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This Article is From Oct 21, 2018

अमृतसर ट्रेन हादसा : फिर वही सियासत, मुआवजा और एक अदद जांच आयोग

Prabhat Upadhyay
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 22, 2018 06:30 am IST
    • Published On अक्टूबर 21, 2018 15:39 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 22, 2018 06:30 am IST
अमृतसर में ट्रेन हादसे के बाद अस्पतालों में अब भी चीख-पुकार और मातम पसरा है. लोग अपनों की तलाश में बदहवास हॉस्पिटल और पुलिस स्टेशन के चक्कर काट रहे हैं. स्थानीय लोग गुस्से में हैं और रावण दहन के रूप में 'विनाश लीला' का आयोजन करने वालों के घर पर पथराव भी किया. उन्होंने प्रशासन पर एक और संगीन आरोप लगाया है. वह यह कि सरकार मौत के आंकड़ों में 'हेराफेरी' कर रही है. वैसे सरकार का क्या कसूर! यह मौसम/दौर ही आंकड़ों में हेराफेरी का है. इस दुखद घटना में जान गंवाने वाले ज्यादातर लोग उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रवासी थे. जो पंजाब रोजी-रोटी कमाने के गर्ज से आये थे. जो अब इस दुनिया में नहीं रहे, शायद उनमें से कई अपने परिवार के इकलौके खेवनहार रहे होंगे. थोड़ी देर पहले एक खबर पढ़ी. अमृतसर जिला प्रशासन ने मीडिया से एक 10 माह के मासूम को उसके परिवार से मिलाने में मदद की अपील की है. यह बच्चा लोगों को हादसे की जगह मिला था और उसे थोड़ी चोट भी आई है. हालांकि इलाज के बाद अब स्थिति ठीक है. 

अमृतसर हादसे (Amritsar Train Accident ) में 60 से ज्यादा लोग असमय काल के गाल में समा गए. इस दुर्घटना में उस शख़्स की भी जान चली गई जो वहां आयोजित रामलीला में रावण की भूमिका अदा करते थे. बताया जा रहा है कि जब ट्रेन आई तो दलबीर सिंह 'राम' बनकर औरों को बचाने लगे और इस दौरान वह खुद इसकी चपेट में आ गए. दलबीर सिंह अपने पीछे विधवा मां, पत्नी और 8 माह के बच्चे को छोड़ गए. 'दुख का पहाड़' किसे कहते हैं यह इस परिवार से बेहतर कौन समझ सकता है. मां से बुढ़ापे का सहारा छिना तो पत्नी से उसका हौसला और बच्चे के सिर से पिता का साया. 

अमृतसर ट्रेन दुर्घटना को करीबन दो दिन (43 घंटे से ज्यादा) हो गए हैं. स्थानीय प्रशासन अभी भी अपने 'पचड़ों' में उलझा है. वही 'पचड़े' जो अक्सर ऐसी दुर्घटनाओं के बाद देखने को मिलते हैं. बस जगह बदल जाती है. दूसरी तरफ, रेलवे ने इस दुर्घटना में अपनी किसी भी तरह की भूमिका और जिम्मेदारी से साफ इनकार कर दिया है. विभाग ने कहा है कि वह किसी भी तरह की कोई जांच आदि भी नहीं कराने जा रहा है, जिसकी अमूमन ऐसी दुर्घटनाओं के बाद घोषणा कर दी जाती है. भले ही वह फर्ज अदायगी भर हो. हां...राज्य सरकार ने इस घटना की जांच कराने की घोषणा की है. अमृतसर में हादसे के बाद राज्य सरकार और स्थानीय नेताओं पर संवेदनहीनता के भी आरोप लगे. कहा जा रहा है कि जिस कार्यक्रम की वजह से यह हादसा हुआ उसमें कांग्रेस के नेता और राज्य सरकार में मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर मुख्य अतिथि थीं, लेकिन जैसे ही उन्हें इसकी खबर लगी वह मौके से नदारद हो गईं. सूबे के मुख़िया खुद दुर्घटना स्थल पर 17 घंटे बाद पहुंचे. 

अमृतसर हादसे के बाद फिर वही सब शुरू हो गया है जो हमारे यहां अक्सर ऐसे हादसों के बाद होता है. आरोप-प्रत्यारोप...कीचड़ उछालने की राजनीति और इससे थोड़ी फुर्सत मिलती है तो मरीजों का हालचाल और मुआवजे की घोषणा. और ज्यादा 'दबाव' हुआ तो किसी आरोपी को पकड़ लिया. वैसे, अमृतसर हादसे में अभी तक कोई पकड़ा नहीं गया है. अव्वल तो अभी तक इस हादसे का कोई जिम्मेदार ही नहीं है. और न ही कोई जिम्मेदारी लेता दिख रहा है. उन्हें पता है कि थोड़े दिनों में सब शांत हो जाएगा. मीडिया भी खबरें दिखाना-छापना बंद कर देगी, क्योंकि वह वही दिखाती या छापती है, जो 'बिकता' हो. फिर 10 माह के उस मासूम का दर्द और दलबीर सिंह के परिवार की पीड़ा का कौन 'खरीदार' होगा. और आप भी यह मुगालते पालना बंद करिये कि सिस्टम, सरकार, विभाग और नेताओं के लिए आपकी पीड़ा का कोई महत्व-मायने है. यह ज्यादा सियासत, थोड़ा मुआवजा और एक अदद आयोग से अधिक कुछ नहीं है.

(प्रभात उपाध्याय Khabar.NDTV.com में चीफ सब एडिटर हैं...)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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