प्राइम टाइम इंट्रो : कारें बंद करने से कम होगा प्रदूषण?

प्राइम टाइम इंट्रो : कारें बंद करने से कम होगा प्रदूषण?

नई दिल्ली:

दिल्ली के लोग शुक्रवार शाम से अपनी ही कार का नंबर पता कर रहे हैं। ऑड है कि ईवेन है। सम है या विषम है। अचानक लगा कि सबकी कार खो गई है और किसी को अपनी कार का नंबर याद नहीं आ रहा है। वैसे यही फैसला प्राइम टाइम की बहसों के लिए हो जाता तो मज़ा आ जाता।

चीखने चिल्लाने वाले एंकर को इवेन और शांत स्वभाव के एंकर को ऑड मान कर हर दूसरे दिन छुट्टी दे दी जाती। जो भी है दिल्ली की कारों पर लगाम लगाने का यह फैसला है तो क्रांतिकारी। शायद इसीलिए इस फैसले ने दिल्ली को झकझोर दिया है। दिल्ली के प्रधान सचिव के के शर्मा के एलान करते ही दिल्ली में हड़कंप मंच गया।  

0, 2, 4, 6, 8 नंबर वाली गाड़ियां एक दिन चलेंगी एक दिन नहीं चलेंगी।
1,3,5,7,9 नंबर वाली गाड़ियां दूसरे दिन चलेंगी।
कार, स्कूटर मोटर साइकिल वाले ध्यान से पढ़ें। सार्वजनिक परिवहन पर यह नियम लागू नहीं होगा।

तो क्या आप हफ्ते में दो से तीन दिन के लिए अपनी कार या बाइक छोड़़ने के लिए तैयार हैं। दिल्ली सरकार का कहना है कि बस और मेट्रों सेवाओं को बढ़ाने का इंतज़ाम करेगी और फैसले को लागू कराने के तरीके की खोज करेगी। गुरुवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि दिल्ली में रहने का मतलब गैस चेंबर में रहने जैसा हो गया है। गैस चेंबर की चेतावनी मौत की चेतावनी से भी खौफनाक होती है।

हिटलर का दौर था जब विरोधियों को मारने के लिए गैस चेंबर का इस्तमाल किया गया। गैस वैन बनाए जिसमें विरोधी को ठूंस कर कार्बन मोनोक्साइड भर दिया जाता था। दम गुटने के बाद लोग मर जाते थे और बाद में गैस बाहर निकाल दिया जाता था। हमने यू ट्यूब से ये वीडियो लिया है ताकि आप समझ सकें कि गैंस चेबंर कहने का क्या मतलब होता है। गैस वैन के अलावा गैस चेंबर भी होता था जिसे आप इस एनिमेशन से देख सकते हैं। और दुआ करते रहिए कि ऐसे ख्यालात के लोग हिन्दुस्तान की धरती पर कभी पैदा न हो।

तो दिल्ली जब गैस चेंबर बन जाये तो क्या करना चाहिए। दिल्ली की हवा बीजिंग की प्रदूषित हवा को भी पीछे छोड़ चुकी है। हवा में प्रदूषण की मात्रा है पार्टिकुलेट मैटर 2.5। अगर हवा में इसकी मात्रा 60 माइक्रो ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से ज्यादा हो जाए तो हवा ज़हरीली हो जाती है। शुक्रवार को दिल्ली के कई जगहों की हालत बेहद खराब रही।

मीडिया लगातार दिखा रहा है कि हवा में प्रदूषण का स्तर खतरनाक होता जा रहा है। बीजिंग की हवा भी दिल्ली की तरह खराब है मगर बीजिंग ने दिल्ली की तरह सुस्ती नहीं दिखाई। 30 नंवबर को चीन में आरेंज एलर्ट जारी होते ही स्कूल कालेज बंद हो गए। प्रदूषण फैलाने वाली 2100 कंपनियों के काम कुछ समय के लिए रोक दिये गए। 200 से ज्यादा एक्सप्रेस वे बंद कर दिये गए। बीजिंग में पीएम 2.5 की मात्रा जो 600 माइक्रो ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर हो गई थी जो किसी भी मानक के हिसाब से ख़तरनाक है।

यही तो हाई कोर्ट ने कहा है कि एक्शन प्लान क्या है। 21 दिसंबर तक बताइये कि क्या किया जा रहा है। लोग स्कूलों को बंद करने की भी बात कर रहे हैं। भारत सरकार ने इसी फरवरी में एंड्रायड फोन वालों के लिए सफर नाम का एक मोबाइल एप लांच किया है। अभी 5000 लोगों ने इसे डाउनलोड किया है. आप सफर के ज़रिये दिल्ली पुणे और मुंबई के आठ से दस इलाकों में रोज़ाना वायु प्रदूषण की मात्रा जान सकते हैं। शुक्रवार के दिन पूरी दिल्ली की हवा को बहुत ही ख़राब बताया गया है। इस एप में सलाह दी गई है कि बाहर न निकलें। मास्क का इस्तमाल करें।

यह जान लीजिए कि दिल्ली की इस हवा में आप बाहर जाते हैं तो आपका स्वास्थ्य किसी न किसी तरह से प्रभावित हो रहा है। क्या बीमार होने के लिए घर से निकला जाए। नेशनल ग्रीन ट्रीब्यूनल का कहना है कि बच्चों और बूढ़ों को घर पर रहने के लिए कहा जाना चाहिए। पिछले साल विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा था कि दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है।

दिल्ली में मेट्रो के विस्तार के बाद भी हर दिन 1400 नई कारें सड़क पर आ जाती हैं। मार्च तक दिल्ली में गाड़ियों की संख्या 84 लाख 75 हज़ार 371 हो गई थी। साढ़े छब्बीस लाख प्राइवेट कार हैं। 28 लाख से ज्यादा मोटर साइकिल है। 27 लाख स्कूटर हैं। साढ़े तीन लाख व्यावसायिक वाहन। 81 हज़ार से ज़्यादा तिपहिया वाहन, 32 हज़ार से ज्यादा टैक्सी और 19 हज़ार से ज्यादा बस। इनसे निकलने वाला धुआं हमारी सांसों के ज़रिये फेफड़ों को खराब कर रहा है।

दिल्ली सरकार ने हिम्मत का काम किया है। शहर प्रदूषित हो चुका है यह बताने के लिए इससे अच्छा कदम नहीं हो सकता। क्या इससे प्रदूषण कम होगा लेकिन इस फैसले का लोगों पर क्या असर होने लागा है। दिल्ली में कार ने शहर को बीमार कर दिया है। हर खुली जगह कार से भर गई है। कारों को सीमित करने की हर बात यहां फेल हुई है। पार्किंग रेट बढ़ा कर भी रोकने की बात की गई।

मगर क्या कार वाले एक दिन के लिए कार छोड़ेंगे। छोड़ देंगे तो उनके आने जाने के क्या विकल्प होंगे। जिनके पास आड और ईवेन नंबर की कार है उनकी तो तब भी मौज ही रहेगी लेकिन जिनके लिए कार दुकान है, रोज़गार है क्या वो सहन कर पायेंगे। वैसे ही दुपहिया वाहनों के लिए भी सोचना चाहिए। क्या वो बस या मेट्रो की महंगे टिकट खरीद सकते हैं। क्या उन पर दोहरा आर्थिक बोझ नहीं पड़ेगा। दफ्तर जाने के वक्त आटो वालों की मनमानी का सोच कर ही रूह कांप जाता है। बस और मेट्रो की भीड़ का क्या हाल होगा।

बहुत लोगों ने दिल्ली सरकार के इस फैसले को सुनते ही गूगल करना शुरू कर दिया कि पेरिस एथेंस ब्राजील और बीजिंग में लागू हो चुका है। मुझे याद है जब 2000 में हरियाणा के रोहतक के डीसी राजेश खुल्लर ने सम विषम नंबर वाले आटो रिक्शा के लिए यह योजना लागू की थी तो कवर करने गया था। मगर वो योजना अपने आप समाप्त हो गई। हरियाणा के ही जींद में इसी एक दिसंबर से डीसी विनय सिंह ने ऐसी ही योजना लागू की है। पेरिस के अनुभव से ज्यादा विनय सिंह से पूछा जाना चाहिए कि उनका अनुभव क्या है। क्या कारों को बंद करने से प्रदूषण कम होगा।

दिल्ली में ही 22 नवंबर को कार फ्री डे मनाया गया। उस दिन पीएम2.5 का स्तर घट गया। उसी दिन धौला कुआं और पटेल चौक पर पीएम2.5 का स्तर 645 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था। जब द्वारका वाले हिस्से में यह घटकर 335 माइक्रो ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर हो गया था। तब भी यह बहुत ज्यादा है। गुड़गांव में भी जब कार फ्री डे मनाया गया तब प्रदूषण का स्तर कम हुआ था। उसी तरह से राष्ट्रीय अवकाश यानी 2 अक्तूबर, पंद्रह अगस्त और 26 जनवरी के दिनों में भी प्रदूषण की मात्रा कम हो जाती है।

इसके अलावा दिल्ली सरकार कई और कदम उठाने जा रही है। जैसे सड़कों के किनारों की धूल वैक्यूम क्लिनिंग मशीन से हटाई जाएगी और कच्ची ज़मीन पर हरियाली का विस्तार किया जाएगा। साथ ही

बदरपुर थर्मल पॉवर प्लांट बंद कर दिया जाएगा।
दिल्ली से सटा दादरी थर्मल प्लांट भी प्रदूषण फैला रहा है।
इसे बंद करने के लिए सरकार ग्रीन ट्रायब्यूनल में अपील करेगी।
दिल्ली में ट्रकों को रात 9 की जगह 11 बजे आने दिया जाएगा।
ट्रको के प्रदूषण सर्टिफिकेट की जांच की व्यवस्था सख्त की जाएगी।

तो क्या दिल्ली सरकार ने वो कदम उठा लिया जिसके अलावा कोई दूसरा चारा नहीं बचा था। क्या कार वाले सरकार का साथ देंगे। बाइक वालों पर क्या मार पड़ेगी। सरकार इस योजना को दो तीन हफ्तों के लिए लागू कर देखना चाहती है कि क्या असर होता है।

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