जम्मू कश्मीर को लेकर कोर्ट, सरकार और सियासत में घमासान

बेशक आतंकी इंटरनेट और मोबाइल फोन का भी इस्तेमाल करता है, लेकिन इसी तर्क से इंटरनेट पूरे देश में बंद हो जाना चाहिए. दुनिया से ही बंद हो जाना चाहिए.

जम्मू कश्मीर को लेकर कोर्ट, सरकार और सियासत में घमासान

छोटी-छोटी बातों को बड़ी-बड़ी ख़बर बनाकर डिबेट करने के इस दौर में राजस्थान के उदयपुर से खबर है. यहां के मनवाखेड़ा में सीवर लाइन में काम कर रहे चार कर्मचारियों की मौत हो गई. कुछ दिन पहले की बात है उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में नई सीवर लाइन बिछाते हुए 5 लोगों की मौत हो गई थी. अनगिनत दुर्घटनाओं और उनकी रिपोर्टिंग के बाद भी इस मामले में कहीं कुछ ठोस होता नहीं दिखता है. सिस्टम संवेदनशीलता का नाटक भी नहीं करता है. ये हमारे सिस्टम की ख़ूबी है. श्रीनगर में राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा कि छह महीने के भीतर कश्मीर में इतना विकास होगा कि उस पार का कश्मीर आहें भरेगा. 50 नए डिग्री कॉलेज खुलेंगे और 50,000 पद दो से तीन महीने में भरे जाएंगे. राज्यपाल मलिक ने बताया कि इंटरनेट की सेवा देर से बहाल होगी, क्योंकि उसका इस्तेमाल आतंक के लिए हो रहा है. मोबाइल फोन के बारे में स्थिति के हिसाब से फैसला लिया जाता रहेगा और लैंडलाइन सेवा हर जगह बहाल कर दी गई है.

नेताओं के जेल जाने को लेकर सवाल पूछे जाने पर राज्यपाल मलिक ने कहा भी वे भी 30 बार जेल गए हैं. उन्होंने कहा कि हालात बेहतर होने की ज़िम्मेदारी लोगों पर है. उनका शहर है उनकी दुकानें हैं. हम उनकी खुशामद नहीं करेंगे. वो हमसे मदद मांगेंगे तो हम उपलब्ध कराएंगे. यही नहीं उन्होंने कहा कि जो 370 का हिमायती है उसे पब्लिक जूतों से मारेगी. पब्लिक से अपील है कि वह राज्यपाल की इस बात पर ध्यान न दें. जूतों से किसी को न मारे, लेकिन राज्यपाल से अपील कर सकते हैं कि इंटरनेट छात्रों के लिए ज़रूरी है. परीक्षाओं के फॉर्म भरने में वहां के छात्रों को दिक्कतें हो सकती हैं. यही नहीं यूपीएससी की मेन्स की परीक्षा अगले महीने है. ज़ाहिर है राज्य के छात्रों को इंटरनेट से पढ़ने की ज़रूरत होती होगी. ये सब राज्यपाल ने नहीं बताया इसलिए अपील ही समझें.

बेशक आतंकी इंटरनेट और मोबाइल फोन का भी इस्तेमाल करता है, लेकिन इसी तर्क से इंटरनेट पूरे देश में बंद हो जाना चाहिए. दुनिया से ही बंद हो जाना चाहिए. कम से कम बच्चा चोरी की अफवाह से लेकर सांप्रदायिक बातें रोज़ फैल रही हैं, तो क्या इंटरनेट से लेकर मोबाइल फोन बंद कर दिया जाए. जम्मू कश्मीर की परिस्थिति विशेष है लेकिन इंटरनेट और मोबाइल फोन ठप्प होने से लोगों को तकलीफ भी हो रही है. आज ही इस वजह से एक छात्र ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई कि उसे अपने मां-बाप से बात नहीं हो पा रही है. वहां जाना है. आज ही सीपीएम महासचिव सदस्य को अपनी पार्टी के सदस्य का हाल पूछने के लिए जाने के लिए कोर्ट से अनुमति मांगनी पड़ी.

सुप्रीम कोर्ट ने सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी को कश्मीर जाने की इजाज़त दे दी है ताकि वे अपनी पार्टी के नेता मोहम्मद यूसुफ़ तारिगामी से मिल सकें. तारिगामी हिरासत में हैं. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसका विरोध किया था. उम्होंने कहा कि येचुरी को राज्य सुरक्षा देगा तो कोर्ट का जवाब था कि इसकी आवश्यकता नहीं है. मगर कोर्ट ने यह भी कहा कि सीताराम येचुरी मुलाकात के अलावा किसी अन्य गतिविधि में हिस्सा नहीं ले सकते हैं. किसी भी दूसरी गतिविधि को अदालत के आदेश का उल्लघन समझा जाएगा. सीताराम येचुरी ने 19 अगस्त को याचिका दायर किया थी. इसी याचिका के साथ एक कश्मीरी छात्र मोहम्मद अलीम सैय्यद की याचिका पर भी सुनवाई हुई. सैय्यद अपने माता-पिता से संपर्क नहीं कर पा रहे थे, इसलिए सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी. कोर्ट ने कहा कि सैय्यद अनंतनाग जाकर अपने माता-पिता से मिल सकते हैं. राज्य को आदेश दिया गया है कि सैय्यद को सुरक्षा उपलब्ध कराई जाए. दोनों मामलों की सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगई और जस्टिस एसए बोबडे और जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर की बेंच में हो रही थी. 

एक और याचिका कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन की थी. उन्होंने कहा कि ब्लैक आउट का 25वां दिन है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से 7 दिनों के भीतर जवाब मांगा है. अनुराधा भसीन ने मांग की थी कि अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद वहां इंटरनेट और फोन सेवाएं बंद हैं. इस कारण निर्भिक और निष्पक्ष रिपोर्टिंग का माहौल नहीं है. 10 अगस्त को याचिका दायर की थी. हैरानी की बात थी कि उनकी याचिका के बाद प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप करता है और कहता है कि वह इस याचिका पर अदालत की मदद करना चाहता है.

प्रेस काउंसिल ने अपनी आचार संहिता की 23 का हवाला देते हुए कहा कि संवेदनशील राष्ट्रीय मुद्दों पर पत्रकार और अखबारों को खुद से अंकुश लगाना चाहिए ताकि राष्ट्रहित को ख़तरा न पहुंचे. पत्रकारों के कई संगठन ने प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के इस फैसले की आलोचना की. इंडियन एक्सप्रेस और द हिन्दू में अपने संपादकीय में इस कदम पर हैरानी जताई और आलोचना की. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने बयान जारी कर कहा कि मीडिया की स्वतंत्रता की हिफ़ाज़त करने वाली संस्था को प्रेस की स्वतंत्रता के लिए बात करनी चाहिए लेकिन उल्टा वह मीडिया पर अंकुश लगाने का समर्थन कर रहा है. अजीब है कि वह किसी ख़ास परिस्थिति के नाम पर पाठकों को अंधेरे में रखे जाने का समर्थन करता है. गिल्ड ने प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन जस्टिस सीके प्रसाद से उम्मीद जताई है कि वह अपना फ़ैसला वापस लें. वह अपनी संस्था के नैतिक बल का प्रयोग करते हुए मीडिया पर लगे अंकुश को हटाने में मदद करना चाहिए.

शब्दश अनुवाद नहीं है. अब खबर यह है कि प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने अपना स्टैंड बदलने का फैसला लिया है. अब काउंसिल का कहना है कि वह प्रेस की स्वतंत्रता के साथ है. मीडिया पर किसी हक के साथ नहीं है. उधर, आज सुप्रीम कोर्ट में काफी कुछ हुआ. मनोहर लाल शर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुई अनुच्छेद 370 हटाए जाने की याचिका संविधान पीठ को सौंप दी गई है, जिस पर अक्तूबर के पहले हफ्ते से सुनवाई होगी. अटार्नी जनरल ने कोर्ट से कहा कि इस मामले में नोटिस जारी न करें, अति संवेदनशील मामला है. दूसरे देश इसका फायदा उठा सकते हैं. तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नोटिस जारी हो चुका है. हम आदेश में बदलाव नहीं करेंगे. हम जानते हैं लेकिन हम क्या करें.

बात भी सही है कि कल को पाकिस्तान अखबार की कटिंग निकालकर कहां इस्तेमाल करेगा, इस डर से तब तो अखबार ही छपना बंद हो जाए. सुप्रीम कोर्ट में आज एक और याचिका पर सुनवाई हुई, लेकिन राजनीति पर इस डर का असर दिख गया. पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र की याचिका में राहुल गांधी के बयान का उदाहरण दे दिया राहुल गांधी ने सुबह ट्वीट किया कि मैं कई मुद्दों पर सरकार से असहमत हूं. लेकिन, मैं ये बिल्कुल साफ़ कर देना चाहता हूं कि कश्मीर भारत का अंदरूनी मामला है और इसमें पाकिस्तान या किसी दूसरे देश के दखल की गुंजाइश नहीं है. जम्मू-कश्मीर में हिंसा हो रही है, लेकिन ये हिंसा इसलिए है, क्योंकि दुनिया भर में आतंकवाद के मुख्य समर्थक पाकिस्तान द्वारा इसे उकसाया जा रहा है और समर्थन दिया जा रहा है.

राज्यपाल मलिक ने कहा कि ये सफाई तभी देते जब लोकसभा में कांग्रेस के नेता ने संयुक्त राष्ट्र की बात की थी. तब क्यों नहीं सफाई दी. इस पर कांग्रेस की प्रेस कांफ्रेस के तेवर कुछ अलग कह रहे थे. ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस किसी अपराध बोध से निकलने की कोशिश कर रही है और ज़ोर-ज़ोर से आतंकवाद के पीछे पाकिस्तान की भूमिका को दोहरा रही है. वहां से वह बलूचिस्तान तक पहुंच गई. मगर बीजेपी की तरफ़ से सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने प्रेस कांफ्रेस की और कहा कि राहुल मांगे. कांग्रेस की तरफ से रणदीप सुरजेवाला ने प्रेस कांफ्रेंस की और कहा कि प्रकाश जावड़ेकर माफी मांगे. ताज़ा समाचार मिलने तक दोनों ने माफी नहीं मांगी थी.

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इस तर्क से तो न अखबार छपना चाहिए न टीवी चलना चाहिए, क्योंकि पाकिस्तान इस्तेमाल कर लेगा. भारत एक लोकतांत्रिक देश है. यहां सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया पर अंकुश के सवाल पर सरकार को नोटिस दिया है. कोर्ट में भी कहा गया कि नोटिस जारी न करें, कोई इस्तेमाल कर सके. तो क्या इस वजह से सुप्रीम कोर्ट संवैधानिक कार्य न करे कि पाकिस्तान इस्तेमाल कर लेगा. अब बात करते हैं भारतीय प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा देने वाले कन्न गोपीनाथन से. कन्नन ने इस बात को लेकर इस्तीफा दे दिया कि कश्मीर के लोगों को प्रतिक्रिया ज़ाहिर करने का अधिकार नहीं मिल रहा है. जिस तरह से सरकार के पास कदम उठाने का अधिकार है, उसी तरह से लोगों के पास अधिकार होना चाहिए कि वे भी प्रतिक्रिया व्यक्त करें. उन्हें इस सवाल पर देश की चुप्पी ने बेचैन कर दिया और इस्तीफा दे दिया.