धरती पर भले ही हम और आप बराबर न हो सकें मगर बताया जाता है कि इंटरनेट पर हम और आप बराबर हैं। एक ही क्लिक में हम अमेरिका और मुनिरका की वेबसाइट पर आवाजाही कर सकते हैं। व्हाट्सऐप पर ग्रुप चैट कर सकते हैं और स्काइप पर इंटरनेशनल कॉल।
नंबर वोडाफोन, टाटा या एयरटेल का लेकिन व्हाट्सऐप के ज़रिये बातचीत फ्री की। अगर यही बातचीत आप इन टेलिकॉम कंपनियों के ज़रिये करते तो उन्हें कमाई भी होती मगर एसएमएस का पैसा भले न दे रहे हों आप इंटरनेट कनेक्शन का पैसा तो दे ही रहे हैं। किस रफ्तार से और कितना डेटा आप इस्तमाल करेंगे इसका पैसा टेलिकॉम कंपनी आपसे वसूल लेती है।
अब ये कंपनियां कहें कि वे आपसे इस बात के भी पैसे लेंगी कि आप कौन सा डेटा इस्तमाल करते हैं। मामला सिम्पल है बस ज़रा याद कीजिए कि आप इंटरनेट के ज़रिये क्या क्या करते हैं।
गूगल, याहू जैसे सर्च इंजन के ज़रिये दुनिया भर में खोज कर डालते हैं। यू ट्यूब के ज़रिये अपना वीडियो अपलोड करते हैं और दूसरे का अपलोड किया हुआ देखते हैं। इसके लिए गूगल और यू ट्यूब के पास कमाई के अपने मॉडल भी हैं। स्काइप, वाइबर जैसे मुफ्त वार्तालाप माध्यमों से आप टेलिकॉम कंपनी को बात करने का एक पैसा दिये बिना बात कर लेते हैं।
फेसबुक, ट्वीटर, इंस्टाग्राम से लेकर आमेज़न, फ्लिपकार्ट पर आप हाल चाल से लेकर दाल भात की खरीदारी कर रहे हैं। इस गेम में सरकारें भी कूद गईं हैं। डिजिटल बराबरी के नारे के साथ रोज़ नए नए ऐप्स बनाए जा रहे हैं ताकि आप सरकार तक आसानी से पहुंच सकें। ओला से लेकर बड़बोला नाम के ऐप्स आ रहे हैं। टैक्सी से लेकर रेल टिकट तक के ऐप्स आ गए हैं।
इन सबको तकनीकी भाषा में ओवर द टॉप सर्विसेज़ कहते हैं। आप इन ऐप्स का इस्तेमाल फ्री में करते हैं। कुछ ऐप्स के लिए पैसे भी देते हैं। इसके लिए आप किसी टेलिकॉम कंपनी का 2जी 3जी कनेक्शन इस्तमाल करते हैं जिसके लिए आप उस कंपनी को पैसे देते हैं। टेलिकॉम कंपनियों का कहना है कि हाई स्पीड का ब्रॉडबैंड देने के लिए निवेश करना पड़ता है। इन ओवर द टॉप सर्विसेज से उनकी कमाई पर असर पड़ रहा है।
व्हाट्सऐप के कारण टेलिकॉम कंपनियों को चार हज़ार करोड़ का नुकसान हो रहा है लेकिन व्हाट्सऐप के कारण डेटा का इस्तमाल भी तो बढ़ा है जिससे टेलिकॉम कंपनियां पहले से ज्यादा कमा रही हैं और आने वाले दिनों में कमाएंगी। ये पूरा मामला आप पहले से समझते हैं। जैसे केबल वाला आपके घर आता है और आप शिकायत करते हैं कि भाई एनडीटीवी इंडिया क्यों नहीं आ रहा है। फलां चैनल इस नंबर पर क्यों आ रहा है, मेरी पसंद का चैनल पिछले नंबर पर क्यों आ रहा है। आप जानते हैं कि यह सब कैरेज फीस के आधार पर तय होता है। क्या यही कुछ अब इंटरनेट की दुनिया में होने जा रहा है।
टेलिकॉम कंपनियां चाहती हैं कि कोई ऐसा बिजनेस मॉडल निकले जिससे उन्हें भी इन नए क्षेत्रों से कमाई हो सके वर्ना एक दिन वो सिर्फ नेटवर्क बन कर रह जाएंगी। लोग फोन से लेकर मैसेज तक के लिए एप्लिकेशन का इस्तमाल करेंगे जबकि हमें जो लाइसेंस मिलता है उसमें इन सुविधाओं की फीस शामिल होती है।
इसी नए मॉडल की तलाश के लिए टेलिकॉम नियामक संस्था टीआरएआई ने 118 पेज का मशवरा पत्र जारी किया है। एक लाख से ज्यादा लोग ईमेल कर चुके हैं प्लीज ऐसा मत कीजिए। जो पहले से चल रहा है चलने दीजिए। सोशल मीडिया पर नेट न्यूट्रैलिटी ज़िंदाबाद के नारे लग रहे हैं। नेट न्यूट्रैलिटी मने आपने एक बार ब्रॉडबैंड की फीस दी, उसके बाद किसी भी साइट पर बिना अतिरिक्त पैसा खर्च किये चले गए। उसी रफ्तार से और उसी अधिकार से।
यह चुनौती पैदा हुई है स्मार्टफोन के स्मार्टनेस से। भारत में 20 प्रतिशत लोगों के पास ही स्मार्टफोन हैं मगर इसकी रफ्तार तेज़ी से बढ़ रही है। फोन की दुकान पर ज्यादातर फोन अब स्मार्टफोन ही बिकते हैं। स्मार्टफोन के कारण ही ऐप्स और ई बिजनेस सेवाओं का विस्तार संभव हो सका है। टेलिकॉम कंपनियों को लगता है कि उनके नेटवर्क पर दूसरे आकर धंधा कर रहे हैं, उन्हें कुछ नहीं मिल रहा है। वे भी इन ऐप्स और वेबसाइट से कुछ वसूलना चाहती हैं।
एक कंपनी ने कहा है कि जो वेबसाइट उनके यहां अतिरिक्त पैसे देकर रजिस्टर्ड होगी उसी को आप रफ्तार से सर्फ कर सकेंगे। अब अगर ऐसा होगा तो इंटरनेट की दुनिया में गैरबराबरी के मंच बनते चले जाएंगे। टेलिकॉम कंपनियां कहती हैं कि इंटरनेट बैंकिंग तेज़ रफ्तार से बढ़ रही है। जैसे एटीएम से पैसे निकालने पर बैंक सुविधा शुल्क की मांग करते हैं उसी तरह से टेलिकॉम कंपनियां इंटरनेट बैंकिंग के बदले किसी शुल्क की उम्मीद रखती हैं। अगर कोई कंपनी यह कहे कि हम टेलिकॉम कंपनी को पैसा दे रहे हैं ताकि जब हमारा उपभोक्ता हमारी साइट पर आए तो उससे इंटरनेट के इस्तमाल के पैसे न लिये जाएं और रफ्तार भी बढ़िया रहे तब ये आइडिया कैसा रहेगा।
क्या वाकई टेलिकॉम कंपनियों की कीमत पर यह विस्तार हो रहा है या टेलिकॉम कंपनियां इस बढ़ते हुए क्षेत्र में अपनी कमाई का ज़रिया ढूंढ रही हैं। एक दलील यह है कि टेलिकॉम कंपिनयां काफी पैसे देकर लाइसेंस हासिल करती हैं जबकि ऐप्स या ई कार्मस या सर्च इंजन वाले बिना किसी लाइसेंस के ये सब काम कर रहे हैं। क्या ओटीटी को लाइसेंस रीजिम के तहत लाना चाहिए। दुनिया भर की सरकारें चाहती हैं कि टेलिकॉम कंपनियां नेट न्यूट्रैलिटी से छेड़छाड़ न करें मगर खुद ही करती रहती हैं। नेट के कंटेंट पर निगरानी के लिए कानून से लेकर जासूस पैदा करती रहती हैं। क्या वाकई नेट न्यूट्रैलिटी की स्थिति है। यह भी एक सवाल है।