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जब एक फिल्म की नाकामी से टूट गए थे गुरु दत्त, जावेद अख्तर ने कहा- 'उन्हें समझने में लग जाएंगी पीढ़ियां'

गुरु दत्त का सिनेमा युवा फिल्मकारों के लिए पाठ है और हिंदी सिनेमा के इतिहास के लिए गर्व, जो सदियों तक सिनेमा प्रेमियों और युवा फिल्मकारों को प्रेरित करता रहेगा.

जब एक फिल्म की नाकामी से टूट गए थे गुरु दत्त, जावेद अख्तर ने कहा- 'उन्हें समझने में लग जाएंगी पीढ़ियां'
गुरु दत्त के जन्मशताब्दी के मौके पर दिखाई गईं उनकी फिल्में
नई दिल्ली:

मुंबई में गुरु दत्त के जन्मशताब्दी के मौके पर उनकी फिल्मों के महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है, जो कि 8 अगस्त से 10 अगस्त तक देशभर के 25 शहरों में पीवीआर सिनेमाघरों में देखा जा सकेगा. इस फिल्मोत्सव को 100 से ज्यादा स्क्रीन्स पर प्रदर्शित किया जाएगा. इस फिल्मोत्सव का प्रीमियर हुआ बुधवार की शाम मुंबई में, जहां जावेद अख्तर, हंसल मेहता, सुधीर मिश्रा, आर. बाल्की और अनुभव सिंह जैसे दिग्गज फिल्मकार मौजूद थे. साथ ही गुरु दत्त के परिवार से उनकी दोनों पोतियां और गुरु दत्त के बेटे अरुण दत्त की पत्नी भी शामिल हुईं. इस मौके पर प्रीमियर के दौरान गुरु दत्त की फिल्म प्यासा दिखाई गई, लेकिन फिल्म स्क्रीनिंग से पहले गुरु दत्त और उनकी फिल्मों पर चर्चा हुई, जिसमें भाग लिया जावेद अख्तर, वरिष्ठ पत्रकार भावना सोमैया, निर्देशक आर. बाल्की, सुधीर मिश्रा और हंसल मेहता ने.

इस फिल्म की नाकामयाबी से टूट गए थे गुरु दत्त 

इन सभी निर्देशकों ने बात की कि किस तरह वे गुरु दत्त और उनके सिनेमा से प्रेरित हैं. साथ ही उन्होंने गुरु दत्त के व्यक्तित्व और उनके सिनेमा की बारीकियों पर भी चर्चा की. चर्चा इस बात पर भी हुई कि किस तरह उनकी सभी फिल्में कामयाब रहीं, पर सिर्फ कागज़ के फूल की नाकामयाबी ने उन्हें हिला दिया. जावेद अख्तर ने कहा कि सिर्फ एक फिल्म की नाकामयाबी से इतना परेशान होना गुरु दत्त के लिए ठीक नहीं था. उन्होंने गुरु दत्त के गानों को फिल्माने के तरीके का जिक्र करते हुए आज के गानों से तुलना करते हुए कहा कि किस तरह आज निर्देशक सेट, कॉस्ट्यूम और तकनीक पर निर्भर हैं. 

अच्छे सेट्स और कॉस्ट्यूम्स पर निर्भर नहीं थे गुरु दत्त 

जावेद अख्तर ने आगे बोलते हुए कहा, "एक और बात कहना चाहता हूं. आज हम लोकेशन के लिए न्यूजीलैंड, स्वाजीलैंड, स्विट्ज़रलैंड जाते हैं, अच्छे सेट्स, कॉस्ट्यूम्स के लिए. लेकिन गुरुदत्त इन सब पर निर्भर नहीं थे. उनके लिए खूबसूरती उनकी आंखों में थी. मैं एक उदाहरण दूं. देखिए इस थिएटर को. ये कोई सिनेमैटिक जगह नहीं है. अगर कोई छह-सात मिनट लंबा गाना फिल्माना हो, तो शायद ये आखिरी जगह होनी चाहिए. लेकिन गुरुदत्त ने इस ऑडिटोरियम में एक लंबा गाना शूट किया, जिसमें हर अंतरा एक-सा था. उन्होंने वहीं एडिटोरियल शॉट्स में शूट किया. दरवाजे पर क्रॉस की तरह खड़े, फिर अंदर आते हैं. सेट्स नहीं, लाइटिंग काम कर रही थी".

जावेद अख्तर ने आगे कहा, "उन्होंने एक गाना बिस्तर पर शूट किया. 90% गाना बिस्तर पर है. आखिर में मीना कुमारी उठती हैं, बस. फिर भी हम उसे कभी नहीं भूलते. ये फिल्म का सबसे शानदार विज़ुअल है. जब अंदर कमी होती है, तो हम बाहर तलाशते हैं. लेकिन गुरुदत्त लोकेशन पर निर्भर नहीं थे. उनका विजन, उनका फ्रेम, उनकी सोच ही रचना बन जाती थी. आज कितने निर्देशक हैं जो ये कर सकते हैं?".

'पीढ़ियां लग जाएंगी सीखने में'

गीतकार ने आगे कहा, "उन्होंने हमें इतना सिखाया है कि पीढ़ियां लग जाएंगी सीखने में. इसमें कोई शक नहीं. उनके गाने बहुत ग्रेट मेलोडी नहीं हैं, सीधे-सादे गाने हैं. लेकिन हर गाने में छह-सात अंतरे होते हैं. और वो गाना पकड़ लेता है. आप सोचिए, एक मोनोटोनस ट्यून पर गाना कैसे टिकता है? लेकिन टिकता है क्योंकि निर्देशक उस ध्वनि को महसूस करता है. वो ध्वनि को आपके अंतर्मन का हिस्सा बना देता है. मैंने बहुत कम लोगों को ऐसा करते देखा है. तकनीक बहुत आगे बढ़ गई है. टेक्निकल फैसिलिटीज, स्पेशल इफेक्ट्स...पर हम अब भी कहीं पीछे रह गए हैं".

गुरु दत्त का सिनेमा युवा फिल्मकारों के लिए पाठ है और हिंदी सिनेमा के इतिहास के लिए गर्व, जो सदियों तक सिनेमा प्रेमियों और युवा फिल्मकारों को प्रेरित करता रहेगा.

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