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This Article is From Aug 16, 2016

प्राइम टाइम इंट्रो : भारत की बलूचिस्तान नीति में बड़ा बदलाव

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 16, 2016 21:53 pm IST
    • Published On अगस्त 16, 2016 21:53 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 16, 2016 21:53 pm IST
बात हो रही थी कि कश्मीर से बात नहीं हो रही है तो संसद में कश्मीर पर बात हुई, तय हुआ कि कश्मीर से बात करेंगे लेकिन कश्मीर पर किसी से बात नहीं करेंगे, अब जब भी बात करेंगे पाक अधिकृत कश्मीर पर बात करेंगे. राज्यसभा में समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव ने कहा था कि भारत पाक अधिकृत कश्मीर का मसला क्यों नहीं उठाता है. प्रधानमंत्री ने सर्वदलीय बैठक में बलूचिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर का मसला उठाया. सबने सहमति दे दी लेकिन किसी को अंदाज़ा नहीं था कि प्रधानमंत्री लाल क़िले से भी ये बात कह देंगे.

प्रधानमंत्री ने कहा था, 'जिन लोगों के विषय में मेरी कभी मुलाकात नहीं हुई है, लेकिन ऐसे दूर सुदूर बैठे हुए लोग हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री को अभिनंदन करते हैं, तो वो मेरे सवा सौ करोड़ देश वासियों का सम्मान है और इसलिए ये सम्मान का भाव, ये धन्यवाद का भाव करने वाले बलूचिस्तान के लोगों का, गिलगित के लोगों का, पाक के कब्ज़े वाले कश्मीर के लोगों का मैं आज तहे दिल से आभार व्यक्त करना चाहता हूं.'

क्या इस आभार को भारत का सक्रिय समर्थन समझा जा सकता है. 12 अगस्त के सर्वदलीय बैठक बाद अमेरिकी स्थित गिलगित बल्तिस्तान नेशनल कांग्रेस नाम का एक संगठन है जिसने मानवाधिकार के हनन का मामला उठाने पर भारत के प्रधानमंत्री का आभार व्यक्त किया और बलूच नेता ब्राह्मदघ बगूती ने भी प्रधानमंत्री का स्वागत किया है. क्या भारत के लिए इन संगठनों की इतनी अहमियत है कि प्रधानमंत्री ने लाल क़िला से सर्वदलीय बैठक की जगह इनके आभार के प्रति आभार व्यक्त किया.

जिसे हम पाक अधिकृत कश्मीर कहते हैं उसे पाकिस्तान में दो हिस्सों में बांटा गया है. आज़ाद कश्मीर और दूसरा गिलगित बल्तिस्तान. भारत की 106 किमी सीमा अफगानिस्तान में पड़ती है जो पाक अधिकृत कश्मीर में पड़ती है. मई महीने में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित दोवल ने बीएसएफ के अफसरों से कहा था कि हमें इस 106 किमी की सीमा को भी ध्यान में रखना होगा जो अफगानिस्तान से लगती है. गिलगित बल्तिस्तान एक हिस्सा चीन से लगता है. यह बेहद ख़ूबसूरत इलाका है. दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची चोटी के-2 यहीं है.

22 फरवरी 1994 में नरसिंहा राव सरकार के समय संसद ने एक प्रस्ताव पास किया था जिसमें कहा गया था कि बढ़ती आतंकी हिंसा और कश्मीर विवाद को उठाने की पाकिस्तान की कोशिशों के मद्देनज़र भारतीय संसद के दोनों सदनों ने एक मत से 22 फरवरी 1994 को एक प्रस्ताव पास किया जिसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और पाकिस्तान को अपने कब्ज़े वाले कश्मीर के इलाकों को खाली कर देना चाहिए.

अक्टूबर 2015 में संयुक्त राष्ट्र संघ में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का बयान है कि कि अगर पीओके विदेशी शक्तियों के कब्ज़े में है तो वो विदेशी शक्ति पाकिस्तान है. इसी साल दो बार यानी जनवरी और जून महीने में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने भी कहा था कि जम्मू कश्मीर का पूरा राज्य जिसमें गिलगित बल्तिस्तान का क्षेत्र भी आता है, वो भारत का अभिन्न अंग है. बलूचिस्तान को लेकर खासा हड़कंप है. बलूचिस्तान पाकिस्तान के चार प्रशासनिक प्रांतों में से एक है. इसके अलावा तीन अन्य प्रांत हैं, पंजाब, ख़ैबर पख़्तून ख़्वाह और सिंध. बलूचिस्तान का इलाका अफगानिस्तान और ईरान से लगा है. पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है मगर आबादी बहुत कम है. बलूचिस्तान खनिज पदार्थों से लैस होकर भी गरीब है. यहां पर बलूच राष्ट्रीयता को लेकर अलग अलग गुटों के आंदोलन चल रहे हैं. इस इलाके की राजनीति जानने वाले कहते हैं कि बलूच लोगों पर पाकिस्तान ने बेइंतहा ज़ुल्म ढाए हैं. पाकिस्तान उनके आंदोलन को उग्रवाद मानता है. कई बलूच नेता अलग अलग देशों में रह रहे हैं. ग्वादर बंदरगाह बलूचिस्तान में ही है जिसे चीन बना रहा है. इसी के जवाब में भारत ने ईरान में चाबहार बंदरगाह बनाने का काम अपने जिम्मे लिया है.

2009 के साल में भी बलूचिस्तान को लेकर भारत की राजनीति में घमासान हो चुका है. उस साल 16 जुलाई के रोज़ ईजिप्ट के शर्म अल शेख से भारत और पाकिस्तान ने एक साझा बयान जारी कर कहा था कि दोनों देश सहमत हैं कि आतंकवाद से दोनों को ख़तरा है. दोनों नेता इस बात पर राज़ी हुए हैं कि किसी भी भावी आतंकी हमले को लेकर रियल टाइम डेटा साझा किया जाएगा. प्रधानमंत्री गिलानी ने इस बात का ज़िक्र किया कि बलूचिस्तान और अन्य इलाकों में ख़तरों को लेकर पाकिस्तान के पास कुछ सूचनाए हैं. भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि मुंबई हमलों के गुनाहगारों को सज़ा देने की ज़रूरत है.

लोकसभा में बीजेपी नेता यशंवत सिन्हा ने कहा था कि मैं प्रधानमंत्री जी से कहना चाहता हूं कि जो शर्म अल शेख में हुआ है, सातों समुद्र का पानी इकट्टा करके अगर उस शर्म को धोने का प्रयास हमलोग करेंगे तो वह शर्म नहीं धुलने वाली है. बीजेपी उस वक्त काफी आक्रामक थी कि साझा बयान में बलूचिस्तान का ज़िक्र स्वीकार कर भारत ने पाकिस्तान के आरोप को स्वीकार कर लिया है कि वहां उग्रवाद भड़काने में भारत की भूमिका है. भारत की विदेश नीति घोषित तौर पर यही रही है कि भारत किसी मुल्क के आतंरिक मामलों में दखल नहीं देता है. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनने से पहले 2014 के अपने एक भाषण में अजीत डोभाल ने कहा था, 'रक्षात्मक रुख़ अपनाने के दौरान अगर आप पर 100 पत्थर फेंके जाते हैं और आप 90 रोक लेते हैं तो भी 10 पत्थर आपको नुकसान पहुंचाते हैं. ऐसे में आप कभी जीत नहीं सकते. क्योंकि या तो आप हार जाते हैं या फिर यथास्थिति बनी रहती है. अगर आप रक्षात्मक रणनीति को बदलकर रक्षात्मक आक्रामक रुख़ अपना लेते हैं तो उन्हें पता लगेगा कि वो इसे लंबे समय तक नहीं झेल सकते. आप एक और मुंबई करेंगे तो आप बलूचिस्तान खो देंगे.'

क्या भारत सरकार अजित डोभाल साहब की सोच या नीति पर आगे बढ़ रही है. बांग्लादेश और श्रीलंका के मामले में भारत सैन्य हस्तक्षेप कर चुका है अब सवाल उठ रहे हैं कि इस बयान के बाद भारत सार्वजनिक रूप से क्या करेगा. क्या प्रधानमंत्री मोदी दुनिया के मंचों पर कहेंगे कि बलूचिस्तान में भारत की भूमिका थी या अब होगी? क्या बलूचिस्तान में मानवाधिकार की रक्षा के लिए भारत श्रीलंका की तरह सैन्य हस्तक्षेप करेगा? क्या भारत बलूचिस्तान को लेकर संयुक्त राष्ट्र के किसी मंच पर उठाएगा? क्या भारत जी-20 जैसे मंचों पर किसी प्रकार के आर्थिक प्रतिबंध की बात करेगा?

क्या मानवाधिकार को लेकर भारत की रणनीति सिर्फ पाकिस्तान तक ही सीमित है या तिब्बती लोग भी भारत से चीन के ख़िलाफ़ कुछ उम्मीद कर सकते हैं, नेपाल में रहने वाले भारतीय मूल के लोग भी नया संविधान लागू होने के बाद भारत से कुछ उम्मीद कर सकते हैं. भारत पाकिस्तान के बीच की नीति विदेश नीति से कम घरेलू नीति से ज्यादा चलती है.

लेकिन जो संबंध शपथ ग्रहण में नवाज़ शरीफ़ के आने से प्रगाढ़ हो रहे थे, नवाज़ शरीफ़ ने प्रधानमंत्री मोदी की मां को साड़ी भेंट की, मोदी जी ने भी नवाज़ शरीफ़ की मां को शॉल और वाजपेयी की कविता गिफ्ट कर दी. नवाज़ शरीफ़ के जन्मदिन पर लाहौर जाकर प्रधानमंत्री मोदी ने सबको चौंका दिया. हमें बताया गया कि एक नया इतिहास बन रहा है जो लीक से हट कर है. उस खुशफहमी में पठानकोट एयरबेस पर हुए हमले पर भी सब्र कर गए. जहां से आतंकी आए वहीं से जांच दल को भी आने दिया गया ताकि एयरबेस के प्रभावित इलाकों का दौरा कर सके. क्या ये सब तस्वीरें ब्लैक एंड व्हाईट के ज़माने वाले एल्बम में समा जाएंगी. क्या भारत ने उस इतिहास को अब कूड़ेदान में डालने का फैसला कर लिया है.

जो लोग इतिहास के विद्यार्थी नहीं रहे हैं उन्हें मैं विद्यार्थी होने के नाते एक बात बता सकता हूं. इतिहास को लेकर सब्र की ज़रूरत होती है. इतिहास बनाने में भी, इतिहास लिखने में भी और इतिहास पढ़ने में भी. पुराने इतिहास से मोह छुड़ाकर नया लिखना आसान नहीं होता है. इसलिए भारत और पाकिस्तान अब उन पन्नों पर फिर से वापस पहुंच गए हैं जहां वे दोनों खुश नज़र आते हैं. दोनों अपने अपने पिच पर पहुंच गए हैं. खुद ही गेंद फेंक रहे हैं खुद ही छक्का मार रहे हैं.

दिल्ली स्थित पाकिस्तान दूतावास में राजदूत अब्दुल बासित ने अपने मुल्क की आज़ादी को कश्मीर की आज़ादी के नाम कर भारत को चुनौती दे दी. इस्लामाबाद में सरताज अज़ीज़ ने कहा है कि बलूचिस्तान पाकिस्तान का अभिन्न अंग हैं. मोदी के बयान ने पाकिस्तान की बात को सही साबित कर दिया है कि भारत अपने खुफिया संगठन रॉ के ज़रिये वहां आतंकवाद पैदा कर रहा है. प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ ने कहा है कि दुनिया को इस पर ध्यान देने की ज़रूरत है कि निर्दोष कश्मीरियों पर किस तरह की ज़्यादतियां हो रही हैं. अपनी आज़ादी के अधिकार के लिए कश्मीरी बलिदान दे रहे हैं. पिछले साल नवंबर में पाकिस्तान ने मुंबई हमलों के मास्टर माइंड हाफिज़ सईद के किसी भी इटंरव्यू या बयान को चैनलों पर दिखाने से रोक लगा दी थी. मंगलवार को यह रोक हटा ली गई है. इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से लिखा है.

प्रधानमंत्री चाहते तो इसी आठ अगस्त को बलूचिस्तान के क्वेटा में हुए आतंकी हमले का ज़िक्र कर सकते थे जिसमें 70 लोग मारे गए, 120 लोग घायल हुए लेकिन लाल क़िले से उन्होंने 2014 में पेशावर के सैनिक स्कूल में हुए आतंकी हमले का ज़िक्र किया. उस हमले में 140 बच्चे और टीचर मारे गए थे जिनके प्रति भारत के स्कूलों में शोक मनाया गया था. प्रधानमंत्री ने यह भी तो कहा कि दोनों देशों को मिलकर लड़ना होगा. एक तरफ अलग अलग मोर्चे की बात हो रही है, दूसरी तरफ एक मिलकर लड़ने की बात हो रही है. रही बात मानवाधिकार की तो क्या संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रावधान इस आधार पर किसी देश को किसी देश में घुसने की अनुमति देता है. वैसे जो देश चाहता है वो घुसा ही हुआ है. यूक्रेन, यमन, सीरिया, इराक. क्‍या अब बातचीत की जगह बातों की बात होगी या कहीं ऐसा तो नहीं कि हम किसी आक्रामक यानी युद्ध की तरफ बढ़ रहे हैं.

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