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This Article is From Mar 16, 2017

प्राइम टाइम इंट्रो : किसानों की कर्ज़ माफ़ी आर्थिक तौर पर कितनी भारी?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    March 16, 2017 21:27 IST
    • Published On March 16, 2017 21:27 IST
    • Last Updated On March 16, 2017 21:27 IST
क्या आप जानते हैं कि भारत के किसानों पर कितने लाख करोड़ का कर्ज़ा है. इन किसानों में से कितने छोटे और मझोले किसान हैं और कितने खेती पर आधारित बिजनेस. कई बार हम खेती पर आधारित बिजनेस के लोन को भी किसानों के लोन में शामिल कर लेते हैं. सितंबर 2016 में राज्यसभा में कृषि राज्य मंत्री ने बताया था कि भारत के किसानों पर 30 सितंबर 2016 तक 12 लाख 60 हज़ार करोड़ रुपये का कर्ज़ा है. इनमें से 9 लाख 57 हज़ार करोड़ का कर्ज़ा व्यावसायिक बैंकों ने किसानों को दिया है. 12 लाख 60 हज़ार करोड़ में से 7 लाख 75 हज़ार करोड़ कर्ज़ा फसलों के लिए लिया गया है. तब पुरुषोत्तम रूपाला ने कहा था कि सरकार कर्ज़ा माफ नहीं करेगी. रिज़र्व बैंक ने कहा है कि इससे कर्ज़ वसूली पर नकारात्म असर पड़ेगा.

सितंबर से मार्च आते आते राजनीति और सरकार के भीतर काफी कुछ बदल गया है. यूपी की चुनावी सभाओं में प्रधानमंत्री ने हर रैली में कहा कि बीजेपी की सरकार बनेगी तो उसकी कैबिनेट की पहली बैठक में छोटे और सीमांत किसानों का कर्ज़ा माफ किया जाएगा. बीजेपी ने यही बात घोषणापत्र में भी कही है. यह भी कहा है कि सीमांत और लघु किसानों को बिना ब्याज़ के कर्ज़ दिलाएंगे. 2008 में किसानों का साठ हज़ार करोड़ का कर्ज माफ हुआ था. आईएनएलडी के सांसद दुष्यंत चौटाला को शक हुआ कि सरकार वादा भूल जाएगी, जब लोकसभा में सवाल उठाया तो कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा कि बीजेपी सरकार यूपी में किसानों का कर्ज़ा माफ करेगी. जो भी कर्ज़ का भार होगा वो केंद्र सरकार वहन करेगी.

यूपी के छोटे किसानों के कर्ज़ माफी का भार केंद्र सरकार वहन करेगी तो क्या वो पंजाब के किसानों की कर्ज़ माफी का भार उठाएगी. वहां भी कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा था कि सभी किसानों के कर्ज़ छह महीने के भीतर माफ किये जाएंगे. कांग्रेस ने उन किसान परिवारों को दस लाख मुआवज़ा देने का ऐलान किया है जहां किसी ने आत्महत्या की है. जो फैसला यूपी में बीजेपी सरकार पहली बैठक में लेगी, क्यों नहीं कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार भी पहली बैठक में किसानों का कर्ज़ा माफ करे.

कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना, गुजरात और पंजाब में किसानों की आत्महत्या का सिलसिला रुक नहीं रहा है. किसानों ने अलग-अलग मसलों पर प्रदर्शन किये मगर कामयाबी नहीं मिली. यूपी से किसानों को एक बड़ी जीत यह मिलेगी कि सरकार की पहली बैठक में उनके बारे में फैसला लिया जाएगा. इससे किसान एक बार फिर से राजनीति के केंद्र में आ जाएंगे. मगर बैंक क्यों परेशान हैं कि कर्ज माफी ठीक नहीं है. हमने आपको बताया कि साढ़े बारह लाख से अधिक के कर्ज़े में साढ़े नौ लाख करोड़ कर्ज कमर्शियल बैंकों ने दिया है. कर्ज़ माफी से उन्हें क्यों तकलीफ है जब कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा है कि यूपी के किसानों की कर्ज माफी का भार केंद्र सरकार उठायेगी.

खेती का लोन माफ करने से कर्ज़ का अनुशासन टूटता है. ये किसी और ने नहीं बल्कि देश के सबसे बड़े बैंक की प्रमुख अरुंधति भट्टाचार्य ने कहा है कि किसानों का समर्थन होना चाहिए मगर कर्ज़ अनुशासन की कीमत पर नहीं. हमें इससे बाहर निकलना चाहिए. रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी कहा था कि किसानों का कर्ज़ माफ करना ठीक कदम नहीं है. इससे किसान को नुकसान ही होता है.

एसबीआई के प्रमुख का बयान सुनते ही कांग्रेस के विधायक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के मुख्यालय पहुंच कर प्रदर्शन करने लगे. सदन के भीतर भी बीजेपी के खिलाफ नारे लगाए कि महाराष्ट्र में सबसे अधिक किसानों ने आत्महत्या की है. राज्य सरकार क्यों नहीं कर्ज़ माफ कर रही है. शिवसेना भी विपक्ष की इस मांग का समर्थन कर रही है.

31 दिसंबर 2016 की शाम प्रधानमंत्री ने देश को संबोधित करते हुए किसानों के लिए कर्ज माफी का ऐलान तो नहीं किया मगर उनके लिए ब्याज़ माफी की घोषणा ज़रूर की. माफी की यह योजना सभी किसानों के लिए नहीं थी. जिन किसानों ने ज़िला सहकारिता बैंकों और प्राइमरी सोसायटी से लोन लिया है, उनके साठ दिनों का ब्याज़ सरकार भरेगी. किसानों के कर्ज़ के लिए 21,000 करोड़ की अतिरिक्त राशि उपलब्ध कराई जाएगी. नाबार्ड के ज़रिये 20,000 करोड़ और उपलब्ध कराये जाएंगे.

यानी साठ दिन का सिर्फ ब्याज़ माफ हुआ. कर्ज़ा माफ नहीं हुआ बल्कि कर्ज़ देने की राशि और बढ़ा दी गई ताकि किसान और लोन ले सकें. इस बार के बजट में दस लाख करोड़ के कृषि ऋण का प्रावधान किया है. अपने आप में रिकॉर्ड है. किसानों को कर्ज़ की तो कमी नहीं होगी मगर यहां सवाल कर्ज़ माफी का है. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने हाल ही में खेती के उपकरण और ट्रैक्टर लोन के लिए एक बार में सेटेलमेंट स्कीम का ऐलान किया है. इसमें बैंक ट्रैक्टर लोन वेने वाले किसानों को 40 फीसदी छूट दे सकता है.

25 लाख तक के लोन लेने वालों को इस स्कीम का लाभ मिलेगा. बैंक को लगता है कि 6000 करोड़ लोन का लौटना मुश्किल है, इसलिए कुछ रियायत देकर पैसे की वसूली की जाए जिससे उनकी रिकवरी बढ़ सके. उत्तर प्रदेश के किसानों ने बीजेपी का भरपूर साथ दिया है. इंडियन एक्सप्रेस के हरीश दामोदरण ने अपने अध्ययन से बताया है कि पहले दो चरण के 168 विधानसभा क्षेत्रों की पहचान गन्ना किसानों और आलू के किसानों के रूप में है. गन्ना बेल्ट की 106 सीटों में से 83 सीटें बीजेपी ने जीत ली हैं. तब जबकि मार्च दस तक चीनी मिलों ने गन्ना किसानों के करीब चार हज़ार करोड़ नहीं चुकाये थे. इस बेल्ट में भी किसानों ने नोटबंदी के चलते अपनी परेशानी बताई थी. आलू बेल्ट की 62 सीटों में से 50 पर बीजेपी जीती है. नोटबंदी से पहले आलू 700-800 प्रति क्विंटल बिक रहा था. नोटबंदी के बाद आलू का भाव गिकर 300-400 प्रति क्विंटल पर आ गया. पर चुनावी नतीजा आया तो बीजेपी की बंपर फसल लहलहाने लगी.

नोटबंदी के बाद भी किसानों ने प्रधानमंत्री मोदी पर भरोसा किया है. बीजेपी अपने इस नए मतदाता वर्ग का भरोसा तो नहीं तोड़ेगी. 16 मार्च के फाइनेंशियल टाइम्स में कर्मवरी सिंह ने लिखा है कि छोटे और सीमांत किसानों को सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों ने 85,000 करोड़ का लोन दिया है. राज्य के खजाने में शायद इतना पैसा न हो. क्या केंद्र सरकार यूपी के किसानों का 85,000 करोड़ माफ करेगी?

गुरुवार को ही कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने लोकसभा में तो कहा ही है कि केंद्र सरकार यूपी के किसानों की कर्ज माफी का भार उठाएगी. सरकार प्रतिबद्ध है. यह बात बिल्कुल अलग है कि किसानों को कर्ज माफी से लाभ नहीं होता. 2009 के बाद कर्ज माफी हो रही है तो ऐसा भी नहीं है कि एक बार माफ कर देने पर हर साल किसान इसकी मांग करते ही हैं और सरकार भी मान लेती है. आठ नौ साल के बाद माफी की योजना से पता चलता है कि सरकार और किसान दोनों लोन चुकाना भी चाहते हैं मगर उनके संकट की गहराई को देखते हुए बीच बीच में माफ कर देने की योजना उतनी भी ख़राब नहीं है. बैंकों पर एनपीए यानी नॉन प्रोफिट असेट का पहले से दबाव बढ़ता जा रहा है. उद्योग जगत कर्ज़ नहीं चुका पा रहा है लिहाज़ा पिछले 15 महीने में एनपीए दुगना हो गया है. सितंबर 2015 में 3,49,556 करोड़ था जो सितंबर 2016 में 6,68,825 करोड़ हो गया. 15 मार्च को वित्त मंत्री ने कहा है कि मार्च की तिमाही में एनपीए का बढ़ना कुछ थमा है क्योंकि स्टील सेक्टर में सुधार होने लगा है. भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार बैंक को एनपीए की वसूली में काफी दिक्कत आ रही है.

मार्च 2014 में कुल एनपीए का 18.4 फीसदी वसूला जा सका था. मार्च 2016 में कुल एनपीए की वसूली घटकर 10.3 फीसदी हो गई. यानी रिकवरी कम हो गई. बैंकों के एनपीए के कारण भी यह तर्क चल पड़ता है कि जब उद्योगपतियों के लाखों करोड़ नहीं वसूले जा रहे हैं तो किसानों के भी लोन माफ होने चाहिए. अर्थशास्त्री की तरह देखेंगे तो यह एक समस्या है. किसी भी सरकार के लिए इतने लाख करोड़ माफ कर देने में व्यावहारिक और सैद्धांतिक दिक्कत भी है. लेकिन राजनीतिक फैसलों को आप इस तरह से नहीं देख सकते हैं.

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