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This Article is From Aug 11, 2014

भागवत के बयान पर सियासी घमासान

Ravish Kumar
  • Blogs,
  • Updated:
    नवंबर 20, 2014 12:47 pm IST
    • Published On अगस्त 11, 2014 21:06 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 20, 2014 12:47 pm IST

नमस्कार.. मैं रवीश कुमार। किसी भी मुल्क में रहने वाले लोग उसके नागरिक होते हैं तो उन नागरिकों की अलग अलग धार्मिक मान्यताएं होती हैं। जब किसी से नागरिकता के बारे मे पूछा जाता है तो वह अपने मुल्क के हिसाब से कहता है कि भारतीय है, अमरीकी है, पाकिस्तानी है, बांग्लादेशी है, श्रीलंकन है, ब्राजीलियन है, फ्रेंच है। जब धर्म पूछा जाएगा तो आप अलग से बताएंगे कि हिन्दू हैं, ईसाई हैं, मुसलमान हैं, सिख हैं। लेकिन जब आपसे यह कहा जाए कि हिन्दुस्तान के नागरिकों को हिन्दू कहा जाए तो इसमें पहले के दिए गए उदाहरणों से क्या अलग दिखा आपको। क्यों 1928 से सावरकर के पैम्फलेट हिन्दू कौन है से लेकर आज तक हम इसका सवाल आते ही भिड़ जाते हैं।

मोहन भागवत ने जो कहा है वह नया नहीं है। पहली बार नहीं कहा है। पर आरएसएस के समर्थन और सक्रिय सहयोग से एक बार फिर केंद्र में सरकार बनी है, तो उनकी बात को कोई नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता। मोहन भागवत ने कहा है कि पूरी दुनिया भारतीयों को हिन्दू मानती है, इसलिए भारत एक हिन्दू राष्ट्र है। अगर इंग्लैंड में रहने वाला इंग्लिश है, जर्मनी में रहने वाला जर्मन है, अमेरिका में रहने वाला अमरीकन है, तो जो हिन्दुस्तान में रहते हैं वे हिन्दू हैं।

अमरीकी, इंग्लिश की तरह हम भारतीय क्यों नहीं हैं? हम इंडियन क्यों नहीं हैं? हम हिन्दू ही क्यों हैं? क्या सिख, मुसमलान, ईसाई, पारसी भी हिन्दू हैं? फिर वे सिख क्यों हैं, मुसलमान क्यों हैं, पारसी क्यों हैं? क्या भागवत के सभी हिन्दुस्तानियों को हिन्दू कहने से बाकी मज़हबों में अपनी पहचान को लेकर कोई भ्रम की स्थिति पैदा होती है या वह कुछ और कह रहे हैं। क्या भागवत धार्मिकता और नागरिकता को मिला रहे हैं।

भागवत के बयान को आरएसएस की उस परंपरा में देखा जाना चाहिए, जो लंबे समय से कहता रहा है कि हिन्दुस्तान की अपनी सांस्कृतिक पहचान है। वह पहचान इसलिए हासिल है कि हिन्दुस्तान पंद्रह अगस्त को एक मुल्क बनने से पहले अपनी सभ्यता की प्राचीनता के कारण भी एक संस्कृति के रूप में विराजमान था। प्रवाहमान था। लेकिन बात सिर्फ परिभाषा और उसके लिए शब्दों के खेल की है या वाकई भागवत यहां से आपकी नागरिकता को दूसरे तरीके से परिभाषित कर रहे हैं।

पिछले दिनों गोवा के उप मुख्यमंत्री फ्रांसिस डिसूज़ा भारत पहले से ही हिन्दू राष्ट्र है। सभी इंडियन हिन्दू हैं। फ्रांसिस अपने सहयोगी दीपक धाविकर के बयान के बचाव में कह रहे थे, जिन्होंने कहा था कि मोदी देश को हिन्दू राष्ट्र बना सकते हैं। तो डिसूजा कहते हैं कि पहले से जो है उसे बनाने की ज़रूरत ही कहां। डिसूजा ने तब कहा था कि मैं क्रिश्चियन हिन्दू हूं।

हालांकि बाद में डिसूज़ा साहब ने माफी मांग ली। कहा कि मेरी राय दूसरों के लिए सही नहीं हो सकती है। मैं स्वीकार करता हूं। मैं नहीं कहता कि यही सबसे सही राय है। अगर कोई आहत है तो मैं माफी मांगता हूं। हिन्दू मेरी संस्कृति है क्रिश्चियानिटी मेरा धर्म। जब मैं कहता हूं कि मैं हिन्दू हूं तो इसका मतलब संस्कृति है, धर्म नहीं। गोवा के कैथोलिक संघ ने कहा कि हम ईसाई हैं। हमें भारतीय ईसाई कहा जा सकता है। हमें हिन्दू ईसाई मत कहिए।

क्या अमरीका या ब्रिटेन में पैदा हुए किसी हिन्दू को वहां के धर्म के अनुसार आप ईसाई हिन्दू कहेंगे। एक बात का ध्यान रखिएगा। यहां मेरे या किसी के हिन्दू होने को लेकर कोई विवाद नहीं है। उस पहचान को ज़ाहिर करने को लेकर भी विवाद नहीं है। लेकिन जैसे ही आप यह कहते हैं कि दूसरे मज़हब को मानने वाले भी हिन्दू हैं, तब विवाद होता है। अगर हिन्दू हैं तो फिर भारतीय होना क्या रद्द हो जाएगा?

सीताराम येचुरी ने कहा संविधान कहता है कि इंडिया दैट इज़ भारत। हम हिन्दुस्तान कह सकते हैं, लेकिन यह भारत है। आरएसएस को बताना चाहिए कि वे संविधान का सम्मान करते हैं या नहीं। मायावती कहती हैं कि जब आंबेडकर जी ने संविधान लिखा तो यह ध्यान में रखकर लिखा कि हमारे देश में कई धर्म के लोग रहते हैं। इसलिए भारत नाम दिया गया। हिन्दुस्तान शब्द का इस्तमाल नहीं हुआ। आरएसएस प्रमुख को संविधान का ज्ञान नहीं है। लालकृष्ण आडवाणी तो हिन्दुस्थान कहते हैं। हिन्दुस्तान नहीं। अपना ही देश है चाहे जिस नाम से बुला लीजिए। बस प्यार से बुलाइये। इस तरह से नहीं कोई आहत हो जाए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जब चुनाव प्रचार अभियान के दौरान पीटीआई से कहा था कि मैं खुद को पहले भारतीय के रूप में देखना चाहूंगा। मैं आस्था से हिन्दू हूं और मुझे अपनी आस्था पर गर्व है। मैं अपने देश को प्यार करता हूं। इसलिए आप कह सकते है कि मैं देशभक्त हूं।

क्या मोदी और भागवत की बातें अलग-अलग नहीं हैं। मोदी अपनी भारतीयता और धार्मिकता को अलग-अलग बताते हैं। दोनों पर ही गर्व करते हैं। संघ प्रमुख मोहन भागवत कहते हैं जो हिन्दुस्तानी है वह हिन्दू है। हिन्दू राष्ट्र या इंडियन मतलब हिन्दू में क्या वह सब बाहर हैं जो हिन्दू नहीं हैं या जो भीतर हैं उन्हें ज़ोर ज़बरदस्ती से शामिल किया गया है।

यह परिभाषा सिर्फ दिल बहलाने के लिए दिया जाता है या आरएसएस या उसकी मदद से चलने वाली बीजेपी इसे लेकर गंभीर भी है। यह एक जटिल और संवेदनशील मसला है। आज से नहीं उठ रहा है। सत्तर-अस्सी साल से इस पर विवाद हो रहा है। किताब के किताब लिखे गए हैं। हिन्दी हैं हम वतन हैं हिन्दोस्तां हमारा कहा गया तो यह भी गाया गया कि तू हिन्दू बनेगा, न मुसलमान बनेगा इंसान की औलाद है इंसान बनेगा।

(प्राइम टाइम इंट्रो)

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