विज्ञापन
This Article is From Apr 03, 2018

फ़ेक न्यूज़ से सही मंशा के साथ निपटने की ज़रूरत

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 03, 2018 22:04 pm IST
    • Published On अप्रैल 03, 2018 22:04 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 03, 2018 22:04 pm IST
भारत के प्रधानमंत्री ने सूचना व प्रसारण मंत्रालय के उस फैसले को वापस ले लिया जिसके विरोध में मंगलवार सुबह से पत्रकारों के बीच हलचल थी. सोमवार शाम को सूचना व प्रसारण मंत्रालय की तरफ से एक प्रेस रिलीज जारी होती है कि अगर किसी पत्रकार को फेक न्यूज़ गढ़ते हुए या उसके फैलाने में भागीदार पाया गया तो उसकी सरकारी मान्यता हमेशा के लिए रद्द कर दी जाएगी. 

न्यूज़ फेक है या नहीं इसका फैसला प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और News Broadcasters Association (NBA),करेगा. क्या यही अजीब नहीं है कि मंत्रालय ने सज़ा तो परिभाषित कर दी कि कितनी सज़ा दी जाएगी मगर, जिसके लिए सज़ा दी जाएगी उसे तय करने का अधिकार एनबीए और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को दिया जाएगा. हम यह नहीं जानते हैं कि फेक न्यूज़ के लिए सज़ा तय करते वक्त सूचना व प्रसारण मंत्रालय के अधिकारियों और मंत्री के दिमाग में फेक न्यूज़ तय करने का पैमाना क्या था. किस परिभाषा के हिसाब से मंत्रालय इस फैसले पर पहुंचा कि फेक न्यूज़ छापने, गढ़ने या फैलाने वाले मान्यता प्राप्त पत्रकार की मान्यता रद्द हो जाएगी. अगर जांच में सही पाया गया तो पहले पत्रकार की मान्यता छह महीने के लिए निलंबित की जाएगी. फिर अगर वह दूसरी बार पाया गया तो एक साल के लिए मान्यता निलंबित कर दी जाएगी और. तीसरी बार दोषी पाया गया तो हमेशा के लिए उसकी मान्यता रद्द कर दी जाएगी.

प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और एनबीए से उम्मीद की जाती है कि वे 15 दिनों में जांच पूरी कर लेंगे मगर इन 15 दिनों में मान्यता प्राप्त पत्रकार निलंबित ही माना जाएगा. इस फैसले को लेकर पत्रकार बिरादरी में चर्चा होने लगी कि क्या सरकार मान्यता प्राप्त पत्रकारों पर अंकुश लगाना चाहती है. भारत में फेक न्यूज़ का अंबार फैला हुआ है, मगर यह किसी को समझ नहीं आ रहा था कि फेक न्यूज़ की महामारी मान्यता प्राप्त पत्रकारों के कारण फैली हुई है या गोदी मीडिया के चाटुकार एंकरों के ज़रिए फैल रही है. सूचना प्रसारण मंत्रालय ने इस फैसले पर पहुंचने से पहले क्या किसी संस्था से विचार विमर्श नहीं किया. एनबीएसए की एनी जोसेफ का बयान छपा है एक्सप्रेस में कि उन्हें जानकारी तक नहीं और न ही उनसे राय ली गई है. फिर यह विचार किस स्तर पर मंत्रालय के भीतर फाइलों में आता है और फैसले में कौन-कौन लोग शामिल थे, इसकी कोई जानकारी नहीं है. सुबह से ही पत्रकार ट्विटर पर सरकार के फैसले की आलोचना करने लगे. 

Swati Chaturvedi? ने लिखा कि Dear @PMOIndia बहुत से घमंडी नेताओं ने मीडिया को कुचलने का प्रयास किया. सब नाकाम रहे. हैरानी हो रही है कि गोदी मीडिया के पन्ना प्रमुखों के बाद भी असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. वहीं, Malini Parthasarathy? ने ट्वीट किया कि न्यूज़ की सत्यता और विश्वसनीयता की जांच की ज़िम्मेदारी मीडिया की है. जो छपता है उसकी जवाबदेही होती है, मानहानी और अवमानना का कानून भी है. इससे ज़्यादा नियंत्रण का मतलब है कि सेंशरशिप थोपा जा रहा है. Rana Safvi ने ट्वीट किया है कि MJ Akbar भूल गए हैं जब उन्होंने राजीव गांधी के मानहानि विधेयक के खिलाफ जनपथ पर मार्च किया था. हमने राजीव से कहा था कि प्रेस की आज़ादी से कोई समझौता नहीं होगा. उम्मीद है एमजे अकबर को याद होगा और वे स्मृति ईरानी के आदेश के खिलाफ़ भी मार्च करेंगे. 

Sagarika Ghose ने ट्वीट किया कि फेक न्यूज़ कौन तय करता है, आप या आपकी पार्ट? क्या भारत बंद कल हुआ था या सारा कुछ फेक न्यूज़ था? क्या बेरोज़गारी फेक न्यूज़ है? नोटबंदी के दौरान हुई मौत फेक न्यूज़ है? परीक्षा में पर्चे लीक हुए, फेक न्यूज़ है या असली न्यूज़ है? Shekhar Gupta? का ट्वीट था कि ग़लती मत कीजिए. मुख्यधारा की मीडिया पर यह हमला है. राजीव गांधी के मानहानि विधेयक जैसा लम्हा है ये. सभी मीडिया को अपने अंतर्विरोध को दूर कर इसका विरोध करना चाहिए.

इस आलोचना के बाद भी सूचना प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी अपने फैसले पर अड़ी रहीं. 12 बजकर 17 मिनट पर और 12 बजकर 19 मिनट पर स्मृति ईरानी दो ट्वीट करती हैं और अपने फैसले का बचाव करती हैं. पहले ट्वीट में लिखती हैं कि
PIB मान्यता के लिए जो दिशानिर्देश जारी हुई है, उसमें कहा गया है कि प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और News Broadcasters Association फेक न्यूज़ की परिभाषा तय करेंगे और कार्रवाई करेंगे. इसे लेकर बहस हो रही है. कई पत्रकारों और संगठनों ने इसके बारे में हमसे संपर्क किया और सकारात्मक सुझाव दिए हैं. 

पहले ट्वीट में लिखती हैं कि कुछ पत्रकारों और संगठनों ने उनसे संपर्क किया है. सार्वजनिक जानकारी में नहीं है कि किस पत्रकार और संगठन ने उनसे संपर्क किया और मंत्रालय इस नतीजे पर कैसे पहुंचा कि फेक न्यूज़ के लिए मान्यता प्राप्त पत्रकार ही दोषी हैं, इसलिए सबसे पहले उन्हीं पर कार्रवाई होनी चाहिए और फैसला होता है कि सज़ा क्या होगी, लेकिन जुर्म कोई और तय कर लेगा. वैसे भी जब मंत्री जी अपने फैसले का बचाव कर रही थी.

उसके ठीक कुछ मिनट बाद 1 बज कर 27 मिनट पर प्रेस इंफोर्मेशन ब्यूरो की साइट पर एक दूसरा फैसला आता है कि फेक न्यूज़ से संबंधित प्रेस रिलीज़ वापस ले ली गई है, जिसे पिछली शाम अपलोड किया गया था. उसके बाद सूचना व प्रसारण मंत्रालय के ट्विटर हैंडल पर 2 बजकर 33 मिनट पर यह फैसला ट्वीट होता है कि फेक न्यूज़ को नियंत्रित करने के लिए जो दिशानिर्देश जारी की गई थी, वो प्रेस रिलीज़ वापस ली जाती है.

हमने मंत्री स्मृति ईरानी का ट्विटर हैंडल चेक किया है, 12 बज कर 19 मिनट के बाद प्रेस रिलीज़ वापस लेने के संबंध में उनका कोई ट्वीट है या नहीं. उनके हैंडल पर इस संबंध में कोई ट्वीट नहीं मिला. उन्होंने अमित शाह के ट्वीट को री-ट्वीट तो किया है मगर अपने ही मंत्रालय के फैसले को री-ट्वीट नहीं किया है. हमने 7 बजकर 21 मिनट पर चेक किया कि स्मृति ईरानी ने फैसला वापस लेने के लिए प्रधानमंत्री को धन्यवाद तक नहीं दिया, जबकि एनबीए ने प्रधानमंत्री के फैसले का स्वागत भी कर दिया, जिसके बारे में भी यह जानकारी नहीं है कि एनबीए ने फैसले की निंदा की थी या नहीं. 

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में शाम साढ़े चार बजे पत्रकार जुटने वाले थे. इससे पहले बताया गया कि प्रधानमंत्री की पहल पर फैसला वापस ले लिया गया है. इसके बाद भी बड़ी संख्या में पत्रकार जमा हुए और लगातार प्रेस की आज़ादी के साथ हो रहे खिलवाड़ को लेकर अपनी चिन्ता जताई. अभी कुछ ही दिन पहले जेएनयू छात्र संघ और शिक्षक संघ की रैली के दौरान कैमरामैन के साथ जो हिंसा हुई थी उसके विरोध में यहां पत्रकार जमा हुए थे और संसद तक मार्च भी किया था. किसी को पता नहीं था कि इतनी जल्दी फिर से सरकार के किसी फैसले के विरोध में जमा होना पड़ेगा. हमारे सहयोगी अमितेश ने वहां आए पत्रकारों से बात की.

हमारे सहयोगी मानस और निमिशा ने एक रिपोर्ट की है. उसमें बताया है कि कहीं सरकार ही फेक न्यूज़ की जड़ तो नहीं है. वह भी इस समस्या का एक कारण तो नहीं है. खबर आई है कि प्रधानमंत्री चाहते हैं कि प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया में इस पर बात हो. लेकिन इसी 16 मार्च को प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया में कुछ बदलाव किया गया है. इस काउंसिल के लिए लोकसभा की स्पीकर की तरफ से मैसूर से बीजेपी के सांसद प्रताप सिम्हा मनोनित किए गए हैं. सांसद प्रताप सिम्हा का ट्वीट देखिए. इन्होंने पिछले हफ्ते ट्वीट कर महेश हेगड़े का बचाव किया, जो पोस्टकार्ड न्यूज़ के संपादक हैं. जिन्हें एक जैन संत की मौत के बारे में गलत न्यूज़ छापने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. जबकि उनकी मौत सड़क दुर्घटना में हुई थी. जो व्यक्ति फेक न्यूज़ के आरोप में गिरफ्तार हुआ है, उसका बचाव सांसद करें और उस सांसद को प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया में मनोनित किया जाए, जहां प्रधानमंत्री चाहते हैं कि फेक न्यूज़ पर बहस हो. इस चक्र और कुचक्र से तो विडंबना भी लजा जाए. 

प्रताप सिम्हा ही नहीं और भी कई सांसद हैं जिन्होंने पोस्टकार्ड न्यूज़ के संपादक की गिरफ्तारी के समर्थन में ट्वीट किया है. आल्ट न्यूज़ तो लगातार फेक न्यूज़ का पर्दाफाश करता रहता है, इसने पोस्टकार्ड न्यूज़ के कई खतरनाक फेक न्यूज़ का भांडाफोड़ किया है. इसके बाद भी बीजेपी के सांसद इसके संपादक में ट्वीट कर रहे थे. ट्वीट करने वालों में  केंद्रीय मंत्री अनंतकुमार हेगड़े भी शामिल हैं. दिल्ली से सांसद महेश गिरी ने भी महेश हेगड़े के समर्थन में ट्वीट किया है. कहानी यही खत्म नहीं होती है. तीन दिन पहले मोदी सरकार के कई मंत्रियों ने फेक न्यूज़ का भंडाफोड़ करने का दावा करने वाली एक वेबसाइट को प्रमोट करते हैं. उसके लिंक को ट्वीट करते हैं. इस वेबसाइट का नाम है The True Picture इसके बारे में इंडियन एक्सप्रेस के कृष्ण कौशिक ने भी शानदार रिपोर्टिंग की है. 

इसका लिंक तो खुद स्मृति ईरानी ने ट्वीट किया है. इंडियन एक्सप्रेस ने जब पड़ताल की तो पाया कि उसकी सही खबरों को भी इस वेबसाइट में फेक न्यूज़ बता दिया गया है. खासकर घोड़ा खरीदने पर दलित युवक की हत्या की खबर एक्सप्रेस ने सभी पक्षों से बात करने के बाद लिखी थी, मगर इस वेबसाइट पर उसे फेक न्यूज़ बता दिया था. इंडियन एक्सप्रेस ने इस वेबसाइट का पता ठिकाना लगाया. पता चला कि इस पर एक ब्लूक्राफ्ट डिजिटल फाउंडेंशन का फोन नंबर है. यह फाउंडेनश प्रधानमंत्री की किताब Exam Warriors से संबंध रहा है. एक्सप्रेस के कौशिक ने जब इनसे पूछा कि आपका नंबर इस वेबसाइट पर कैसे है तो जवाब दिया कि कुछ गड़बड़ी हुई होगी. हमारा कोई संबंध नहीं है. लेकिन जब एक्सप्रेस की स्टोरी के बाद हमारे सहयोगी मानस और निमिशा ने चेक किया तो वहां पर अब मोबाइल नंबर लिखा मिला. Truecaller, से पता चला कि यह नंबर किसी अमित मालवीय के नाम पर दर्ज है. हमने इस नंबर पर फोन किया मगर यह नंबर मौजूद नहीं था. हमने बीजेपी के आईटीसेल के मुखिया अमित मालवीय से पूछा कि कहीं आपका नंबर तो नहीं था, उनका जवाब था कि नहीं. हमारे सहयोगियों ने सारे मंत्रियों से पूछने का प्रयास किया, किसी ने जवाब नहीं दिया. 

राजस्थान का वह काला कानून याद होगा, जिसका देश भर के पत्रकारों ने विरोध किया था. वह कानून क्या था, यही कि किसी अधिकारी के खिलाफ आप तक खबर नहीं छाप सकते या उसका नाम नहीं ले सकते जब तक सरकार से अनुमति न मिले या एफआईआर न हो. अगर इस नियम को तोड़ा गया तो पत्रकार को दो साल की सज़ा होगी. इसका खूब विरोध हुआ. बाद में राजस्थान सरकार को वह अध्यादेश वापस लेना पड़ा. इसके बाद भी सूचना व प्रसारण मंत्रालय ने यह कदम क्यों उठाया, किसके कहने पर उठाया समझ के बाहर है. मध्यप्रदेश में एक और ऐसा कानून लाने का प्रयास किया मगर इस बार वो विधायकों के लिए था. पत्रिका के संपादक गुलाब कोठारी ने एक और काला नाम से संपादकीय लिखा था. जिसकी चर्चा दिल्ली तक नहीं पहुंच सकी.

इसका अर्थ यह हुआ कि कितना भी गंभीर मुद्दा यदि किसी समिति के सामने विचाराधीन है तो कोई विधायक उस मुद्दे पर प्रश्न ही नहीं पूछ सकता है. संवेदन घटना और पारंपरिक दायित्व की आड़ में सदन में किसी भी सवाल को आने से रोकने की कोशिश थी. यह गुलाब कोठारी ने अपने संपादकीय में लिखा है जो 21 मार्च के राजस्थान पत्रिका के सभी संस्करणों में छपा है. हमारे साथ आल्ट न्यूज़ के प्रतीक सिन्हा हैं जो कई महीनों से अकेले फेक न्यूज़ का पर्दाफाश कर रहे हैं. 
 

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
डार्क मोड/लाइट मोड पर जाएं
Previous Article
BLOG : हिंदी में तेजी से फैल रहे इस 'वायरस' से बचना जरूरी है!
फ़ेक न्यूज़ से सही मंशा के साथ निपटने की ज़रूरत
बार-बार, हर बार और कितनी बार होगी चुनाव आयोग की अग्नि परीक्षा
Next Article
बार-बार, हर बार और कितनी बार होगी चुनाव आयोग की अग्नि परीक्षा
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com