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वीरांगना: पराजय स्वीकार नहीं करनेवाली एक नन्ही जान, सेना के डॉक्टरों ने दी प्री-मैच्‍योर बेबी को नई जिंदगी

श्रीनगर स्थित 92 बेस अस्‍पताल जिसे उसके जज्‍बे के लिए हर कोई जानता है, वहां पर सेना के डॉक्‍टरों ने दिन-रात एक करके नन्‍हीं सी जान को बचाया है. इस बच्‍ची को डॉक्‍टरों ने 'वीरांगना' नाम दिया है.

वीरांगना: पराजय स्वीकार नहीं करनेवाली एक नन्ही जान, सेना के डॉक्टरों ने दी प्री-मैच्‍योर बेबी को नई जिंदगी
Srinagar:

जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष करती एक अत्यंत नाजुक स्थिति में, चिनार कॉर्प्स के अधीन बीबी कैंट स्थित 92 बेस अस्पताल ने असंभव को संभव कर दिखाया. यहां एक बच्ची का जन्म मात्र 26 सप्ताह और 5 दिन की गर्भावस्था में हुआ, जिसका वजन सिर्फ 750 ग्राम था. यह नवजात बच्ची समय से लगभग तीन महीने पहले दुनिया में आई थी. उसकी मां, एक 30 वर्षीय महिला, एक गंभीर रक्त विकार इम्यून थ्रॉम्बोसाइटोपीनिया से पीड़ित थीं, जिससे उनके प्लेटलेट्स बेहद कम हो गए थे. इसी दौरान उन्हें प्लेसेंटल एब्रप्शन जैसी जानलेवा गर्भावस्था संबंधी जटिलता हो गई, जिससे मां और गर्भस्थ शिशु दोनों की जान को खतरा उत्पन्न हो गया. उनका पेट अंदर से लगभग 1.5 लीटर रक्त से भर गया था और वे ‘शॉक' की हालत में थीं. "

डॉक्‍टरों के सामने थी चुनौतियां 

हालात की गंभीरता को देखते हुए 92 बेस अस्पताल, श्रीनगर में आपातकालीन सिजेरियन ऑपरेशन किया गया ताकि मां की जान बचाई जा सके और गर्भस्थ शिशु को एक जीवन का एक अवसर दिया जा सके. बच्ची जब पैदा हुई, तो वह बेहद नाजुक और कमजोर थी—जीवन की डोर मानो किसी भी क्षण टूट सकती थी. उसे तुरंत नवजात गहन चिकित्सा इकाई (NICU) में भर्ती किया गया, जहां डॉक्टरों और नर्सों की टीम ने दिन-रात एक कर उसके जीवन को बचाने की पुरजोर कोशिश शुरू की. 

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जन्म के तुरंत बाद उसे सांस लेने में तकलीफ हुई और उसे कृत्रिम सहायता दी गई. अगले 65 दिन लगातार संघर्ष के दिन थे अर्थात यह अविश्वसनीय चुनौतियों के बीच डॉक्टरों की अथक मेहनत और ममता से भरे स्पर्श की सच्ची कहानी थी. यह बच्ची अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रही थी, और उसकी सबसे बड़ी ताकत थी—जिंदगी के तार को पकड़ कर रखने की ज़िद. 

क्‍यों पड़ा नाम वीरांगना 

बच्ची की दो महीने से अधिक समय तक चौबीसों घंटे देखभाल की गई. उसे विशेष श्वसन सहायता, जीवनरक्षक दवाएं और बार-बार पुनर्जीवन की आवश्यकता पड़ी. उसके दिल में एक सुराख भी था, जिसे कई चरणों में दी गई दवाओं से नियंत्रित किया गया. हर दिन, हर पल वह थोड़ी और मजबूत होती गई—जब तक कि वह खुद सांस लेने लगी और 1.89 किलोग्राम के स्वस्थ वजन तक नहीं पहुंच गई. अब तक इस लंबी प्रक्रिया में अस्पताल के स्टाफ ने उससे एक गहरा भावनात्मक जुड़ाव महसूस किया और उसे प्यार से नाम दिया—"वीरांगना".

उसकी चमत्कारी जीवित बचाव की यह कहानी केवल एक आशा की किरण ही नहीं है, बल्कि 92 बेस अस्पताल के समर्पित चिकित्सकीय दल की निष्ठा, विशेषज्ञता और मानवीय संवेदना की बेहतरीन मिसाल है. यह एक चिनार योद्धा की जन्मजात वीरगाथा है—एक कहानी, जिसमें विज्ञान है, साहस है, संघर्ष है और सबसे महत्वपूर्ण यह एक ऐसी सच्ची वीरांगना की आत्मा थी ,जो कभी पराजय स्वीकार कर ही  नहीं  सकती थी. 

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