जिस दिन आनंदीबेन पटेल ने इस्तीफे का एलान किया था उस दिन प्राइम टाइम पर अहमदाबाद के एक पत्रकार प्रशांत दयाल ने कहा कि वे जितना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समझते हैं उसके आधार पर कह सकते हैं कि उन्हें मीडिया को ग़लत साबित करने में मज़ा आता है. जिसका भी नाम मीडिया में नए मुख्यमंत्री के तौर पर चलेगा हो सकता है वो न बने. लगता है प्रशांत दयाल की बात आज भी सही हो गई. आज दिन भर गुजरात के नए मुख्यमंत्री के रूप में नितिन पटेल का नाम चलता रहा. संभावित उम्मीदवार और सूत्रों के हवाले से नितिन पटेल का नाम चलता रहा. इस भरोसे के साथ कि शाम को होने वाली पार्टी विधायक दल में सिर्फ एलान की औपचारिकता पूरी की जाएगी और नितिन पटेल नए मुख्यमंत्री के रूप में सामने आएंगे. मगर ऐसा नहीं हुआ. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर मीडिया को ग़लत साबित कर दिया. गुजरात बीजेपी के अध्यक्ष विजय रुपानी नए मुख्यमंत्री होंगे. आज सुबह से चैनलों पर रुपानी का इंटरव्यू नहीं चला, नितिन पटेल का नाम आगे था और वही कैमरों पर थे. हमारे सहयोगी राजीव पाठक ने भी संभावित उम्मीदवार के तौर पर उनका इंटरव्यू किया.
लेकिन जब विधायक दल की बैठक के बाद नाम का एलान हुआ तो जिसका नाम सीएम के लिए चल रहा था, वो डिप्टी सीएम बनकर बाहर निकला. फैसले का एलान करते हुए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि वे मीडिया का धन्यवाद करना चाहते हैं. प्रशांत दयाल की बात याद आ गई और मुझे हंसी आ गई. यह सोच कर कि कहीं नितिन गडकरी जी मीडिया का धन्यवाद इसलिए तो नहीं कर रहे थे कि उसने नितिन पटेल का नाम चलाकर रुपानी का रास्ता आसान कर दिया है या इसलिए तो थैक्यू नहीं किया कि दिन भर जो ख़बर चलाई है वो अब ग़लत हो चुकी है. सही ख़बर मैं दे रहा हूं. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने बताया कि विजय रुपानी का नाम आनंदीबेन पटेल ने प्रस्तावित किया और गुजरात के विधायकों ने उनके नाम का समर्थन कर दिया.
नाम की घोषणा के बाद जो माला पहनाई गई उसमें विजय रुपानी, नितिन पटेल और आनंदी पटेल भी आ गए. आनंदी पटेल ने भी दोनों के साथ विक्ट्री साइन बनाकर अपनी खुशी ज़ाहिर की. पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने गुलदस्ता देकर विजय रुपानी का अभिनंदन किया तो उन्होंने बकायदा दोनों हाथ जोड़कर झुककर अमित शाह का आभार जताया लेकिन जब अमित शाह गुलदस्ता लेकर गए तो नितिन पटेल ने खड़े खड़े स्वीकार किया. उन्होंने बिना झुके ही गुलदस्ता ले लिया. हो सकता है इन तस्वीरों का कुछ मतलब न हो मगर ये तस्वीरें दिलचस्प तो हैं ही. मीडिया में यह बात चल रही थी कि अमित शाह विजय रुपानी को ही मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं लेकिन आनंदीबेन पटेल नहीं चाहती थीं कि विजय रुपानी मुख्यमंत्री बनें.
यह ख़बर अपने आप में झटके की तरह है. क्या नितिन पटेल जैसा वरिष्ठ मंत्री और मोदी युग के गुजरात को रग रग से जानने वाला नेता ऐसी नादानी करेगा कि मीडिया के कहने पर इंटरव्यू देने लगे. क्या कभी नितिन पटेल बता सकेंगे कि उन्हें सुबह तो मुख्यमंत्री के लिए कहा गया था या उनसे सीएम के तौर पर इंटरव्यू देकर गलती हो गई. वो खुद तो ऐसी गलती नहीं करेंगे. पत्रकारों से ज्यादा बीजेपी के विधायक और मंत्री जानते हैं कि अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी की शैली क्या है. नितिन पटेल 2002 से 2007 को छोड़ 1995 से मंत्री हैं. आनंदीबेन पटेल सरकार में भी महत्वपूर्ण मंत्री रहे.
उनके पास आनंदीबेन सरकार में स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, बिल्डिंग जैसे मंत्रालय थे. मेहसाणा से विधायक हैं. गुजरात के पत्रकार प्रशांत दयाल ने पुरानी बात की याद दिला दी. कहा कि 90 के दशक में पटेल आरक्षण का भूत नितिन पटेल ने ही खड़ा किया था. वही यह कहकर पटेलों को एकजुट करते थे कि कांग्रेस ने चौधरी को आरक्षण दे दिया और पटेल पीछे रह गए. मगर हार्दिक पटेल के नेतृत्व में जो पटेल आरक्षण का मसला उभरा उसमें नितिन पटेल ने किनारा कर लिया. वे सत्ता के साथ रहे, समाज के साथ नहीं. शुक्रवार को दिन भर इंटरव्यू देते देते नितिन पटेल ने मीडिया ने पटेल आरक्षण और दलित आंदोलन से निपटने के उपाय भी बता दिये. इतना वरिष्ठ राजनेता बिना ऊपर से मिले आदेश के अपने घर मजमा नहीं लगाएगा. हालांकि उनका इंटरव्यू संभावित उम्मीदवार के तौर पर ही हो रहा था मगर वे इंटरव्यू तो दे ही रहे थे भावी सीएम के रूप में।
गुजरात में बीजेपी की सरकार में पहली बार किसी को उपमुख्यमंत्री बनाया गया. इससे पहले कांग्रेस के चिमनभाई पटेल की सरकार में नरहरी अमीन को उप मुख्यमंत्री बनाया गया था. क्या डिप्टी सीम का पद किसी सत्ता संतुलन के लिए है या नितिन पटेल का मान रखने के लिए कि झटका तो ठीक है, बहुत ज़्यादा झटका शायद ठीक न हो. एक वरिष्ठ विधायक और मंत्री को छोड़ कर पहली बार विधायक बने विजय रुपानी को मुख्यमंत्री बनाया गया है. दिलचस्प बात ये है कि नितिन पटेल और विजय रुपाणी दोनों ही 1956 के साल में पैदा हुए हैं. नितिन पटेल डेढ़ महीना बड़े हैं विजय रुपानी से. मगर सरकार में रुपाणी से पटेल डेढ़ महीना छोटे हो गए. उनके डिप्टी हबन गए. होता है.
विजय रुपानी की राजनीतिक यात्रा बहुत पुरानी है. सरकार का अनुभव भले ही कम हो मगर संगठन का खूब है. वे आपातकाल में जेल गए हैं. 2006 से 2012 तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे हैं. राजकोट के मेयर और पार्षद भी रहे हैं. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े रहे हैं. 2014 में उपचुनाव जीतकर पहली बार विधायक बने क्योंकि विधायक वजूभाईवाला को कर्नाटक का राज्यपाल बना दिया गया था. पहली बार विधायक बनते ही कैबिनेट मंत्री बन गए. आनंदीबेन की सरकार में परिवहन और जल आपूर्ति मंत्री बने. दो साल के भीतर मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं. कानून की डिग्री है. 24 साल की उम्र से ही बीजेपी में सक्रिय रहे हैं. विजय रुपानी की पत्नी अंजिली रुपानी भी अखिल विद्यार्थी परिषद से जुड़ी रही हैं.
जब आनंदीबेन पटेल ने इस्तीफा दिया तब इंडियन एक्सप्रेस में शीला भट्ट ने लिखा था कि गुजरात सरकार में बाहर से अमित शाह की बढ़ती दखलदांजी और राष्ट्रीय स्तर पर उनके बढ़ते प्रभाव के कारण आनंदीबेन ने ये रास्ता अपनाया ताकि एक खास मौके का लाभ उठाकर उन्हें चेक किया जा सके. आनंदीबेन को शिकायत थी कि पटेल और दलित आंदोलनों के वक्त पार्टी ने भी उनका साथ नहीं दिया. लेकिन अंत में अमित शाह की ही चली. विजय रुपानी अमित शाह के करीबी माने जाते हैं. कुछ दिन पहले विजय रुपानी ने बयान दिया था कि मुझे पार्टी और संगठन का काम दिया गया है, इससे ज़्यादा महत्वपूर्ण क्या हो सकता है. यही मेरी प्राथमिकता भी है. मीडिया ने समझा कि विजय रुपानी ने खुद को मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर कर लिया है. मगर ये सब तो कहने के लिए होता है. मीडिया को समझना चाहिए था.
This Article is From Aug 05, 2016
प्राइम टाइम इंट्रो : नितिन पटेल का मीडिया में नाम, नहीं मिली कमान!
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:अगस्त 05, 2016 21:46 pm IST
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Published On अगस्त 05, 2016 21:46 pm IST
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Last Updated On अगस्त 05, 2016 21:46 pm IST
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