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This Article is From Sep 09, 2014

दिल्ली में सरकार गठन की रस्साकशी

Ravish Kumar
  • Blogs,
  • Updated:
    नवंबर 20, 2014 12:32 pm IST
    • Published On सितंबर 09, 2014 21:28 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 20, 2014 12:32 pm IST

नमस्कार... मैं रवीश कुमार। दिल्ली के उप राज्यपाल ने राष्ट्रपति से बीजेपी को सरकार बनाने का न्योता देने की अनुमति मांगी है। आज जब सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने यह चिट्ठी दिखाई तो सरकार बनाने को लेकर चल रही तमाम बहस फिर से एक दूसरी दिशा में घूम गई।

चार सितंबर की इस चिट्ठी में उप राज्यपाल कहते हैं कि दिल्ली में 17 फरवरी 2014 से राष्ट्रपति शासन लागू है। संवैधानिक परंपराओं के मुताबिक और सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियत इस क़ायदे के मुताबिक कि विधानसभा भंग करने की सिफ़ारिश से पहले एक लोकप्रिय सरकार बनाने की सारी कोशिश कर लेनी चाहिए मैं आभारी होऊंगा अगर भारत के माननीय राष्ट्रपति भारतीय जनता पार्टी को जो अब भी विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी है− न्योता देकर ये जानने की इजाज़त दें कि सरकार गठन में उनकी दिलचस्पी है या नहीं। अगर बीजेपी राज़ी हो जाती है तो मैं उनसे कहूंगा कि वह एक नियत समय के भीतर संभवत: एक सप्ताह के भीतर सदन के सामने स्थायी सरकार बनाने के लिए ज़रूरी शक्ति प्रदर्शन करें। बीजेपी की प्रतिक्रिया देखकर भविष्य की कार्रवाई तय की जा सकती है।

आप जानते हैं कि आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है कि विधानसभा भंग कर चुनाव कराए जाएं। उसी के सिलसिले में आज सुनवाई थी जो अब दस अक्तूबर को होगी। सुप्रीम कोर्ट ने आम आदमी पार्टी के स्टिंग को स्वीकार करने से भी इनकार कर दिया।

पिछले छह महीने में आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी दोनों पर विधायकों के खरीद या लालच देने के आरोप लग चुके हैं। आम आदमी पार्टी ने सोमवार को एक स्टिंग कर कथित रूप से सबूत भी दे दिया कि बीजेपी के उपाध्यक्ष उसके विधायक को खरीदने का प्रयास कर रहे थे। बीजेपी ने कहा कि उपाध्यक्ष इसके लिए अधिकृत नहीं हैं और उन्हें कारण बताओ नोटिस पकड़ा दिया।

आज अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि कम से कम पंद्रह विधायकों से संपर्क साधने का प्रयास किया गया है। ऐसा ही आरोप आम आदमी पार्टी के नेताओं पर कांग्रेस के विधायक लगा चुके हैं। ऐसे आरोप प्रमाणित नहीं हुए हैं। मगर आम आदमी पार्टी का कोई विधायक नहीं टूटा है और न बीजेपी का। बीच बीच में कांग्रेस के ही विधायकों के मोबाइल फोन बंद होने की ख़बरें आती रहती हैं।

भारतीय राजनीति में जोड़ तोड़ से सरकार बनाने की ऐसी मिसालें हैं कि उनकी दुहाई देकर कुछ भी करना अतीत की उन करतूतों को बैक डेट में मान्यता देने जैसा होगा। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने साफ कहा है कि वे चुनाव के पक्ष में हैं। फिर बीजेपी से सरकार पूछने का मतलब क्या तोड़-फोड़ की किसी तरकीब को रास्ता नहीं देना है? बीजेपी ने भी ये नहीं कहा है कि वह सरकार बनाना चाहती है। फिर उप राज्यपाल के पास बीजेपी को बुलाने के लिए क्या आधार है?

इस वक्त बीजेपी-अकाली गठबंधन के पास 29 और आप के पास 27 विधायक हैं। बहुमत के लिए 34 विधायक चाहिए यानी बीजेपी को 5 और चाहिए। बीजेपी 12 दिसंबर 2013 को लिखित रूप में कह चुकी है कि वह सरकार नहीं बनाएगी। तब उसके बाद 32 विधायक थे और चार विधायक ही चाहिए थे।

तो क्या बीजेपी ने अब कोई ताज़ा लिखित या मौखिक सहमति दी है। फिर किस आधार पर उप राज्यपाल बीजेपी को सरकार बनाने का न्यौता दे रहे हैं।

दिल्ली में सरकार बनाना ज़रूरी है तो लोकसभा चुनावों के बाद खाली हुई तीन सीटों के लिए उप चुनाव क्यों नहीं कराए गए। क्या इसलिए कि सदन की क्षमता 67 रहने से बहुमत के लिए कम विधायकों की ज़रूरत होगी। फरवरी 2005 में बिहार में विधानसभा का चुनाव हुआ तो किसी को बहुमत नहीं मिला।

तब बिहार के राज्यपाल ने 6 मार्च 2005 को राष्ट्रपति को रिपोर्ट दी कि नई विधानसभा स्थगित की जाए। 21 मई 2005 को राज्यपाल ने फिर रिपोर्ट भेजी कि किसी भी फार्मूले से सरकार बनती नहीं दिख रही है और विधायकों के खरीद फरोख्त की आशंका है लिहाज़ा विधानसभा भंग हो और लोगों को सरकार चुनने का एक और मौका मिले। राष्ट्रपति ने विधानसभा भंग कर दी।

इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विधानसभा भंग करने का फैसला असंवैधानिक है, लेकिन विधानसभा बहाल नहीं की। अदालत का जब फैसला आया तब बिहार में दोबारा चुनाव शुरू हो चुका था।

कौल और शकधर की किताब में लिखा है कि विधानसभा भंग करने के फैसले को असंवैधानिक करार देते हुए अदालत ज़मीनी हकीकत और अन्य महत्वपूर्ण कारकों पर भी विचार कर सकती है और परिस्थितियों के अनुसार राहत में बदलाव कर सकती है।

क्या दिल्ली के उप राज्यपाल को विधायकों के ख़रीद फरोख्त की बिल्कुल आशंका नहीं है। क्या उप राज्यपाल को इसका संज्ञान लेकर राष्ट्रपति को अवगत नहीं कराना चाहिए था। राष्ट्रपति को जो चिट्ठी लिखी गई है वह दोनों छोर से खुली हुई है। बीजेपी से पूछेंगे और बहुमत के लिए हफ्ते भर का समय देंगे। यह बहुमत कहां से आएगा और इसका तरीका जायज हो क्या राज्यपाल या उप राज्यपाल को किसी दल को न्योता देने से पहले इससे संतुष्ट नहीं होना चाहिए। संविधान तो यही कहता है कि राज्यपाल या उप राज्यपाल को इस बात से संतुष्ट होना होता है कि जिस व्यक्ति को सरकार बनाने के लिए बुला रहे हैं उसके पास बहुमत है या नहीं।

अब सवाल आता है सीक्रेट बैलेट का। यह शब्द संविधान के किसी भी प्रावधान में नहीं है। जिस एनसीटी एक्ट के सेक्शन 92 की व्याख्या हो रही है उसमें सीक्रेट बैलेट नहीं लिखा है। उप राज्यपाल विधानसभा को संदेश भेज सकते हैं यह प्रावधान तो है, लेकिन प्रावधान में यह नहीं लिखा है कि सरकार बनाने के संदर्भ में संदेश भेज सकते हैं। सीक्रेट बैलेट अगर कहीं हैं तो क्या वह दलबदल कानून के खिलाफ नहीं है?

बीजेपी ने अभी तक ये नहीं कहा है कि उसके पास सरकार बनाने के लिए ज़रूरी संख्या है। यह भी नहीं कहा है कि वह सरकार नहीं बनाएगी और चुनाव होने चाहिए। तो ऐसे में क्या उप राज्यपाल को बीजेपी से नहीं पूछना चाहिए? क्या दिल्ली में वाकई सरकार बनाने की कोई स्थिति है? अगर है तो यह तोड़ फोड़ खरीद बिक्री के अलावा क्या है? उप राज्यपाल इस आशंका से अनजान होकर क्या किसी को सरकार बनाने के लिए बुला सकते हैं?

(प्राइम टाइम इंट्रो)

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