5 सितंबर 2017 को बेंगलुरु में गौरी लंकेश की हत्या कर दी गई थी. धार्मिक कट्टरता के ख़िलाफ़ लिखने वाली गौरी लंकेश ने हमेशा हिंसा और हत्या की राजनीति का विरोध किया. अपनी लेखनी में वो कर्नाटक के भीतर उभर रही ऐसी ताकतों की पहचान कर रही थीं और उनके बारे में खुलकर लिख रही थीं. ज़ाहिर है इसी तबके से उनकी हत्या के बाद सोशल मीडिया में जश्न मनाया गया था और किसी की मौत पर अफसोस प्रकट करने की परंपरा को तोड़ते हुए खुशी ज़ाहिर की गई थी. उस दिन सिर्फ गौरी लंकेश की हत्या नहीं हुई थी बल्कि यह भी पता चला था कि हमारे समाज में हत्या को उचित ठहराने वाले लोगों की कमी नहीं है जो समय समय पर एक खास राजनीतिक विचारधारा का भी समर्थन करते हैं जिसका संबंध सत्ता से है.
एक साल से उनकी पत्रिका न्याय पथ बंद थी, लेकिन अब इसका अंक बाज़ार में पहुंच गया है. इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि अंत अंत तक उनकी पत्रिका से जुड़े पत्रकार इसे अंतिम रूप देने में लगे रहे. अपने संपादक की हत्या के बाद उनका न्यूज़ रूम बिखर सा गया था मगर इस विशेष अंक को निकालने के लिए सब जुट गए. कवर पेज पर गौरी लंकेश की तस्वीर है. अंक का नाम है अभिव्यक्ति मारुहत्तु यानी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पुनर्जन्म. इस अंक के लिए कई लोगों ने लिखा है. गौरी लंकेश का 2006 में शिमोगा में दिया गया भाषण भी छापा है. 2006 में गौरी ने लिखा था कि अक्सर अनुसूचित जाति और आदिवासी आंदोलनकारियों को नक्सल कह दिया जाता है. अगर आप मुझे नक्सल कहेंगे जब मैं शांति की बात करती हूं, तो मुझे फर्क नहीं पड़ता. इस पत्रिका का नया नाम रखा गया है. अप्रैल से अगस्त के बीच इसके कुछ अंक छपे नानू गौरी के नाम से मगर वो मार्केट के लिए नहीं थे. वासु ने एक्सप्रेस से कहा है कि गौरी लंकेश की कमी खल रही है. खासकर जब बीजेपी के विधायक बी पाटिल यतनाल का बयान आया है कि सभी इंटेलेक्चुअल्स को गोली मार देनी चाहिए तब गौरी लंकेश जैसी निर्भीक पत्रकार की कमी खलती है.
गौरी लंकेश की हत्या के एक साल होने पर बेंगलुरु में स्मृति सभा का आयोजन किया गया. जिसका मकसद था कि गौरी लंकेश के काम को ज़िंदा रखना. इस सभा में गौरी लंकेश की मां इंदिरा लंकेश, उनकी बहन कविता लंकेश के अलावा उनके साथी पत्रकार, जे एन यू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार, उमर ख़ालिद, गिरिश कर्नाड, तीस्ता सीतलवाड़. जिग्नेश मेवानी, स्वामी अग्निवेश, सिद्धार्थ वरदराजन शामिल हुए. गिरिश कर्नाड ने तो गले में तख्ती लगाई थी कि मैं भी अर्बन नक्सल हूं. उन्होंने पुणे की गिरफ्तारी को बकवास बताया और स्वामि अग्निवेश ने आरएसएस पर निशाना साधा. कट्टरपंथी संगठनों को शह देने का आरोप लगाया. हिन्दी में भी जगरनॉट प्रकाशन ने गौरी लंकेश के लेखों का अनुवाद निकाला है. जिसका नाम है गौरी लंकेश मेरी नज़र से. इसके संपादक हैं चंदन गौड़ा. किताब की कीमत 250 रुपये है. आप जानते हैं कि मैं जब भी किसी किताब का ज़िक्र करता हूं प्रकाशक, दाम और कहां मिलेगी ज़रूर बताता हूं. इंटरनेट पर यह किताब मिल जाएगी. हमारे सहयोगी निहाल किदवई स्मृति सभा को कवर करने गए थे.
गौरी लंकेश की हत्या की जांच स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम कर रही है. हत्या के आरोप में परशुराम वाघमरे को गिरफ्तार किया गया है. गुजरात की फोरेंसिक लैब से सीसीटीवी में दिख रहे व्यक्ति और वाघमेरे के हाव भाव का मिलान कराया गया है. ऐसी खबर आई है कि दोनों में काफी कुछ समानता है. अभी तक एसआईटी ने गौरी लंकेश की हत्या के संबंध में 12 लोगों को गिरफ्तार किया है. अभी और लोगों की गिरफ्तारी होनी है. अभी तक की खबरों का सार है कि कर्नाटक में ही इस हत्या से संबंधित 50 लोगों की शिनाख़्त की गई है. ये सभी एक बेनाम गैंग का हिस्सा है. इतने ही लोगों की पहचान महाराष्ट्र में की गई है. पुलिस का कहना है कि बहुत बड़ा नेटवर्क है ये जो पूरे भारत में फैला है. यही नहीं इस नेटवर्क के सदस्यों का ताल्लुक नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे, एम एम कलबुर्गी की हत्या से भी दिखता है. इन लोगों ने 26 लोगों को मारने की सूची बनाई थी. जिसमें मशहूर नाटककार गिरिश कर्नाड भी हैं. कुछ नेताओं के भी नाम हैं उनकी सूची में.
कर्नाटक से निकल कर आते हैं तेलंगाना. यहां के पत्रकारों के संगठन Telangana State Union of Working Journalists (TUWJ) ने बड़ा ही अच्छा काम किया है. पत्रकार संघ ने उन 200 पत्रकारों की सूची बनाई है जिनकी पिछले चार साल में अलग-अलग कारणों से मौत हुई है. यह सूची अपने आप में बहुत कुछ कहती है कि आम पत्रकार किन हालात में काम कर रहा है. राज्य में पिछले चार साल में 218 पत्रकारों की मौत हुई है. आंकड़े बताते हैं कि इनमें से 75 पत्रकारों की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई, जबकि 10 की ब्रेन स्ट्रोक से. 21 पत्रकारों की मौत सड़क हादसों मे हुई है. सबसे ज़्यादा 78 पत्रकारों की मौत बीमारियों से हुई और पांच ने ख़ुदकुशी की.
चार साल में 75 पत्रकारों की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई है. इस काम के तनाव का अंदाज़ा समझता हूं. सेहत पर ध्यान देने का सवाल तो है मगर काम करने के हालात सेहत के सवाल पर भारी पड़ जाते हैं. यही नहीं पत्रकारों को सैलरी भी समय से नहीं मिलती है. देर रात काम करते हैं, आने जाने की सुविधा नहीं मिलती है. इसके कारण कई पत्रकार देर रात लौटते वक्त दुर्घटना के भी शिकार हुए हैं. अपनी इन्हीं सब समस्याओं को लेकर तेलंगाना स्टेट यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट के पत्रकारों ने 4 सिंतबर को दिल्ली के जंतर मंतर पर धरना दिया था. पत्रकारों के बीच सीताराम येचुरी और डी राजा भी गए थे. बाद में पत्रकारों ने उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू से भी मुलाकात की और अपने हालात के बारे में जानकारी दी.
पत्रकार संघ का कहना है कि संस्थाओं की ओर से इलाज की सुविधाएं नहीं दी जाती हैं. राज्य में पत्रकारों के लिए हेल्थ स्कीम है मगर ठीक से लागू नहीं होती है. राज्य में किसी भी अख़बार ने मजीठिया बोर्ड की सिफारिशों को ठीक से लागू नहीं किया है. वो तो उत्तर भारत के अखबारों ने भी लागू नहीं किया है. राज्य सरकारें भी मजीठिया बोर्ड की सिफारिशों को लागू कराने में पहल नहीं करती हैं. यह सारी जानकारी इंडियन जर्नलिस्ट यूनियन के देवुलपल्ली अमर ने दी है.
अब आते हैं दिल्ली. दिल्ली में अखिल भारतीय किसान सभा का मार्च हुआ है. बड़ी संख्या में देश भर से किसान इस मार्च में हिस्सा लेने के लिए आए थे. मज़दूरों के संगठन सीटू और अखिल भारतीय किसान सभा ने ही महाराष्ट्र में किसान मार्च का आयोजन किया था. खेतिहर मज़दूरों के बीच काम करने वाला संगठन All India Agricultural Workers Union (AIAWU) भी इस मार्च में शामिल था.
बताया जा रहा है कि पहली बार लेफ्ट के इन तीन संगठनों ने मिलकर दिल्ली में मार्च किया है. 15 मांगों का चार्टर लेकर ये किसान मज़दूर और खेतिहर मज़दूर दिल्ली आए थे. इनकी मांग है कि महंगाई पर रोक लगे. सबको राशन का अनाज मिले. न्यूनतम मज़दूरी 18000 रुपये की जाए. सभी प्रकार के मज़दूरों के लिए. सभी अनाजों के सही दाम मिले. लागत से डेढ़ गुना. किसानों और खेतिहर मज़दूरों दोनों को कर्ज़ माफी का लाभ मिलना चाहिए. मनरेगा को शहरो में भी लागू किया जाए और ठेके पर काम की प्रथा को बंद किया जाए. भूमि अधिग्रहण में ज़बरदस्ती न हो. इस रैली में सांप्रदायिकता के खिलाफ भी भाषण दिया गया. किसान मज़दूरों ने रामलीला मैदान से लेकर संसद मार्ग तक मार्च किया. इस रैली के लिए चार महीने से तैयारी की जा रही थी. अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष अशोक धावले ने कहा कि पिछले चार साल में किसानों की आत्महत्या में 42 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. खेतिहर मज़दूरों की संस्था के नेता ने कहा कि 15 करोड़ खेतिहर मज़दूर हैं उन्हें एक साल में 30 से 40 दिन भी काम नहीं मिलता है. जो कि न्यूनतम मज़दूरी से काफी कम है. आरोप लगाया गया कि मनरेगा का 57 फीसदी केंद सरकार ने रोक कर रखा है जिसके कारण ग़रीब मज़दूरों का भुगतान नहीं हो रहा है. मज़दूरी देने में 4 से 6 महीने की देरी हो रही है.
हमारे सहयोगी सुशील महापात्रा ने इस रैली को कवर किया और अलग-अलग राज्यों से आए कई किसानों से बात की. महाराष्ट्र में भी इसी मार्च में कई हज़ार किसानों ने मार्च निकाला था. नाशिक से मुंबई तक का लांग मार्च किया था. उस मार्च के नेता बैजू कृष्णन से भी बात की. यह जानने के लिए कि उस मार्च का क्या हुआ. क्या बदला. दूसरा इस बीच केंद्र सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने का दावा किया है तो किसानों पर क्या असर पड़ा, एक और घटना यह हुई है कि महाराष्ट्र सरकार ने कानून बनाया है कि जो न्यूनतम मज़दूरी पर अनाज नहीं खरीदेगा उस व्यापारी को सज़ा होगी. इन सब सवालों को लेकर सुशील बिजू कृष्णन से बात की
इस बीच खबर आई है कि हिदायतुल्ला नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के छात्रों की मांग मान ली गई है. अब लाइब्रेरी तीन बजे रात तक खुली रहेगी. साढ़े दस बजे तक बंद हो जाने का नियम हटा लिया गया है. साथ ही जिन छात्राओं ने छेड़खानी और अभद्र टिप्पणी के आरोप लगाए गए हैं उनकी जांच करने और कार्रवाई का भी भरोसा दिया गया है.
This Article is From Sep 06, 2018
गौरी लंकेश की हत्या को एक साल पूरा, बेंगलुरु में स्मृति सभा का हुआ आयोजन
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:सितंबर 06, 2018 00:16 am IST
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Published On सितंबर 06, 2018 00:16 am IST
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Last Updated On सितंबर 06, 2018 00:16 am IST
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