गोली मार देने की बात मुझे नहीं जंची, भले ही यह बात इसलिए कही गई हो कि ठोस तरीके से मैसेज चला जाए. मेरी राय में प्रधानमंत्री को ऐसे अतिरेक से बचना चाहिए था. जिन गौ रक्षकों को वे दो दिन से असामाजिक तत्व, नकली गौ रक्षक, भारत की एकता को तोड़ने वाला मुट्ठी भर समूह बता रहे थे, उनके लिए यह कहना कि मुझे गोली मार दो मगर मेरे दलित भाइयों को मत मारो. जो लोग प्रधानमंत्री की नज़र में कानून और समाज के अपराधी हैं उन्हें हमारे प्रधानंत्री को गोली मारने की इजाज़त कतई नहीं दी जा सकती. इलाहाबाद की परिवर्तन रैली में भी प्रधानमंत्री ने कह दिया था कि मुझे यूपी में एक बार मौका दीजिए, पांच साल में अपने किसी काम के लिए आपका नुकसान कर दिया तो मुझे लात मार कर बाहर कर दीजिएगा.
प्रधानमंत्री को लात मारना या गोली मारना टाइप के अतिरेक से बचना ही चाहिए. जिस समस्या पर वे बोल रहे थे उसकी नैतिक ज़िम्मेदारी उनकी तो बनती ही है, क्योंकि कई घटनाएं उनके या उनकी पार्टी की शासित राज्यों में हुई हैं. मगर ऐसा नहीं है कि दलितों पर हिंसा की घटना दूसरे दलों की सरकारों में नहीं हुई है. दलितों पर अत्याचार की घटना वहां भी हो रही है या हुई है जहां बीजेपी की सरकार नहीं है. लेकिन देश के प्रधानमंत्री के नाते या कई राज्यों में सरकार चलाने वाली बीजेपी के सर्वोच्च नेता होने के नाते वे यह चेतावनी पहले भी दे सकते थे. न देने के कारण कई लोगों में संदेश गया कि इन गौ रक्षकों को बीजेपी की सरकारों का संरक्षण प्राप्त है, संघ और संघ के संगठनों का समर्थन प्राप्त है. इसलिए इनके खिलाफ बीजेपी शासित सरकारों ने भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं की मगर यह भी सही है गैर बीजेपी सरकारों ने भी इन गौ रक्षकों को वैसी ही छूट दी. उन्होंने ने भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं की. वे भी लाचार नज़र आए. इसलिए प्रधानमंत्री इस समस्या को संबोधित करें, न कि इसके बहाने ख़ुद को.
पर प्रधानमंत्री के दूसरे रूप को देखना है तो आप जीएसटी पर दिए गए उनके भाषण को सुन सकते हैं. एक टेक्निकल विषय को वे कितनी सरलता से सदन में बोल गए. सरलता से भी और उदारता से भी. अगर वित्त मंत्री को बुरा न लगे तो वे प्रधानमंत्री से ये कला सीख सकते हैं कि जीएसटी पर जनता से कैसे संवाद किया जा सकता है. लेकिन क्या बात है कि जीएसटी पर सरलता और उदारता से बोलने वाले प्रधानमंत्री के गौ रक्षकों पर दिए बयान को विपक्ष ने उस तरह स्वागत नहीं किया जिस तरह पाकिस्तान में राजनाथ सिंह के भाषण का किया. पहली आलोचना यह हुई कि पहला कि उन्होंने सिर्फ दलितों के बारे में कहा, मुसलमानों के बारे में नहीं जबकि इस हिंसा के शिकार वे भी हो रहे हैं. दूसरी आलोचना यह हो रही है कि उन्होंने बहुत देर से बोला. लेकिन क्या आलोचक यह नहीं देख पा रहे हैं कि उनके इस बयान से एक झटके में इन गौ रक्षकों की राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक मान्यता समाप्त हो गई है. अभी तक ये जब भी स्क्रीन या सड़क पर अवतरित होते थे तो किसी विचारधारा और सरकार के संरक्षण में पलने वाले असामाजिक तत्व लगते थे. प्रधानमंत्री ने इनके असामाजित तत्व होने की पुष्टि कर दी है. पहले भी कुछ लोग इन गौ रक्षकों की हरकतों को भारत के लोकतंत्र का ख़तरा बता रहे थे, फर्क ये था कि तब सोशल मीडिया के उत्पाती समर्थक इन्हें सरकार विरोधी चश्मे से देख रहे थे, भारत को बदनाम करने वाले तत्व के रूप में देख रहे थे.
प्रधानमंत्री यही बात पहले कह देते तो हमारे गुजरात के ऊना में चार दलित युवकों को अर्धनग्न कर पीटने का साहस कोई दल नहीं कर पाता. मध्य प्रदेश के रेलवे स्टेशन पर एक गरीब महिला को उतार कर उसे मारा नहीं जाता. मारने के बाद उसे गिरफ्तार करने की हिम्मत न होती. न ही हरियाणा में उस व्यक्ति को गौ रक्षक ट्रक से उतार कर गोबर और मूत्र पिला पाते. दादरी के अख़लाक़ की हत्या न होती और उसके बाद कुतर्कों की राजनीति न होती. कम से कम प्रधानमंत्री उस वक्त तो रोक ही सकते थे जब बिहार के चुनावों में बीजेपी के पोस्टरों पर गाय की तस्वीर छप रही थी. ऐसे भड़काऊ पोस्टरों के बारे में ही चुनाव आयोग ने केंद्र से स्पष्ट अधिकार मांगे हैं ताकि इन पर पाबंदी लगाई जा सके.
ये नकली गौ रक्षक कौन हैं. ये किस विचारधारा के राजनीतिक आश्रम में पलते बढ़ते हैं. सच बात ये है कि ये तब भी थे जब बीजेपी की सरकार केंद्र या कई राज्यों में नहीं थी. हो सकता है कि इनका उत्पात दो साल में ज्यादा बढ़ गया हो. जब केंद्र के मंत्री और बीजेपी के नेता गौ रक्षा के नाम पर उन्हीं तेवरों में बयान देने लगें तो क्या असमाजिक कार्य करने वाले गौ रक्षक, दोनों एक ही भाषा में बात करते नज़र नहीं आए. प्रधानमंत्री और संघ ने राज्य सरकारों को यह कह कर खुला संदेश दे दिया है कि इन सबका बायोडेटा तैयार हो और सख्त कार्रवाई की जाए. उनके बयान का यह सबसे मज़बूत पक्ष है वे उन्हीं राज्य सरकारों को कार्रवाई के लिए कह रहे हैं जिन पर शह देने के आरोप हैं. देखते हैं किस राज्य में कार्रवाई होती है. मध्य प्रदेश में या हरियाणा में या यूपी बिहार या बंगाल में. प्रधानमंत्री के बयान से गौ रक्षक मचल गए हैं, आरएसएस ने भी रविवार रात बयान जारी कर प्रधानमंत्री के बयान का समर्थन कर दिया. आरएसएस ने भी कहा है कि समाज के कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा गौ रक्षा के नाम पर कुछ स्थानों पर कानून अपने हाथ में लेकर एवं हिंसा फैलाकर समाज का सौहार्द दूषित करने के प्रयास किये जा रहे हैं. इससे गौ रक्षा और गौ सेवा के पवित्र कार्य के प्रति हिंसा फैलाकर समाज का सौहार्द दूषित करने के प्रयास किये जा रहे हैं. आरएसएस देशवासियों से आह्वान करता है कि गौ रक्षा के नाम पर कुछ मुट्ठी भर अवसरवादी लोगों के ऐसे निंदनीय प्रयासों को, गौ रक्षा के पवित्र कार्य में लगे देशवासियों से ना जोड़ें और उनका असली चेहरा सामने लायें.
चप्चे चप्पे पर अपने संगठन और शाखा की मौजूदगी का दावा करने वाले संघ को भी लोगों से अपील करनी पड़ रही है कि वे ऐसे लोगों का असली चेहरा सामने लायें. ये अपील अपने स्वयंसवेकों से करनी थी कि आप पता कर बीजेपी सरकारों के मंत्रियों को सूचना दें और कार्रवाई करवायें. लेकिन संघ का एक और बयान है, दूसरा बयान क्यों जारी करना पड़ा ये तो हम नहीं बता सकते लेकिन उसमें काफी कुछ बदला बदला सा लगा. कहा गया कि वर्तमान समय में देश के विभिन्न स्थानों पर अनुसूचित जाति के बंधुओं पर अत्याचार एवं उत्पीड़न की हो रही घटनाओं की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कड़े शब्दों में घोर निंदा करता है. कानून अपने हाथ में लेकर अपने ही समाज के बंधुओं को प्रताड़ित करना यह केवल अन्याय ही नहीं, अमानवीयता को भी प्रकट करता है.
क्या अनुसूचित जाति जोड़ने के लिए सोमवार को बयान जारी हुआ. पर दोनों ही बयान में मुसलमानों का कोई ज़िक्र नहीं आया. इसके अलावा संघ कुछ बैलेंस भी करता नज़र आया. प्रधानमंत्री ने सत्तर अस्सी फीसदी गौ रक्षकों को असमाजिक तत्व कहा है. संघ के बयान में कुछ मुट्ठी भर गौ रक्षकों की बात कही गई है. जब गौ रक्षकों के अत्याचार पर राज्यसभा में चर्चा हुई तब विरोधी दल के सांसदों के अलावा मायावती ने साफ-साफ कहा था कि गौरक्षा के नाम पर पहले पूरे देश के अंदर मुसलमान के साथ उत्पीड़न किया गया, युवक के साथ किया गया और अब मध्य प्रदेश में जहां बीजेपी की सरकार है, वहां पर महिलाओं को सरेआम पीटा गया, पुलिस तमाशा देखती रही, भीड़ तमाशा देखती रही. इस संबंध में सरकार क्या कहना चाहेगी?
प्रधानमंत्री ने ठीक ही कहा कि गायों को प्लास्टिक खिलवाना बंद कर दिया जाए तो वही सबसे बड़ी गौ रक्षा होगी. उन्हें अपनी पार्टी की सरकारों को भी अलग से निर्देश देना चाहिए था कि क्योंकि मध्य प्रदेश और राजस्थान ने गाय से संबधित विभाग की स्थापना की है.
इसके बाद भी राजस्थान पत्रिका की इस खबर के मुताबिक राजस्थान के जयपुर के हिंगोनिया गौ शाला में पिछले तीन साल में 27,000 गायें मर गईं. हम अपनी तरफ से इस रिपोर्ट की पुष्टि नहीं कर सकते फिर भी यह संख्या इतनी बड़ी है कि गौ शालाओं के भीतर की कुव्यवस्था पर ईमानदार नज़र की मांग करती है. बीमारी के कारण गायों की मौत होती है लेकिन भूख से एक भी गाय मरी है तो यह दर्दनाक है. संघ को भी उन सच्चे गौ रक्षकों से पूछना चाहिए था कि वे गायों की रक्षा करते करते कहां निकल गए हैं कि गौ शालाओं में गायें मर रही हैं. गायें जब गौ शालाओं में सुरक्षित नहीं है तो कहां हैं. यह सवाल सिर्फ राजस्थान से ही नहीं बल्कि बिहार और बंगाल से भी पूछा जाना चाहिए कि उनके यहां की गौ शालाओं की क्या स्थिति है.
This Article is From Aug 08, 2016
प्राइम टाइम इंट्रो : गोरक्षा के नाम पर गोरखधंधे पर सख़्ती
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:अगस्त 08, 2016 21:31 pm IST
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Published On अगस्त 08, 2016 21:31 pm IST
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Last Updated On अगस्त 08, 2016 21:31 pm IST
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