नमस्कार... मैं रवीश कुमार। तो भूमि अधिग्रहण कानून लोकसभा में पास हो गया। अब किसानों के बच्चे चपरासी ड्राईवर नहीं बनेंगे। केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र सिंह ने कहा कि 70 प्रतिशत किसानों के पास बहुत छोटे आकार की ज़मीन है। वह कहीं भी जाता है तो सिफारिश करता फिरता है कि मेरे बेटे को चपरासी ड्राईवर, कंडक्टर या पुलिस में लगवा दो। किसानों को भी आगे बढ़ने का मौका मिलना चाहिए। कांग्रेस सहित विरोधी दल 50 साल से किसानों को टुकड़े तो डालती रही है ताकि वे मरे नहीं, लेकिन इन्हें आगे बढ़ने का मौका मत दो। दूसरी तरफ विरोधी ठीक उल्टा आरोप लगा रहे थे कि ये बिल किसान विरोधी है। इससे किसान बरबाद हो जाएंगे।
इन दो ध्रुवों में बंटी बहस के बाद भी लोकसभा में भूमि अधिग्रहण संशोधन का प्रस्ताव बहुमत से पास हो गया। लोकसभा में केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह ने अपने भाषण से सबको हंसाया भी और विरोधियों को छकाया भी। कांग्रेस ने एक बार ज़रूर सोचा होगा कि इस नेता का हमने समय रहते क्यों नहीं इस्तेमाल किया। इतनी सी तारीफ सिर्फ उनकी भाषण शैली और बोलते हुए माहौल बनाने के लिए की है।
बिल में आए बदलाव से विपक्ष कितना संतुष्ट हुआ और किसान कितना खुश हुए ये आने वाले दिनों में साफ होता जाएगा। सरकार के पास संख्या की कमी नहीं थी फिर भी विपक्ष के सुझावों के आधार पर नौ संशोधनों को शामिल किया गया। विपक्ष के पास संख्या तो नहीं थी, मगर उसे सवाल उठाने का मौका ज़रूर मिला।
चौधरी बीरेंद्र सिंह ने बार-बार ज़ोर देकर समझाया कि अधिग्रहण सिर्फ सरकार करेगी और सरकार के लिए ही होगा। वह इस धारणा से लड़ रहे थे, अधिग्रहण कॉरपोरेट के लिए किया जाएगा। अब नए बिल में कितना किसान के लिए है और कितना कॉरपोरेट के लिए धीरे-धीरे पता चलेगा, जब सब एक-एक प्रावाधन का अध्ययन करेंगे।
उन्होंने कहा कि इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रावधान को कॉरपोरेट के लिए बताया जाता है, मगर इसमें तो सिंचाई और सड़क जैसी परियोजनाएं भी होती हैं। सोशल इंफ़्रास्ट्रक्चर को 'मंज़ूरी न लेने वाले सेक्टर' से बाहर कर दिया गया है। प्राइवेट स्कूल या अस्पताल के लिए कोई अधिग्रहण नहीं होगा। इंडस्ट्रीयल कॉरिडोर को भी साफ-साफ परिभाषित किया है कि राष्ट्रीय राजमार्ग या रेलवे लाइन के दोनों तरफ एक-एक किलोमीटर ज़मीन का ही अधिग्रहण होगा। किसानों को अपने ज़िले में शिकायत या अपील का अधिकार होगा। बंजर ज़मीनों का अलग से रिकॉर्ड रखा जाएगा और विस्थापित परिवार के कम से कम एक सदस्य को नौकरी। अब यह साफ नहीं कि नौकरी किस स्तर की होगी, क्योंकि चौधरी बीरेंद्र सिंह ने कहा कि किसान इतना लाचार है कि वो अपने बच्चों को चपरासी और ड्राइवर लगवाने के लिए सिफारिश करवाता रहता है। उम्मीद है उसकी ज़मीन पर बनी कंपनी या प्रोजेक्ट में उसे अच्छी नौकरी मिलेगी। वैसे ड्राइवर और चपरासी की नौकरी का भी सम्मान किया जाए तो अच्छा है। वैसे भाषा की यह समस्या हम न्यूज़ एंकरों में कुछ कम नहीं है।
यह साफ नहीं है कि बहुफसली ज़मीन या उपजाऊ ज़मीन का अधिग्रहण होगा या नहीं। लोकसभा में मतदान के दौरान कुछ विपक्षी सदस्य संशोधन का प्रस्ताव लाए मगर बहुमत न होने के कारण यह गिर गया। सामाजिक अध्ययन के प्रावधान को लेकर काफी बहस हुई थी। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इसे राज्य सरकारों पर छोड़ दिया गया है। जो राज्य सरकार चाहेगी वह करा सकती है।
कांग्रेस के सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि सरकार नए बिल में शामिल करे लेकिन उनका प्रस्ताव गिर गया। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री बीरेंद्र सिंह ने लोकसभा में कहा कि पहले तो बंजर ज़मीन का ही सर्वे होगा और एक बैंक बनेगा। अगर बंजर ज़मीन किसी प्रोजेक्ट के लिए काम आ सकती है, तो बहु फसली ज़मीन या उपजाऊ ज़मीन का अधिग्रहण नहीं होगा।
बंजर ज़मीन के बैंक बनाने का सुझाव संघ समर्थक किसान संगठन का था। क्या वाकई अधिग्रहण के कारण विकास की योजनाएं अटकी पड़ी हैं। मोदी सरकार दावा करती रही है कि यूपीए के इस कानून के कारण कई प्रोजेक्ट फंस गए हैं। उनके पास ज़मीन नहीं है, लेकिन हमारे सहयोगी श्रीनिवासन जैन की रिपोर्ट तो कुछ और कहती है।
श्रीनिवासन ने सरकार से जानने का खूब प्रयास किया कि कौन से प्रोजेक्ट रुके हैं, उनकी सूची मिले लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। उद्योग जगत के एक बड़े समूह की एक सूची ज़रूर मिली है, जिसमें 1000 करोड़ के अटके प्रोजक्ट को शामिल किया गया है। 67 ऐसे प्रोजेक्ट में से सिर्फ सात प्रोजेक्ट ही भूमि अधिग्रहण के कारण रुके पड़े हैं। इनकी साझा लागत 53,677 करोड़ ही है। यानी पूरे निवेश का सिर्फ 13 प्रतिशत। सितंबर 2013 में भूमि विवाद के कारण सिर्फ 12 प्रोजेक्ट में ही बाधा आई थी। इनमें से दो सड़क और दो पावर प्रोजेक्ट में कुछ गति भी आई है।
श्रीनिवासन की रिपोर्ट के अनुसार यह लिस्ट बताती है कि प्रोजेक्ट रुकने के कई कारण हैं। जो सात प्रोजक्ट रूके पड़े हैं उनमें से छह सड़क परियोजनाएं हैं। 60 प्रोजेक्ट पूंजी की कमी से लेकर कई अन्य कारणों के कारण अटके हुए हैं। भूमि अधिग्रहण को खलनायक बताना ठीक नहीं है।
चौधरी बीरेंद्र सिंह ने कहा कि अगर अदालत के आदेश के कारण प्रोजेक्ट शुरू होने में पांच या सात साल लग जाते हैं। तो उस पांच साल को निकाल कर आगे के पांच साल में अगर प्रोजेक्ट शुरू नहीं होता है तो ज़मीन लौटानी होगी। यानी अदालती अड़चन में लगे समय को निकालने के बाद जो पांच साल बचता है उसमें प्रोजेक्ट को पूरा करना होगा। कांग्रेस ने सरकार के एक भी संशोधन को स्वीकार नहीं किया है। विपक्ष ने मांग की है कि इस बिल को स्टैंडिंग कमेटी में भेजा जाए।
सरकार की सहयोगी शिवसेना ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। शिवसेना का विरोध राज्य सभा में परेशानी में डाल सकता है। एआईएडीएमके, अकाली दल ने मोदी सरकार का साथ दिया। बीजेडी टीआरएस और कांग्रेस ने सदन से वॉकआउट किया।
सरकार ने यहां तक तो अपनी प्रतिबद्धता दिखा दी। इसे अब राज्य सभा में पास होना है, जहां सरकार का बहुमत नहीं है। लेकिन क्या नए संशोधन से सारे सवालों के जवाब मिल जाते हैं, जो किसान संगठनों की तरफ से उठाए जा रहे थे। क्या किसानों के अच्छे दिन आ जाएंगे? प्राइम टाइम
This Article is From Mar 10, 2015
क्या वाकई भूमि अधिग्रहण के कारण अटकी पड़ी हैं परियोजनाएं?
Ravish Kumar, Saad Bin Omer
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Updated:मार्च 10, 2015 22:01 pm IST
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Published On मार्च 10, 2015 21:12 pm IST
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Last Updated On मार्च 10, 2015 22:01 pm IST
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