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This Article is From Sep 17, 2014

नई कहानी लिखेंगे भारत-चीन?

Ravish Kumar, Rajeev Mishra
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  • Updated:
    नवंबर 20, 2014 12:52 pm IST
    • Published On सितंबर 17, 2014 21:48 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 20, 2014 12:52 pm IST

नमस्कार मैं रवीश कुमार। चीन रोज़ हमारी ज़िंदगी में किसी न किसी रूप में आ ही जाता है। जापान और अमरीका हमारे ख़्वाब ज़रूर होंगे, मगर चीन हमारी खपत है। सस्ते सामानों का बादशाह भारत के फुटपाथों से लेकर दुकानों तक पर राज करता है। महानगर से लेकर गांवों तक में। चीन हर त्योहार में आता है।

होली की पिचकारियां हों या दीवाली की लड़ियां। चीनी फोन बैटरी, खिलौने, पूजा के सामान। गांव-गांव में चाउमिन का प्रचलन हो गया है। चाइनीज़ रेस्त्रां को देखकर अब तो पंजाबी तड़का जैसा ही फील आता है। गौर से देखिएगा तो पता चलेगा कि चीन हमारी एक एक ज़रूरत को बेहतर तरीके से समझता है और सस्ते में बनाकर फुटपाथों पर उतार देता है। चांदनी चौक टू चाइना एक फिल्म भी आई थी।

चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग जब भारत आए तो राजनयिकों की कुलीन दुनिया में एक सुखद बदलाव आ गया। तामझाम और कायदे कानून तो वही रहे मगर शहर बदल गया। दिल्ली की जगह राष्ट्रपति शी चिनफिंग को कई चैनल चिनपिंग लिख रहे हैं मगर उनका नाम शी चिनफिंग लिखा और पुकारा जाएगा। खैर तो राष्ट्रपति अपनी पत्नी के साथ अहमदाबाद के सरदार पटेल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरे तो उनका भव्य स्वागत किया गया।

औपचारिक कार्यक्रमों की शुरूआत हुई अहमदाबाद के हयात होटल में। इससे पहले अमरीकी राष्ट्रपति आते थे तो दिल्ली के पांच सितारा होटलों के कमरे और खाने के नाम टीवी चैनलों और अखबारों में पसर जाते थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनयिक गतिविधि को ल्युटियन दिल्ली के रहस्यमयी उजालों और अंधेरों से निकाला और शी चिनफिंग को साबरमती नदी के तट पर गांधी आश्रम ले गए।

दोनों ने साबरमती आश्रम में काफी वक्त बिताया उसके बाद साबरमती रिवर फ्रंट पर प्रधानमंत्री ने चीनी राष्ट्रपति का परिचय गुजरात की संस्कृति से कराया। खुद ही गाइड बन गए हिन्दी में बात करते रहे और मंदारिन में अनुवाद होता रहा। चीनी राष्ट्रपति और उनकी पत्नी दोनों को झूले पर भी बिठाया और झूलने का मौका भी दिया। मोदी ने एक संकेत यह भी दिया कि अगर भारत के नेता का दुनिया के देशों में ज़ोरदार स्वागत होगा तो भारत भी उन नेताओं का अपने देश में वैसा ही स्वागत करेगा।

इन सबके बीच बस यही बात खटक गई कि चीन के राष्ट्रपति को गरीबी न दिख जाए इसलिए रास्ते में हरे रंग के पर्दे लगा दिए गए। जबकि इसी गरीबी को दूर करने के लिए दोनों देशों के नेता व्यापारिक और औद्योगिक समझौते कर रहे हैं। खैर जब गरीबी दूर हो जाएगी तो इन पर्दों की ज़रूरत ही नहीं रहेगी।

नोट करने वाली एक बात और हुई। इस बदलाव के लिए खुद मोदी मीलों चलकर दिल्ली से अहमदाबाद गए और चीन के साथ इस सफर का नाम दिया इंच टुआर्ड्स माइल्स। ये फुट का छोटा भाई इंच नहीं है बल्कि प्रधानमंत्री ने इंडिया से आई एन और चाइना से सीएच लेकर बनाया है। राजनयिक की भाषा कई बार उदार एकरस और रूटीन की होती है, मगर नारों का अपना महत्व होता है।

मोदी विदेश नीति में नई जान डाल रहे हैं, मगर कहीं इंच इसलिए भी नहीं कहा कि चीन कई बार भारतीय सीमा में कुछ इंच अंदर आ जाता है। फिर कुछ इंच छोड़ देता है और कुछ इंच अपने पास रख लेता है।

चुनाव प्रचार के दौरान अरुणाचल प्रदेश में नरेंद्र मोदी ने कहा था कि इस धरती पर कोई ताकत नहीं है, जो भारत से एक इंच ज़मीन ले ले। कहीं ये वो इंच तो नहीं। आपका यह एंकर रातों रात चीन का भी विशेषज्ञ नहीं हो सकता, परंतु खबरें तो चल ही रहीं हैं कि लद्दाख के पास की ये तस्वीरें नए बन रहे भरोसे पर सवाल कर रही हैं। चुमार में दोनों की सेनाओं में झड़प की खबरें हैं, भारत को ऐतराज है कि चीन वहां क्यों सड़क बना रहा है।

डेमचौक में नागरिकों के बीच झड़प हुई है, जहां भारत कनाल बना रहा है। ये उसी इलाके की ताज़ा तस्वीरें हैं। एक तरफ़ चीनी नागरिक एक लंबा लाल बैनर लिए खड़े हैं, तो दूसरी तरफ़ भारतीय नागरिक तिरंगा झंडा लेकर एक साथ खड़े हुए हैं। जैसे नागरिकों का जवाब नागरिक ही दे रहे हैं।

इसके बाद भी अहमदाबाद में जिस तरह से मोदी ने स्वागत किया है वो संकेत दे रहे हैं कि आशंकाओं के बीच नहीं फंसे रहेंगे। भारत इन सबसे निकल सकता है। चुनाव से पहले चीन भी पाकिस्तान की तरह एक मुद्दा था। दो तरह से। एक कि भारत को चीन से भी आगे ले जाना है और दूसरा भारत में जो चीन आ जाता है उसे पीछे ले जाना है।

साथ ही तिब्बत को लेकर होने वाले प्रदर्शनों पर अब भारत कुछ नहीं कहता। जब भी चीन से कोई आता है ये प्रदर्शन होते हैं और अखबारों में छप कर और टीवी में दिखकर गायब हो जाते हैं।
भारत भी चाहता है कि चीन अरुणाचल और कश्मीर को भारत का हिस्सा माने। वीज़ा में अलग से स्टेपल न करे और कारोबारियों को वीजा देने में उदारता बरते।

चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने द हिन्दू अखबार में एक लेख लिखा है। इस लेख को आप भी ध्यान से पढ़िएगा तो लगेगा कि उन्होंने भी अपने तरीके से बताने का प्रयास किया है कि वे भारत को कितना जानते हैं और अपने लेख से भारत के लोगों को चीन के बारे में थोड़ा बहुत बता दिया। एक तरफ जहां मोदी ने इंच की बात कही, दूसरी तरफ शी चिनफिंग ने कहा कि चीन के पास दुनिया की बड़ी बड़ी फैक्ट्रियां हैं और भारत के पास बैक आफिस यानी आईटी पावर। अगर ये दोनों मिल जायें तो उत्पादन का एक शानदार आधार तैयार कर सकते हैं।

अपने लेख में शी चिनफिंग कहते हैं कि 17 साल पहले जब भारत आए थे तो यहां की अर्थव्यवस्था बदलाव के दौर से गुज़र रही थी। भारत कृषि और साफ्टवेयर उत्पादों के मामले में दुनिया का दूसरा बड़ा निर्यातक देश है। जी−20 ब्रिक्स और संयुक्त राष्ट्र के सदस्य के नाते इसकी क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय भूमिका है।

आज भारत की कहानी बहुत दूर−दूर तक फैल चुकी है। नई सरकार आई है तो उम्मीद है कि नए दौर के सुधार होंगे। नई सदी में भारत और चीन के संबंध भी काफी सुधरे हैं। कारोबार के मामले में चीन भारत का सबसे बड़ा साझीदार है। दोनों के बीच अब 70 अरब डॉलर का कारोबार होता है। दोनों के रिश्ते 21वीं सदी के सबसे ऊर्जावान रिश्ते हैं। इस लेख में राष्ट्रपति चीन के बारे में बता रहे हैं कि भारत और चीन दोनों सुधार के अहम दौर में हैं।

चीन ने 15 सेक्टरों में 330 सुधार किए हैं। मोदी भी बुनियादी ढांचे और मैन्यूफैक्चरिंग में सुधार चाहते हैं। हम इन दोनों मामले में काफी अनुभव रखते हैं। हम दोनों के पास ऐतिहासिक मौका है कि विकास की रणनीतियों को जोड़ दें क्योंकि बिना भारत और चीन की प्रगति के एशिया की वास्तविक सदी नहीं आएगी।

चीन में भारत की आईटी और दवा कंपनियों का स्वागत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठीक ही कहा है कि भारत और चीन दो जिस्म एक जान हैं। राष्ट्रपति लिखते हैं कि पिछले साल दोनों देशों से आठ लाख से ज्यादा लोगों ने एक दूसरे के यहां यात्रा की है।

2006 के बाद चीन के राष्ट्रपति भारत आए हैं। साबरमती का तट सादगी से रंगीन हो गया है। एक खुशनुमा शाम क्या भारत चीन के बीच एक दिन की बात है या वाकई दोनों देश नई कहानी लिखने के लिए तैयार हैं।

(प्राइम टाइम इंट्रो)

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