नई दिल्ली : 'आजकल तो विमान सेवाएं इतनी अच्छी हो गईं हैं कि आप 15-20 घंटे में कनाडा पहुंच सकते हैं। लेकिन भारत के प्रधानमंत्री को आने में 42 साल लग गए। और ये भी विचित्रता देखिये कि भारत और कनाडा मिलकर स्पेस में तो प्रगति करते रहे हैं लेकिन धरती पर मिलने से कतराते रहे हैं। जिस बात में 42 साल बीत गए उसे मैंने दस महीने में कर दिया।'
टोरेंटो के रिको कोलेजियम स्टेज में जैसे ही प्रधानमंत्री ने यह बात कही, वहां जमी भारतीयों की भीड़ उत्साह से भर गई। प्रधानमंत्री ने जितनी प्रमुखता से इस बात को कहा, भीड़ ने उसी प्रमुखता से जवाब भी दिया। स्टेडियम जयकारे से गूंज गया। जबकि उसी जगह पर कनाडा के प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर भी मौजूद थे, जो चार साल पहले मनमोहन सिंह का भी कनाडा में स्वागत कर चुके थे। भीड़ ने बात कबूल कर ली होगी लेकिन कनाडा के प्रधानमंत्री को यह बात कैसी लगी होगी।
इतना ही नहीं बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कनाडा पहुंचते ही विदेश मंत्रालय के बेहद क़ाबिल प्रवक्ता सैय्यद अकबरूद्दीन ने ट्वीट किया जिसका मतलब यह था कि 42 सालों में पहली बार किसी भारतीय प्रधानमंत्री का कनाडा दौरा है। यह एक ऐतिहासिक क्षण है। उन्होंने अपने इस ट्वीट में ‘स्टैंडअलोन’ शब्द का भी इस्तेमाल किया जिसका मतलब आगे जाकर आपको बताऊंगा। फिर भी यह धारणा बन गई कि 42 साल में किसी भारतीय प्रधानमंत्री का पहला कनाडा दौरा है।
कांग्रेस नेता शशि थरूर ने इस दावेदारी पर आपत्ति जताई है और कहा है कि प्रधानमंत्री को तथ्यों के चयन मे सावधानी बरतनी चाहिए। क्या आप भी अभी तक मान रहे थे या मीडिया की बातों से ऐसा लगा कि यह वाकई 42 साल में किसी प्रधानमंत्री का यह पहला कनाडा दौरा है।
आपके सुनने समझने में ग़लती हुई है या विदेश मंत्रालय और प्रधानमंत्री को यह बात थोड़ी और स्पष्टता से कहनी चाहिए थी। प्रधानमंत्री की बात को ग़ौर से देखेंगे तो कोई ग़लती नज़र नहीं आएगी। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैय्यद अक़बरूद्दीन के ट्वीट में भी कोई कमी नज़र नहीं आएगी। आप भी हैरान हो सकते हैं कि जिस प्रवक्ता की इतनी तारीफ होती है, क्या उससे इतनी बड़ी चूक हो जाएगी। क्या हर बात पर बारीक नज़र रखने वाले प्रधानमंत्री ने भी इस तथ्य को ठीक से चेक नहीं किया होगा।
अगर आप गूगल करेंगे तो पता चलेगा कि जून 2010 में मनमोहन सिंह बतौर प्रधानमंत्री कनाडा गए थे। अब ये भी एक तथ्य है लेकिन शब्दों के हेर-फेर से तथ्यों की कैसे मार्केटिंग होती है, इसे दोनों प्रधानमंत्रियों के कनाडा दौरे से सीखा जा सकता है। मनमोहन सिंह जी-20 के सम्मेलन में कनाडा गए थे। वे सिर्फ कनाडा जाने के लिए कनाडा नहीं गए थे जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गए।
लेकिन जून 2010 में तमाम राष्ट्रध्यक्षों के बीच इसी प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर ने सिर्फ मनमोहन सिंह के लिए अलग से रात्रि भोजन का आयोजन किया था। भले ही मनमोहन सिंह राष्ट्राध्यक्षों के सम्मेलन में गए थे लेकिन कनाडा और भारत के बीच द्वीपक्षिय बात हुई और दोनों ने साझा बयान पर दस्तख़त भी किये, एक पंथ दो काज तो हुआ ही न।
कुछ वेबसाइटों ने इस तथ्य के अंतर को ठीक से समझाया भी है लेकिन एक शब्द के फर्क से सार्वजनिक रूप से समझादारी में कितना बदलाव आ जाता है। इसमें प्रधानमंत्री या विदेश मंत्रालय की चूक कितनी है या मीडिया की कितनी है अब इस विवाद से क्या फायदा। हां इससे अगर सीखना है तो यह बात सीख लेनी चाहिए कि नेताओं या प्रवक्ताओं के इस्तमाल किये हुए शब्दों पर दर्शकों को भी बारीक नज़र रखने की आदत डाल लेनी चाहिए।
आप ही बताइये आप 42 साल में पहली बार मोदी के कनाडा दौरे और चार साल पहले कई देशों के सम्मेलन के लिए मनमोहन सिंह के दौरे में क्या फर्क देखते हैं। आपको 42 साल का फ़ासला दिखाई देता है या 4 साल का। पर ये किस्सा है बड़ा मज़ेदारर। बोलने वाला कम ग़लत नज़र आता है, समझने वाला ज्यादा। आपके साथ हेराफेरी हुई या आपने समझने में हेरफेर कर दी ये फ़ैसला आपका होना चाहिए। वैसे मैं भी 40 के बहुत पार जा चुका हूं मगर कनाडा नहीं जा सका। कोई मेरी भी तो व्यथा सुने।
This Article is From Apr 16, 2015
42 साल में पहली बार या चार साल बाद प्रधानमंत्री का कनाडा दौरा?
Ravish Kumar
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Updated:अप्रैल 16, 2015 18:38 pm IST
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Published On अप्रैल 16, 2015 17:55 pm IST
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Last Updated On अप्रैल 16, 2015 18:38 pm IST
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