेसी सेलिब्रेट कर रहे हैं, कैमरे पर आकर अपनी यूनिवर्सिटी की हालत पर एक लाइन नहीं बोल सकते क्योंकि हम सबने स्वीकार कर लिया है कि बोल देने से स्कूल कॉलेज से नाम कट जाएगा या नेता जेल भिजवा देगा. इतनी बड़ी यूनिवर्सिटी में छात्र संघ नहीं है.
हकीकत मालूम है मगर कहते समय उसे इतना हल्का कर दो कि बात भी हो जाए और लगे भी न कि बात की गई है. वाइस चांसलर साहब खुद ही कह रहे हैं कि हम कहीं नहीं ठहरते. सबकी ज़ुबान पर रैंकिंग आ गई है. चकमा देने का यह नया शिगूफा है. जल्दी ही ज़िले के कॉलेजों की रैकिंग होने लगेगी और उसी में लोग खुश रहेंगे. मिस वर्ल्ड के साथ यही हुआ था, मिस नैनिताल और मिस रोहतक भी होने लगा है. दिनेश मानसेरा ने बताया है कि पिछले सात साल से कोई स्थायी वाइस चांसलर नहीं रहा. जिस विश्व विद्लालय से खेती पर शोध होना है, खेती के लिए विशेषज्ञ पैदा होने हैं उसका ये हाल है. स्लोगन से ही आमदनी दुगनी हो जाएगी लगता है. कर्मचारी संघ पेंशन को लेकर भी परेशान है. 30-30 साल से पेंशन का हिस्सा कटवाते रहे और उसे पाने के लिए लड़ते फिर रहे हैं. सरकार कहती है कि हमने अपना हिस्सा दे दिया है और अब यूनिवर्सिटी बाकी फंड खुद जुटाए.
यही नहीं 2002 में उत्तराखंड सरकार ने पंत नगर यूनिवर्सिटी कृषि फॉर्म की 3339 एकड़ ज़मीन लेकर वहां औद्योगिक क्षेत्र बना डाला. दिनेश मानसेरा को सूत्रों ने बताया कि यहां तो मनमोहन सिंह सरकार के कृषि मंत्री और न ही मोदी सरकार के कृषि मंत्री ने कदम रखा है.
यूनिवर्सिटी सीरीज़ में हम गुजरात या कई अन्य राज्य कवर नहीं कर पाए. संसाधन की कमी के कारण. हाल ही में राहुल गांधी ने अपने टाउन हॉल में एक प्रोफेसर रंजना अवस्थी को गले लगा लिया. कांग्रेस का वीडियो है, हमारा नहीं है, पहले आप सुनिये संस्कृत की प्रोफेसर रंजना अवस्थी क्या कह रही हैं. कोशिश की है कि हमारे साथ अलग से बात हो जाए मगर सफलता नहीं मिली, डर ने लोगों की ऐसी हालत कर दी है.
अहमदाबाद के एनबी पटेल कॉलेज में 22 साल तक संस्कृत पढ़ाने के बाद रंजना अवस्थी की सैलरी 12000 हुई. क्या आप दुनिया के किसी भी यूनिवर्सिटी में कोई एक नौकरी बता सकते हैं जहां 22 साल काम करने के बाद प्रोफेसर की तनख्वाह 12000 होती है. यह उदाहण सिर्फ गुजरात का नहीं है, बिहार, मध्य प्रदेश से लेकर दिल्ली यूनिवर्सिटी तक का है. सोचिए 22 साल की नौकरी के बाद तनख्वाह 12000. इस शोषण के बाद भी हमारी राजनीति में भावुक मुद्दे ही चलते हैं. जैसे दिल्ली यूनिवर्सिटी में एडहॉक होता है, मध्य प्रदेश में गेस्ट टीचर को अतिथि विद्वान कहते हैं उसी तरह गुजरात में अस्थाई नौकरियों के लिए समय समय पर नई शब्दावली का प्रयोग किया जाता है. वहां के शिक्षकों से बात करने पर दो तरह के परमानेंट का पता चला. फुल टाइम परमानेंट और पार्ट टाइम परमानेंट.
मैंने पहली बार पार्ट टाइम परमानेंट सुना है. ब्लंडर मिस्टेक, रिटर्न बैक जैसा लगता है पार्ट टाइम परमानेंट. नियुक्ति पत्र में पार्ट टाइम ही लिखा होता है मगर एक ही कॉलेज में पार्ट टाइम पढ़ाते-पढ़ाते वे खुद को पार्ट टाइम परमानेंट कहने लगते हैं. ये सब उदाहरण बताते हैं कि अगर सरकार चाहे तो लोगों से बिना पैसे ही ज़िंदगी भर काम करा सकती है और लोग काम भी कर लेंगे. हमने दिनेश के शाह से बात की, दिनेश भाई ने 35 साल तक पार्ट टाइम परमानेंट टीचर के तौर पर पढ़ाते रहे. एक ही कॉलेज में 1980 से 2015 तक पार्ट टाइम पढ़ाते रहे. 1980 में 2500 की सैलरी पर ज्वाइन किया था. 2015 में रिटायर हुए तो सैलरी हुई 12000. दिनेश भाई ने एक ही कॉलेज में कानून पढ़ाया.
35 साल बाद दिनेश भाई कॉलेज से निकले तो उनके हाथ में कुछ नहीं था. न पेंशन न कोई सामाजिक सुरक्षा. गुजरात में 1998 में पार्ट टाइम और एडहॉक नियुक्तियों पर रोक लगा दी. 300 पार्ट टाइम टीचर बच गए हैं. ये सभी बीस-बीस साल से पढ़ा रहे हैं. छह महीना पहले फैसला हुआ है कि जिनकी पीएचडी है उन्हें 40,000 वेतन मिलेगा मगर पहले न बकाया मिलेगा न बाकी कोई सुविधा. गुजरात में एडहॉक पढ़ा रहे एक शिक्षक से हमने फोन पर बात की. उन्होंने बताया कि 2009 में करीब 200 एडहॉक शिक्षकों को स्थायी किया गया था. इनमें से कई दस से 15 साल से कॉलेजों में पढ़ा रहे थे. स्थायी होने से सैलरी तो बढ़ गई मगर पिछला बकाया कुछ नहीं मिला. एडहॉक की जगह अब सहायक शिक्षक रखे जाने लगे हैं. इनकी सैलरी भी फिक्स है, हर साल नहीं बढ़ेगी. सहायक शिक्षक की सैलरी 40,000 कर दी गई.
हमारे पास गुजरात के कॉलेजों में छात्रों और शिक्षकों की संख्या की जानकारी नहीं है. अगर ये जानकारी होती तो किस कॉलेज में कितने छात्र हैं, कितने शिक्षक हैं तो तस्वीर और साफ होती. तीन शिक्षकों से बात कर लिखा है, अगर कुछ ग़लत है तो वहां के शिक्षा मंत्री बयान दे सकते हैं, हम ज़रूर दिखाएंगे. इस बीच शिक्षा के क्षेत्र में राजस्थान सरकार ने एक बड़ा क्रांतिकारी कदम उठाया है. छात्र पढ़ाई में भले ज़ीरो रह जाएं मगर देशभक्ति में पीछे न रहे इसके लिए राजस्थान सरकार ने 800 हॉस्टल में हर दिन राष्ट्रगान गाने का फरमान जारी कर दिया है. सुबह 7 बजे राष्ट्रगान होगा. आपने यूनिवर्सिटी सीरीज़ में आपने देखा कि राजस्थान के कॉलेज के कॉलेज में शिक्षकों की भयानक कमी है. राष्ट्रगान के बाद हॉस्टल से छात्र जब क्लास में पहुंचेंगे और शिक्षक नहीं मिलेंगे तब वे क्या करेंगे, मेरे ख़्याल से जब भी किसी क्लास के लिए टीचर न हों उस क्लास में भी राष्ट्रगान होना चाहिए. छात्र ही शिक्षक है टाइप के नारे से भी छात्रों का ध्यान हटाया जा सकता है. ndtv.in की साइट पर पूरी यूनिवर्सिटी सीरीज़ का लिंक है आप देख सकते हैं.
यह तस्वीर उन शिक्षकों और छात्रों की है जो 500 किलोमीटर चलकर मुंबई में प्रेस कांफ्रेंस करने आए हैं. ताकि वहां बैठी सरकार उन्हें देख ले या वहां का मीडिया उनकी बात को सरकार तक पहुंचा सके. ये सभी कोंकण इलाके के छात्र और शिक्षक हैं. कोंकण में 103 कॉलेज हैं जो मुंबई यूनिवर्सिटी से जुड़े हैं. इनकी मांग है कि कोंकण के लिए अलग से विश्वविद्यालय होना चाहिए, 500 किमी की दूरी देखते हुए यह मांग उचित भी लगती है. छोटे-छोटे काम के लिए छात्रों और शिक्षकों को 500 किमी की यात्रा करनी पड़ती है.
हमारे सहयोगी सोहित मिश्रा लगातार मुंबई यूनिवर्सिटी की परीक्षा में हुई गड़बड़ी को लेकर रिपोर्ट कर रहे हैं. वहां कॉपी जांचने के लिए एक प्राइवेट कंपनी को ठेका दिया गया था. सोहित को आरटीआई कार्यकर्ता ने बताया है कि उस कंपनी के लिए नियमों में बदलाव किए गए. कंपनी कहती है कि नियमों का पालन हुआ, सोहित ने शिक्षा मंत्री से जवाब मांगा तो जवाब देने से इंकार कर दिया.
This Article is From Nov 28, 2017
प्राइम टाइम : पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय का हाल
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:नवंबर 30, 2017 01:33 am IST
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Published On नवंबर 28, 2017 20:53 pm IST
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Last Updated On नवंबर 30, 2017 01:33 am IST
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