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This Article is From Dec 14, 2015

प्राइम टाइम इंट्रो : झुग्गी-झोपड़ियों पर क्या हो नीति?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 23, 2015 13:40 pm IST
    • Published On दिसंबर 14, 2015 21:15 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 23, 2015 13:40 pm IST
एक सवाल आप खुद से पूछियेगा कि आप स्लम को कैसे देखते हैं। ये स्लम जिन्हें आप हिन्दी में झुग्गियां कहते हैं, इनका नाम आते ही आपके ज़हन में क्या-क्या तस्वीरें उभरती हैं। इस सवाल से पहले एक और सवाल पूछियेगा कि आप कौन हैं। इस सवाल का जवाब मिलते ही आपको पहले सवाल का जवाब मिलने लगेगा कि आप स्लम को कैसे देखते हैं। एक ग़रीब और साधारण कमाने-खाने वाला स्लम को कैसे देखता है, एक अमीर या मध्यम वर्ग का आदमी स्लम को कैसे देखता है।

अगर आप साधारण व्यक्ति हैं तो आपको ये झुग्गियां इस दुनिया में किसी तरह से जीने की जगह लगेंगी। शहर को तरह-तरह की सेवाएं देने वाले लोगों की बस्ती है ये। साफ पीने का पानी नहीं है, शौच के लिए तमाम तकलीफें हैं, इसके बाद भी यहां लाखों लोगों के घर हैं। पांच से लेकर पचास साल से लोग यहां रह रहे हैं। बेतरतीब बनी ये झुग्गियां अक्सर लोगों को गंदगी नज़र आती हैं। यही वे झुग्गियां हैं, जो दिल्ली या मुंबई को सिंगापुर शंघाई नहीं बनने देती हैं। इन अवैध झुग्गियों में अर्थव्यवस्था की चमक का राज़ है। सस्ते मज़दूर ही नहीं यहां से सस्ता माल भी बनकर तैयार होता है, जिससे हमारा उद्योग और कारोबार जगत फलता-फूलता है।

अब अगर आप अमीर हैं, मध्यमवर्ग के हैं तो आपको ये लगना ही चाहिए कि ये स्लम यानी झुग्गियां शहर को गंदा करती हैं। शहर की खूबसूरती बिगाड़ देती हैं। लेकिन इससे पहले आप इस बात का भरोसा कर लीजिएगा कि क्या अमीर, साधन संपन्न लोग अतिक्रमण नहीं करते हैं। शहर को गंदा नहीं बनाते हैं। क्या वाकई उनके मकान लीगल ही होते हैं। ग़रीब तो मजबूरी में करता है, लेकिन अमीर लालच और ताकत के बल पर करता है।

दिल्ली के पॉश कहे जाने वाले मोहल्लों में आपको कई घर मिलेंगे जो एमसीडी और अन्य एजेंसियों को मोटा माल पहुंचा कर नियमों में इधर-उधर से छेड़छाड़ कर बनाए गए होते हैं। मोहल्ले के पार्क के आसपास, सड़क पर या पब्लिक प्लेस में अपनी कार खड़ी कर देने वाले भी रोज़ शहर का अतिक्रमण करते हैं और कारों की झुग्गियां बसाते हैं। दिल्ली में ही अमीर लोगों ने कुछ जगहों पर कब्जा किया और बाद में कुछ फाइन और रिश्वत ले-देकर लीगल कर लिया। ज़्यादातर जगहों पर बालकनी को कमरे में बदल लिया और राजनीतिक दल पर दबाव डालकर एक मंज़िल के ऊपर दो मंज़िल और फिर दो मंज़िल के ऊपर तीन मंज़िल मकान बनाने की छूट ले ली। इनके लिए नियम बदल दिये गए। पिछले दिनों मज़दूर आंदोलन के संदर्भ में गुड़गांव गया था। वहां गांव के रसूखदार लोगों ने मज़दूरों के लिए नरक तुल्य कमरे बनाए हैं। झुग्गियां सिर्फ गरीब नहीं बसाते, अमीर भी बसाते हैं। चेन्नई में आपने देखा कि किस तरह से राजनीतिक शह वाले बिल्डरों ने कानून बदलवा कर उन जगहों का अतिक्रमण कर हाउसिंग सोसायटी बना दिया, जिसे प्रकृति ने अपने भविष्य के लिए सुरक्षित रखा था। नतीजा यह हुआ कि पूरा शहर बाढ़ में डूब गया।

गरीब कहां रहेगा, इस सवाल का जवाब पहले आना चाहिए बजाए इसके कि झुग्गी कब हटेगी। दिल्ली में डीडीए से आप पता कीजिए कि इस एजेंसी ने कितने घर एचआईजी और एमआईजी के लिए बनाए और कितने घर एलआईजी के लिए। एलआईजी के मकानों को ग़रीब ने ख़रीदा या उसे भी अमीर या मिडिल क्लास ने खरीद लिया। अब जाकर सरकारें कह रही हैं कि गरीबों को घर देंगी। अरविंद केजरीवाल ने लेफ्टिनेंट गर्वनर को लिखा है कि पांच साल में झुग्गियों की जगह पक्के मकान बना देंगे। प्रधानमंत्री मोदी भी 2022 तक सबको घर देने का वादा कर रहे हैं। मिल जाएगा तो मुबारक का कार्ड ज़रूर भेजियेगा।

शकूर बस्ती में 500 झुग्गियां तोड़े जाने पर राजनीति हो रही है। कम से इसी के बहाने गरीबों के घर को लेकर बहस का मौका तो आया। आधी रात को अरविंद केजरीवाल का पहुंच जाना या देर से ही सही राहुल गांधी का पहुंच जाना। पहुंचने की प्रतिस्पर्धा और बयानी हमलों से क्या ग़रीबों के घर के जवाब मिलते हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने रेलवे से कहा है कि ये बहुत अमानवीय कार्रवाई थी। आपने पिछली गलतियों से कुछ सीखा नहीं। आपको लोगों की चिंता नहीं है। 23 दिसंबर 2014 को पीआईबी की एक प्रेस रीलीज है जिसके अनुसार संसद ने National Capital Territory of Delhi Laws (Special Provisions) Amendment Bill पास किया है। यह एक्ट 2011 का था, जिसकी वैधता को बढ़ाकर 2017 तक कर दिया गया है। इसके अनुसार 2006 से पहले के किसी भी अतिक्रमण या झुग्गी को हटाया नहीं जा सकता। हटाने से पहले उनके पुनर्वास की व्यवस्था करनी होगी। फिर भी झुग्गियां दिल्ली में तोड़ी जा रही हैं।

नोटिस की बात नहीं है, क्या पुनर्वास की व्यवस्था के बाद झुग्गियों को हटाया जा रहा है। दिल्ली अर्बन शेल्टर इंप्रूवमेंट बोर्ड ने 2012 में एक सर्वे तैयार किया था जिसके अनुसार दिल्ली में 6343 झुग्गियां हैं। 90 फीसदी झुग्गियां सार्वजनिक ज़मीन पर बनी हैं। इनमें से 28 फीसदी झुग्गियां रेलवे की जमीन पर बनी हैं। 2011 में दिल्ली अर्बन शेल्टर इंप्रूवमेंट बोर्ड ने एक एक्शन प्लान बनाया कि 2015 तक दिल्ली को झुग्गी मुक्त बना देंगे। इसके एक्ट में लिखा हुआ है कि बोर्ड पहले सरकार से सलाह-मशविरा कर झुग्गी झोपड़ी को दूसरी जगहों पर बसायेगा। 2015 तो बीत रहा है क्या दिल्ली झुग्गियों से मुक्त हुई है। मुक्त होने का क्या मतलब है। झुग्गियों को नियमित करना या उन्हें हटा कर कहीं और बसाना।

इस बीच दिल्ली सहित देश के कई शहरों में झुग्गियों का तोड़ना जारी है। पिछले साल नवंबर महीने में दक्षिण दिल्ली की रंगपुरी पहाड़ी में डिमोलिशन हुआ था। 2000 लोग बेघर हो गए। इनमें से 900 स्कूली बच्चे भी थे। तब डीडीए के अधिकारियों ने नेशनल ग्रीन ट्रायब्यूनल का आदेश दिखा दिया था। इसी साल अगस्त में राजघाट की तरफ जाने वाले वीआईपी के काफिले का हवाला देकर रेलवे ने हाफिज़ नगर की झुग्गियों में नोटिस चिपका दिया। भैरों मार्ग के पास जनता कैंप में भी यही हुआ। दोनों जगहों पर 600 परिवार बेघर हो गए थे। ज़ाहिर है शकूर बस्ती की यह घटना बड़े सवालों के जवाब मांग रही है। इन झुग्गियों को हटाकर पुनर्वास के लिए क्या किया जा रहा है और अवैध कॉलोनियों को नियमित करने के लिए क्या किया जा रहा है।

इसी दिल्ली में शकूर बस्ती की झुग्गियों से पहले रेलवे और डीडीए ने झुग्गियों का डिमोलिशन किया है। इसी साल अगस्त में जब डीडीए ने महरौली में 40 झुग्गियों को तोड़ा था, तब मुख्यमंत्री केजरीवाल ने लेफ्टिनेंट गर्वनर नजीब जंग को तीन पन्नों का पत्र लिखा कि डीडीए ऐसा नहीं कर सकती, क्योंकि इन्हें तोड़ने से पहले पुनर्वास की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। अखबारों की रिपोर्ट के अनुसार तब भी कथित रूप से एक बच्चे की मौत हो गई थी।

सवाल सिर्फ शकूर बस्ती की झुग्गियों का नहीं है। बाकी झुग्गियों के बारे में हमारी राजनीति और सरकारी एजेंसियां कब अपना अंतिम फैसला बतायेंगी ताकि लाखों लोगों को बेघर होने का डर न सताये। संसद में रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने बयान दिया कि दिल्ली पुलिस की मौजूदगी में 12 दिसंबर को शकूर बस्ती रेलवे स्टेशन से सटी कुछ झुग्गियों को हटाया गया है। इनके कारण नया पैसेंजर टर्मिनल बनने में दिक्कत आ रही है। नेशनल ग्रीन ट्रायब्यूनल ने भी ट्रैक के किनारे सफाई न होने के कारण फाइन कर दिया था। इस तरह के अतिक्रमण से ट्रैक पर कचरा फैल जाता है और लोग खुले में शौच करते हैं। 14 मार्च 2015 को नोटिस दिया गया था। 30 सितंबर को नोटिस दिया गया, फिर 10 दिसंबर को नोटिस दिया गया कि 12 तारीख को तोड़ा जाएगा। दिन के वक्त झुग्गियों को तोड़ा गया है न कि आधी रात को जैसा कि मीडिया की रिपोर्ट में कहा गया है। लेकिन अरविंद केजरीवाल ने तो 12 दिसंबर के दिन सुबह साढ़े सात बजे ही ट्वीट कर दिया था कि इतनी सर्दी में रेलवे वालों ने 500 झुग्गियां तोड़ दी। भगवान उन्हें माफ नहीं करेगा। क्या केजरीवाल ने डिमोलिशन से पहले ट्वीट कर दिया या रेल मंत्री ने कुछ और कहा।

'इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार मुख्यमंत्री केजरीवाल ने 1 दिसंबर को रेल मंत्री को एक पत्र लिखकर कहा था कि वे रेल लाइनों के किनारे बस्तियों के पुनर्वास को प्राथमिकता दें। उस पत्र में मुख्यमंत्री ने सेफ्टी ज़ोन में बसे 6 जेजे क्लस्टर का मुद्दा उठाया था जिनका मामला नेशनल ग्रीन ट्रायब्यूनल के सामने है। इस पत्र में यह भी लिखा है कि एमसीडी के स्लम एवं जेजे विंग को 8000 प्लॉट डीडीए को देने हैं जिन्हें जेजे क्लस्टर वालों को दिया जाना है। राजनीतिक टकराव के बहाने कोई अपनी ज़मीन को बचाए रखना चाहता है तो कोई फिर से हासिल करना चाहिए। बेहतर तरीका ये है कि सभी ये बतायें कि झुग्गियां क्यों हटाई जा रही हैं? क्या अब नहीं हटाईं जाएंगी?

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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