प्राइम टाइम इंट्रो : वायु प्रदूषण पर लगाम की तैयारी, पुरानी डीजल कारों पर लगेगी रोक

नई दिल्‍ली:

हम आप शादी ब्याह में जाते हैं, शामियाने के गेट पर या पीछे जनरेटर भड़भड़ा रहा होता है, दफ्तर, बाज़ार, अस्पताल, हर जगह इस जनरेटर ने बिजली विरोधी मोर्चा संभाल लिया है। बिजली गई नहीं कि जनरेटर ज़िंदाबाद हो जाता है। ये वाकई ज़िंदाबाद है या ज़िंदाबाद के नाम पर हम सबका मुर्दाबाद।

इतना ही हर आधुनिक अपार्टमेंट डीजल युक्त जनरेटरों से लैस है। जिसका धुआं जनरेटर की साइड वाले फ्लैट नागरिक पी रहे हैं और जो दूसरी तरफ रहते हैं वो मॉर्निंग वाक के दौरान उधर जाकर पी आते हैं। जनरेटर से चलने वाले जिम के भीतर जितने लोग योगा कर रहे होते हैं उतने ही लोग जनरेटर के धुएं से रोगा रोगा हो रहे होते हैं। बांग्ला में बीमार को रोगा कहते हैं जैसे हिन्दी में रोगी। अब मैं चाहता हूं कि आप डीज़ल के भय से हमेशा के लिए मुक्त हो जाएं।

डीजल ईंजन या जनरेटर से जो धुआं निकलता है उसमें बारीक से बारीक ऐसे ऐसे तत्व होते हैं जो आपकी सांस की नली से होते हुए फेफड़े को ख़राब कर देते हैं, दिल के आस पास दौड़ने वाली धमनियों को कमज़ोर कर देते हैं, दिमाग की कोशिकाओं को बेकार कर देते हैं, कुल मिलाकर आपको चंद ख़तरनाक बीमारियों से लैस कर देते हैं। जिनके नाम हैं कैंसर, पार्किंसन, अलझाईमर, हार्ट अटैक, सांस की तकलीफ़, बिना बात की खांसी, आंखों में जलन वगैरह।

पूरी दुनिया में कैंसर और डीज़ल के संबंधों पर रिसर्च चल रहा है। भारत में नहीं हो रहा है। ऐसा इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में एम्स के कैंसर विशेषज्ञ डॉक्टर पी के झुल्का जी कहते हैं। इंडियन एक्सप्रेस ने हाल ही में दिल्ली के वायु प्रदूषण के सिलसिले में पृथा चटर्जी और अनिरुद्ध घोषाल ने शानदार रिपोर्टिंग की है। इनके कारण मेरी तैयारी भी आसान हो गई है। डॉक्टर झुल्का कहते हैं कि हर साल फेफडों के कैंसर के मरीज़ों की संख्या 2 से 3 प्रतिशत बढ़ जा रही है। अगर आप गांवों में रहते हैं तो आप भी डीज़ल के प्रभाव से मुक्त नहीं हैं। पटवन के लिए डीज़ल जनरेटर का धुआं आपका भी नुकसान कर रहा है।

दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में दस साल से ज्यादा पुरानी डीज़ल गाड़ियां नहीं चलेंगी। नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल के फैसले से एक सवाल तो मौके पर ही पूछा जा सकता है कि जब डीज़ल से एनसीआर तबाह है तो सारे देश के लिए ऐसा फैसला क्यों न हो। ये दस साल पुरानी गाड़ियां दिल्ली से निकल कर देश के दूसरे हिस्से में जाएंगी तो क्या वहां प्रदूषण नहीं होगा। इन कारों को नष्ट करने या खपाने के क्या तरीके हो सकते हैं।

क्या तकनीकी सुधार से डीज़ल के दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है मगर तकनीक से होना होता तो दुनिया के कई शहरों में इस पर बैन क्यों लग रहा है। बुधवार के अखबार में है कि तकनीकी सुधार के चलते अमरीका के लॉस एंजिलिस में डीज़ल के कारण फेफड़े के कैंसर का रिस्क 50 प्रतिशत कम हो गया है।

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार रात होते ही दिल्ली में 80 हज़ार से भी ज्यादा डीज़ल वाले ट्रक दिल्ली में प्रवेश करते हैं और इसकी हवा ख़राब कर जाते हैं। दिन के वक्त जो यहां नागरिक जनरेटर होते हैं उनका भी योगदान कम नहीं होता। इस फैसले में ग्रेटर नोएडा, नोएडा, गाज़ियाबाद, फरीदाबाद, गुड़गांव, भरतपुर, भिवाड़ी, अलवर को भी शामिल किया गया है। NGT ने उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा की रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी के आदेश दिया है कि वो 10 साल से ज़्यादा पुराने किसी वाहन को रजिस्टर ना करें। चाहें वो प्राइवेट हों या कमर्शियल।

इस फैसले से व्यक्ति से लेकर टैक्सी चालक और ट्रक चालकों तक पर असर पड़ेगा। मुश्किल तो है लेकिन क्या किया जाए। दुनिया के प्रदूषित शहरों में दिल्ली का नाम हो गया है। अस्तपाल के चक्कर लगाना चाहेंगे या पुरानी डीजल गाड़ी से मुक्ति पाएंगे। मुझे यह समझना है कि नई डीज़ल गाड़ियों से प्रदूषण नहीं होता क्या? अगर नहीं तो वो तकनीक दस साल की गाड़ी पर क्यों काम नहीं करेगी? जिन गाड़ियों के पास फिटनेस सर्टिफिकेट है उनका क्या?

जो भी है, दिल्ली में डीज़ल की खपत बढ़ने से RSPM यानी रेस्पिरेपल सस्पेंडेट पर्टिकुलेट मैटर की मात्रा तय मानकों से 16 गुना ज़्यादा हो गई है। शीला दीक्षित ने तो केंद्र से मांग की थी कि डीज़ल कारों का रिजस्ट्रेशन बंद हो। अब मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का इंतज़ार हो रहा है कि वे क्या करते हैं क्योंकि उनकी सेहत भी इस प्रदूषण से प्रभावित होती रही है। सभी सरकारों को देखना होगा कि इससे शहरों में सप्लाई पर असर न पड़ जाए।

इंडियन एक्सप्रेस और टाइम्स आफ इंडिया ने तो अभियान छेड़ दिया है। दावा किया जा रहा है कि सीएनजी से दिल्ली को जो फायदा हुआ था वो समाप्त हो चुका है। प्रधानमंत्री ने हाल ही में दस शहरों में हवा के प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए नेशनल एयर क्वालिटी इंडेंक्स लॉन्‍च किया है। दिल्ली आगरा, कानपुर, लखनऊ, वाराणसी, फरीदाबाद अहमदबाद चेन्नई, बेगलुरु और हैदराबाद वो शहर हैं।

अब आप जानना चाहेंगे कि इस मामले में कौन देश क्या कर रहा है, मैंने तो भारत सहित कुलजमा चार ही मुल्क देखे हैं इसलिए टाइम्स आफ इंडिया की रिपोर्ट के आधार पर बता रहा हूं कि पेरिस में 2020 तक सभी डीज़ल कारों को बैन कर दिया जाएगा। फ्रांस के प्रधानमंत्री ने माना है कि डीज़ल कारों को बढ़ावा देकर बड़ी गलती हो गई।

जर्मनी के तीन शहरों बर्लिन, हनोवर और कोलोन में यूरो 4 से पहले की डीज़ल कारें बंद कर दी गईं हैं। इस कारों पर खास स्टीकर लगा होता है ताकि पहचान हो सके। हांगकांग में यूरो फोर डीजल गाड़ियों को 2019 तक हटा देने की कवायद हो रही है। नई गाड़ी खरीदने के लिए गाड़ीवानों को कुछ आर्थिक मदद भी मिलेगी। लंदन में डीज़ल कारों को हटाने की योजना थी मगर उसकी जगह रोज़ दस यूरो का टैक्स लगाने पर विचार हो रहा है। लंदन में इस साल से सिर्फ यूरो सिक्स ईंजन की कारें ही बिक रही हैं। वहां के मेयर ने कहा है कि वे डीज़ल कारों पर ज्यादा टैक्स के लिए लॉबी करेंगे। नीदरलैंड के शहर यूट्रैक्ट में इस साल से यूरो 3 डीजल गाड़ियों का प्रवेश बंद हो चुका है। जिन लोगों ने पुरानी गाड़ियां सरेंडर की हैं उन्हें 1500 यूरो की मदद दी गई है।

जो मैंने कहा उसमें ट्रक संघों, डीज़ल कार निर्माताओं के पक्ष नहीं हैं।


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