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This Article is From Apr 05, 2017

प्राइम टाइम इंट्रो : क्या रैंकिंग सही तस्वीर पेश करती है किसी कॉलेज या शिक्षा व्यवस्था की?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 05, 2017 21:36 pm IST
    • Published On अप्रैल 05, 2017 21:36 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 05, 2017 21:36 pm IST
दावे के साथ तो नहीं कह सकता मगर इंडिया टुडे, आउटलुक और वीक जैसी अंग्रेजी की साप्ताहिक पत्रिकाओं ने सरकारी और प्राइवेट कॉलेजों की रेटिंग शुरू की. पहली बार इंडिया टुडे ने कॉलेजों की रैंकिंग कब की थी इसका तो ध्यान नहीं मगर दस बारह साल से यह पत्रिका रेटिंग तो कर ही रही है. हर साल बेस्ट कॉलेज का विशेषांक आता था. नंबर वन कॉलेज की तस्वीर होती थी. खुशहाल छात्रों की तस्वीर होती थी, जिन्हें देखकर लगता था कि भारत में भी नंबर वन कॉलेज हैं. हम सबने इन विशेषांकों को देखा ही होगा. इसके बाद कई एजेंसियां और न्यूज़ चैनल नंबर वन, नंबर टू बनाने लगे जिनमें प्राइवेट कॉलेजों का बोलबाला होने लगा. फिर भी कुछ कॉलेज तमाम तरह की सूचियों में स्थायी भाव से बने रहे. ऐसा नहीं है कि उस वक्त सरकार कॉलेजों की ग्रेडिंग नहीं कर रही थी.

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यूजीसी के तहत national assessment and accredition council naac की संस्था भी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की ग्रेडिंग कर रही है. 1994 में बेंगलुरु में नैक का मुख्यालय बनाया गया था, कोई भी कॉलेज, विश्वविद्यालय एक लाख, डेढ़ लाख, तीन लाख और छह लाख तक सर्विस टैक्स के साथ फीस जमाकर, नैक की टीम को आमंत्रित करवा सकता है कि वो आए और उनके संस्थान की जांच कर ग्रेडिंग दे. 7,674 कालेज हैं और 313 विश्वविद्यालय. इनमें से 2014-15 में 47 विश्वविद्यालयों और 807 कॉलेजों ने नैक से अपनी ग्रेडिंग कराई है. ए ग्रेड वाले को पांच-पांच साल पर ग्रेडिंग करानी होती है और ए से नीचे वाले को तीन-तीन साल में ग्रेडिंग करानी होती है.

नैक की कई रिपोर्ट आ चुकी हैं. इससे शिक्षा की गुणवत्ता में क्या सुधार हुआ है, इसका मूल्यांकन टीवी की बहस में संपूर्ण रूप से तो नहीं हो सकता है मगर हम इस संदर्भ में यह सवाल कर सकते हैं कि जब पिछले तीन बजट से ही शिक्षा का बजट कम होता जा रहा है तो नैक की ग्रेडिंग के बाद भी इन संस्थानों में सुधार किस हद तक हो सका होगा. पिछली तीन बजट से पहले के तमाम बजटों का भी यही हाल रहा है. हम शिक्षा में खर्च कम करते जा रहे हैं. क्या बिना ख़र्च के ही शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ सकती है. कॉलेज की ग्रेडिंग में सुधार हो सकता है. हमें यह भी देखना होगा कि नैक के मूल्यांकन की यात्रा में महानगरों के कॉलेज या विश्वविद्यालय की तुलना में कस्बों ज़िलों और राज्यों की राजधानियों के कॉलेजों ने कितना सुधार किया है. क्या वे लगातार पिछड़ते ही चले गए हैं.

केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने 2016 से रेटिंग की एक नई व्यवस्था शुरू की है. National Institutional Ranking Framework की दूसरी रिपोर्ट सामने आई है. ये नैक से अलग है.  नैक में ग्रेडिंग होती है यानी एक ग्रेड में दस कॉलेज हो सकते हैं. रैंकिंग में आपको नंबर वन या नंबर टू जानने को मिलेगा.  नैक के अलावा रैंकिंग की जरूरत क्यों पड़ी. इससे हम क्या अलग हासिल करने जा रहे हैं. या फिर नैक की जो संस्था इतने वर्षों में विकसित हुई है वो समाप्त हो जाएगी. रेटिंग की यह नई व्यवस्था धीरे-धीरे विकसित हो रही है, इसलिए बहुत से कॉलेज आवेदन भी नहीं कर पाए. लॉ कालेज या मेडिकल कालेज की इस साल रेटिंग नहीं निकली है. बहुत से कॉलेज नैक की तैयारी में ही उलझे रहे, नई रेटिंग के लिए आवेदन नहीं कर सके, फिर भी  इस बार 3300 उच्च संस्थानों ने इसमें हिस्सा लिया. इन 3300 में चोटी के सौ कॉलेजों की सूची निकाली गई है.

कॉलेजों की नई रेटिंग की सूची देख रहा था. इसमें दूरदराज़ के कुछ कॉलेजों को भी पहले सौ में जगह मिली है. पहले सौ में नहीं बल्कि चोटी के दस और बीस कॉलेजो में मिली है. दिल्ली विश्वविद्यालय में सारे कॉलेज रेटिंग सिस्टम में आवेदन नहीं कर सके मगर पूरे भारत में चोटी के बीस कॉलेजों में दिल्ली विश्वविद्यालय के ऐसे कॉलेजों के नाम हैं जो कैंपस के नहीं माने जाते हैं और पारंपरिक रूप से मशहूर कॉलेजों की सूची में नहीं आते थे. स्टीफंस, हिन्दू और रामजस सहित कई कॉलेज ने नई रेटिंग में हिस्सा नहीं लिया था फिर भी भारत के सौ कॉलेजों में से
आत्माराम सनातन धर्म कॉलेज पांचवें नंबर पर है. दयाल सिंह कालेज आठवें नंबर है. दीनदयाल उपाध्याय कॉलेज 9 वें नंबर पर है. केशव महाविद्यालय 15 वें नंबर पर है. आचार्य नरेंद्र देव 20 वें नंबर पर है.

इस जुलाई में जब दिल्ली विश्वविद्यालय में एडमीशन की प्रक्रिया शुरू होगी तो छात्र इस रैंकिंग को कितना महत्व देंगे, क्या इसका असर कॉलेज के कट आफ लिस्ट पर भी पड़ेगा. अभी हमने आपको बताया कि मानव संसाधन मंत्रालय की एक संस्था नैक भी ग्रेडिंग करती है. नैक का पूरा नाम हुआ national assessment and accredition council, मानव संसाधन मंत्रालय ने 2015 में रैंकिंग के लिए एक नई संस्था बनाई जिसका नाम है National Institutional Ranking Framework . 17 जनवरी 2017 के हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली विश्वविद्यालय का एक भी कॉलेज ए प्लस नहीं पा सका है. डीयू के कॉलेज अधिकतम ए प्लस ही पा सके. डबल प्लस किसी को नहीं मिला है.

नैक की सूची में आचार्य नरेंद्र देव कालेज को ए ग्रेड मिला है मगर nifr की रैंकिंग में 20 वें नंबर पर है.  नैक की सूची में गुरुनानक देव खालसा कॉलेज को बी प्लस प्लस मिला है. nifr की रैंकिंग में इस कॉलेज का स्थान पूरे भारत में 46 वां है. नैक की रेटिंग में दीनदयाल उपाध्याय कॉलेज को बी ग्रेड मिला है मगर नई रैंकिंग में यह कॉलेज पूरे भारत में 9 वें नंबर पर है.

यह कैसे हो सकता है? जो कॉलेज नैक के टाप टेन में नहीं है वो आल इंडिया में नंबर वन और जो कालेज नैक की सूची में डीयू के 62 कॉलेजों में 9 वां स्थान रखता है वो आल इंडिया लेवल पर 20 वें नंबर पर है. भारत के नंबर वन कॉलेज दुनिया में चोटी के सौ कॉलेजों में भी नहीं आ पाते हैं. 2015-16 की टाइम्स हायर एजुकेशन रैंकिंग की सूची में भारत का एक भी कॉलेज या यूनिवर्सिटी नहीं है. 2015-16 की टाइम्स हायर एजुकेशन रैकिंग की सूची में भारत की रैंकिंग में नंबर वन स्थान पाने वाला इंडियन इस्टीट्यूट आफ साइंस 251 से 300 के बीच है. तीसरे नंबर पर आया आईआईटी टाइम्स रैंकिंग में 351 से 400 के बीच है.

जब दुनिया में मुल्कों की रेटिंग हो रही है तो कॉलेजों की क्यों नहीं होगी. हम टीवी वाले तो टीआरपी के ही मारे हैं. एलियन यमुना खादर में आकर गाय चरा रहे हों या बगदादी को हर रात मारते रहिए, हो सकता है कि कोई चैनल नंबर वन हो जाए. हमारे पेशे में नंबर वन का मतलब पत्रकारिता से हो जरूरी नहीं है. शायद यूनिवर्सिटी में नंबर वन का मतलब पढ़ाई-लिखाई और बेहतर रिसर्च से ही होता हो. लेकिन क्या विश्वविद्यालयों या कॉलेजों की रेटिंग को भी इस नज़र से आप देख सकते हैं. क्या रेटिंग किसी कॉलेज या शिक्षा व्यवस्था की सही तस्वीर पेश करती है. बताया गया कि रेटिंग के लिए नियम काफी सख्त किए गए हैं. इसके लिए कॉलेजों को हलफनामा देना पड़ा है. अब उस हलफनामे को भी पब्लिक किया जाता तो पब्लिक जांच कर सकती थी.

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