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This Article is From May 30, 2017

प्राइम टाइम इंट्रो : जानवरों के प्रति क्रूरता रोकने के नए नियमों को लागू करेगा कौन?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 30, 2017 23:57 pm IST
    • Published On मई 30, 2017 21:50 pm IST
    • Last Updated On मई 30, 2017 23:57 pm IST
केंद्र सरकार ने The Prevention of Cruelty to Animals Act, 1960 में बदलाव करते हुए मवेशियों के बेचे जाने के कुछ नए नियम बनाए हैं. इस नियम के तहत पशुओं के लिए लगने वाले साप्ताहिक मेलों या मंडियों में अब कसाई के हाथों या कटाई के लिए मवेशियों को नहीं बेचा जा सकेगा. इसमें गाय, भैंस, बछड़ा, ऊंट शामिल हैं. नए नियम में यह नहीं कहा गया है कि गाय या भैंस के काटने पर संपूर्ण रोक लगाई जा रही है बल्कि मेलों या मंडियों से सीधे खरीदने पर रोक की बात कही गई है.

पंजाब की डबवाली पशु मंडी में रविवार के दिन करीब पचास हजार मवेशी लाए जाते हैं. यहां पर भैंसें कसाई के हाथों बेची जाती हैं, गाय नहीं. हमने यहां के डेयरी किसान दर्शन सिंह से बात की. दर्शन सिंह ने मुझसे कहा कि हेडलाइन लिखिए कि फैसला सही है मगर गौशाला की तरह भैंस शाला खोले सरकार, गायों के चरने की जमीन को माफिया के चंगुल से छुड़ाए फिर गाय या भैंस सड़क पर घूमती नजर नहीं आएंगी. वैसे आपको लगता है कि सरकार भैंस शाला खोलेगी? बहरहाल, दर्शन सिंह ने बताया कि नए नियम से मवेशियों की कटाई पर पूरी तरह रोक नहीं लगी है मगर मंडी में कसाई को बेचने पर रोक लगा देने से कसाई के लिए खरीदना मुश्किल हो जाएगा. पहले वह एक दिन में बीस-पच्चीस भैंसें खरीद सकता था, मगर अब इतनी ही भैंसें खरीदने में उसे घर-घर घूमना होगा और दो महीने लग जाएंगे.

व्यापारी भी यही कह रहे हैं कि सीधा किसानों से मांस व्यापार के लिए खरीदना मुश्किल हो जाएगा. भैंस को नए नियम से बाहर कर देना चाहिए क्योंकि भारत 65 देशों को बीफ का निर्यात करता है. इस चक्र में लाखों लोग अस्थायी किस्म का रोजगार पाते हैं. पशुपालक और किसान भी मंडियों में अपने पशुओं के दाम बेहतर पाता है. वह मोलभाव कर पाता है. अगर वह नहीं बेच पाएगा तो अब उसे अयोग्य भैंस को अपने घर में रखना होगा या गाय की तरह खुले में छोड़ देना होगा.

इस मसले से जुड़े विवाद का संबंध जितना क्रूरता को रोकना नहीं है उससे कहीं ज्यादा इसके जरिए गाय और गौ मांस की राजनीति को जिंदा रखना लगता है. इसमें हर पक्ष की सक्रियता सराहनीय है. बात मांस की नहीं है, मांस के बाद चमड़े का कारोबार है, हड्डियों का कारोबार है जिससे लाखों लोगों को रोजगार जुड़ा है.

एक ट्रक जला दिया गया जो कि मवेशियों की हड्डियां लेकर जा रहा था. फरीदाबाद में सूरजकूंड के पास अनगपुर गांव में 50 युवकों ने ट्रक को रोक लिया. ड्राइवर को मार-मारकर अधमरा कर दिया. यह कहते हुए कि यह गाय को काटकर गौ मांस बेचने जा रहे हैं. जबकि उस पर हड्डियां लदी थीं. कंडक्टर ने लाइसेंस भी दिखाया मगर युवक नहीं माने. पांच युवक अब गिरफ्तार हैं. बार-बार इस तरह की घटना घटती जा रही हैं.

पर्यावरण वन व जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 23 मई 2017 को अधिसूचना जारी कर नए नियम जारी किए हैं. नोटिफिकेशन हिन्दी में भी है इसलिए सबको पढ़ना चाहिए. इस नियम के अन्य पहलुओं पर भी बहस होनी चाहिए कि क्या वह किसानों और व्यापारियों के व्यापक हित में हैं. क्या सरकार या कोई पशु चिकित्सा अधिकारी इसे लागू कराकर दिखा सकता है. पहले पशु चिकित्सा अधिकारी बताएं कि जिले में उसके पास कितना स्टाफ है, उसके महकमे में कब से बहाली नहीं हुई है. सेक्शन 14 से लेकर 17 में कई प्रकार की क्रूरता की सूची है. इसमें लिखा है कि सींगों की कतरन, रंग रोगन, घोड़ा की बिशपिंग और भैंस के कान काटना क्रूरता है. पशुओं के शरीर के अंगों पर किन्हीं रसायन और रंगों का प्रयोग नहीं होगा. बिना उचित शैय्या के नाल लगाने के लिए पशु को जमीन पर नहीं गिरा सकते हैं. सिर, गर्दन, कान, सींग, टांग, पूंछ, या पंख से पकड़ना मना है. पशु को नृत्य के लिए इस्तेमाल करना मना हो गया है. पशु को कोई आभूषण या सजावटी सामग्री पहनाना मना है. पशु को दूध पीने से रोकने के लिए छीका का प्रयोग करना मना होगा.

हर किसान अपने बैलों को सजाता है. गायों को आभूषण पहनाता है. यह नहीं लिखा है कि आभूषण क्या है. मगर आप हम जानते हैं कि घुंघरू है, घंटी है, रंगीन पट्टे होते हैं. मेलों में इसका व्यापक बाजार होता है. क्या अब उन चीजों की बिक्री पर रोक लगेगी, जिसके चलते ग्रामीण कारीगरी भी जिंदा है. भारत में गोप अष्टमी के दिन गाय को घुंघरू पहनाई जाती है. सींग की रंगाई होती है. गाय को रंगते भी हैं. मान्यता यह है कि गाय के सींग में सरसों का तेल लगाने से शनि का असर कम हो जाता है. क्या यह सब भी अब प्रतिबंधित हो जाएगा और किसान आसानी से स्वीकार कर लेंगे. केंद्र सरकार कहती है कि यह सारे नियम सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश के अनुकूल बनाए गए हैं. एक सवाल है कि इन्हें लागू कौन करेगा, जुर्माना और जेल का खेल शुरू होगा गांव-गांव में. लिखा है कि पशु चिकित्सक के अलावा कोई दूसरा व्यक्ति मवेशी को कोई तरल पदार्थ नहीं पिला सकता है. क्या देश में इतने पशु चिकित्सक हैं. मैं खुद बचपन में बांस की नली, जिसे स्थानीय भाषा में कांड़ी कहते हैं, से गाय को पाचक की दवा पिलाता था. क्या वह अब क्रूरता मानी जाएगी या अब यह काम सिर्फ पशु चिकित्सक करेंगे. पश्चिम यूपी में इसे नाल कहते हैं जिससे नई भैंस को तेल पिलाते हैं, बैल को घी पीलाते हैं. एंटी बायोटिक्स और स्टेराइड देना भी निषेध है. यह अच्छा है.

सेक्शन (15) में कहा गया है, पशु बाजार में सख्त मौसम में खुला छोड़ना क्रूरता है. नाक या नकेल या लगाम को खींचना, झटकना और झकझोरना मना है. अयुक्तियुक्त अवधि के लिए छोटी रस्सी पर खूंटे से बांधना मना है. डंडे या पैने से मवेशी को नहीं मारा जा सकेगा. मुर्गा उल्टा टांगकर नहीं ले जा सकेंगे, मुर्गे को टांग से नहीं बांध सकेंगे. पशु को कंट्रोल करने के लिए पूंछ, थूथन और कान मरोड़ना मना हो गया है. कोई भी व्यक्ति किसी बछड़े को नहीं बांधेगा, उसे छींका नहीं लगाएगा.

नोटिफिकेशन में क्रूरता की सजा नहीं है, लेकिन जिस प्रिवेंशन आफ क्रूयेलिटी टू एनिमल्स एक्ट से यह नोटिफिकेशन निकला है उसके अनुसार तीन महीने की जेल हो सकती है. जुर्माना ठीक है, दस रुपये से लेकर 100 रुपये तक ही है. यह भी बताना चाहिए था कि नालबंदी के लिए मवेशी को जमीन पर गिराते वक्त किस तरह की शैय्या यानी बिस्तर यानी गद्दे का इस्तेमाल करना होगा.

अब आते हैं बीफ पॉलिटिक्स पर. शनिवार को केरल में यूथ कांग्रेस की करतूत को बीजेपी ने देश भर में व्यापक मुद्दा बना दिया है. अब मेघालय के बीजेपी नेताओं की बीफ और गौ मांस पर प्रतिक्रिया सुन लीजिए. यह ज़रूर है कि उन्होंने पब्लिक में बछड़े को काटकर विरोध का घिनौना काम नहीं किया है. मेघालय बीजेपी के नेता बर्नार्ड मराक ने कहा है कि अगर यह नियम लागू किए गए तो वे बीजेपी छोड़ देंगे. अगर यह नियम नहीं बदला तो हमारे लिए आगामी चुनावों में बीजेपी के लिए प्रचार करना मुश्किल हो जाएगा. उनका कहना है कि हम अपने राज्य के खान पान के व्यवहार के खिलाफ नहीं जा सकते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि मेघालय में बीजेपी के नेता बीफ खाते हैं.

मार्च में नगालैंड के बीजेपी चीफ ने हिन्दुस्तान टाइम्स से कहा था कि अगर नगालैंड में हमारी पार्टी सत्ता में आती है तो यूपी की तरह यहां गाय काटने पर बैन नहीं लगेगा. यह बात हमारे सेंटर के नेताओं को मालूम भी है. नगालैंड की सरकार में बीजेपी भागीदार है. मिजोरम के बीजेपी अध्यक्ष ने भी कहा था कि गाय काटने पर मिज़ोरम में कोई बैन नहीं होगा. गोवा की भी यही हालत है. तो बीजेपी को भी साफ-साफ कहना चाहिए कि क्या वह पूरे देश में गौ मांस पर प्रतिबंध लगाने के पक्ष में है, और इसके लिए क्या करने जा रही है. ऐसा करने से पहले उसे बताना होगा इससे जुड़े लाखों लोगों के रोज़गार का विकल्प क्या है, उनका क्या होगा. गांवों में किसानों पर क्या असर पड़ेगा.

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