प्राइम टाइम इंट्रो : विजय माल्या पर कोर्ट ने की सख़्ती

प्राइम टाइम इंट्रो : विजय माल्या पर कोर्ट ने की सख़्ती

आपके स्क्रीन पर दो तस्वीरें हैं। एक किसान की है और दूसरा उद्योगपति विजय माल्या की है। एक खेती के लिए बैंकों से कर्ज़ लेता है और एक बिजनेस के लिए। एक पचास-साठ हज़ार रुपये के कर्ज़ को बर्दाश्त नहीं कर पाता, और एक हज़ारों करोड़ रुपये के कर्ज़ उठा लेता है। खेती और बिजनेस दोनों के लिए कर्ज़ ज़रूरी है। मगर जब खेती चौपट होती है तो किसान फांसी के फंदे पर पहुंच जाता है। बिजनेसमैन का धंधा डूबता है तो उसकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वो अपने नाम से नहीं, कंपनी के नाम से कर्ज़ लेता है।

2014 में 5642 किसानों ने आत्महत्या कर ली। हिन्दू अखबार की एक रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र में 2001 से लेकर 2015 तक 20,504 किसानों ने आत्महत्या की है। 26 फरवरी 2016 के इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में लिखा है कि महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में 2015 में 1100 किसानों ने आत्महत्या की और इस साल जनवरी-फरवरी में 139 किसानों ने आत्महत्या की है। कर्ज़ न चुका पाना आत्महत्या का बड़ा कारण है।

2013 से 2015 के बीच भारत के सरकारी बैंकों ने बड़ी-बड़ी कंपनियों का 1.14 लाख करोड़ का डूबा हुआ कर्ज़ माफ़ कर दिया। देश के क़रीब आधे किसान कर्ज़ में डूबे हैं। इनमें से 42 फीसदी बैंकों के कर्ज़दार हैं और 26 फीसदी महाजनों के कर्ज़दार हैं। 31 मार्च, 2015 तक देश के टॉप पांच बैंकों का 4.87 लाख करोड़ रुपया सिर्फ़ 44 बड़ी कंपनियों पर बकाया था। ये सभी बकाएदार वो हैं जिन पर पांच हज़ार करोड़ से ज़्यादा का बकाया है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने ऐलान किया है कि 21,313 करोड़ का कर्ज़ अब वापस नहीं मिल सकता। यदि आप किसान हैं तो याद कीजिए कि किस बैंक ने आपका लोन कब माफ किया है। राइट ऑफ किया है कि फसल और बाज़ार की मार से आपको इतना नुकसान हो गया है कि आप कर्ज़ चुका ही नहीं सकते लिहाज़ा बैंक इतने हज़ार करोड़ का कर्ज बैड लोन घोषित करती है।

किसानों को उपकार फिल्म का गाना सुनाया जाता है और कंपनियों पर लाखों करोड़ों के उपकार किये जाते हैं। किसान और कंपनी में अंतर होता है। दोनों देश के लिए बैंकों से कर्ज़ लेते हैं मगर कर्ज़ न चुका पाने की स्थिति में दोनों के अलग कानून है। लोन न चुका सकने वाली कंपनियों को बैंक विलफुल डिफॉल्टर घोषित कर देते हैं। एक प्रक्रिया होती है वसूली की, जितनी हो सकती है होती है न हुई तो उसे माफ कर दिया जाता है।

मोटा मोटी मामला यह है कि विजय माल्या ने एक कंपनी बनाई किंगफिशर एयरलाइन्स। यह कंपनी अब बंद हो चुकी है और इस पर 17 कर्ज़दाताओं के 7800 करोड़ रुपए बकाया हैं। स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के 1600 करोड़ रुपया किंगफिशर पर बाकी हैं। बाकी कर्ज़दाताओं में पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, ककनरा बैंक, बैंक ऑफ़ इंडिया, सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया, फेडरल बैंक, यूको बैंक और देना बैंक शामिल हैं। किंगफिशर एयरलाइंस ने घाटे में जाने के बाद जनवरी 2012 से कर्ज़ चुकाना जाना बंद कर दिया था। पिछले साल स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने माल्या को विलफुल डिफॉल्‍टर यानी जानबूझकर कर्ज़ ना चुकाने वाला घोषित कर दिया। पंजाब नेशनल बैंक ने भी विजय माल्या उनकी कंपनी यूनाइटेड ब्रुअरीज़ होल्डिंग्स और किंगफिशर एयरलाइंस को विलफुल डिफॉल्‍टर घोषित किया था।

इस बीच विजय माल्या ने शराब कंपनी यूनाइटेड स्पिरिट्स लिमिटेड को लंदन में लिस्टेड कंपनी डियाजिओ को अपनी हिस्सेदारी बेचने का क़रार किया। इसके तहत डियाजिओ ने 515 करोड़ रुपए विजय माल्या को चुकाने हैं। इसके बाद इस कंपनी की सारी देनदारी से माल्या मुक्त हो जाएंगे। माल्या साहब ने इस डील को स्वीटहार्ड डील कहा है जिसके बाद वे लंदन में अपने परिवार के साथ समय व्यतीत करना चाहते हैं।

इस बीच स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया विजय माल्या के ख़िलाफ़ डेट रिकवरी ट्रि‍ब्यूनल चला गया। SBI ने कहा कि डियाजिओ कंपनी से यूपी ग्रुप के प्रमोटर विजय माल्या को 515 करोड़ रुपए मिल रहे हैं, उस पर कर्ज़दारों का पहला हक़ होना चाहिए। बैंक ने DRT से कहा है कि माल्या के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाए। DRT के जज ने प्राथमिकता के आधार पर सबसे पहले उस याचिका को लिया जिसमें डियाजिओ से मिली रकम पर पहला हक़ कर्ज़दाताओं का बताया गया है। विजय माल्या के वकील होला ने कहा कि उनके मुवक्किल रिलायंस जैसी बड़ी कंपनियों के मुक़ाबले बहुत छोटे डिफ़ॉल्टर हैं। उनका आरोप है कि बैंक छोटे डिफॉल्टरों को परेशान कर रहे हैं जबकि बड़े डिफॉल्टरों को छोड़ रहे हैं। उन्होंने रिज़र्व बैंक का हवाला देते हुए कहा कि बैंक बड़ी मछलियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं करते हैं। कई कंपनियों ने तो चालीस हज़ार करोड़ तक का डिफ़ॉल्ट किया है और उन्हें कुछ नहीं होता।

7800 करोड़ का कर्जदार अपने को छोटा डिफॉल्टर बताता है। चालीस हज़ार करोड़ वाले डिफॉल्टर की तरफ इशारा करता है। एक आप हैं जो पचास साठ हज़ार के कर्ज़ का बोझ नहीं उठा पाते हैं। इसलिए आप 'उपकार' फिल्म देखिये। टीवी मत देखिए। बैंकों ने विजय माल्या को लेकर सक्रियता तो दिखाई है लेकिन क्या वे बड़े लेनदारों के साथ भी वैसा ही कर रहे हैं।

अगर ये सारी वसूली हो जाए तो काला धन से पहले लोन धन से ही सबके खाते लहलहा उठेंगे। विजय माल्या ने भी एक पत्र लिखकर अपना पक्ष रखा है। माल्या ने लिखा है कि मीडिया में उनके ख़िलाफ अभियान चल रहा है। उन्होंने किंगफिशर एयरलाइन्स कंपनी अंतरराष्ट्रीय सलाहकारों और एसबीआई कैपिटल मार्केट के मूल्यांकन के बाद लॉन्‍च की थी। दुर्भाग्यपूर्ण है कि कंपनी बाज़ार और सरकार की नीतियों के कारण नहीं चल सकी। 31 जनवरी 2012 को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने भारतीय रिज़र्व बैंक को यही लिखा है। ऐसा नहीं है कि किंगफिशर ने लोन नहीं चुकाये हैं। 1250 करोड़ रुपये अलग-अलग मामलों में कर्नाटक हाई कोर्ट में जमा हैं। शेयरों को बेचकर 1244 करोड़ नकद राशि रिकवर की गई है। कुल मिलाकर 2494 करोड़ की रिकवरी हो चुकी है। मैं बैंकों से लगातार संपर्क में हूं और एक ही बार में लोन देन रफा दफा करने की कोशिश कर रहा हूं। मैंने व्यक्तिगत रूप से कोई कर्ज़ नहीं लिया है। न ही मैं डिफॉल्टर हूं। मैं हर कानूनी प्रक्रिया में मदद कर रहा हूं। मुझे बैकों के एनपीए का पोस्टर ब्वॉय बनाया जा रहा है जबकि बैंकों का एनपीए 11 लाख करोड़ है। कई लेनदार ऐसे हैं जिन्होंने किंगफिशर से ज्यादा पैसे लिये हैं। इनमें से किसी डिफॉल्टर को विलफुल डिफॉल्टर नहीं बनाया गया है। मैंने अदालत में इसे चुनौती दी है। हमारा भी तो पैसा डूबा है। हमने किंगफिशर एयरलाइन्स में 4000 करोड़ निवेश किये थे। बैंकों को तो कुछ न कुछ हिस्सा मिल भी गया है।

क्या बैंक सिर्फ विजय माल्या को निशाना बना रहे हैं। उन्हें ही विलफुल डिफॉल्टर घोषित कर रहे हैं। 26 फरवरी के मेल टुडे अखबार के अनुसार सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया ने रियल एस्टेट की कंपनी यूनिटेक के खिलाफ सार्वजनिक नोटिस जारी किया है कि उन पर 38 करोड़ 53 लाख रुपये का बकाया है। यूनिटेक का जवाब छपा था कि हमने 300 में से 264 करोड़ चुका दिये हैं। बाकी की रकम जल्दी चुका दी जाएगी। इसलिए सही नहीं है कि सिर्फ माल्या साहब को निशाना बनाया जा रहा है। यह सवाल ज़रूर है कि वो कौन लोग हैं जिन पर बैंकों के लाखों करोड़ बाकी हैं और उनके ख़िलाफ युद्ध स्तर पर कार्रवाई नहीं होती है।

इंडियन एक्सप्रेस ने आरटीआई के ज़रिये पता किया है कि सरकारी बैंकों ने पिछले तीन साल में 1 लाख 14 हज़ार करोड़ रुपये माफ किये हैं। जिसे अंग्रेजी में राइट ऑफ कहते हैं। भारत के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस टी.एस. ठाकुर की बेंच ने कहा है कि लोगों पर सरकारी बैंकों के हज़ारों करोड़ रुपये के कर्ज़ हैं। यह सबसे बड़ा फ्रॉड है। 2015 में दस बड़े बैंकों ने 40,000 करोड़ के कर्ज़ माफ कर दिये। कोर्ट ने ऐसे लेनदारों की सूची भी मांगी है जिन्होंने 500 करोड़ से अधिक के कर्ज़ लिये हैं।

क्या किसी किसान ने ऐसी कोई ख़बर पढ़ी है कि उसका लोन माफ हो गया। इसलिए उसे उपकार फिल्म का गाना सुनना चाहिए और उन्हें मनोज कुमार साहब का शुक्रिया अदा करना चाहिए। दो बीघा ज़मीन न देंखें बेवजह तनाव हो जाएगा।

पिछले साल दिसंबर जब माल्या साहब साठ साल के हुए तो गोआ में एक पार्टी दी। सिर्फ 600 लोगों को बुलाकर पांच सितारा होटल में ठहराया और जैसी पार्टी होती है वैसी हुई होगी। इसे लेकर काफी हंगामा हुआ कि आपकी कंपनी पर हज़ारों करोड़ के कर्ज़ है और आप हैं कि शाही तरीके से जन्मदिन मना रहे हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक के गर्वनर रघुराम राजन साहब ने भी कहा था कि आप पर सिस्टम का लोन है। ऐसा लगता है कि आप लोगों को मैसेज दे रहे हैं कि आपको इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर आप मुश्किल में हैं तो आपको अपने खर्चे कम करने चाहिए। माल्या साहब के पास आईपीएल की एक टीम है और उन्होंने साढ़े तेरह करोड़ देकर कैरेबिनयन क्रिकेट लीग में टीम खरीदी है। किंगफिशर के कर्मचारियों को वेतन का बकाया नहीं मिला है। उन्होंने माल्या को खुला पत्र लिखा है कि माल्या जी आपके हाथ ख़ून से रंगे हैं।

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वित्त मंत्री कहते हैं कि बैंकों के पास बकाया राशि वसूलने के पर्याप्त अधिकार हैं और सरकार उनके इस अधिकार क्षेत्र में कोई राजनीतिक दखलंदाज़ी नहीं कर रही है। क्या बैंक उस अधिकार का इस्तमाल कर रहे हैं। कहीं सरकार बैंकों को बचाने के नाम पर इन बड़े लेनदारों को तो नहीं बचा रही है।