विज्ञापन
This Article is From Dec 03, 2015

प्राइम टाइम इंट्रो : झीलों की जगह पर हुआ अतिक्रमण

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 23, 2015 14:04 pm IST
    • Published On दिसंबर 03, 2015 21:36 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 23, 2015 14:04 pm IST
चीजें वैसी ही चलती रहेंगी लेकिन हमारी ख़ूबी ये है कि हम एक दिन के लिए तो जागते हैं। जब जागते हैं तब दिन भर के लिए जागते हैं। उसके बाद चीज़ें फिर से वैसी ही चलने लगती हैं। भारत की राजधानी दिल्ली में 1997-98 के आंकड़े के हिसाब से 355 तालाब थे और 44 झीलें थीं।

इंटैक नाम की संस्था ने जब झीलों को लेकर सर्वे किया तो पता चला कि पंद्रह साल में आधी से ज़्यादा झीलें ग़ायब हो चुकी हैं। इन सब पर बिल्डरों ने सरकार की अनुमति से मकान बना लिये हैं। मकानों की कीमत बढ़ती गई तो लोगों ने तालाब तक भर डाले। बस आपको याद दिलाना चाहते हैं कि दो साल पहले चेन्नई की तरह दिल्ली का इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा भी मानसून की बरसात में डूब चुका था।

यात्रियों को घुटने भर पानी में चलना पड़ा था। जिस दिन ये कांड हुआ उस दिन दिल्ली में 36.6 मिमि बारिश हुई थी लेकिन हवाई अड्डे के पास 117.8 मिमि बारिश हो गई थी। वो भी साढ़े चार घंटे में।अधिकारियों की तरफ से अजीब तर्क दिये गए कि बारिश ज़रूरत से ज्यादा हो गई और आस पास के इलाकों में खराब ड्रेनेज यानी पानी की निकासी की व्यवस्था के कारण हवाई अड्डे में पानी भर गया।

जैसे अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाने से पहले लोगों को ध्यान ही नहीं आया कि यहां बारिश भी हो सकती है। कई बार हम सौ साल के रिकार्ड के आधार पर कहने लगते हैं कि इतनी बारिश साठ साल बाद हुई या सौ साल बाद हुई। करोड़ों साल की उम्र है धरती की। क्या हम सौ साल के आंकड़े के हिसाब से दावा कर सकते हैं। ज़ाहिर है एयरपोर्ट बनाते समय इन सब बातों का कितना ध्यान रखा जाता है, अब इस पर कुछ नहीं कहेंगे।

यह ज़रूर कहना चाहेंगे कि जिस जगह पर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है वहां कभी दस बड़े तालाब हुआ करते थे। जो शायद इतनी बारिश के पानी को सोख लेते होंगे। अपने आंगने में जमा कर लेते होंगे। अब तालाब भर कर हवाई अड्डा बन जाए तो पानी नीचे कैसे जायेगा। 9000 करोड़ के बजट वाले हवाई अड्डा के सामने पुरखों की सहज बुद्धि के आधार पर बने तालाबों की क्या औकात।

यह प्रमाण है इस बात का कि हम इसके बाद भी नदियों की ज़मीन पर निर्माण कार्य करेंगे ही। टी थ्री डूब जाता है जबकि वो नदी के किनारे नहीं है। फिर भी जब हवाई अड्डा डूब जाए तो समझिये कि विकास के नाम पर हमने जो किया है उसकी सज़ा भुगतने का वक्त आ गया है। बल्कि हम किश्तों में भुगत रहे हैं। कोसी नदी की बाढ़ में भुगत रहे हैं, केदारनाथ की त्रासदी की सज़ा भुगत चुके हैं, झेलम नदी की सज़ा भुगत चुके हैं।

ये चेन्नई एयरपोर्ट है। इससे पहले हम दिल्ली एयरपोर्ट के भीतर का नजारा देख ही चुके। एयर फोर्स के हेलिकाप्टर से ये तस्वीर ली गई है। जानकार कहते हैं कि जब भी नदी में बाढ़ आएगी, एयरपोर्ट को नुकसान उठाना ही पड़ेगा क्योंकि यह एयरपोर्ड अडियार नदी के फ्लड बेसिन पर बना है। फ्लड बेसिन मतलब बाढ़ के दिनों में नदी का पानी जहां तक जाता है। यह इलाका नदियां अपने सदियों के अनुभव के आधार पर तय करती हैं।

आप किनारे कुछ भी बना लीजिए, वो कितनी भी सूख जाएं लेकिन एक न एक दिन लौट कर आती ही हैं। यमुना नदी का पानी भी दिल्ली में भर जाता है और मिठी नदी का पानी भी मुंबई को डुबो देता है। देश का यह चौथा बड़ा एयरपोर्ट है। हर दिन यहां पंद्रह लाख यात्री आते हैं। नदी के ऊपर रनवे होने का गौरव चेन्नई को ही प्राप्त है और अब नदी को भी एयरपोर्ट को डुबो देने का गौरव प्राप्त हो चुका है।

आपको 2008 में बिहार में कोसी नदी में आई बाढ़ का तो याद ही होगा। राष्ट्रीय मीडिया को जब तक खबर लगती तब तक कोसी बीस लाख लोगों को विस्थापित कर चुकी थी। तीन लाख घरों को तबाह कर दिया था। कोसी में बाढ़ आएगी इस पर किताब लिखने वाले अब रिटायर करने की उम्र में आ चुके होंगे। क्यों बाढ़ आएगी हम सब जानते हैं मगर तबाही के कुछ दिनों बाद भूल जाते हैं।  

कारण सिम्पल है। कोसी नदी के दोनों तरफ बांध बना दिया गया। नदी का गाद जमा होते होते नदी बांध के ऊंचाई से ऊपर बहने लगी। बारिश के कारण पानी इतना जमा हो गया कि कई जगहों पर पानी की रफ्तार से बांध में दरार आ गई। सबको पता था कि कोसी नेपाल से भारी मात्रा में गाद लेकर आती है।

सबको यह भी पता था कि बारिश के समय कोसी आस पास के इलाकों में फैल जाती है और तबाही भी मचाती है। लेकिन बांध बनते ही इसके फैलाव वाली जगह में लोग घर बनाने लगे। पहले इस इलाके के बच्चे बच्चे को तैरना आता था। लोगों के पास नावें होती थीं क्योंकि कोसी की बाढ़ का पता था। मगर बांध पर इतना भरोसा हो गया कि तैरने वाला समाज तैरना भूल गया। कोसी की गाद निकालना किसी के बस की बात नहीं।

तबाही ऊपर से नहीं आती है। हम तबाही का कारण खुद से जुटा कर रखते हैं। हमारा सारा फोकस राहत और बचाव कार्य के बहादुरी के किस्सों पर ही टिक जाता है और उसी की वाहवाही के बाद हम सामान्य हो जाते हैं। सरकार को भी बचकर निकल जाने का मौका मिल जाता है। चेन्नई की बाढ़ के बाद भी हम यमुना नदी के किनारे बसे मकानों को देखने नहीं जाएंगे। आप निजामुद्दीन पुल या एक्सप्रेस वे देखियेगा तो पता चलेगा कि यमुना के बहाव क्षेत्र में कितने मंदिर और मकान बन चुके हैं। पर क्या आपको लगता है कि यह बात आप तभी जानेंगे जब मीडिया बतायेगा।

आप भी तो देखकर अनदेखा कर देते हैं। अंग्रेजों के समय तक मद्रास प्रेसिडेंसी में 53,000 तालाब थे। वहां सन 1885 में सिर्फ 14 ज़िलों में कोई 43,000 तालाबों पर काम चल रहा था। ये जानकारी मैंने अनुपम मिश्र की किताब से ली है जो उन्होंने 1993 में लिखी थी। मद्रास प्रेसिडेंसी ब्रिटिश हुकूमत की प्रशासनिक ईकाई थी। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, केरल और कर्नाटक का कुछ हिस्सा मद्रास प्रेसिडेंसी में आते थे। क्या आज ये तालाब बचे होंगे।

आप जवाब जानते हैं। नेताओं ने लोगों को टीवी और मंगलसूत्र दे दिये। बिल्डरों ने इन तालाबों को भर कर प्लाट काट कर लोगों को बेच दिया। लोगों ने सपना समझ कर मकान खरीदा, मकान मौत का सामान बन गया। चेन्नई की इस अडयार नदी को देखिये। आम तौर पर किसी भी नदी की उम्र लाखों करोड़ों साल होती है। हम बीस तीस साल के अनुभव के देखकर उसके फैलाव की ज़मीन को भर देते हैं।

जब बारिश हो जाती है तो हल्ला करने लगते हैं कि सौ साल में ऐसी बारिश नहीं हुई। पर क्या आप और हम या कोई भी दावा कर सकता है कि ऐसी बारिश हज़ार साल में बीस बार नहीं हुई होगी। जब होती होगी तब यह अडयार नदी कहां कहां फैलती होगी। क्या अडयार नदी के लिए फैलने की ऐसी जगह बची होगी।

गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में जो बयान दिया है उसमें कारण तो है मगर वो कारण नहीं है जिसके कारण रिज़र्वायर बारिश के पानी को संभाल नहीं पाया। रिज़र्वायर अंग्रेज़ी का शब्द है जो अंग्रेज़ों के साथ आया। उससे पहले तमिलनाडु में जलाशयों को ऐरी कहा करते थे। गृहमंत्री ने नहीं कहा कि अडियार के दोनों तरफ के रास्तों पर भी अतिक्रमण हो चुका है।

अगर तालाब, नदी के किनारे की दलदल ज़मीन बची होती तो बारिश के पानी को सोखने का रास्ता मिलता, बहने का रास्ता मिलता। chamber cum reservoir में safety से अधिक पानी होने की वजह से बाद में 25000 क्यूसेक पानी छोड़ा गया है। ये पानी अडियार नदी में आने से उसका जलस्तर और बढ गया है। पिछले 24 घंटों में चेन्नई में भी बरसात कम हुई है।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
प्राइम टाइम इंट्रो, रवीश कुमार, चेन्नई, चेन्नई बारिश, चेन्नई बाढ़, Chennai Rains, Chennai, Prime Time Intro, Ravish Kumar
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com