प्राइम टाइम इंट्रो : दास्तान-ए-'बायर'

प्राइम टाइम इंट्रो : दास्तान-ए-'बायर'

सत्यब्रत ने साल 2010 में अर्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रोजेक्ट अर्थ टाउन में घर बुक कराया था

आप सत्यब्रत मित्रा को नहीं जानते होंगे। हमारे आपके बीच से कोई भी सत्यब्रत मित्रा हो सकता है। सत्यब्रत मित्रा होने का मतलब है, एक घर ख़रीदने का सपना। हर दिन कोई न कोई संपर्क करने का प्रयास करता है कि फलां बिल्डर तीन चार साल से फ्लैट नहीं दे रहा है। जब हम अपने किसी संवाददाता से कहते हैं कि तो ख़ुद ही दुखी हो जाता है कि हमारा भी फ्लैट चार साल से नहीं मिल रहा है। इस चक्र में सब फंसे हैं। मीडिया ने कोई पहली बार इस मसले को ज़ोर शोर से नहीं उठाया है। अख़बार से लेकर तमाम चैनल समय समय पर इस मसले को उठाते रहे हैं, मगर किसी को राहत नहीं है।

सत्यब्रत मित्रा ने साल 2010 में ग्रेटर नोएडा वेस्ट में अर्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रोजेक्ट अर्थ टाउन में घर बुक कराया था। सत्यब्रत का दावा है कि बिल्डर ने ब्रोशर में दावा किया था कि 15 अगस्त 2012 तक फ्लैट मिल जाएगा। 2016 आ गया है, मगर फ्लैट नहीं मिला है। इस फ्लैट को हासिल करने की लड़ाई ने सत्यब्रत की ज़िंदगी बदल दी है।

10 प्रतिशत पैसा देने के बाद भी बिल्डर से एग्रीमेंट नहीं मिला तो सत्यब्रत मित्रा की लड़ाई शुरू हो गई। उन्हेंको हारकर 40 प्रतिशत पैसे देने पड़े, तब जाकर मई 2011 मं एग्रीमेंट की कॉपी मिली। एग्रीमेंट की कॉपी देखी तो कई बदलावों को देख हैरान रह गए। ब्रोशर और एग्रीमेंट के बीच काफी अंतर आ चुका था। बिल्डर ने 100 वर्ग फुट का सुपर एरिया बढ़ा दिया, जिसके कारण उनको 2 लाख रुपये और देने पड़े। यही नहीं 2012 में घर देने की तारीख भी बदल गई। एग्रीमेंट में लिखा हुआ था कि एग्रीमेंट बनने के 36 महीने के बाद घर मिलेगा। यानी 2012 की जगह 2014 में मिलेगा।

लेकिन इस बीच किसान अपने मुआवज़े को लेकर कोर्ट पहुंच गए और काम बंद हो गया। यही नहीं बिल्डर ने पहले वादा किया था कि ग्राउंड फ्लोर के अलावा 14 मंज़िल इमारत बनेगी, 29 टावर बनेंगे, लेकिन एग्रीमेंट में लिखा था कि ग्राउंड फ्लोर प्लस 19 मंज़िल का टावर बनेगा। सत्यब्रत और उनके साथ तमाम तरह की अथॉरिटी से चिट्ठी पतरी करते रह गए मगर कोई लाभ नहीं हुआ। फिर इलाहाबाद हाई कोर्ट गए। वहां से तारीख़ ही मिल रही है, सुनवाई ही हो रही है मगर फ्लैट नहीं मिला है।

इसके बाद कुछ खरीदारों ने मिलकर रिट याचिका दायर कर दी। रिट में कहा कि ख़रीदारों को मुआवज़ा मिलना चाहिए। कोर्ट ने ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी को आदेश दिया कि ख़रीदारों और बिल्डरों को बुलाकर समाधान निकाले। एक महीना हो गया है इस आदेश का, अभी तक बिल्डर और ख़रीदार की बैठक नहीं हुई है। इन लोगों ने यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सामने भी बात रखी है। बिल्डर के डायरेक्टर के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज हो चुकी है।

एक-एक बात इसलिए गिना रहा हूं, ताकि आप यह समझ सकें कि फ्लैट नहीं मिलने पर आपसे से कई लोग किस तरह परेशान होते हैं, तो कहां कहां जाते हैं, किस किस से मिलते हैं,  मगर होता कुछ नहीं है। अंत में यह समझते हैं कि चलो मीडिया के पास। वहां भी जाते हैं, ख़बरें चलती हैं, मगर होता कुछ नहीं हैं। नेताओं को लगता है कि आपको भावुक करने के लिए तमाम मुद्दे हैं ही तो इन सब समस्याओं को अकेले की लड़ाई के लिए छोड़ दिया जाए।

वैसे आपका भावुक मुद्दों से काम चल भी जाता है। पिछले चार पांच साल से देश भर के अलग अलग शहरों में दस से पचास, पचास से सौ ख़रीदार मिलकर प्रदर्शन कर रहे हैं। उन प्रदर्शनों को फेसबुक पर अपलोड करते हैं। ट्वीटर पर डालते हैं, ताकि वहां मौजूद जागरूक देशभक्त लोग बाकी देशभक्तों के साथ हो रही इस नाइंसाफी पर हंगामा मचा देंगे, मगर होता कुछ नहीं है। ज़रूरी है कि आप आम लोगों के बनाए इन संगठनों के नाम से भी रूबरू हो लें।

  • FEDRATIONS OF APARTMENT OWNERS ASSOCIATION के तहत 88 हाउसिंग सोसायटी के लोग जुड़े हुए हैं।
  • NEFOWA- NEW ERA FLAT OWENRS WELFARE ASSOCIATION के पेज से पता चलता है कि 9672 सदस्य हैं।
  • NEFOMA- NOIDA ESTATE FLAT OWNER MAIN ASSOCIATION के फेसबुक पर 10,206 सदस्य हैं।
  • KOLKATA WEST INTERNATIONAL CITY BUYERS WELFARE ASSOCIATION के पेज पर 4087 लाइक्स हैं।
  • TRIVENI FARIDABAD ALLOTTIES ASSOCIATION के 2700 सदस्य हैं, जिनमें से 300 बीएसएफ के जवान हैं।

इसके अलावा, AMRAPALI VERONA HEIGHTS FLAT BUYERS ASSOCIATION,EARTH TOWN BUYERS, PARAMOUNT APARTMENT OWNER ASSOCIATIONS जैसे कई संगठन हैं। मैंने नाम इसलिए बताये, ताकि आपको पता चल सके कि तमाम संगठनों के इस देश में बिल्डरों से परेशान लोगों ने कितने तरह के संगठन बना लिए हैं। वे अपने अपने स्तर पर एक लंबी लड़ाई लड़ रहे हैं। कभी दिल्ली आकर राहुल गांधी से मिलते हैं, तो लखनऊ जाकर अखिलेश यादव से मिलते हैं। केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू के सामने भी जाकर रोते हैं। मगर कुछ नहीं होता है। यही नहीं विधायक से लेकर सांसदों तक का दरवज़ा खटखटाते हैं। हर जगह से हार कर बिल्डर के दरवाज़े पर तरह तरह के प्रदर्शन भी करते हैं।

आप इनकी परेशानियों से बन रहे एक अलग किस्म के नागरिक आंदोलन की तस्वीर भी देखिये ताकि अंदाज़ा हो और आप सतर्क भी हो सकें कि कहीं आपको भी इस तरह से प्रदर्शन न करना पड़ जाए। हमने कुछ तस्वीरें इनके फेसबुक पेज से ली हैं। इन लोगों ने तो अपने कपड़े तक उतार दिये ताकि सबका ध्यान जा सके। इस तस्वीर में लोग मुंह पर पट्टी बांधे हुए हैं। आप इस तस्वीर में लंबी सी रैली देख सकते हैं। यहां तो लोग सड़क पर ही बैठ गए हैं। कहीं अन्ना की टोपी दिखाई देने लगती है, मानो ये टोपी देखते ही बिल्डर किसी भावी केजरीवाल से डर कर फ्लैट दे दें तो कहीं कोई गांधी ही बन गया है।

गांधी पर यह भरोसा लाजवाब है। किसी को शोध करना चाहिए कि भारत में एक साल में कितने प्रदर्शनों में गांधी का आहवान किया जाता है। गांधी की आत्मा क्या वाकई लोगों को परेशान करने वाले परमात्माओं को कुछ बदल पाती होगी। नए नए किस्म के स्लोगन निकल रहे हैं। आम्रपाली इतनी देर लगाए कि दादा मकान बुक कराये और पोता पोज़ेशन पाए। एक स्लोगन है रोटी कपड़ा और लाइज़...

स्थानीय से लेकर दिल्ली स्थित राष्ट्रीय मीडिया में इन सब प्रदर्शनों की पेज नंबर एक से लेकर दस के भीतर तस्वीरें छप जाती हैं। ये लोग क्लिपिंग बना लेते हैं और घूमते रहते हैं। हम सबका ध्यान दो चार राजनीतिक दलों के प्रवक्ताओं पर ही रहता है, लेकिन किसी समाजशास्त्री को जाकर देखना चाहिए कि फ्लैट की परेशानी ने किस तरह से मिडिल क्लास को सक्रिय कर दिया है। वो तमाम तरह की संस्थाओं से टकरा रहा है। हताश हो रहा है और इस प्रक्रिया में खुद भी बदल रहा है। हमारे सहयोगी मिहिर ने फेसबुक से कुछ ऐसी और तस्वीरें निकालीं जिन पर आपका ध्यान जाना ज़रूरी है।

बिल्डरों से परेशान ख़रीदार साइट का दौरा करते रहते हैं। अपने सपनों को देखते रहते हैं कि कब ये हासिल होगा। कब बनेगा। इस चक्कर में वे सीआईडी का भी काम करने लगते हैं। जगह जगह जाकर छिप कर तस्वीरें लेने लगते हैं कि कहां क्या काम हो रहा है। कहां माल पड़ा हुआ है या कहां काम बंद हो गया है। ये सारी तस्वीरें फिर उसी सोशल मीडिया पर अपलोड करते हैं, जहां हम मान चुके हैं कि अगर जागरूकता का ख़ानदान कहीं रहता है तो वो सोशल मीड़िया है। फेसबुक इन लोगों की परेशानियों का नया मंदिर है, जिसके दरवाज़े ये तमाम तरह की तस्वीरें चढ़ा आते हैं। शायद इसी उम्मीद में सोशल मीडिया माई एक दिन उनके तरफ देखेगी और फ्लैट दिला देगी।

हमारे सहयोगी मिहिर गौतम ने एक और बात बताई। मिहिर भी फ्लैट पीड़ित हैं। इस क्रम में उनका अनुभव भी लगातार बदलता जा रहा है। उन्होंने बताया कि 2010 तक किसी बिल्डर के ऑफिस में आराम से लोग घुस जाते थे और बात कर आते थे। सुना भी देते थे। लेकिन पिछले एक दो सालों से वो भी बंद हो गया है। ज़्यादातर जगहों पर बिल्डरों ने बाउंसर तैनात कर दिए हैं, जिनके कारण अब ये किसी से नहीं मिल सकते। बिल्डर जिससे चाहेगा उसी से मिल सकता है।

12 मार्च 2015 की टाइम्स ऑफ इंडिया में सौरभ सिन्हा की एक रिपोर्ट मिली। इसके अनुसार इस संसार का सार यही है कि अगर आपने फ्लैट ख़रीदने का सपना देखा है, तो आप फिर कोई दूसरा सपना देखने लायक नहीं रहेंगे। सौरभ की रिपोर्ट के अनुसार, रियालिटी एनालिस्ट प्रोप इक्विटी के मुताबिक गाज़ियाबाद और नोएडा में फ्लैट मिलने में औसत देरी 29-30 महीने की है। यानी न्यूनतम दो साल की देरी तो झेलनी ही पड़ेगी। गुड़गांव में यह देरी 34 महीने की है और फ़रीदाबाद में 44 महीने की।
 
सौरभ ने लिखा है कि 2015 तक नोएडा एक्सटेंशन,नोएडा यमुना एक्सप्रेस वे और ग्रेटर नोएडा 3.6 लाख फ्लैट दिए जाने थे। इनमें से 3 लाख 20 हज़ार यूनिट फ्लैट यानी 88.7 फीसदी देरी से चल रहे हैं। साल 2006 से 11 के बीच तीन लाख यूनिट लॉन्च किए गए थे, उनमें से कुछ बने नहीं, कुछ शुरू नहीं हुए और कुछ बन ही रहे हैं।

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रिपोर्ट पिछले साल की है, मगर हालात में बुहत बदलाव नहीं हुआ है। हमारे सहयोगी रवीश रंजन शुक्ला फरीदाबाद गए। वहां फ्लैट के ख़रीदार आत्माओं से मुलाकात की है। इनकी कोई सुन नहीं रहा। आप दर्शकों से गुज़ारिश है कि आप देख सुन लेंगे तो इनका मीडिया पर भरोसा बना रहेगा कि समस्या दिखाने से समाधान हो जाएगा। मीडिया के प्रति इस टाइप के भरोसे को लेकर मैं थोड़ा आशंकित रहता हूं, लेकिन पॉजीटिव सोचना चाहिए। क्या पता आपके देखने या जागरूक होने से हालात बदल जाए।