क्या 10 मार्च को नंदीग्राम से लौटते वक्त ममता बनर्जी पर हमला हुआ? हमले की खबर आते ही ममता पर हुए हमले को या उन्हें लगी चोट को ड्रामा बताने की जल्दी में खुद को सहिष्णु और संवेदनशील बताने वाले लोग तेज़ी से फिसलने लगे. किसी को चोट लगी हो उसे ड्रामा बताने से पहले बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं ने इंतज़ार करना भी ठीक नहीं समझा. गुरुवार को तृणमूल कांग्रेस ने ममता बनर्जी की एक तस्वीर जारी की. ममता बनर्जी कोलकाता के सेठ सुखलाल करनानी मेमोरियल हास्पिटल में भर्ती हैं. तस्वीर में आप देख सकते हैं कि ममता के पांव में प्लास्टर है. ममता की हालत गंभीर न हो लेकिन चोट के कारण वे अच्छी स्थिति में तो नहीं दिख रही हैं. ममता के चेहरे पर चोट की पीड़ा और थकान नज़र आ रही है. क्या ये तस्वीर भी ड्रामा का हिस्सा है? तो फिर उस डाक्टर और अस्पताल का लाइसेंस रद्द कर देना चाहिए कि वे भी इस ड्रामा का पार्ट कैसे बन गए? बीजेपी के कैलाश विजयवर्गीय और कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी को अस्पताल जाना चाहिए. हो सके तो प्लास्टर भी छू कर देख लेना चाहिए कि असली है या ड्रामा का है. अस्पताल के एक्स रे की जांच करा लेनी चाहिए? ड्रामा कहने की राजनीति भी कम ड्रामा नहीं है. बंगाल में नई राजनीति की बात करने वालों की यह भाषा तो कत्तई नई और शिष्टाचार की नहीं लगती है. सिम्पल सा सवाल है. पांव में प्लास्टर होने से नुकसान तो ममता का ही होगा. वे शायद प्रचार न कर पाएं. ऐसा वो क्यों करेंगी?
ममता बनर्जी ने भी घटना के बाद जो बयान जारी किया है उसमें इतना ही कहा है कि चार पांच लोगों ने उन्हें धक्का दिया और उनके ऊपर दरवाज़े बंद करने की कोशिश की उस वक्त उनके आस-पास कोई पुलिस वाला नहीं था. ये साज़िश है. ममता बनर्जी नंदीग्राम से नामांकन के बाद सड़क के रास्ते लौट रही थीं. हमें जो एक वीडियो मिला है उसे देख कर लगता है कि मुख्यमंत्री के काफिले के लिए जो ज़रूरी सुरक्षा होनी चाहिए वो नज़र नहीं आ रही है. ममता एक ऐसी सड़क से गुज़र रही हैं जिसके दोनों तरफ मकान हैं और सड़क संकरी हैं. लोग खड़े हैं. लोगों को रोकने के लिए पुलिस की कतार नज़र नहीं आती है. ऐसी जगह किसी भी सामान्य उम्मीदवार के लिए असुरक्षित हो सकती है. इस वीडियो को देखते वक्त सड़क के किनारे लोग कतार में हैं. तृणमूल का झंडा भी दिखता है. आप देखेंगे कि वो अंदर बैठी हैं और गाड़ी के बाहर भीड़ काफ़ी ज़्यादा है. तभी लोगों का अभिवादन स्वीकार करने के लिए ममता कार से बाहर निकलती हैं और दरवाज़े पकड़ कर खड़ी होती हैं. ड्राइवर को इशारे से आगे चलने के लिए कहती हैं. लेकिन लोग उनके ज़्यादा करीब नहीं जाते हैं. एक दूरी बनी हुई है. वीडियो में थोड़ी दूर आगे जाकर दिखता है कि कार भीड़ में घुलमिल गई है. उस एक जगह पर क्या हुआ सिर्फ एक वीडियो के आधार पर कहना मुश्किल है. इस वीडियो में इतना तो दिखता है कि भीड़ के बीच कार फंसी है.
बेहतर होता कि कई एंगल से वीडियो उपलब्ध होते. कम से कम उस जगह के जहां पर ममता की कार भीड़ से घिरी नज़र आ रही है. अगर पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था होती तो वह भीड़ को कार के इतना करीब नहीं आने देती. लेकिन चुनाव के समय ऐसा हो भी जाता है. ममता ने इतना ही कहा कि चार पांच लोगों ने धक्का दिया और दरवाज़े को दे मारा. इससे उन्हें चोट लगी. ममता ने किसी दल का नाम नहीं लिया. यह कहा कि आसपास में पुलिस मौजूद नहीं थी. एक अन्य वीडियो में दिख रहा है कि ममता को चोट का अहसास हो रहा है. उनकी हालत खराब लग रही है और सुरक्षाकर्मी उन्हें उठा कर पीछे की सीट पर बिठाते हैं. ममता खुद कार से उतरने की स्थिति में नहीं हैं. सुरक्षाकर्मी उन्हें गोद में बिठा कर कार की पीछे की सीट पर बिठाते हैं. एंबुलेंस में नहीं.
ममता को चोट लगी है. मुमकिन है भीड़ से अनायास धक्का लगा या कार किसी चीज़ से टकरा गई हो, यह उपलब्ध वीडियो से साफ साफ पता नहीं चलता है. आम तौर पर किसी वीआईपी की सभा के वक्त कई लोग वीडियो बना रहे होते हैं. लेकिन यह सवाल तो फिर भी है कि सुरक्षा व्यवस्था वहां कैसी थी? भीड़ कैसे इतनी नज़दीक पहुंची? पुलिस सुरक्षा की कतार क्यों नहीं थी या थी तो क्या कर रही थी? क्या अंधेरे का लाभ उठा कर किसी ने ममता को धक्का दिया? 66 साल की ममता बनर्जी को चोट लगने की खबर आते ही कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी और बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष अर्जुन सिंह इसे ड्रामा बताते हैं. अधीर रंजन चौधरी कहते हैं कि ममता चुनाव के पहले सहानुभूति बटोरने का प्रयास कर रही हैं. नंदीग्राम की हालत को देख कर ये ड्रामा प्लान किया है. अधीर रंजन का कहना है कि वे मुख्यमंत्री ही नहीं पुलिस मंत्री भी हैं क्या आप मान लेंगे कि वहां कोई पुलिस नहीं थी?
कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी को मालूम है कि चुनाव के समय आचार संहिता लागू होती है तो मंत्रालय ममता के अधीन नहीं होगा. इस घटना के एक दिन पहले चुनाव आयोग ने बंगाल पुलिस के महानिदेशक को बदल दिया. बीजेपी ने हिंसा को लेकर चिन्ता जताई थी. पी नीरज नयन को नए महानिदेशक के तौर पर नियुक्त किया गया था. चुनाव आयोग ने राज्य के मुख्य सचिव से ममता बनर्जी की घटना पर शुक्रवार तक रिपोर्ट मांगी है. ममता बनर्जी को ज़ेड प्लस सुरक्षा हासिल है. आचार संहिता के समय पुलिस प्रमुख को आचार संहिता का ख़्याल करते हुए अपने निर्देशों का पालन करना होता है. इस तरह से इस वक्त बंगाल के पुलिस प्रमुख वो नहीं हैं जिन्हें ममता ने तैनात किया है. कांग्रेस के साथ बीजेपी को भी लगा कि यह ड्रामा है. बीजेपी के उपाध्यक्ष अर्जुन सिंह तो अपने बयान में तालिबान भी ले आए. लेकिन अर्जुन सिंह ने यह भी कहा कि उनकी सुरक्षा में चार आईपीएस अफसर थे उन्हें निलंबित कर देना चाहिए.
किसी की चोट पर मज़ाक उड़ाने से पहले नेताओं को थोड़ा रुकना चाहिए था. ड्रामा होता तो कोई अस्पताल में भर्ती होकर प्लास्टर नहीं करातीं. बीजेपी के उपाध्यक्ष कैलाश विजयवर्गी ने कहा कि ममता बनर्जी मामूली दुर्घटना को साज़िश का एंगल देने का प्रयास कर रही हैं. इसकी सीबीआई जांच होनी चाहिए. इस बयान के दो हिस्से हैं. पहले हिस्से में वे बता देते हैं कि ममता ड्रामा कर रही हैं लेकिन दूसरे हिस्से में सीबीआई जांच की मांग भी कर लेते हैं. पीटीआई को दिए बयान में कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि ऐसा हो सकता है कि दुर्घटना हुई है लेकिन ये दावा करना कि किसी ने जानबूझ कर धक्का दिया है स्वीकार्य नहीं है. उनके साथ हर वक्त ढेर सारी सुरक्षा लगी रहती है.
हिन्दुस्तान टाइम्स में रेल मंत्री पीयूष गोयल का एक बयान छपा है. हमें लगा कि यह उनका ट्वीट होगा मगर पीयूष गोयल ने ट्वीट नहीं किया है. बयान के तौर पर ही हिन्दुस्तान टाइम्स में छपा है. रिपोर्ट शिवानी की है. वो कहते हैं, 'मैं सोचता हूं मैं टिप्पणी नहीं करूंगा. आप सभी समझदार हैं और जीवन भर ऐसी चीज़ों को रिपोर्ट करते रहे हैं. हमारी दीदी परेशान हैं. यह एक हारी हुई पार्टी और हारे हुए उम्मीदवार के संकेत हैं. वे नंदीग्राम से हार जाएंगी और बंगाल में परिवर्तन होगा.'
पीयूष गोयल अपने बयान की पहली लाइन में कहते हैं कि वे टिप्पणी करने से बचेंगे लेकिन आगे की लाइन में जो कहा उसमें ड्रामा शब्द नहीं था लेकिन संदर्भ वही था. ममता की चिन्ता को लेकर दो शब्द नहीं थे लेकिन पीयूष गोयल ने साफ साफ लिखा कि यह एक हारी हुई पार्टी और उम्मीदवार के संकेत हैं. बंगाल में परिवर्तन होगा.
ममता अस्पताल में लेटी हैं. पांव में प्लास्टर है. डाक्टरों के जो बयान छपे हैं उसके अनुसार उन्हे चोट का सदमा है. लिगमेंट और साफ्ट टिश्यू में चोट आई है. कहीं से भी ममता एक हारी ही पार्टी की नेता और उम्मीदवार नहीं लग रही हैं बल्कि एक सामान्य मरीज़ की तरह दिखाई दे रही हैं जिसे चोट लगी है. जो कराह रही है और जिसके पांव में प्लास्टर है.
दस मार्च की घटना की खबर आने के बाद से 11 मार्च के दोपहर चार बजे तक प्रधानमंत्री ने कोई ट्वीट नहीं किया. गृहमंत्री ने कोई ट्वीट नहीं किया. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने भी कई ट्वीट नहीं किया. गुरुवार दोपहर तृणमूल कांग्रेस ने ममता बनर्जी का एक वीडियो भी जारी किया. आप खुद तय करें कि क्या इस वीडियो में ममता ड्रामा करती नज़र आ रही हैं?
सात मार्च को कोलकाता के ब्रिगेड मैदान में प्रधानमंत्री की रैली हुई थी जिसमें मिथुन चक्रवर्ती ने खुद को कोबरा सांप बताया था. उस सभा में प्रधानमंत्री ने कहा था कि नंदीग्राम में उनकी स्कूटी का गिरना तय है. इस बयान को हमने महिला दिवस के संदर्भ में दिखाया था कि देश की एकमात्र महिला मुख्यमंत्री को किसी पुरुष मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री ने बधाई नहीं दी.
प्रधानमंत्री ने कहा था कि ममता बनर्जी की स्कूटी ने नंदीग्राम में गिरना तय किया है तो हम क्या करें. आप जानते हैं कि स्कूटी अपने से तय नहीं कर सकती है. लेकिन स्कूटी के गिरने का रुपक भी राजनीतिक शिष्टाचार के अनुकूल नहीं है. चलाने वाली की गलती से स्कूटी गिर सकती है लेकिन स्कूटी ने गिरना तय किया है यह बात विज्ञान सम्मत नहीं है. ममता बनर्जी ने 2019 में प्रधानमंत्री को मिट्टी का लड्डू खिलाने की भाषा बोली थी. वह बयान भी स्कूटी के गिरने वाले बयान जैसा ही था. भाषा विचित्र संयोग पैदा करती है. प्रधानमंत्री मोदी ने चोट लगने की घटना पर दस मार्च और ग्यारह मार्च को दोपहर तक कोई बयान नहीं दिया और न ही ट्वीट किया. ऐसा नहीं था कि सारे नेता ममता की चोट को ड्रामा ही बता रहे थे.
कांग्रेस के ही मनीष तिवारी, अभिजीत मुखर्जी उनकी खैरियत की चिन्ता भी कर रहे थे. जल्द ठीक होने की शुभकामनाएं दे रहे थे. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी चिन्ता ज़ाहिर की और घटना की निंदा की. ओडीशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का बयान आया कि ममता बनर्जी के अस्पताल में भर्ती होने को लेकर चिन्तित हैं. उनके जल्दी ठीक होने को लेकर प्रार्थना करता हूं. यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने बयान जारी कर ममता को चोट लगने के मामले की जांच की मांग की. घटना की निंदा की. तेजस्वी ने अपने ट्वीट में कहा कि पश्चिम बंगाल की पुलिस चुनाव आयोग के नियंत्रण में है. जो बीजेपी से निर्देशित है. देश को पता है कि जिन लोगों को लोकतंत्र में यकीन नहीं है वो अपनी हताशा को छिपाने के लिए किसी भी स्तर पर जा सकते हैं. जो भी इस हमले के पीछे है उसे छोड़ा नहीं जाना चाहिए.
कांग्रेस नेता रेणुका चौधरी जांच की मांग कर रही हैं. ममता को लगी चोट को लेकर सहानुभूति जता रही हैं लेकिन अधीर रंजन चौधरी ने अपने बयान की लाइन नहीं बदली है. उनकी शुरूआती प्रतिक्रिया आप देख चुके हैं और अस्पताल की तस्वीर आ जाने के बाद का भी बयान सुन सकते हैं.
एक तरफ कांग्रेस और बीजेपी के नेता चोट लगने की घटना को लेकर ड्रामा बता रहे हैं तो दूसरी तरफ इन्हीं पार्टियों के दूसरे नेता चोट को लेकर संजीदगी भी ज़ाहिर कर रहे हैं जांच की मांग कर रहे हैं. अच्छी बात है कि मीडिया या गोदी मीडिया ऐसा करने को ड्रामा नहीं कहता है. इन सबके बीच राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने अस्पताल का दौरा किया और ममता का हाल लिया. अस्पताल से सभी बातों का ख़्याल रखने को कहा मुख्य सचिव और स्वास्थ्य सचिव से रिपोर्ट मांगी. टेलिग्राफ अखबार की रिपोर्ट में लिखा है कि मुख्यमंत्री जब अस्पताल पहुंची तो बहुत तेज़ दर्द से कराह रही थीं. उनके बायें पैर की हड्डी में दरार आई है. यही बात हमारी सहयोगी मोनीदीपा बनर्जी ने भी दस मार्च को अपनी रिपोर्ट में कही थी. ममता बनर्जी के लिए छह सदस्यों का एक मेडिकल बोर्ड बनाया गया है.
घटना की खबर आते ही कुछ प्रत्यक्षदर्शी के बयान आने लगे कि किसी ने हमला नहीं किया. उनमें से कुछ का बैकग्राउंड आने लगा कि बयान देने वाला तो भाजपा का समर्थक है. तो क्या उस जगह पर भाजपा समर्थक भी थे? हम इस डिटेल में अभी नहीं जाना चाहते हैं. सोशल मीडिया पर चल रहा है. हमारे सहयोगी सौरव गुप्ता ने एक प्रत्यक्षदर्शी से बात की है. इनका दावा है कि उस चाय दुकान के पास थे जब ममता को बर्फ की सेंक दी गई थी.
ममता बनर्जी अस्पताल में हैं. एक तरफ बीजेपी के नेता ममता बनर्जी का हाल लेने अस्पताल भी जा रहे थे दूसरी तरफ इस हमले से ममता झूठ फैला रही हैं, राजनीतिकरण कर रही हैं इसकी शिकायत लेकर चुनाव आयोग भी जा रहे थे. बीजेपी के नेता तथागत रॉय और शामिक भट्टाचार्य ने SSKM hospital गए थे ममता बनर्जी का हाल लेने. लेकिन तथागत राय ने कहा कि उनसे मिलना चाहते थे, मिलने नहीं दिया, हमने अरुप विश्वास से मुलाकात की और शुभकामनाएं भेजीं.
क्या चुनाव आयोग ऐसा आदेश दे सकता है कि तृणमूल के नेता ममता को लगी चोट का मामला न उठाएं, उसका ज़िक्र अपने भाषण में न करें, क्या चुनाव आयोग ने 2019 में जब गृहमंत्री अमित शाह पर बंगाल में हमला हुआ था तब ऐसा आदेश दिया था, या उन्होंने अपने हमले का राजनीतिकरण नहीं किया था? बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय ने मांग की है कि चुनाव आयोग घटना के समय का वीडियो सबको दिखाए.
बीजेपी ने चुनाव आयोग से कहा है कि सुरक्षा बल और तैनात किए जाएं. बंगाल में आठ चरणों में चुनाव हो रहा है. अगर आयोग ने सुरक्षा कारणों से ऐसा किया है तब फिर उसके सामने मांग करने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए कि सुरक्षा बढ़ाएं. क्या पहले चरण के चुनाव के लिए सुरक्षा पर्याप्त नहीं है, कैलाश विजयवर्गीय यह तो नहीं कहते हैं मगर अधिक सुरक्षा की मांग करते हैं. क्या बीजेपी वाकई इस पर राजनीति नहीं कर रही है?
क्या वाकई बीजेपी अपने नेताओं के साथ हुए हमले का राजनीतिकरण नहीं करती है? 2019 में बंगाल में ही अमित शाह पर हमला हुआ था. क्या तब उन्होंने राजनीति नहीं की थी? इसका ज़िक्र अपनी सभाओं में नहीं किया था? बिल्कुल किया था. पिछले साल दिसंबर में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा के काफिले पर हमला हुआ तब ममता बनर्जी ने कहा था कि नड्डा नाटक कर रहे हैं.
ममता बनर्जी ने अपने बयान में कहा था कि मैंने प्रशासन से जांच के आदेश दिए हैं लेकिन यह हमला नाटक था लोगों को दिखाने के लिए कि उन पर हमले हो रहे हैं. इतनी जल्दी वीडियो कैसे बन जाता है और वायरल हो जाता है. उनके काफिले में पचास कारें थीं. उसके पीछे तीस कारें थीं. ऐसा कैसे हो सकता है कि आखिरी कार पर पत्थर गिरता है और वीडियो बन जाता है. मैं इसे चुनौती देती हूं. बीजेपी नेता के साथ चले रहे केंद्रीय पुलिस बल के लोग क्या कर रहे थे. ममता ने कहा था कि सिराकोल में ऐसी कोई घटना नहीं हुई थी.
दिसंबर में जे पी नड्डा के काफिले पर हुए हमले को लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जांच के आदेश दिए थे. दिसंबर से आधा मार्च आ गया है. जांच से क्या निकला किसी को पता नहीं है. उस वक्त की खबर देखिए. गृहमंत्री अमित शाह ने बंगाल प्रशासन से बारह घंटे के भीतर रिपोर्ट मांगी थी. इस बीच ट्विटर पर ममता बनर्जी को लगी चोट को लेकर ट्रेंड होने लगा. ज़ाहिर है ये काम तमाम तरह के आई टी सेल का ही होगा.
इस ट्रेंड में आप देख सकते हैं कि कैसे खास तरीके से राजनीतिक असंवेदनशीलता गढ़ी जा रही है जिसे नेता से लेकर समर्थक दोनों ही ज़ाहिर कर रहे हैं. फेक इट लाइक पिशी ट्रेंड कराने वाले वही लोग नहीं होंगे जिनके नेता ममता बनर्जी को लगी चोट को ड्रामा बता रहे हैं? मांग की जा रही है कि इस हैश्टैग को तुरंत ट्वीट किया जाए. ममता की चोट का मज़ाक उड़ाया जा रहा है. कहा जा रहा है कुछ नहीं हुआ. यह जानते हुए भी कि राज्यपाल ममता से मिल कर आए हैं और तस्वीर है कि ममता के पांव में प्लास्टर हुआ है. यहां तक कि अस्पताल की तस्वीर पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं और मज़ाक उड़ाया जा रहा है.
विश्व गुरु भारत की राजनीति का यह स्तर ही अनुकरणीय है. क्या यह ट्रेंड इस डर से कराया जा रहा है कि अस्पताल की तस्वीर को देखकर ममता को कहीं सहानुभूति न मिल जाए? सहानुभूति जता कर राजनीति की निंदा करना, फिर यह भी कहना कि ममता ड्रामा कर रही हैं, हर तरह का बयान दे दो ताकि सुविधा के अनुसार डिबेट में यह भी काम आ जाए और वह भी काम आ जाए. ऐसी सहानुभूति के लिए दहाड़ मार कर रोने का प्रसंग किस किस नेता का है आपको याद भी है?
तब विरोधियों और अन्य लोगों ने कहा कि प्रधानमंत्री के आंसू नहीं हैं ड्रामा है. ममता बनर्जी अपनी चोट को लेकर झूठ फैला रही हैं, राजनीति कर रही हैं इन सबको रोकने के लिए बीजेपी चुनाव आयोग जा रही है, बीजेपी गई भी, सब्यसाची दत्ता और शिशिर बजोरिया ने शिकायत दर्ज कराई है कि हम मुख्यमंत्री को घायल देखकर सदमे में हैं. हम इसकी विस्तृत जांच चाहते हैं. तो तृणमूल के नेताओं ने चुनाव आयोग जाकर नंदीग्राम में हुए कथित हमले की शिकायत कराई और सही जांच की मांग की. डेरेक ओ ब्रायन और राज्य सरकार के दो मंत्रियों ने चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज कराई.
तृणमूल कांग्रेस ने ममता को लगी चोट को लेकर मुद्दा बनाना शुरू कर दिया है. जांच की मांग कर रहे हैं और बीजेपी पर आरोप भी लगा रहे हैं. तृणमूल नेता मदन मित्रा ने मुख्यमंत्री और पार्टी नेता पर हुए हमले को लेकर बेलगढ़िया में विरोध प्रदर्शन की अगुवाई की है. तृणमूल कांग्रेस के सांसद और ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने भी मुख्यमंत्री से मुलाकात की. टीएमसी के विधायक परेश पाल ने बयान दिया कि उनके पांव की स्थिति खराब है. डाक्टर इलाज कर रहे हैं.
अब हम आते हैं 2013 की एक घटना पर. पटना के गांधी मैदान में नरेंद्र मोदी की हुंकार रैली होने वाली थी. पटना में सात बम धमाके होते हैं. पांच बम धमाके गांधी मैदान में होते है जहां पर रैली होने वाली थी. तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी से फोन पर बात तक नहीं की थी. नरेंद्र मोदी उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री थे. आपको कई बयान सुनवा सकता हूं कि बीजेपी के नेता इस बात को लेकर कितने नाराज़ थे.
इसके बाद भी नीतीश और नमो साथ आए और अब तो साथ-साथ सभाएं करते हैं. सरकार भी चल ही रही है. पटना ब्लास्ट में पांच लोगों की मौत हो गई थी और 80 से अधिक लोग घायल हो गए थे. घटना के तुरतं बाद ही इसकी जांच NIA को सौंप दी गई थी और आज सात साल बीत गए हैं. NIA ने दस आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की है. मामला चल रहा है. सज़ा नहीं हुई है. ये हालत है नरेंद्र मोदी की सभा में हुए बम धमाके के मामले की जो देश के प्रधानमंत्री हैं.