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This Article is From Nov 27, 2014

कालेधन पर 100 के विवाद से छुटकारा पाया?

Ravish Kumar, Rajeev Mishra
  • Blogs,
  • Updated:
    नवंबर 27, 2014 21:26 pm IST
    • Published On नवंबर 27, 2014 21:23 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 27, 2014 21:26 pm IST

नमस्कार मैं रवीश कुमार। तो आखिर वो मुलाकात हो ही गई जिसके न होने की बात हो रही थी। जो भारत-पाकिस्तान तनातनी के समर्थक हैं उन्हें भी इस तस्वीर में एक ख़ास ऊर्जा नज़र आएगी।

निश्चित रूप से यह तस्वीर बुधवार की उस तस्वीर से बेहतर है जिसमें प्रधानमंत्री मोदी बैठे हैं और नवाज़ शरीफ बिना उनकी तरफ देखे गुज़र रहे हैं। बाकी तो जो है सो हइये है।

काला धन को लेकर तृणमूल कांग्रेस काफी क्रिएटिव हो गई है। अगर ऐसा ही वो करती रही तो काले धन से जुड़े राजनीतिक प्रदर्शनों के लिए हर काली चीज़ काम आ जाएगी। ज़रूर एक दिन सांसद काले घोड़े पर बैठकर काले धन के मसले पर सरकार को घेरने आएंगे।

आज तृणमूल के सांसद काले रंग की शाल में संसद की सीढ़ी के बाहर प्रदर्शन करने लगे। एक ही थान से या दुकान से ये शाल लाई गई थी, इसकी जांच सीबीआई कर सकती है, बशर्ते उसे सारदा चिटफंड में जांच करने और तृणमूल नेताओं की पकड़ने से फुर्सत मिल जाए। इससे पहले तृणमूल के नेता काली छतरी ले आए। वाकई हमारी राजनीति कितनी सफेद है कि काले धन के लिए उसे काली चीज़ों का जुगाड़ करना पड़ रहा है। कुछ काले आइटम मैं भी सुझा देता हूं। कोयला काला है, चट्टानों ने पाला है, भाग मिल्खा भाग का गाना भी गा सकते हैं या फिर गैंग ऑफ वासेपुर का वो गाना अंदर काला बाहर काला सब है काला काला गा सकते हैं।

फिर भी विपक्ष ने काले धन पर सरकार को जवाब देने के लिए मजबूर तो कर ही दिया। सरकार के जवाब में दोहरापन होने के बाद भी कई सारी नई चीज़ें निकल कर आई। आज जब लोकसभा में सदस्यों ने पूछा कि प्रधानमंत्री मोदी कहां से और किस आधार पर लोगों को बता रहे थे कि इतना इतना काला धन है तो उसके जवाब में वेंकैया नायडू ने कहा कि सीबीआई निदेशक एपी सिंह ने कभी कहा था कि 25 लाख करोड़ काला धन है। सौ दिन में काला धन लाने का हमारा मतलब यह था कि हम पहले 100 दिनों में कार्यवाही शुरू कर देंगे। रामदेव का आज बयान है कि मुझे पूरा भरोसा है कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सरकार काला धन ले आएगी। राज्य सभा में बुधवार को वित्तमंत्री ने कहा कि आप सौ दिन दौ सौ दिन कहते रहिए आप मुझे आत्महत्या करने के तरीके बता रहे हैं। सरकार इस पर ध्यान नहीं देगी। अगर कुछ वक्त लग भी जाए तो हम सभी को पकड़ेंगे।

तो सरकार ने सौ दो सौ दिनों के विवाद से छुटकारा पा लिया। अब रह गया कि कितना पैसा है और कब मिलेगा तो वित्त मंत्री जेटली ने भी अपने जवाब में अमाउंट का ज़िक्र नहीं किया। लोक सभा और राज्य सभा में विस्तार से बताते हुए वित्तमंत्री जेटली ने कहा कि पिछले बीस सालों में इन मुद्दों से निपटने की हमारी क्षमता में बढ़ोत्तरी हुई है। हम इस बहस को चुनावी बहस की निरंतरता में आगे बढ़ा सकते हैं। लेकिन चुनाव साढ़े छह महीने पहले हुए थे चूंकि हम चुनाव में सफल रहे इसलिए हमारी ज़िम्मेदारी भी बड़ी है। हमने कई कदम उठाए हैं जो अपनी मंज़िल के आधे रास्ते में हैं। हम ही नहीं पूरी दुनिया, पूरी दुनिया अभी सीखने की प्रक्रिया में है कि देश से बाहर ले जाने वाले पैसों का कैसे पता लगाया जाए। कुछ पैसा आपराधिक किस्म का होता है। कुछ टैक्स से बचाकर बाहर ले जाया जाता है। इस मामले में कई देश सहयोग करने लगे हैं। तीसरी श्रेणी है, जो एनआरआई है। किसी परिवार का एक सदस्य एनआरआई बन जाता है और पैसा उसके नाम पर होता है। वो कहता है कि मैं एनआरआई हूं और मेरा खाता कानूनी है।

एचएसबीसी के 627 खाते हैं, अब हमें पता करना है कि इनमें से कौन से खाते ऐसे हैं जिनसे हमें जानकारी मिल सकती है। ये सारे खाते 2005−07 के बीच खुले थे और स्विटजरलैंड से सूचनाओं के आदान-प्रदान का करार हमारा 2011 में होता है। एक मुश्किल यह भी है। अब जिन खातों की जानकारी सार्वजनिक हो गई वो पैसा निकालकर कहीं और ले गया। कुछ का कुछ पैसा रह गया होगा। अब हमने करार किया है कि अगर खाते चोरी के भी हैं और हम कुछ प्रमाण दें तो क्या स्वीटज़रलैंड की सरकार सहयोग करेगी। वहां की सरकार मान गई। हम स्विस सरकार के साथ बैंकिंग सूचनाओं के ऑटोमेटिक आदान-प्रदान को लेकर बातचीत भी शुरू करने जा रहे हैं।

इन खातों पर ऐसे ज़ोर दिया जा रहा है जैसे लाखों करोड़ काला धन इन्हीं चार पांच सौ खातों में रखा हो। वित्त मंत्री ने कहा सूचनाओं के ऑटोमेटिक आदान-प्रदान के जरिये हमें एसएचबीसी के 427 मामलों की जानकारी मिल गई है। हमने इनकी जांच की प्रक्रिया पूरी कर ली है। 250 ने मान लिया है कि ये उनके खाते हैं लेकिन नाम नहीं सार्वजनिक कर सकते। हम इन खातों का टैक्स असेसमेंट 31 मार्च 2015 तक पूरा कर लेने का प्रयास करेंगे।

जब सपा के नरेश अग्रवाल ने पूछा कि इन खातों में कितना पैसा है तो वित्त मंत्री ने कहा कि नाम और डिटेल्स के लिए विनम्रता से आग्रह करूंगा कि इसमें हममें से भी बहुत हो सकते हैं, इसका खुलासा बहुत सोच समझकर करना है।

ठीक यही बात 14 दिसंबर 2011 को तबके वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने काले धन पर हुई बहस के जवाब में कही थी कि आडवाणी जी की दलील सही नहीं है। अगर हम नाम बता देंगे तो संबंधित देश बाकी सूचनाएं साझा नहीं करेंगे। हमारा उनसे समझौता है। मुझे हैरानी है कि इस तरह की मांग देश के पूर्व गृह मंत्री की तरफ से की गई है।

लगता है वित्त मंत्रालय में जवाब देने के लिए एक ही कुंजी है। गाइड बुक है। मौजूदा वित्त मंत्री ने जरूर कहा कि अदालत में चार्जशीट दायर होने के बाद ही ये नाम सार्वजनिक हो जाएंगे। क्योंकि अपराध भारत में हुआ है, लेकिन इसके सबूत कई देशों में हैं। कोई सरकार अपनी पुलिस या सेना इन खातों की जांच के लिए नहीं भेज सकती है। प्रणब मुखर्जी ने भी लोकसभा में ठीक इसी तरह की बात की थी।

कुछ लोग कहते हैं कि काले धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर दीजिए। स्विस बैंक में जो पैसा जमा है वो राष्ट्रीय संपत्ति है। तो मैं इसे लाऊंगा कैसे। क्या मुझे सेना भेज देनी चाहिए।

तब आडवाणी और बीजेपी के नेता मांग कर रहे थे कि जिनके खाते हैं उनके नाम सार्वजनिक कर दिए जाने चाहिए। तब वित्त मंत्री के रूप में प्रणब मुखर्जी वही क्यों कह रहे हैं जो आज वित्त मंत्री के रूप में अरुण जेटली जी।

राज्य सभा में तो शरद यादव ने टोका भी कि आप जो जवाब दे रहे हैं वो सब तो अखबारों में आ चुका है। क्या आप ये विश्वास दिलायेंगे कि काला धन कैसे वापस आएगा। कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने कहा कि 85 हज़ार करोड़ का आंकड़ा कहां से आया। तो जेटली ने कहा कि मेरे जैसे लोगों का ज्यादातर जीवन विपक्ष में बीता है। इसलिए मुझे पता है विपक्ष में क्या होता है। आपोजिशेन में तो एक प्रिविलेज है कि अपना सुझाव दे दिया और अब वह ज़िम्मेदारी दूसरे की। मन की बात रेडियो कार्यक्रम में प्रधानमंत्री कह चुके हैं कि कोई नहीं जानता कि कितना काला धन है। इन आंकड़ों में उलझना नहीं चाहिए। मैं पाई पाई लाऊंगा।

लाखों करोड़ों का वो आंकड़ा अब पाई पाई में बदल चुका है। खैर पाई पाई जोड़कर भी सबके खाते में तीन तीन लाख आ सकते हैं। बशर्ते सब्र किया जाए। जेटली ने अपनी बात समाप्त करते हुए कहा कि या तो यह बहस हारे हुए चुनाव की अधूरी बहस के रूप में चलती रहे या फिर हम इस पर बहस करें कि दोषी को पकड़ने का सही तरीका क्या हो। तो क्या सरकार ने विपक्ष को ठोस जवाब दिया कि वो कुछ नया कर रही है या फिर बात घूम फिर कर वहीं पहुंच गई है। हमारी उम्मीद की इंतेहा की ये हद ही है जो राजनीतिक दल अपने चंदे का हिसाब जनता को नहीं देते उन्हीं से पूछ रहे हैं कि काला धन कब आएगा। क्या सरकार क्या विपक्ष। प्राइम टाइम

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