विज्ञापन
This Article is From Dec 10, 2015

प्राइम टाइम इंट्रो : ठोस सबूतों के अभाव में सलमान बरी?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 23, 2015 13:44 pm IST
    • Published On दिसंबर 10, 2015 21:22 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 23, 2015 13:44 pm IST
नमस्कार मैं रवीश कुमार, सहिष्णुता असहिष्णुता की बहस में फिल्म जगत ने जिस विविधता का अभूतपूर्व प्रदर्शन किया था आज उसी फिल्म जगत ने अभूतपूर्व एकता का प्रदर्शन किया है। आमिर ने सबको बांट दिया था, सलमान ने सबको एक कर दिया है। अचानक से सब चुप हो गए हैं। राजनीति भी ऐसे चुप है जैसे वो फिल्म ही न देखती हो। 10 दिसंबर को बॉलीवुड में एकता दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए। सहिष्णुता असहिष्णुता वाली बहस में जो लोग जिन लोगों के सहारे बंटे थे, उन लोगों को फिलहाल बंटे होने के लिए कोई नहीं मिल रहा है क्योंकि वे या तो चुप हो गए हैं या अनुपम खेर की तरह स्वागत कर रहे हैं।

न्याय होना ही नहीं चाहिए, होते हुए भी दिखना चाहिए। और जैसे ही सलमान के फैन्स को उनके पक्ष में न्याय होते हुए दिखा वे नाचते गाते उनके घर पहुंच गए। न्याय की इस घड़ी में खूब नाचे गाए, मुझे पता नहीं आप इस नाच गाने में शामिल हैं या नहीं। क्या आप भी अपने घरों में सलमान के लिए नाच रहे हैं। न्याय होते हुए दिखना चाहिए या किसके साथ हो रहा है पहले ये देखना चाहिए। या न्याय को देखना ही नहीं चाहिए कि वो किसके साथ हो रहा है। भले ही न्याय की मूर्ति पर पट्टी लगी है लेकिन न्याय होने के इंतज़ार में खड़े लोगों की आंख पर पट्टी नहीं होती है। सलमान अपने लिए जिसे इंसाफ कहेंगे ज़ाहिर है अब्दुल नहीं कहेंगे। अगर अब्दुल और शरीफ के साथ भी इंसाफ हो गया है तो उन्हें या उनके परिवार को भी फैन्स की टोली में जाकर डांस करना चाहिए।

जज की मंशा की तो नहीं लेकिन अदालत के फैसलों की सार्वजनिक समीक्षा की जा सकती है। हाई कोर्ट ने एक तरह से सेशन कोर्ट के फैसले की समीक्षा की है और अभी सुप्रीम कोर्ट की समीक्षा बाकी है। लेकिन 6 मई के फैसले में सलमान ख़ान को पांच साल की सज़ा सुनाई जाती है और 10 दिसंबर को उनके खिलाफ कोई सबूत ही नहीं मिलता है। अदालतों के इतिहास में ऐसा होता है। दो अदालतों के फैसले में अंतर होता है और सुप्रीम कोर्ट के ही एक से लेकर दो और तीन जजों की बेंच के फैसले में अंतर होता है। लेकिन क्या इतना अंतर आना चाहिए। पांच साल की सज़ा और फिर सीधे बरी। क्या सलमान ख़ान को सलमान होने का लाभ मिला है। अगर ये सवाल है तो क्या सलमान को सलमान होने की सज़ा नहीं मिली। फैसला सुनाते वक्त हाईकोर्ट के जज ने कहा कि जनता की सोच के आधार पर फैसले नहीं लिए जा सकते।

अदालत सिर्फ सबूतों के आधार पर फैसला लेती है। जो सबूत पेश किए गए उन्हें न्यायसंगत नहीं माना जा सकता। सितंबर 2002 की रात सलमान की गाड़ी से मारा गया महबूब शरीफ तो अब दुनिया में नहीं हैं। उसकी मौत का ज़िम्मेदार कौन है यह जब तक पता नहीं चल सकता क्या सिर्फ आरोपी के बरी हो जाने पर नाच गाना करना या इंसाफ को पूरा होना मान लेना सही होगा।

आखिर उस रात गाड़ी कौन चला रहा था, चलाने वाला नशे में था या नहीं। इन सवालों के जवाब क्या अब कभी नहीं मिलेंगे। क्या गाड़ी अपने आप चल रही थी या मरने वाला मरा ही नहीं। फिर अब्दुल की एक टांग कैसे खराब हो गई। क्या इतने सारे गरीब लोग ताकतवर सलमान के ख़िलाफ साज़िश कर रहे थे। यह भी समझना चाहिए कि अदालत के पास जैसे सबूत होंगे फैसला भी वैसा ही आएगा। सबूत से जुड़े सवालों की ज़िम्मेदारी पुलिस की बनती है। क्या पुलिस इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी। यह सवाल महाराष्ट्र सरकार से पूछा जाना चाहिए। अदालत ने पुलिस के पेश किए हुए सबूतों को पर्याप्त नहीं माना या पुलिस के इरादे को लेकर कुछ शक हुआ। इस सवाल का मुकम्मल जवाब तो फैसले की कापी पढ़ने के बाद ही मिलेगा। क्या अदालत ने ऐसा कहा कि पुलिस ने सलमान की मदद की। मैंने फैसला नहीं पढ़ा है।

हमारे सहयोगी सुनील सिंह और सांतिया की रिपोर्ट फाइल की है कि कई कारणों से अदालत के बाहर खड़े रिपोर्टरों को समझ आ गया था कि सलमान बरी हो रहे हैं। जज ए आर जोशी की उन टिप्पणियों से रिपोर्टर आश्वस्त होने लगे कि अदालत की नज़र किन किस खामियों पर है। जज ने कहा कि "कोई भी गंभीर संदेह किसी को दोषी साबित करने के लिये काफी नहीं है। अभियोजन पक्ष ऐसे सबूत नहीं दे सका जिससे कुछ साबित हो पाए, उसके सबूत महज परिस्थितिजन्य हैं।"

बिल्कुल सही बात है। अभियोजन पक्ष यानी पुलिस यानी सरकार। पर क्या आपको भी लग रहा है कि इस मामले में सलमान के साथ साथ मामले की जांच करने वाली पुलिस भी बरी हो गई है। अदालत ने कहा कि संदेह का लाभ आरोपी को मिलता है लेकिन क्या इसकी बहस हो सकती है कि जांच के दौरान संदेह की स्थितियां पैदा भी की जा सकती हैं। इसलिए इस केस को लेकर पुलिस से जुड़े सवालों और फैसले से जुड़े सवालों में फर्क करना होगा।
हमारे संवाददाता सुनील सिंह के अनुसार सरकारी पक्ष के पास सबसे बड़ा गवाह कांस्टेबल रविन्द्र पाटिल था। उसका बयान धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने हुआ था लेकिन हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। हाई कोर्ट ने कहा कि रविन्द्र पाटिल की गवाही को पूरी तरह से सबूत मानकर नीचली अदालत ने गलती की। कांस्टेबल रविंद्र पाटिल हादसे के वक्त सलमान के साथ था और उसी ने पुलिस को हादसे की सूचना दी थी।

सलमान बरी हो गए मगर रविंद्र पाटिल को अन्य मामले में जेल हो गई। कहा गया कि पुलिस ने बहुत दबाव डाला मगर पाटिल नहीं बदला तो उसे फंसा दिया गया। अब पाटिल इस दुनिया में नहीं हैं। अदालत के फैसले पर सवाल उठाये जाते हैं पर एक सवाल सवाल उठाने वालों पर उठना चाहिए। क्या वे अपनी सुविधा के अनुसार सवाल नहीं उठाते हैं। कभी अदालत के फैसलो को अंतिम मान लेते हैं और कभी कहते हैं कि इसमें अमीर ग़रीब का भेद हो गया। बड़ा सवाल है कि निचली अदालत में जो हुआ वो हाईकोर्ट तक जाते जाते कैसे उलट गया? हमारी मुंबई टीम ने कुछ बिन्दुओं पर सेशन कोर्ट और हाई कोर्ट के नज़रिये में अंतर को आपके लिए तैयार किया है। सवाल सलमान के शराब पीने को लेकर था।

सेशन कोर्ट ने माना कि रेन बार के मैनेजर रिज़वान ने सेशन कोर्ट में बयान दिया कि सलमान के साथ आये उनके भाई सुहैल ने शराब का आर्डर दिया था। लेकिन हाई कोर्ट ने कहा कि सलमान रेन बार गए थे ये तो साबित होता है लेकिन सलमान को उस रात किसी ने शराब पीते हुए नहीं देखा।

फिर सेशन कोर्ट ने माना कि पुलिस ने होटल के बिल से साबित कर दिया है कि सलमान और उनके साथियों ने क्या पिया। हाईकोर्ट ने कहा कि बिल की तारीख को लेकर भी उलझन है। 27 सितंबर का बिल पेश किया लेकिन सलमान वहीं से जब निकले तब तारीख बदल चुकी थी।

यानी 28 सितंबर 2002 की रात दुर्घटना हुई थी। उसी तरह से सेशन कोर्ट ने गवाहों के बयान को सही माना कि सलमान ही गाड़ी चला रहे थे। हाईकोर्ट ने कहा कि इस पर भ्रम की स्थिति है क्योंकि किसी ने सलमान को गाड़ी चलाते नहीं देखा।

फिर बारी थी सलमान के ख़ून की जांच की। सेशन कोर्ट ने माना  कि सलमान के खून की जांच करने वाले डाक्टर का बयान सही है कि उनके मुंह से शराब की बदबू आ रही थी लेकिन हाई कोर्ट ने कहा कि गवाह नंबर 7 ने क्रॉस एक्ज़ामिनेशन में भी कहा था कि उस समय सलमान ख़ान के मुंह से शराब की बू नहीं आ रही थी। वो लड़खड़ा भी नहीं रहे थे।

जांच रिपोर्ट के अनुसार सलमान ने शराब ली थी लेकिन हाईकोर्ट ने कहा कि ब्लड सैंपल लेने से पहले सलमान की सहमति नहीं ली गई। फार्म पर सलमान के दस्तखत नहीं थे। सेशन कोर्ट ने ड्राईवर अशोक सिंह के बयान पर भरोसा नहीं किया कि कार वही चला रहा था। सलमान नहीं। अशोक सिंह इस केस में 13 साल बाद प्रकट हुआ था। हाईकोर्ट ने 13 साल बाद आकर स्वीकार करने के लिए अशोक की सराहना की है। 28 सितंबर 2002 को रविंद्र पाटिल ने जो एफआईआर दर्ज की थी उसमें ये नहीं कहा था कि सलमान शराब के नशे में गाड़ी चला रहे थे लेकिन उसके तीन दिन बाद मजिस्ट्रेट के सामने बयान दिया कि वो नशे की हालत में गाड़ी चला रहे थे और तेज़ कार न चलाने की चेतावनी भी दी थी।

13 साल बाद अशोक के प्रकट की तारीफ हुई पर 3 दिन बाद अपने बयान में कुछ और जोड़ने के लिए पाटिल की तारीफ हुई या नहीं मुझे नहीं पता।

अदालत का फैसला सुप्रीम कोर्ट में ही अंतिम माना जाता है। ये और बात है कि पीड़ित वहां तक जाने की ताकत नहीं रखते हैं। लेकिन क्या वाकई अच्छे वकीलों के होने से मुकदमे में फर्क पड़ जाता है। इस सच को कौन नहीं जानता लेकिन इन अच्छे वकीलों का लाभ सेशन कोर्ट में सलमान को क्यों नहीं मिला। क्या देश के सारे अच्छे वकील सलमान के साथ हो गए हैं। अगर किसी अच्छे वकील को भरोसा है कि सुप्रीम कोर्ट में वो अब्दुल और शरीफ़ को इंसाफ दिला सकता है तो वो चुनौती क्यों नहीं दे देता।

इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्टर रूही भसीन ने एक सवाल उठाया है कि सलमान के वकीलों ने इसी 16 नवंबर को हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी कि इस केस के एक और गवाह कमाल ख़ान को भी बुलाया जाए लेकिन हाई कोर्ट ने कहा कि ये ऐसा केस नहीं है कि जिसे कमाल खान के बयान के बिना सुलझाया नहीं जा सके। कमाल खान भी सलमान के साथ कार में था। कमाल विदेशी नागरिक हैं।

इंसाफ किसके साथ हुआ है, जो मारा गया उसके साथ या जो मारने के आरोप से बच गया उसके साथ। प्राइम टाइम। एक सुझाव है अगर आप इस फैसले पर राय बनाना चाहते हैं तो फैसले की कापी पढ़ने में कोई हर्ज नहीं है। तो क्या अदालतें सिर्फ सबूत देखती हैं?

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
डार्क मोड/लाइट मोड पर जाएं
Previous Article
BLOG : हिंदी में तेजी से फैल रहे इस 'वायरस' से बचना जरूरी है!
प्राइम टाइम इंट्रो : ठोस सबूतों के अभाव में सलमान बरी?
बार-बार, हर बार और कितनी बार होगी चुनाव आयोग की अग्नि परीक्षा
Next Article
बार-बार, हर बार और कितनी बार होगी चुनाव आयोग की अग्नि परीक्षा
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com