प्राइम टाइम इंट्रो : हार्वर्ड बनाम हार्डवर्क

प्राइम टाइम इंट्रो : हार्वर्ड बनाम हार्डवर्क

रैली को संबोधित करते पीएम नरेंद्र मोदी

हार्वर्ड से ज़्यादा दम होता है हार्डवर्क में. नारा तो सरिया, सीमेंट के विज्ञापन जैसा ही ज़ोरदार है. प्रधानमंत्री की इस गुगली से हार्वर्ड वालों की धुकधुकी बढ़ गई होगी. वैसे हार्डवर्क नाम की कोई यूनिवर्सिटी नहीं है फिर भी परेशान तो होंगे कि क्या वे बिना हार्डवर्क के ही हार्वर्ड वाले हो गए. यूपी के महाराजगंज से हार्वर्ड वालों को पहली बार सीरीयस चुनौती मिली है. अभी तक हार्वर्ड वाले सिर्फ अपना विजिटिंग कार्ड दिखाकर राजनीतिक दल से लेकर रिजर्व बैंक तक में गवर्नर बन जाया करते थे. हो सकता है अब ट्रेन या बस में अपनी यूनिवर्सिटी का नाम लेने में घबराहट हो. लेकिन इतना भी मनोबल गिराने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि हार्वर्ड वाले मोदी सरकार में भी हैं. उनकी सेटिंग हर सरकार में हो जाती है. यही हार्वर्ड के हार्डवर्क का कमाल है. जो लोग महाराजगंज में हार्डवर्क कर रहे हैं वो हार्वर्ड की चालाकी और चतुराई को कम से कम इस जनम में तो नहीं समझ पाएंगे.

यूपीए सरकार के अर्थतंत्र के तमाम पदों पर हार्वर्ड, ऑक्सफोर्ड से आए अर्थशात्रियों को बड़े पैमाने पर जगह मिलनी शुरू हुई. इस मामले में प्रधानमंत्री ने सही कहा है कि तीस चालीस साल से वही अर्थंतंत्र चला रहे हैं. मगर उनका दबदबा मोदी सरकार के अर्थतंत्र में भी उसी तरह बना हुआ है. इनकी सीरीयस समीक्षा होनी चाहिए. हार्वर्ड अमरीका में है और ऑक्सफोर्ड ब्रिटेन में.

ऑक्सफोर्ड से ही पढ़ कर आए थे मनमोहन सिंह जिन्हें उदारीकरण का अगुआ माना जाता है. पी चिदंबरम हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से पढ़ कर आए हैं. नोटबंदी के आलोचक हैं. नोबल पुरस्कार प्राप्त अमर्त्य सेन तो हार्वर्ड में प्रोफेसर ही हैं, नोटबंदी के आलोचक हैं. पूर्व आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु हार्वर्ड में पढ़ा चुके हैं. नोटबंदी के आलोचक हैं. यूपीए दौर में मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद विरमानी हार्वर्ड से जुड़े रहे हैं. रघुराम राजन हार्वर्ड और ऑक्सफोर्ड के नहीं हैं, यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो में पढ़ाते हैं. पूर्व आरबीआई गवर्नर विमल जालान कैंब्रीज़ और ऑक्सफोर्ड से रहे हैं.

इसलिए राजन तो बच गए. लालू यादव और अरविंद केजरीवाल भी बच गए. वैसे लालू जब रेल मंत्री थे तो हार्वर्ड वालों ने उन पर प्रोजेक्ट किया था. ये भी नोटबंदी के आलोचक रहे हैं वैसे. मनमोहन सिंह ऑक्सफोर्ड वाले हैं जो 2 प्रतिशत जीडीपी में गिरावट की बात कर रहे थे. प्रधानमंत्री की यह बात सही है कि तीस तीस साल से हार्वर्ड ऑक्सफोर्ड से आए अर्थशास्त्री जमे हुए हैं. एक तरह से देखिये तो लंदन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स, यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, ऑक्सफोर्ड, कैंब्रीज़ से पढ़कर आए अर्थशास्त्री, यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिल्वेनिया के अर्थशास्त्रियों का विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से लेकर भारत के तमाम आर्थिक पदों पर कब्ज़ा रहा है. इन्हीं की नीति चलती है. यूपीए राज में इनका दबदबा था. मोदी सरकार के आते ही सब बाहर निकाल दिए गए हों ऐसा भी नहीं है. आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल तो यूपीए काल में डिप्टी गवर्नर बनकर आए थे. इन विश्वविद्यालयों का दबदबा मोदी सरकार में भी कायम है. आपको लगेगा कि ये लोग यूपीए काल में आए इसलिए कोई उदारवादी होंगे, लिबरल होंगे, लेकिन इनकी नीतियों और सोच को देखेंगे तो सब के सब घोर राइटविंग यानी दक्षिणपंथी हैं या उनसे बहुत अलग नहीं हैं. दुनिया भर के देशों में इन यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्रियों का दबदबा है. भारत में भी है. 1990 के बाद के भारत में उन्हीं नीतियों पर कांग्रेस भी चलती है, बीजेपी भी चलती है. हार्वर्ड पर अटैक करने का यह मतलब नहीं है कि स्वदेशी जागरण वाले खुश हो जाएं.

मोदी सरकार के अर्थतंत्र में जो हार्वर्ड ऑक्सफोर्ड वाले हैं उन पर इस बयान का क्या असर हुआ होगा, मुझे नहीं मालूम. क्या वे अपने बायोडेटा से हार्वर्ड या ऑक्सफोर्ड का नाम हटा लेंगे. ये वो नाम हैं जो नोटबंदी के समर्थक हैं. यानी हार्वर्ड वालों में से कइयों ने नोटबंदी का समर्थन भी किया था बल्कि लागू कराने में जी जान से जुटे थे. जैसे आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने ऑक्सफोर्ड से एमफिल किया है. पूर्व वित्त राज्य मंत्री और मौजूदा नागरिक उड्डयन मंत्री जयंत सिन्हा हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एमबीए हैं. मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन भी हार्वर्ड में पढ़ा चुके हैं, ऑक्सफोर्ड से पढ़ चुके हैं. नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबराय कैंब्रिज विश्वविद्यालय के हैं. नीति आयोग के उपाध्यक्ष अमरीका के प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के हैं.

ये इसलिए बताया ताकि कुछ लोग अति उत्साह में महाराजगंज वाले बयान के बाद हार्वर्ड भारत छोड़ो का नारा न बुलंद करने लगें. हार्वर्ड वालों ने कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं. उन्हें पता है यूपीए से लेकर एनडीए सरकारों में ख़ुद को कैसे सेट किया जाता है. राजस्थान यूनिवर्सिटी और सागर यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर दिल पर न लें मेरी इन बातों को. हार्वर्ड वाले मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन ने नोटबंदी का समर्थन किया था. बजट से पहले अरविंद सुब्रमणियन के नेतृत्व में बने आर्थिक सर्वे पेश करते हुए कहा गया था कि 2016-17 की वास्तविक जीडीपी दर में चौथाई से लेकर आधा प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है. 2016-17 के दौरान जीडीपी ग्रोथ 6.5 प्रतिशत रहेगी. लक्ष्य से आधा प्रतिशत कम.

अरविंद सुब्रमणियन साहब कह सकते हैं कि मैं हार्वर्ड से आया हूं मगर नोटबंदी के समर्थन में काफी हार्डवर्क किया हूं. उर्जित पटेल भी कह सकते हैं कि सर ऑक्सफोर्ड से आया तो क्या हुआ, नोटबंदी के लिए तो हमीं लोग हार्डवर्क कर रहे थे. रिज़र्व बैंक के सुझाव पर ही तो मोदी सरकार ने फैसला लिया है. ऐसा कहा जाता रहा है. इस वक्त भी भारतीय रिज़र्व बैंक के तीन तीन कार्यकारी निदेशक हार्वर्ड से जुड़े हैं. यानी नोटबंदी को लागू करने में हार्वर्ड का भी योगदान है. सिर्फ हार्डवर्क का नहीं. हार्वर्ड वाले नागरिक उड्डयन मंत्री जयंत सिन्हा तो नोटबंदी को ऐतिहासिक ही बता रहे थे. जो दर्शक मेरी तरह हार्वर्ड नहीं गए हैं उनके लिए हमने थोड़ा रिसर्च किया है.

ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी अमरीका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से चार सौ साल पहले बनी थी. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की स्थापना 1636 में हुई थी. भारत में इसके दो सौ साल बाद यानी 1857 में मास यूनिवर्सिटी की स्थापना हुई. नालंदा, तक्षशिला को लेकर भावुक होने वालों से माफी चाहते हुए इतना ही कहना चाहता हूं कि मैं आधुनिक यूनिवर्सिटी के सिलसिले में हार्वर्ड ऑक्सफोर्ड की बात कर रहा हूं. हार्वर्ड के 48 प्रोफेसरों को अलग अलग विषयों में नोबेल पुरस्कार मिल चुका है. अब अगर हमने नोबेल पुरस्कार को भी ठेंगे बराबर समझ लिया है तो कोई बात नहीं, वैसे हार्वर्ड के अर्थशास्त्र से जुड़े 10 प्रोफेसरों को नोबेल पुरस्कार मिल चुका है. यह यूनिवर्सिटी दावा करती है कि यहां से पढ़कर निकले छात्रों ने दुनिया भर में दो करोड़ नौकरियां पैदा की हैं. दुनिया भर में तीन लाख कंपनियों के बोर्ड में हार्वर्ड का पढ़ा हुआ मिल जाएगा. यहां से पढ़कर निकले छात्रों ने 150 देशों में 1 लाख 46,000 मुनाफा कमाने वाली और ग़ैर मुनाफे वाली कंपनियां बनाई हैं. ये सब मैं दिल्ली विश्वविद्यालय वालों को आहत करने के लिए नहीं बता रहा हूं. यहां के तमाम स्कूलों से पढ़कर निकले 3 लाख 75 हज़ार छात्र दुनिया भर के 201 देशों में रहते हैं. बिल गेट्स और फेसबुक के संस्थापक मार्क ज़ुकरबर्ग भी हार्वर्ड के ही हैं. हावर्ड ने एक अध्ययन कराया था कि उसके यहां से पढ़कर निकले लोगों का दुनिया की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ा है. गूगल से ये यह सब जानकारी मिली है.

इसी अध्ययन के तहत हार्वर्ड ने यह जानना चाहा कि उसके यहां के निकले लोग साल भर में कितना राजस्व पैदा कर पाते होंगे. महाराजगंज इंटर कॉलेज को भी ऐसा अध्ययन करना चाहिए. तो हावर्ड को पता पड़ा कि उसके छात्रों की बनाई कंपनियां एक साल में करीब 4 अरब डॉलर सालाना राजस्व पैदा करती हैं, जो जर्मनी की जीडीपी के बराबर है. जर्मनी दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था है. भारत दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था नहीं है. भारत की जीडीपी का आकार करीब ढाई अरब डॉलर है. यानी हार्वर्ड के पौने चार लाख छात्र भारत की जीडीपी से ज्यादा सालाना राजस्व पैदा करते हैं.

प्रधानमंत्री शुरू से कह रहे हैं कि नोटबंदी का ऐसा फैसला है कि बड़े से बड़ा अर्थशास्त्री समझ नहीं पा रहा है. उनकी सरकार के तमाम बड़े अर्थशास्त्री तो नोटबंदी की तारीफ ही कर रहे हैं. जीडीपी के आंकड़ों को लेकर बहस हो रही है, उनकी सत्यता को लेकर चुनौतियां मिलनी शुरू हो गईं हैं लेकिन यह सवाल आप खुद से पूछिये कि दो महीने तक जो खबरें छप रही थीं कि उद्योग धंधों का उत्पादन गिरा है, उपभोग कम हुआ है, छंटनी हुई है, फल सब्ज़ी वाले किसान बर्बाद हुए हैं, तो क्या उस दौरान लोगों ने मीडिया से झूठ बोला. क्या सूरत, दिल्ली और मुंबई से गांव घरों को लौट कर मज़दूर झूठ बोल रहे थे कि उनके यहां काम बंद हो गया है इसलिए गांव आए हैं. जब लोगों के पास कैश नहीं था, तब कैसे अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ी रही, ये सब सवाल तो कोई मेरठ यूनिवर्सिटी वाला ही बता सकता है या वो जो यूनिवर्सिटी गया ही न हो.

प्रधानमंत्री के बयान में रचनात्मकता है, शरारत है और गंभीरता भी है. इसी कड़ी में एक शरारत और हो सकती है. मानव संसाधन मंत्रालय यह सुनिश्चित करे कि हार्वर्ड की कोई भी ब्रांच भारत में न खुले. ऐसी बेकार यूनिवर्सिटी का ब्रांच क्यों खुले. भारत की यूनिवर्सिटी अपनी तरफ से बोर्ड लगा सकती हैं हमारा कोई भी ब्रांच हार्वर्ड से संबंधित नहीं है. एक ही डर है. प्रधानमंत्री के बयान से उत्साहित होकर भारत की यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर ख़ुद को हार्वर्ड से श्रेष्ठ न घोषित कर दें. क्योंकि भारत की यूनिवर्सिटी के ज़्यादातर वाइस चांसलर अर्थशास्त्री न होते हुए भी नोटबंदी का पुरज़ोर समर्थन कर रहे थे. जब राष्ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने मुस्लिम देशों और अन्य देशों से आने वाले छात्रों, शरणार्थियों के आगमन पर रोक लगाई तो इसका विरोध वहां की हार्वर्ड सहित 17 यूनिवर्सिटी ने मिलकर न्यूयॉर्क के फेडरल कोर्ट में केस कर दिया है. कहा है कि इससे अलग अलग जगहों से छात्र नहीं आएंगे तो विचारों के आदान-प्रदान पर असर पड़ेगा. क्या आप भारत में ऐसे किसी भी विश्वविद्यालय का नाम जानते हैं जिसने ऐसा साहस किया हो. अपनी सरकार के ख़िलाफ़ केस किया हो. डीयू ने किया क्या, जेएनयू ने किया क्या.


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