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This Article is From Dec 10, 2014

प्रदीप कुमार की कलम से : टीम लीडर हो तो माइकल क्लार्क जैसा

Pradeep Kumar, Vivek Rastogi
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  • Updated:
    दिसंबर 10, 2014 12:45 pm IST
    • Published On दिसंबर 10, 2014 12:42 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 10, 2014 12:45 pm IST

एडिलेड टेस्ट शुरू होने से ठीक पहले ऑस्ट्रेलियाई ऑलराउंडर शेन वॉटसन ने कहा था कि इस बात में कोई अचरज नहीं होना चाहिए कि अपने दोस्त फिलिप ह्यूज को श्रद्धांजलि देने के लिए माइकल क्लार्क शतक बना देंगे, और माइकल क्लार्क ने वही कर दिखाया।

एडिलेड टेस्ट में वह पूरी तरह फिट नहीं होने के बावजूद खेलने उतरे। वह चाहते तो भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की तरह एडिलेड टेस्ट से खुद को दूर रख सकते थे, क्योंकि वह ह्यूज की मौत के बाद मानसिक तौर पर टूट गए थे, लेकिन उन्हें इस बात का एहसास था कि दोस्त को श्रद्धांजलि देने का बेहतरीन तरीका क्रिकेट खेलना ही है।

लिहाजा उन्होंने खुद को एडिलेड टेस्ट में खेलने लायक बनाया, और जब पहले दिन बल्लेबाज़ी के दौरान उनकी पीठ में तकलीफ शुरू हुई तो लगा कि उन्होंने शायद अपनी तकलीफ को कम आंका था, लेकिन एक दिन के आराम के बाद वह न केवल बल्लेबाज़ी करने उतरे, बल्कि अपने टेस्ट करियर का 28वां शतक बखूबी पूरा किया।

माइकल क्लार्क मौजूदा समय के बेहतरीन बल्लेबाज़ों में एक हैं, लेकिन एडिलेड की पारी केवल उनकी बल्लेबाज़ी की सलाहियत का नमूना भर नहीं थी। इस पारी ने यह भी दिखाया कि क्लार्क किस तरह अपनी प्रतिबद्धताओं और जिम्मेदारियों को निभाने वाले शख्स हैं।

पिछले ही दिनों दुनिया ने यह भी देखा था कि क्लार्क कितने बेहतरीन इंसान हैं। फिलिप ह्यूज की असमय मौत के बाद उनका बर्ताव बताता है कि अपने साथी और जूनियर के प्रति उनका लगाव किस तरह का था।

फिलिप ह्यूज को चोट लगने के बाद वह लगातार 48 घंटे से भी ज्यादा समय तक अस्पताल में बने रहे, और ह्यूज के परिवार की ओर से तमाम दायित्वों को निभाया। मानसिक रूप से बेहद मजबूत मानी जानी वाली टीम का कप्तान अपने दोस्त की मौत पर फफक-फफककर रोया भी। क्लार्क ने यह भी कहा, ह्यूज की मौत के बाद हमारा ड्रेसिंग रूम कभी पहले जैसा नहीं होगा...

अंतिम संस्कार के वक्त भी क्लार्क खुद को नहीं संभाल पाए थे। हालांकि यह सही है कि ह्यूज के साथ क्लार्क का रिश्ता दोस्ताना और भाईचारे वाला था, लेकिन इस दौरान यह भी साफ नज़र आया कि ह्यूज की जगह टीम का कोई दूसरा खिलाड़ी भी होता, तो क्लार्क का यही रूप सबके सामने आता।

दरअसल एक शानदार टीम लीडर वही होता है, जिसे अपनी टीम के तमाम साथियों की अच्छाइयों और कमजोरियों के बारे में बखूबी पता होता है और वह हमेशा उनकी खूबियों को बाहर निकाल लाता है। क्लार्क इस पहलू में किस कदर कामयाब हैं, इसका अंदाजा देखिए - एडिलेड में महज़ उन्हीं का बल्ला नहीं बोला, बल्कि ह्यूज के बेहतरीन दोस्त और उन्हें चोट लगने के समय मैदान में मौजूद डेविड वॉर्नर ने भी शतक बना दिया। क्लार्क के साथ अस्पताल में मौजूद रहे स्टीवन स्मिथ ने भी शतक बनाया।

शतक बनाने के बाद सबकी आंखों में आंसू थे, अपने साथी ह्यूज की याद में। वैसे एक हकीकत यह भी है कि ऐसी टीम और क्लार्क जैसे टीम लीडर एक दिन में नहीं बनते, लेकिन क्लार्क से हम सीख तो सकते ही हैं, सीखना भी चाहिए।

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