प्रदीप कुमार : बेचैन गुरुदत्त और बिछड़े सभी बारी-बारी...

गुरु दत्त (फाइल फोटो)

अगर गुरुदत्त जीवित होते, तो बीती 9 जुलाई को 90 साल के हो गए होते, लेकिन गुरुदत्त जैसी प्रतिभाएं 90 साल तक वक्त गुजारने नहीं आतीं, वह तो महज 39 साल की उम्र में उतना कुछ कर गए कि उनकी मौत के 51 साल बाद हम उन्हें भूल नहीं पाए हैं। उन्हें आज भी भारतीय सिनेमा के इतिहास में मिसाल के तौर देखा जाता है और ये सिलसिला आगे भी जारी रहेगा।

गुरुदत्त की सिनेमाई समझ के बारे में काफी कुछ कहा जाता रहा है, मसलन, वह समय से काफी आगे की सोच रखने वाले फिल्मकार थे। फिल्मों के तकनीकी पक्ष को उन्होंने बेहद करीब से समझा था। ‘कागज के फूल’ में कैमरे के क्लोज अप शॉट्स का इस्तेमाल जिस तरह उन्होंने किया, वह आज भी कल्ट माना जाता है।

कई तरह के संगीत को मिलाकर भी गुरुदत्त ने अद्भुत प्रयोग किए। गुरुदत्त एक परफैक्शनिस्ट थे, उन्हें जब कभी लगता था कि वह इस फिल्म के साथ न्याय नहीं कर पा रहे हैं, तो उसे बंद कर देते थे। यही वजह है कि उनकी कई फिल्में अधूरी रह गईं।

तकनीकी पक्ष के अलावा भी एक फिल्मकार के तौर भी गुरुदत्त को अपनी समाजिक जिम्मेदारियों का अहसास था। तभी तो माना जाता है कि गुरुदत्त आजादी के बाद ऐसे पहले फिल्मकार थे, जिन्होंने अपनी फिल्मों में यह दिखाने की कोशिश की कि जिस तरह के सामाजिक न्याय की बात आजादी से पहले की जाती थी, वह आजादी के बाद लोगों को नहीं मिला। यही वजह है कि उनकी अधिकांश फिल्मों का नायक त्रासदी का शिकार दिखता है।

वैसे कितना अजीब संयोग है कि उनका अपना जीवन भी बेहद त्रासदी भरा रहा। दुनिया में सुखी होने के लिए इंसान जिन चीजों की कामना करता है, गुरु दत्त के पास वह सब कुछ था। मान-सम्मान, यश, दौलत, प्रतिष्ठा, सेहत, खूबसूरत पत्नी और प्यारे-प्यारे बच्चे। इसके बावजूद वह बेचैन रहते थे। उनका कहना था- मुझे निर्देशक बनना था, बन गया। अभिनेता बनना था, बन गया। अच्छी पिक्चर बनानी थी, बना ली। काफी पैसा भी है, लेकिन कुछ भी नहीं है। यह खालीपन अवसाद के उस स्तर तक भी पहुंचा, जब उन्होंने आत्महत्या की कोशिश की। उनके इस बेचैन जीवन के बेहद करीब से देखा था बांग्ला उपन्यासकार बिमल मित्र ने। इन्हीं के उपन्यास ‘साहब बीवी गुलाम’ पर गुरुदत्त ने मशहूर फिल्म बनाई थी और इसकी पटकथा के लिए उन्होंने बिमल मित्र को कोलकाता से खासतौर पर बुलाया था। जीवन के अंतिम चार-पांच वर्षों में गुरुदत्त की बिमल मित्र से काफी निकटता रही। गुरु दत्त की असमय मौत के बाद बिमल मित्र ने एक उपन्यास लिखा, जिसका हिन्दी अनुवाद ‘बिछुड़े सभी बारी-बारी’ नाम से वाणी प्रकाशन से प्रकाशित है।
 
बिमल मित्र ‘साहब बीवी गुलाम’ की पटकथा लेखन के सिलसिले में गुरु दत्त के बंगले और फॉर्म हाउस पर रहे। लिहाजा वे उनके घर-परिवार के सदस्यों से भी मिल चुके थे। ऐसे में गुरु दत्त की मौत के बाद उनके इन उपन्यास से गुरु दत्त के जीवन और पत्नी गीता दत्त के बीच के संबंधों और रिश्ते में उपजे तनाव की कहानी और वहीदा रहमान से बढ़ती निकटता के सच का अंदाजा लगता है।

बिमल मित्र लिखते हैं, कि उन्हें इस बात पर अचरज होता था कि गुरु दत्त के पास पाली हिल में शानदार बंगला था, लेकिन उनको वहां नींद नहीं आती थी। वह सारी रात व्हिस्की के गिलास और सिगरेट सुलगाते हुए गुजार देते थे और सुबह तैयार होकर स्टूडियो पहुंच जाते और अपने मेकअप रूम को अंदर से बंदकर गहरी नींद में सो जाते थे। बिमल मित्र की मानें तो गुरुदत्त के अंदर दो-दो सत्ताएं मौजूद थीं। एक तरफ वह विलासी, भोगी और विख्यात शख्स थे। वहां वह हैरान और परेशान रहा करता थे। इनकम टैक्स, वकील और अपने स्टूडियो में परम व्यस्त। परम परेशान। दूसरी तरफ वह ज्ञानी, धीर, स्थिर, विवेकवान, दयालु, दानी, निस्पृह और अहंकार मुक्त थे।

बिमल मित्र आगे लिखते हैं, दूसरी सत्ता वाला गुरुदत्त रात जाग-जागकर साहित्य-विज्ञान की किताबें पढ़ता था। वह इंसान अत्यंत भिखारी था। भगवान है या नहीं, इसी पर सोचा-विचारा करता था। उस इंसान की जरूरतें मामूली थीं, जिसका गुजारा एक जोड़ी रबड़ की चप्पल, एक अदद सैंडो गंजी और एक लुंगी पर चल सकता था। उस शख्स की जेब में कभी- कभी पैसे भी नहीं होते थे। बिमल मित्र के मुताबिक, दूसरी सत्ता वाले गुरुदत्त को कोई पहचान नहीं पाया। वहीदा रहमान ने नहीं पहचाना, गीता दत्त ने भी नहीं पहचाना। गुरु दत्त की मां, भाई, बहन, जीजा, यार दोस्त किसी ने भी नहीं। गुरुदत्त और गीता दत्त के जीवन में शादी के छह साल बाद ही तनाव बढ़ गया था।

इसकी एक वजह वहीदा रहमान को माना जाता है, जिनके साथ उनके प्रेम प्रसंग से जुड़े गॉसिप चलते थे। हालांकि बिमल मित्र के मुताबिक, गीता-वहीदा आपस में एक ही परिवार की दो बहनों की तरह मिलती-जुलती थीं। दोनों के रिश्तों के बीच तनाव की अहम वजह यह भी थी कि गुरुदत्त बाद में नहीं चाहते थे कि गीता फिल्मों में गाएं। वह चाहते थे कि गीता का ध्यान गृहस्थी पर ही रहे, जो उन जैसी स्टार के लिए पीड़ादायक ही नहीं, अपमानजनक भी था। ‘साहब बीवी और गुलाम’ की कहानी दरअसल गुरुदत्त के अपने जीवन की कहानी थी, जिसके बारे में गीता दत्त ने भी बिमल मित्र को बताया था।

इस फिल्म के प्रीमियर शो के बाद गुरु दत्त से 'मुगले आजम' फेम के. आसिफ ने कहा था, गुरु तुम्हारी फिल्म का अंत अच्छा नहीं लगा। फिल्म का अंत ट्रेजेडी न करके अगर कॉमेडी में करते तो यह फिल्म तुम्हें पैसा देती। इस पर बहस का सिलसिला शुरू हो गया और दोनों फिल्मकारों और उनके समर्थकों के बीच यह बहस सुबह के 4 बजे तक जारी रही। आखिर गुरुदत्त मान भी गए कि फिल्म का अंत बदलना ही ठीक होगा, लेकिन बाद में उन्होंने तय कर लिया कि फिल्म घाटा दे तो दे वह कहानी का अंत नहीं बदलेंगे।

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अब ऐसे फिल्मकार आपको कहीं नहीं मिलेंगे, लेकिन 'प्यासा', 'कागज के फूल', 'साहब, बीबी और गुलाम' जैसी फिल्मों वाले गुरुदत्त याद आते रहेंगे।