क्यों पटरी से उतर रही है रेल?, रवीश कुमार के साथ प्राइम टाइम

एक हफ्ते के भीतर लगातार दो बार हुई रेल दुर्घटनाओं की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए रेल मंत्री ने प्रधानमंत्री से अपने इस्तीफे की पेशकश की है.

क्यों पटरी से उतर रही है रेल?, रवीश कुमार के साथ प्राइम टाइम

रेल मंत्रालय में फिर से नैतिक ज़िम्मेदारी की वापसी हुई है. शास्त्री जी की तरह नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा देने वाले मंत्री का इंतज़ार बहुत लोग कई साल से कर रहे थे. हाल की रेल दुर्घटनाओं के आलोक में रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने नैतिक ज़िम्मेदारी स्वीकार की है और प्रधानमंत्री मोदी से मिलकर इस्तीफे की पेशकश कर दी है. मुज़फ्फरनगर हादसे के बाद सुरेश प्रभु पर लगातार दबाव बढ़ता जा रहा था. बुधवार को उत्तर प्रदेश के ही औरैया में रेल दुर्घटना के कारण सुरेश प्रभु के लिए वो वक्त आ गया.

ट्वीटर के ज़रिये यात्रियों की मदद करने वाले सुरेश प्रभु की काफी तारीफ होती रही है मगर उन्हें उसी ट्वीटर के टाइम लाइन पर आकर अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी स्वीकार की. एक तरह से ट्वीटर की टाइमलाइन को जनता समझ कर वहां नैतिक जिम्मेदारी की घोषणा करने वाले सुरेश प्रभु पहले मंत्री भी हुए. उन्होंने प्रधानमंत्री से मिलकर पूरी नैतिक ज़िम्मेदारी ली है. प्रधानमंत्री ने उनको इंतज़ार करने के लिए कहा है. 

रेल मंत्री ने ट्वीट पर लिखा, 'तीन साल से भी कम वक्त में मैंने रेलवे की बेहतरी के लिए खून-पसीना लगाया है. प्रधानमंत्री की अगुवाई में दशकों से उपेक्षा के शिकार रहे सभी क्षेत्रों में प्रक्रियात्मक सुधार के ज़रिए सुधार की कोशिश की और अभूतपूर्व निवेश और उपलब्धियां हासिल हुई. प्रधानमंत्री के न्यू इंडिया के लिहाज़ से देश को एक कारगर और आधुनिक रेलवे की ज़रूरत है. मैं वादा करता हूं कि ये वही रास्ता है जिस पर रेलवे बढ़ रहा है.मैं दुर्भाग्यपूर्ण हादसों, यात्रियों के घायल होने और जान जाने से बेहद दुखी हूं. इसकी वजह से मुझे बहुत पीड़ा हुई है. मैंने प्रधानमंत्री से मिलकर पूरी नैतिक ज़िम्मेदारी ली है. प्रधानमंत्री ने मुझे इंतज़ार करने के लिए कहा है.'

इस्तीफा मांगने वालों से भी एक नैतिक सवाल होना चाहिए. इस्तीफा से क्या हुआ. क्या सुरक्षा की स्थिति बदल जाएगी. बदलनी होती तो तीन साल में बदल गई होती. सुरेश प्रभु जब खून-पसीना लगाकर काम कर रहे थे और दावा कर रहे हैं कि उनके अनुसार रेलवे उसी रास्ते पर चल रहा है जिस पर चलना चाहिए, तो ऐसे मंत्री को क्यों जाना चाहिए. जो नया आएगा उसे समझने में ही कई महीने लग जाएंगे या फिर क्या पता रेल मंत्रालय का ढांचा ही पूरा बदल जाए. क्यों नहीं हम मंत्री के ट्वीट के इस हिस्से से इत्तफाक रखते हैं कि 'मैं दुर्भाग्यपूर्ण हादसों, यात्रियों के घायल होने और जान जाने से बेहद दुखी हूं. इसकी वजह से मुझे बहुत पीड़ा हुई है और मैंने प्रधानमंत्री से मिलकर पूरी नैतिक ज़िम्मेदारी ली है.' क्या इतना काफी नहीं है. सुरेश प्रभु ने रेल का कितना भला किया है या रेल तीन साल में कितनी बेहतर हुई है, ये अलग सवाल है और इसे यात्री अपने-अपने अनुभवों और किराये के दाम में बढ़ोत्तरी के आधार पर देखेंगे और देख भी रहे हैं.

VIDEO: आखिर पटरियों से क्यों उतर रही हैं रेल?
19 अगस्त को मुज़फ़्फ़रनगर के खतौली के पास रेल हादसे में 21 लोगों की मौत हो गई और करीब 150 लोग घायल हुए. इस हादसे की लापरवाही ने लोगों में नाराज़गी पैदा कर दी. इसके बाद रेलवे ने अधिकारी स्तर पर कार्रवाई भी की. सीनियर डिविजनल इंजीनियर आरके वर्मा, सहायक इंजीनियर रोहित वर्मा, सीनियर सेक्शन इंजीनियर इंदरजीत सिंह, जूनियर इंजीनियर प्रदीप कुमार को सस्पेंड कर दिया गया. चीफ ट्रैक इंजीनियर अशोक का तबादला कर दिया गया. अधिकारियों को निलंबित नहीं किया गया मगर इस अंतर के कारण भी नाराज़गी हुई.

हालांकि छुट्टी पर भेजा जाना भी सज़ा ही है. फिर भी सवाल उठा कि बड़े अधिकारी सस्पेंड क्यों नहीं किए गए. इसी 31 अगस्त को रिटायर होने वाले मेंबर इंजीनियरिंग एके मित्तल को छुट्टी पर भेज दिया गया. जनरल मैनेजर आरआर कुलश्रेष्ठ और डीआरएम को छुट्टी पर भेजा गया. बुधवार को रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष एके मित्तल ने भी इस्तीफा दे दिया. मित्तल को दो साल का एक्सटेंशन मिला था. 20 नवंबर, 2016 को जब कानपुर के पास पुखरायन में पटना इंदौर एक्सप्रेस डी रेल हुई थी तब बोर्ड स्तर के किसी अधिकारी के खिलाफ इतनी बड़ी कार्रवाई नहीं हुई थी. उसकी तो जांच रिपोर्ट अब तक नहीं आई है जबकि यूपी चुनाव में इसे लेकर न जाने क्या-क्या कहा गया. खतौली की घटना के बाद भी सुरेश प्रभु ट्वीटर पर सक्रिय रहे. जानकारी देते रहे.

इस बार उनसे चूक हुई. 21 लोगों के मौत के वक्त वे एक अख़बार और पीआईबी की रेलवे से जुड़ी उन ख़बरों को रीट्वीट करने लगे जिसमें उनके कार्यकाल में रेलवे में हादसे कम हुए और उन्होंने किस तरह बेहतर काम किया ये बताया गया था. रेलवे सुरक्षा पर मिथ वर्सेज़ रियलिटी को प्रभु ने खूब रीट्वीट किया. बताया कि सेफ़्टी पोज़िशन में नियुक्तियां हो रही हैं. एक अप्रैल तक रेलवे में कुल 6 लाख, 36 हज़ार कर्मचारी हैं. एक पोस्ट में बताया गया कि कहना ग़लत है कि रेलवे का फोकस सुरक्षा से हटा है.

ये सब चल ही रहा था कि बुधवार को यूपी के ही औरैया में कैफियत एक्सप्रेस पटरी से उतर गई. इस हादसे में 70 लोग घायल हो गए. किसी की मौत नहीं हुई. अधिकारियों के मुताबिक, हादसे की वजह बालू लदे डंपर का मानवरहित फाटक के रेलवे ट्रेक पर रहना है. ट्रेन की डंपर से टक्कर हुई और फिर हादसा हुआ. सुरेश प्रभु बार-बार कहते रहे कि सेफ्टी फंड को बुलेट ट्रेन के लिए डायवर्ट नहीं किया गया मगर कांग्रेस इस पक्ष को लेकर आक्रामक हो गई और यात्री किराये में बेतहाशा वृद्धि और अन्य मामलों को लेकर प्रभु पर आरोप लगाने लगी.

पिछले पांच साल में 586 छोटे बड़े हादसे हुए हैं. उसमें 53 फ़ीसदी ट्रेन के ट्रैक से उतर जाने की वजह से हुए. आखिर पटरियों से रेल क्यों उतर रही हैं?

22 जनवरी, 2017: आंध्र प्रदेश में हीराखंड एक्सप्रेस के 8 डिब्बे पटरी से उतरे, क़रीब 39 लोग मारे गए
19 अगस्त, 2017: मुज़फ़्फ़रनगर में उत्कल कलिंग एक्सप्रेस के 14 डिब्बे पटरी से उतरे, 21 लोगों की मौत 
20 नवंबर, 2016: इंदौर-पटना एक्सप्रेस कानपुर में पटरी से उतरी. 150 लोगों की मौत और 150 से ज़्यादा घायल
20 मार्च, 2015: देहरादून-वाराणसी जनता एक्सप्रेस पटरी से उतरी. 58 यात्रियों की मौत,150 से ज़्यादा घायल 


 हालाकि रेलवे का कहना है कि सुरक्षा उपायों में आधुनिक तकनीक की मदद से हादसे के आंकड़ों में कमी आई है. 
 


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