जो कहा जा रहा है उसका कितना प्रतिशत ज़मीन पर हो रहा है यह किसानों को पता होगा। हर दिन अलग-अलग अखबारों, चैनलों में रिपोर्ट आ रही है कि किसानों को पता ही नहीं चल रहा है कि जो कहा गया है वो क्यों नहीं हो रहा है।
आप अपनी पसंद के किसी भी दल की सरकार वाले राज्य में फोन कीजिए और किसानों से बात कीजिए। वैसे ही जैसे कई लोग लंदन और स्वीडन से दिल्ली, पटना फोन करने लगे हैं कि किसे वोट देना है। कॉल टू किसान नाम से एक स्कीम लॉन्च कर सकते हैं।
हिमांशु शेखर मिश्रा की रिपोर्ट बता रही है कि यूपी के मोदीनगर में किसान उन्हीं चीनी मिलों को इस बार भी गन्ना देने के लिए मजबूर हैं जिन्होंने पिछली बार का पैसा अभी तक नहीं दिया है। आप ये तो जानते ही होंगे कि किसान अपने एरिया के चीनी मिल में ही गन्ना बेच सकता है। सोनू पर 2 लाख का कर्ज़ है लेकिन अगर चीनी मिल इसके पांच लाख चुका दें तो यह तीन लाख के मुनाफे में आ जाएगा। ऊपर से गेहूं की फसल बर्बाद हो गई है। सोनू को बैंक वाले कर्ज नहीं दे रहे हैं तो उसे अपनी खेती के लिए साहूकार से 7 से 10 प्रतिशत के सूद पर कर्ज़ लेना पड़ रहा है। जबकि सोनू का जनधन वाला खाता भी होगा। यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार है।
हमारे सहयोगी शरद शर्मा की रिपोर्ट बता रही है कि 11 अप्रैल को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ऐलान कर दिया कि किसान को 20 हज़ार प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवज़ा मिलेगा। मौसम की मार के डेढ़ महीने हो गए मगर बख़्तावरपुर के किसान कहते हैं कि सर्वे ही नहीं हुआ है। सरकार कहती है कि बिना सर्वे के ही चौपाल लगाकर पैसे बांट देगी। अभी तक क्यों नहीं बंटा है विपक्ष पूछ रहा है।
पंजाब और हरियाणा से हमारे सहयोगी आनंद पटेल ने रिपोर्ट भेजी है। यहां तो अकाली और बीजेपी की सरकार है। केंद्र और राज्य के नेता ऐलान कर रहे हैं कि गेंहू के दाने में ख़राबी होने पर भी पूरे पैसे मिलेंगे। यानी 1450 रुपये प्रति क्विंटल। हरियाणा की जींद मंडी में जब किसान पहुंचे तो ख़राबी बताकर 400 रुपये प्रति क्विंटल काटे जाने लगे। परेशान किसानों ने मंडी में ताला ही जड़ दिया। पंजाब में ट्रांसपोर्ट यूनियन और पल्लेदारों की हड़ताल के कारण मंडियों में गेहूं नहीं पहुंच पा रहा है। किसानों का आरोप है कि मंडियों में बोली समय पर नहीं लग रही है।
सभी सरकारों में होड़ लगी है कि उद्योगपतियों को कम से कम समय में कैसे मंज़ूरी मिल जाए। किसानों को कैसे मुआवज़ा मिले इसके लिए सभी सरकारों के मंत्री टाइम लेकर समझाते हैं कि सर्वे से लेकर वितरण में कितनी प्रक्रियाओं का पालन करना पड़ता है।
इस देश में कई जगहों पर उद्योगपतियों और किसानों के बीच झगड़ा चल रहा है। पता कीजिए कि उन बेआवाज़ किसानों के लिए कौन से दल के नेता मौके पर मौजूद हैं। नुकसान फसलों के मुआयने के लिए मंत्री तो चले जाते हैं लेकिन क्या टकराव की ऐसी स्थिति में कोई मंत्री या विपक्ष का नेता जाता है जहां वास्तव में किसानों की लड़ाई उद्योगजगत से होती है। जब कॉल टू किसान कीजिएगा तो लगे हाथ ये सवाल भी पूछ लीजिएगा।
मध्य प्रदेश में खरगौन ज़िले के घोघाल गांव के लोग दस दिनों से जल सत्याग्रह कर रहे हैं। नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं के साथ 27 ग्रामीण नर्मदा के क़रीब ओंकारेश्वर बांध के पास हर दिन 12 से 14 घंटे कमर तक पानी में खड़े रहते हैं। उनकी मांग है कि बांध में पानी का स्तर घटाया जाए और डूब क्षेत्र में किसानों को ज़मीन का मुआवज़ा दिया जाए। राज्य सरकार का कहना है कि वो विस्थापितों को अब तक काफ़ी मदद पहुंचा चुकी है, कार्यकर्ताओं का आरोप है कि मुआवज़ा ज़रूरतमंदों तक नहीं पहुंचा।
सोनभद्र में कनहर बांध के ख़िलाफ़ पांच दिन से प्रदर्शन कर रहे किसानों और कार्यकर्ताओं पर शनिवार को पुलिस ने कार्रवाई की। इस बांध प्रोजेक्ट से प्रभावित होने वाले लोगों का मुआवज़े का मुद्दा अभी तक नहीं सुलझा है। हिमाचल के कन्नौर से लेकर तमाम जगहों पर ऐसे विवाद में किसान को ही सज़ा मिलती है।
कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने बताया कि कई राज्यों से सर्वे आ गए हैं, कई राज्यों में प्रक्रिया चल रही है, जिन राज्यों से आ गया है उन्हें पैसा जा चुका है या जाने की प्रक्रिया में है। राधा मोहन सिंह राहुल गांधी के आरोपों के जवाब में बोल रहे थे। राहुल गांधी ने लोकसभा में सरकार पर आरोप लगाए कि किसानों और मज़दूरों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है। सूट बूट की सरकार और बड़े लोगों की सरकार जैसा जुमला भी बनाया लेकिन कुछ सवालों पर सरकार को बताना पड़ा कि हालात क्या हैं, हुआ क्या है और क्या होने वाला है।
राहुल ने कहा, 'मौजूदा सरकार ने गेहूं, गन्ना और कपास के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 50, 10 और 50 रुपये की मामूली वृद्धि क्यों की है? गडकरी जी तो बोलते हैं कि किसानों को न तो भगवान न सरकार पर भरोसा करना चाहिए। गेहूं मंडियों में पड़ा हुआ है, सरकार उठा नहीं रही है, किसानों को खाद नहीं मिल रहे हैं। सरकार एक तरफ से किसानों को कमज़ोर कर रही है, दूसरी तरफ से अधिग्रहण के अध्यादेश की कुल्हाड़ी मार रही है।'
वेकैंया नायडू ने भी बतौर मंत्री बतौर किसान अपना दर्द बताते हुए राहुल गांधी को जवाब दिया। यह मानते हुए कि वाकई किसानों की स्थिति बेहद ख़राब है, वेंकैया ने कहा, 'हमने पचास परसेंट नुकसान को कम कर 33 फीसदी किया है। मरने वाले परिवार को 1 लाख 20 हज़ार की जगह 4 लाख मुआवज़ा किया, मवेशियों के नुकसान पर दिया जाने वाला मुआवज़ा भी बढ़ाया गया है।'
वेंकैया ने कहा कि जितना आटा उतनी रोटी। केंद्र के पास कितने साधन हैं, कितना पैसा है, विरासत में जो हमें मिला है उसे भी ध्यान में रखना चाहिए। इस बीच सोमवार को सरकार ने भूमि अधिग्रहण का संशोधित रूप लोकसभा में रख दिया। नए मसौदे के अनुसार सहमति का प्रावधन वापस आ रहा है। इसे 70-80 फीसदी की जगह 50 से 60 फीसदी किया जा सकता है। भूमि अधिग्रहण पर नज़र रखने के लिए सांसद विधायकों की समिति बनाई जा सकती है। नगर निकायों की सीमा का दायरा बढ़ाया जा सकता है ताकि शहरी इलाकों से सटे किसानों को ज्यादा मुआवज़ा मिल सके। इन बहसों से किसानों को क्या मिला, क्या मिल रहा है, क्या मिलेगा?
This Article is From Apr 20, 2015
प्राइम टाइम इंट्रो : क्या किसानों पर गंभीर है सरकार?
Ravish Kumar
- Blogs,
-
Updated:अप्रैल 20, 2015 21:22 pm IST
-
Published On अप्रैल 20, 2015 21:15 pm IST
-
Last Updated On अप्रैल 20, 2015 21:22 pm IST
-
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
बेमौसम बरसात, फसल बर्बाद, किसान बेहाल, राहुल गांधी, प्राइम टाइम इंट्रो, Unseasonal Rain, Crops Damage, Farmers Suicide, Prime Time Intro