विज्ञापन
This Article is From Jul 10, 2019

कर्नाटक के बहाने विपक्ष के खात्मे का प्लान

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 10, 2019 23:13 pm IST
    • Published On जुलाई 10, 2019 23:13 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 10, 2019 23:13 pm IST

गुजरात विधानसभा में शिक्षा मंत्री ने बताया है कि 2016 के साल में 6 लाख से अधिक बच्चों ने सरकारी स्कूल छोड़ दिया. क्या सरकारी स्कूल पढ़ने लायक नहीं हैं या कोई और वजह रही होगी. 6 लाख बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया है. इसी तरह गुजरात के स्कूलों में 17 हज़ार से अधिक कमरे नहीं हैं. सरदार पटेल के गृह ज़िले में 269 स्कूल हैं मगर 892 कमरे कम हैं. कमरे कम होते हैं तो दो से तीन क्लास के बच्चे पढ़ते होंगे. किसे पता नहीं है ये सब. सरदार पटेल की प्रतिमा का बजट भी देखना चाहिए. शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि 3000 करोड़ ही ख़र्च हुए वरना तो 6000 करोड़ की प्रतिमा बन सकती थी. बिहार में भी प्रतिमाओं की सख़्त ज़रूरत है. बिहार के महापुरुषों की जिस तरह उपेक्षा हुआ है उसे देखते हुए कम से कम दस हज़ार करोड़ का बजट तो इसके लिए रखना ही चाहिए. क्या आपको यह जानकर फर्क पड़ता है कि बिहार के सरकारी अस्पतालों में 43 फीसदी ही डाक्टर हैं. 67 डॉक्टर की कमी है. नर्स तो 29 प्रतिशत ही हैं. बिहार सरकार का शुक्रिया. उसने यह बात किसी से नहीं छिपाई. सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर बता दिया है. इस कमी को बिहार जल्दी दूर कर सकता है अगर हर शहर में महापुरुष प्रतिमा निर्माण योजना लांच हो जाए. यह जानकारी इसलिए नहीं दी कि स्कूल और अस्पताल को लेकर लोग सोचें. इसलिए दी ताकि व्हाट्सऐप में गुडमॉर्निंग मैसेज भेजते रहें. अब उपभोक्ता अधिकार की बात करते हैं. मान लीजिए आप किसी होटल में कमरा बुक करते हैं, आप होटल पहुंचते हैं और बाहर पुलिस रोक देती है. ऐसे में आपको उपभोक्ता अधिकार कानून क्या कहते हैं?

कर्नाटक कांग्रेस के नेता डीके शिवकुमार मुंबई के रेनासां होटल में जाना चाहते थे, मुंबई एयरपोर्ट से सीधे पोवई स्थित रेनेसां होटल मुंबई पहुंच गए. पुलिस के हाथ में विधायकों का पत्र था. शिवकुमार के हाथ में होटल में कमरे की बुकिंग का कागज़. पुलिस ने शिवकुमार को रोक दिया. कहा कि विधायको ने पत्र लिखा है कि उन्हें सुरक्षा चाहिए, क्योंकि उन्हें डर है कि शिवकुमार और मुख्यमंत्री कुमारस्वामी कभी भी अंदर आ सकते हैं. हम भारत के भोले भाले लोग विपक्ष की सरकारों को निरंगत ढ़हते ढ़हाते देख रहे हैं. उस सीरीयल की तरह जिसे हम देखते हुए भी नहीं देखते हैं. ख़ुद भी विपक्ष को ख़त्म होते देख रहे हैं, समझते हुए भी नज़र फेर रहे हैं. इस तरह के बहाने के इस्तमाल से शिवकुमार को होटल से बाहर रोक दिया गया. होटल वाले ने कारण बताया कि इमरजेंसी कारणों से कमरे की बुकिंग रद्द कर जाती है.

शिवकुमार के साथा मिलिंद देवड़ा, संजय निरुपम भी धरने पर बैठ गए. बाद में पुलिस ने पोवई में भीड़ के ज़मा होने पर रोक लगा दी और इन तीनों को गाड़ी में लादकर ले गई. होटल के बाहर पुलिस का बंदोबस्त है. कहीं कुमारस्वामी न आ जाएं. ये तमाशा आप इसलिए देख रहे हैं, क्योंकि इससे भी बड़ा तमाशा आप देखने वाले हैं. शिवकुमार अनोखे कांग्रेसी बताए जा रहे हैं. एक ऐसे वक्त में जब कांग्रेस के नेता पस्त नज़र आ रहे हैं, शिवकुमार सामने से लोहा ले रहे हैं. उस मोर्चे पर पहुंच गए जहां ईमानदार और लोकतंत्र की शुभचिंतक शक्तियों ने उनकी पार्टी के विधायकों के ठहरे का इंतज़ाम किया हुआ है. यह दृश्य कत्तई दुखद नहीं है, क्योंकि ऐसे दृश्य आप पहले भी देख चुके हैं. सुखद यह है कि देखने वालों को एक एक कर विपक्ष के खत्म किए जाने वाले इन प्रयासों से गज़ब की राहत मिल रही है. उम्मीद है न्यूज़ चैनल अपना फर्ज़ निभा रहे होंगे.

होटल के बाहर शिवकुमार और होटल के भीतर बाग़ी विधायक एसटी सोमशेखर. इन दोनों के बयान सुनिए. सियासी बयानों में वियोग की ऐसी अभिव्यक्ति पहले नहीं सुनी गई होगी. एक मिलने के लिए मनुहार कर रहा है तो दूसरा न मिलने का उदगार पेश कर रहा है. भारत की राजनीति में राजनीति के ख़त्म होने से पहले का यह वाक़्या वाकई सारगर्भित है. इसे नहीं समझना ही आने वाले कल के हित में है और आप सभी ऐसा कर भी रहे हैं.

शिवकुमार ने कहा, 'मैं अपने दोस्तों से बिना मिले नहीं जाऊंगा. वे मुझे फोन करेंगे. उनका दिल टूट जाएगा. मैं उनके संपर्क में हूं. दोनों के दिल धड़क रहे हैं. मेरे पास दिल है. हथियार नहीं है. हम राजनीति में एक साथ पैदा हुए हैं. हम एक साथ मरेंगे. होटल को मेरे जैसे कस्टमर पर गर्व करना चाहिए था. मैं मुंबई को प्यार करता हूं. मैं इस होटल को भी प्यार करता हूं. उन्हें कमरा कैंसल करने दो, मेरे पास और भी कमरे हैं. हम भाई-भाई हैं. हमारे बीच इतनी जल्दी तलाक नहीं हो सकता है. मैं उन्हें लेकर ही जाऊंगा. कोई भी कभी भी बदल सकता है. राजनीति में साथ जन्म होता है. हम साथ मरेंगे.

शिवकुमार के एक-एक डॉयलोग राजनीति में उन चीज़ों को पुकार रहे थे जो कब की ख़त्म हो गई है. उनकी बातें बहुत पहले पढ़ कर भुला दी गई कविता की तरह मेरे कानों में गूंज रही है. सियासत में वियोग के लम्हे को शिवकुमार ने अमरत्व प्रदान किया है. आज अगर न्यूज़ीलैंड की टीम शिवकुमार के इन बयानों को सुन लेती तो भारत से कभी नहीं जीत पाती. भारत से ख़ुशी ख़ुशी हार जाती. उधर, बाग़ी भी कम कवि नहीं हैं. विधायकों ने भी इसी अंदाज़ में बयान दिए हैं. वे होटल में बंद हैं मगर उनके दिल भी धड़क रहे हैं. उदासी में या खुशी में ये तो मिलने पर ही पता चलता.

सियासत में पार्टी छोड़कर जाने वाला मुड़कर नहीं देखता है. वे अतीत के दिनों को नहीं गिनता है, जाने के बदले जो मिलता है उसे गिनने में लगा रहता है. यहां गिनने का अर्थ पैसा नहीं है. खुशी भी हो सकती है. हमने उनके बयानों को उठाकर इस ग्राफिक्स पटल पर सजाया है. मुंबई में दर्दे दिल कब का दर्दे डिस्को हो चुका है. पोलिटिक्स में दर्दे खिसको नया आया है. हम डी के शिवकुमार का अपमान नहीं करना चाहते हैं. हम उन पर भरोसा करते हैं, लेकिन कुछ कारण हैं जिससे हमने यह कदम उठाया है. दोस्ती, प्यार, अनुराग एक तरफ है, हम उनसे गुज़ारिश करते हैं कि वे समझने की कोशिश करें कि हम क्यों आज उनसे नहीं मिल सकते हैं. गो बैक गो बैक.

यकीन जानिए कठोर हो चुकी राजनीति में प्रेम और वियोग का ऐसा मणिकांचन योग पहली बार देख रहा हूं. वियोग में प्रेम की इस सुंदरतम अभिव्यक्ति पर मुंबई पुलिस का निष्ठूर पहरा है. बाग़ी विधायकों की पीड़ा को भी समझिए. उनकी हालत उस कस्टमर की तरह है जो अपनी कार बेचने के बाद वापस खरीद लाना चाहते हैं मगर नई कार की चमक में पुरानी कार की उदासी खो जाती है. वे फिर नई कार के उमंगों में तैरने लगते हैं. 

कांग्रेस कहती है कि बीजेपी चुनी हुई सरकार को गिरा रही है, जबकि बीजेपी ऐसा कभी नहीं करती है. बीजेपी जो भी करती है अच्छा करती है. बीजेपी बुरी होती तो कांग्रेस के इतने विधायक या सांसद उस पार्टी में जाकर पुनर्जवन को प्राप्त नहीं कर रहे होते. येदियुरप्पा ने कहा है कि हम संन्यासी नहीं है जो बैठे रहे हैं और देखते रहे. इस बात में भी विराट भाव है. एक सरकार अज्ञात कारणों से गिर रही है, अज्ञात इसलिए है कि हम जानते हुए भी नहीं जानना चाहते हैं. यह सबसे सुखद क्षण होता है. सरकार गिराने के इस खेल में पैसे का हिसाब कौन जान सकता है. दो साल में इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए जो चंदा आया है वो 985 करोड़ का है. 985 करोड़ में सिर्फ 70 करोड़ विपक्षी दलों को मिला है. इसमें कांग्रेस सहित सभी दल शामिल हैं. 985 करोड़ में से 915 करोड़ बीजेपी को मिला है. 92.5 फीसदी चंदा बीजेपी को गया है. हिसाब 2016-17 और 2017-18 का है.

एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म का अध्ययन है यह. चंदे का यह हिसाब पूछ रहा है कि क्या खास तरीके से राजनीति में असंतुलन पैदा किया जा रहा है. विपक्ष को कमज़ोर करने का यह तरीका अच्छा है, जैसा कि मैंने कहा यह तो हमेशा से होता रहा है. कॉरपोरेट नौकरी नहीं दे रहा है मगर चंदा दे रहा है. भारत के लोकतंत्र में कॉरपोरेट का यह योगदान विपक्ष के खात्मे के लिए नहीं बल्कि पारदर्शी तरीके से चंदा देने में याद किया जाएगा. बाकी व्यंग्य को समझना इतना आसान नहीं है. सबके बस की बात नहीं है, इसलिए कुछ भी हो जाए व्हाट्सऐप में गुडमॉर्निंग मैसेज भेजते रहना है भले ही शाम हो जाए. पैसे की चिंता नहीं करनी है और न ही लोकतंत्र की.

जब तक समय समय पर ऐसे विधायकों के वीडियो आते रहेंगे, वायरल होते रहेंगे तब तक यकीन रखिए भारत के लोकतंत्र को कुछ नहीं होगा. विधायक की भुजाओं का भूगोल बता रहा है कि अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देते हैं. वोट देने वाली जनता की सेवा तो करते ही होंगे. यह वीडियो विधायक के निजी उल्लास का है, वे अपने निजी क्षणों में बंदूक डांस कर रहे हैं, जब दुनाली से मन भरता है तो मुंह में पिस्तौल दबा लेते हैं. काश इतने चार हाथ होते तो ये कम से कम आठ बंदूके उठाकर नृत्य कौशल का प्रदर्शन करते. दो हाथ में बंदूकें हैं एक मुंह में. कम से कम तीन हाथ ही होते तो तीनों बंदूकें सही जगह पर होतीं. बहरहाल यह प्रदर्शन अनुकरणीय है. आप इन्हें फास्ट मोशन और स्लो मोशन दोनों ही मुदाओं में नृत्य करते देखिए. लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई में हमने प्रतिनिधि जब तक लोकतंत्र के ड्राइंग रूम में हैं, उनके साथ नाचने के लिए कुछ चमचे हैं मैं कह रहा हूं आप मानिए मेरी बात, भारत के लोकतंत्र को कोई ख़तरा नहीं है. ख़तरा तब होगा जब ऐसे भुजाधारी बंदूकधारी नृत्यकौशल विधायक राजनीतिक पटल से ग़ायब हो जाएंगे.

वर्तमान में बीजेपी के विधायक हैं मगर कांग्रेस से ही आए हैं. कांग्रेस में होने की यह योग्यता इन्हें बीजेपी में ले आई. बीजेपी ने इन्हें निलंबित किया हुआ है. पिछले महीने किया है. बताइये इसके बाद भी आनंद की इस मुदा में हैं. कुंवर प्रणव सिंह उत्तराखंड के खानपुर की जनता के प्रिय हैं. खानपुर की जनता ने इस गुणी नेता को चुनने का जो काम किया है उसके लिए उसे बधाई मिलनी चाहिए. कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन. चैंपियन नाम है इनका. चैंपियन ने कहा है कि बंदूक में गोलियां नहीं थीं. ख़ाली थीं. सभी का लाइसेंस है. इसमें क्या अपराध है. क्या शराब पीना और लाइसेंस बंदूक रखना अपराध है. बिल्कुल मैं विधायक चैंपियन की बात से सहमत हूं. यह अपराध नहीं हैं. एक विधायक को भी रसरंजन की अनुमति होनी चाहिए. उसे ख़ुश रहने का अधिकार है. आप निंदा कर भारत की राजनीति में सबकुछ अच्छा क्यों करना चाहते हैं. इस वीडियो से मनोरंजन हुआ, उसके लिए विधायक का शुक्रिया कहना चाहिए.

उन्होंने एक वीडियो जारी किया है, जिसमें उनके पांव टूटे हुए हैं. सफाई में कहा है कि ये वीडियो कांग्रेस के समय का है. विरोधियों ने अभी जारी किया है. ये कैसे विरोधी हैं जो कांग्रेस से भाजपा में जाने के इतने दिनों बाद वीडियो जारी करते हैं. ऐसे विरोधियों को सिर्फ शर्बत ही शर्बत नसीब हो. वो भी खूब चीनी वाली.

डीके शिवकुमार और बाग़ी विधायकों ने अगर भारत की राजनीति में वियोग को एक मुकाम दिया है तो प्रबल भुजाधारी कुंवर प्रणव सिंह ने भी अपने ट्वीट में आपके लिए कुछ भेजा है. वे आठ साल की उम्र से ही हथियार चला रहे हैं. मुझे तो लगा कि वे जल्दी कहेंगे कि वे पाकिस्तान से लड़ने के लिए हथियार का प्रशिक्षण बालकाल से ही ले रहे थे. ऐसा कह देते तो आज कुंवर साहब भारत भर के लिए प्रेरणा बन जाते, खैर उन्होंने ट्वीट किया है कि

फर्क़ नहीं पड़ता मर्दों को, चोट खाने या गंभीर घायल हो जाने पर, अपने फ़र्ज़ को हर हाल में कर्तव्य परायणता से निभाते हैं. फर्क नहीं पड़ता मर्दों को, इस लाइन को पढ़ते हुए दो बातें याद आई. मर्द फिल्म का वो डायलॉग. मर्द के सीने में दर्द नहीं होता. दूसरी बात यह याद आई कि काश मेरे पास भी ट्रक होता तो उसके पीछे इन अद्भुत पंक्तियों को लिखता ताकि देश भर के हाईवे यात्री इसे पढ़कर प्रेरणा लेते और विधायक बनते. आज मुझे ट्रकों की कमी महसूस हो रही है. वैसे पिछले महीने बीजेपी ने पत्रकारों से बुरा बर्ताव करने के कारण तीन महीने के लिए निकाल दिया था. आरोप था कि इन्होंने अपने कर-कमलों से एक पत्रकार के गाल प्रदेश में अतिक्रमण करने का प्रयास किया था. अर्थात थप्पड़ मारने की कोशिश की थी.

ये वीडियो प्राचीन काल के हैं जब भारत में वीडियो कैमरे का आविष्कार हुआ था. उसके रिकॉर्डिंग परीक्षण के दौरान विधायक ने एक रिपोर्टर पर हाथ उठाया था. प्रधानमंत्री मोदी ने आकाश विजयवर्गीय के प्रसंग पर कहा था कि बदसलूकी करना, बदनाम करना और अहंकार दिखाना स्वीकार नहीं है. उनका इम्तहान बढ़ता जा रहा है. अभी सांसदों को गांधी के लिए पदयात्रा पर भी जाना है. प्रज्ञा ठाकुर को भी जाना होगा. पदयात्रा पर निकले नेताओं को जब कुंवर प्रणव सिंह मिलें तो उनसे गले मिलें. इस भ्रम में न रहें कि यह वीडियो प्राचीन भारत का है. हाल फिलहाल का ही है. हां मिलते समय हेलमेट का इस्तमाल करें. 

ऐसे प्रसंग आते रहेंगे. श्याम जाजू जी ने बयान जारी किया है कि इन्हें स्थायी तौर से निलंबित किए जाने की सिफारिश की जा रही है. कुवंर प्रणव सिंह सिर्फ एक बंदूक नृत्य के कारण सत्ता पक्ष से विपक्ष की तरफ धकेल दिए गए. कांग्रेस के 9 विधायकों से साथ बीजेपी में आए थे, उन्हें अकेले बाहर जाते हुए कितना खल रहा होगा. उनका यह अकेलापन मैं समझ रहा हूं. खासकर आज के दिन. आज भारत का हारना और आपका मायूस होना अच्छा नहीं लगा. सोचा था कि आपके साथ फाइनल देखूंगा और भारत जीतेगा. पर कोई बात नहीं. विराट की टीम चैंपियन टीम है. इस टीम में आप क्रिकेट प्रेमियों को कितने ही यादगार पल दिए. टीम के साथ बने रहिए. हमेशा हारने वाले के साथ खड़ा होना चाहिए. ताकि हार की भावना हम पर हावी न हो. जीतने वाली टीम रही है टीम इंडिया. न्यूज़ीलैंड की टीम को बधाई. लगातार दूसरी बार फाइनल में पहुंची है. सर रिचर्ड हेडली की शालीनता तो याद होगी आपको. आइये न्यूज़ीलैंड के लिए दुआ करते हैं. ऐसा करेंगे तो लगेगा कि आप हार कर भी जीते हैं.

अब आते हैं कुछ सामान्य ख़बरों पर. क्या यह सामान्य बात है कि बजट में खर्चे और कमाई के हिसाब में 1 लाख 70 हज़ार करोड़ का अंतर हो गया है. क्या सरकार बजट घाटे को छिपाने के लिए ऐसा कर रही है. आज अर्थशास्त्र के एक और प्रोफेसर सुनील धरन ने बजट में कमाई और खर्चे के बीच 1 लाख 70 हज़ार करोड़ के अंतर पर सवाल उठाया है. पूछा है कि इतना पैसा बजट के हिसाब से कैसे गायब हो सकता है. क्या सरकार जानबूझ कर कुछ छिपा रही है? इन प्रोफेसर का कहना है कि 2018-19 के रिवाइज़्ड एस्टिमेट में टैक्स रेवन्यू 14.8 लाख करोड़ था. यह अंतरिम बजट में था जो फरवरी के महीने में चुनाव से पहले पेश किया गया था. जून महीने में सीजीए, कंट्रोलर जनरल ऑफ अकाउंट्स ने बताया था कि टैक्स रेवन्यू 13.16 लाख करोड़ ही है. जून में आया यह आंकड़ा लेटेस्ट माना जाता है. इन दोनों में 1.67 लाख करोड़ का है. 14.8 लाख करोड़ के टैक्स रेवेन्यू के हिसाब से भारत का वित्तीय घाटा कम लगेगा. 13.16 लाख करोड़ का डेटा लेंगे तो वित्तीय घाटा बढ़ जाता है, क्योंकि राजस्व कम होगा, कमाई कम होगी और खर्चा ज़्यादा होगा तो वित्तीय घाटा बढ़ेगा. अगर सरकार ने खर्चे में कमी की होगी तो वैसी स्थिति में वित्तीय घाटा कम हो सकता था, लेकिन वित्त मंत्री हर बार कह रही हैं कि ख़र्चे में कोई कमी नहीं की गई है.

2018-19 में सरकार ने बताया था कि कितना कमाएगी. बजट 2019-20 में इन्हीं आंकड़ों का इस्तेमाल हुआ, लेकिन इकनॉमिक सर्वे में जो सही आंकड़ा था उसका इस्तेमाल नहीं हुआ. जो ताज़े आंकड़े हैं उसका इस्तमाल नहीं हुआ. अर्थशास्त्री जयति घोष कहती हैं कि अगर आर्थिक सर्वे के आंकड़ें सर्वे हैं तो इसका एक ही समाधान है कि फिर से बजट पेश किया जाए. इसे लेकर सदन में सवाल जवाब भी हुआ जहां वित्त मंत्री ने जवाब दिया.

श्रीनिवासन जैन ने एक और प्वाइंट उठाया है. हम समझते हैं कि इसे समझना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन इतना भी मुश्किल नहीं है कि आप समझ ही न सकें. आपको बता दें कि आर्थिक सर्वे में वित्तीय घाटा जीडीपी का 3.4 प्रतिशत बताया गया है. बजट में कहा जाता है 3.3 प्रतिशत है वित्तीय घाटा. आखिर घाटे पर पर्दादारी क्यों है. आपको यह भी समझना है कि सीजीए यानी कंट्रोलर जनरल ऑफ अकाउंटस ही अधिकृत डेटा देता है. वित्तीय घाटे के बारे में. अगर उसके आंकड़े को बजट में जगह नहीं मिल रही है, या सीजीए के नंबर सही नहीं हैं तो रथिन राय का कहना है कि इसका एक ही मतलब है कि भारत में वित्तीय आंकड़ों का ढांचा ढह गया है. रथिन रॉय प्रधानमंत्री मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य हैं. बहरहाल, श्रीनिवासन जैन ने अपने लेख में समझाया है कि 2018-19 के रिवाइज्ड एस्टिमेट में कुल राजस्व 17.3 लाख करोड़ बताया गया था. आर्थिक सर्वे में कहा गया कि कुल राजस्व 15.6 लाख करोड़ है. दोनों के बीच अंतर है 1 लाख 70 हज़ार करोड़. 2018-19 के बजट में सरकार ने कहा था कि 24.6 लाख करोड़ ख़र्च होंगे. आर्थिक सर्वे में कहा जाता है कि 23.1 लाख करोड़ खर्च हुआ है. यानि खर्चा कम हुआ है. 1 लाख 50 हज़ार करोड़ खर्च कम हुआ है.

यह सारी बातें हिन्दी के दर्शकों और पाठकों तक नहीं पहुंचने दी जाती है, ताकि हिन्दी का दर्शक या पाठक व्हाट्सऐप करने के लायक ही रहे. यह सवाल आप पूछिए कि हिन्दी के अखबारों में ऐसी जटिल चीज़ें क्यों नहीं होती हैं. वित्त मंत्रालय ने आज एक स्पष्टीकरण जारी किया है. कहा है कि वित्त मंत्रालय में मीडिया के प्रवेश पर कोई रोक नहीं लगी है. मीडिया के लोगों को मंत्रालय में आने के लिए एक प्रक्रिया बनाई गई है. पत्रकारों ने वित्त मंत्री से कहा था कि उनके इंतज़ार करने के लिए कमरा नहीं हैं, तो उनके लिए गेट नंबर 2 नॉर्थ ब्लॉक के बाहर इंतज़ाम कर दिया गया है, जहां चाय पानी का इंतज़ाम होगा. लेकिन मंत्रालय में उनका प्रवेश पहले से तय अप्वाइंटमेंट के आधार पर ही होगा. वित्त मंत्रालय कवर करने वाले पत्रकार इस जवाब से संतुष्ट नहीं हैं. सोमेश झा जिन्होंने 45 साल में सबसे अधिक बेरोज़गारी वाली रिपोर्ट ब्रेक की थी, जिसे उस वक्त सरकार ने रिजेक्ट कर दिया था मगर चुनाव के बाद उसे कुछ बदलावों के साथ मान लिया था. यह इसलिए संभव हो सका, क्योंकि सोमेश जैसे पत्रकार पीआईबी कार्ड के ज़रिए लोगों से मिलते जुलते रहते हैं. अब अगर अप्वाइंटमेंट से मुलाकात होगी तो उसका रिकॉर्ड होगा और कोई अधिकारी असली खबर नहीं बता सकेगा. 

उधर, एडिटर्स गिल्ड ने भी एक बयान जारी किया है. गिल्ड ने वित्तर मंत्रालय के फैसले की आलोचना करते हुए कहा है कि पत्रकार सरकार के दफ्तर में चाय काफी पीने के लिए नहीं जाते हैं. पत्रकार जाते हैं ताकि वे गंभीर चुनौतियों को उठाते हुए खबरों को निकाल सकें. यह उनके लिए चैलेंज होता है. यह निर्णय दूसरे मंत्रालयों को भी प्रेरित कर सकता है. इन्हीं सब कारणों से प्रेस फ्रीडम के मामले में भारत की रैंकिंग और गिर जाएगी. अभी प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में भारत का स्थान 180 देशों में 141 वां है. सोचिए जिस प्रेस की दुनिया में कोई साख नहीं उसके लिए आप कितना पैसा महीने का देते हैं. कभी सोचिए भी कि जब प्रेस स्वतंत्र नहीं है तो आप मीडिया पर पैसे किस लिए खर्च कर रहे हैं.

अमेरिका में प्रेस से संबंधित एक फैसला आया है जो भारत सहित दुनिया भर के लिए नज़ीर बन सकता है. अमेरिका में प्रेस की स्वतंत्रता के लिए एक संविधान संशोधन कानून भी है जिसे र्फ्स्ट अमेंडमेंट कहते हैं. राष्ट्रपति ट्रंप का एक पर्सनल ट्विटर अकाउंट है, जिसका इस्तेमाल वे राष्ट्रपति के तौर पर भी करते हैं. राष्ट्रपति ट्रंप ने ट्विटर अकांउट पर सात लोगों को ब्लॉक कर दिया था. ये सात लोग उनकी आलोचना करते थे. इनमें से एक पत्रकार रेबेका बक वॉल्टर पोज़ा भी हैं. इन सातों ने अमेरिका की अदालत में जुलाई 2017 में फाइल किया था. दो साल तक चले इस मुकदमे का फैसला आया है. इस फैसले में पहली बार र्फ्स्ट अमेंडमेंट की व्याख्या सोशल मीडिया के हिसाब से की गई है. फैसले में जज पार्कर ने लिखा है कि फर्स्ट अमेंडमेंट ऐसे सरकारी अधिकारियों को ब्लॉक करने से रोकता है जो उन अकाउंट का इस्तेमाल सरकारी सेवाओं के लिए करते हैं. वे किसी को बाहर नहीं कर सकते हैं. लोकसेवक को कोई बात सही नहीं लगती है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह ब्लॉक कर देगा. लोगों को यह याद दिलाना होगा कि लोकहित के किसी मुद्दे पर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों का बोलना ही अच्छा होता है. याचिकार्ताओं ने यह भी सवाल उठाया है कि ट्रंप ने उन सात लोगों के अलावा 250 से अधिक अकाउंट ब्लॉक किया है. अदालत आदेश देती है कि राष्ट्रपति ट्रंप अपने ट्विटर हैंडल पर किसी को ब्लॉक नहीं कर सकते हैं.

अमेरिका में अदालत राष्ट्रपति को आदेश दे रही है कि वे किसी नागरिक को अपने ट्विटर अकाउंट पर ब्लॉक नहीं कर सकते हैं. भारत में आप फेसबुक पर आलोचना कर दें प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री की तो अदालत से ज़मानत लेनी पड़ती है. पाकिस्तान में विपक्ष की नेता मरयम नवाज़ का भाषण दिखाने के कारण तीन चैनलों को बंद कर दिया गया है. मरयम नवाज़ पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ की बेटी हैं. उन्होने अपने भाषण में फांसीवाद और शर्मनाक कहा था. पाकिस्तान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया रेगुलेटरी अथॉरिटी ने Channel-24, Abb Takk और Capital TV को ऑफ एयर कर दिया है, यानी उनका प्रसारण बंद कर दिया है. क्या जब प्रेस आज़ाद नहीं होगा तब भी आप अखबार खरीदेंगे, टीवी देखेंगे, क्या पता लोग तब भी ख़रीदें.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com