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This Article is From Sep 11, 2017

बुनियादी मुद्दों पर चर्चा क्यों नहीं होती? रवीश कुमार के साथ 'प्राइम टाइम'

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 11, 2017 23:00 pm IST
    • Published On सितंबर 11, 2017 21:05 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 11, 2017 23:00 pm IST
नमस्कार मैं रवीश कुमार, हिन्दू मुस्लिम टापिक से दिल भर गया हो क्या कुछ समय के लिए हम स्वास्थ्य शिक्षा और रोज़गार के सवाल पर बात कर सकते हैं. उससे पहले हम अर्थशास्त्र से जुड़ा एक सवाल कर सकते हैं कि दुनिया के हर अर्थशास्त्री ने समझाया कि तेल के दाम बढ़ने से बाकी चीज़ों के दाम बढ़ते हैं. क्या अब ये थ्योरी पलट गई है, तेल के दाम बढ़ने से बाकी चीज़ें सस्ती हो जाती हैं, उनका कोई निगेटिव असर नहीं पड़ता. इंडियन आयल की वेबसाइट पर प्रोडक्ट प्राइसेस नाम के कालम में पेट्रोल और डीज़ल के दाम मिलेंगे. सोमवार को अलग अलग शहरों के दाम इस तरह हैं.

मुंबई में 79.41 पैसा प्रति लीटर 
भोपाल में 76.70 प्रति लीटर
पटना में 74 रुपया 63 पैसा प्रति लीटर 
कोलकाता में 73.05 प्रति लीटर
लखनऊ में 72 रुपया 43 पैसा प्रति लीटर 
दिल्ली में पेट्रोल 70 रुपये 30 पैसा प्रति लीटर 

देश की 18 राजधानियों में पेट्रोल का दाम सत्तर के क्लब में भर्ती हो गया है. कभी 60 रुपये प्रति लीटर होने पर हंगामा होता था, अब 70 रुपये पर भी चुप्पी है. लोगों की आर्थिक क्षमता इतनी बढ़ गई है, कम से कम इसी पर बात हो सकती थी. एक थ्योरी और कहीं घास चरने चली गई है. पहले कहा जाता था कि दुनिया के बाज़ार में क्रूड आयल कच्चे तेल का दाम बढ़ता है तो भारत के शहरों में पेट्रोल महंगा हो जाता है. अब तो क्रूड आयल का दाम कब का दम तोड़ चुका है. फिर भी पेट्रोल का दाम बढ़ता ही जा रहा है.
VIDEO : प्राइम टाइम इंट्रो


तभी कहता हूं कि बुनियादी मुद्दों पर चर्चा न हो इसके लिए सबसे अच्छा टापिक है हिन्दू मुस्लिम. कोई भी ऐसा विषय हो जिसकी बहस दो समुदायों के बीच दुराव पैदा करती है ऐसी बहसों से मीडिया का स्पेस भरा हुआ है. वर्ना आप इस बात से सिहर उठते कि आखिर क्या बात है कि शहर दर शहर, अस्पताल. इन मौतों को आप सरकारों की पार्टी के हिसाब से मत देखिये. इस हिसाब से देखिये कि ज़माने से स्वास्थ्य व्यवस्था की जो उपेक्षा की गई है, वो अब खुद से सतह पर आने लगी है. गोरखपुर तो कब का पीछे छूट गया है. जमशेदपुर, रांची, फर्रूख़ाबाद, इटावा होते हुए नासिक पहुंच गया है. नेताओं के भाषणों को ग़ौर से सुनिये आपको किसी भी भाषण में बच्चों की हो रही मौत या जर्जर हो चुकी स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर बेचैनी नज़र नहीं आएगी. आप उनसे कहेंगे कि अस्पताल में डाक्टर क्यों नहीं हैं, दवा क्यों नहीं है तो उसके जवाब में कहेंगे कि स्वास्थ्य बीमा तो है ही. बीमा से डाक्टर का काम हो जाता तो मेडिकल कालेज की जगह इस देश में बीमा के कालेज खुल रहे होते. बुनियादी सवालों पर नकली बहसों के ज़रिये चाहे जितना ही पर्दा डालने की कोशिश हो, जनता की तकलीफ समंदर के किनारे आ ही जाएगी. 

नाशिक के अस्पताल में एक भी स्पेशलिस्ट डाक्टर नहीं था. बच्चों की मौत के अलग अलग कारण हो सकते हैं, मगर क्या इसके भी अलग अलग कारण हैं कि एक भी स्पेशलिस्ट नहीं है बच्चों के इलाज के लिए. राज्य के स्वास्थ्य मंत्री दीपक सावंत भी मानते हैं कि मरीज़ों का दबाव बढ़ गया है. पर क्या दीपक सावंत इसका समाधान कर सकते हैं, उनके पास बजट है, एक अस्पताल के लिए है या सभी अस्पतालों के लिए है, यह समस्या तो महाराष्ट्र की नहीं, करीब करीब हर राज्य की होती जा रही है.  

2 सितंबर को गुजरात हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि गुजरात के सरकारी अस्पतालों में डाक्टरों की पोस्ट खाली क्यों है. याचिकाकर्ता मनस्वी थापर ने दावा किया है कि विशेषज्ञ डाक्टरों के 942 पदों में से 649 पद ख़ाली हैं. 58 फीसदी पद खाली हैं तो इलाज कौन कर रहा है, नेताजी का भाषण? यही नहीं राज्य में जनरल फिज़िशियन के 1200 से अधिक पोस्ट खाली है. याचिकाकर्ता के वकील के आर कोष्ठी ने दलील दी कि सरकारी अस्पतालों में डाक्टर न होने के कारण मरीज़ों का इलाज नहीं हो रहा है. स्वाइन फ्लू के मामले में के आर कोष्ठी ने कहा कि गुजरात के 24 ज़िलों के सरकारी अस्पतालों में स्वाईन फ्लू की जांच के लिए लेबोरेटरी ही नहीं है. इस बीमारी की चर्चा 2009 से भारत में हो रही है अगर गुजरात जैसे विकसित राज्य के अस्पतालों में लैब नहीं है तो बाकी देश का क्या हाल होगा. गुजरात सरकार ने इसी केस में अपने जवाब में कहा है कि राज्य में 1407 प्राइमरी हेल्थ सेंटर है, जिसमें 1784. मेडिकल अफसर तैनात हैं. कायदे से मेडिकल अफसर एम बी बी एस ही होता है लेकिन इस सूची में 76 वन बंधु और 732 आयुष के चिकित्सकों को भी मेडिकल अफसर में गिना गया है. इस आंकड़े के हिसाब से भी 55 जगहों पर मेडिकल अफसर नहीं है.

2015-16 में गुजरात पर सी ए जी की रिपोर्ट आई थी जिसमें स्वास्थ्य शिक्षा और परिवार कल्याण की योजनाओं का आडिट किया गया है. सीएजी ने कहा है कि सरकार ने इन योजनाओं पर खर्च होने वाले पैसे में 2014-15 के मुकाबले, 2015-16 में 11 प्रतिशत की कमी की है. एक साल में 11 प्रतिशत की कटौती बहुत होती है. 
IndiaSpend वेबसाइट पर 16 अगस्त को चैतन्य मल्लापुर ने एक विश्लेष किया है. 
भारत में पांच साल से कम के दो बच्चे हर मिनट मर जाते हैं.
2015 के साल में हर दिन 2,959 बच्चों की मौत हुई है. 
2015 में 1000 में से 43 बच्चे पांच साल से उम्र पूरी करने से पहले ही दम तोड़ गए
असम और मध्यप्रदेश का रिकार्ड तो अफ्रीका के घाना से भी बदतर था. 

पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत का प्रतिशत ज़्यादा होता है तो यह अच्छा नहीं माना जाता है. सेव दि चिल्ड्रेन नाम की संस्था के अनुसार 90 प्रतिशत मामलों में न्यूमोनिया और डायरिया से मौत हो जाती है जिसे आसानी से टाला जा सकता था. सरकार ने कई कार्यक्रम बनाए हैं मगर फिर भी खास सुधार नहीं है. 

तहसील परिसर के बाहर सरकारी दवाइयों से भरा गत्ता कूड़े के ढेर में मिलता है. हमारे सहयोगी अरशद जमाल ने इटावा से भेजी है. सैफई महोत्सव वाले सैफई में एक महीने में 96 बच्चे कुपोषण से मर गए. ये जो दवाएं हैं वो कुपोषण से लड़ने के लिए ही हैं. ये आयरन और फालिक एसिड की दवाएं हैं जिन पर एक्सपाइरी डेट भी दिसंबर 2018 की है. इन दवाओं को गर्भवती महिलाओं को निशुल्क दिया जाना था. ऐसी कई कहानियां टीवी को रोज़ मिल सकती हैं बस उसे कोई हिन्दू मुस्लिम टापिक से उसे आज़ाद कर दे. सैफई मेडिकल यूनिवर्सिटी का बजट पिछली सरकार में 90 करोड़ बताया जाता था, जो अब 30 करोड़ का हो गया है. बच्चों के लिए साठ बेड हैं. मगर हर महीने यहां 1200 से 1500 बच्चे एडमिट होते हैं. पिडाट्रिक विभाग का बजट आर्थोपेडिक विभाग में हो जाने की बात सामने आई है. यहां 8 ज़िलों से लोग इलाज के लिए आते हैं. आठ आठ ज़िलों में एक अस्पताल है. फिर भी जनता को भी देखिये हिन्दू मुस्लिम टापिक में मस्त है. 

नासिक के ज़िला अस्पताल के आस पास के तीन चार ज़िलों में यही एक बड़ा अस्पताल है. नासिक सिविल अस्पताल में आने वाले 44 फीसदी मरीज़ दूसरे ज़िलों के होते हैं. नासिक में कैंसर, किडनी, स्टोन के लिए एक संदर्भ अस्पताल भी है जहां कई सारी मशीनें बंद हो गई हैं. 8 महीने में यहां के ज़िला अस्पताल में 307 नवजात बच्चों की मौत हो गई है. गोरखपुर से लेकर नाशिक तक सब जगह एक ही चेन नज़र आता है. हमने स्वास्थ्य पर कभी ध्यान ही नहीं दिया.

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