'पीटना कम और चिल्लाना ज़्यादा' की कहावत फिट है टीम इंडिया के लिए

टीम इंडिया की फाइल फोटो

मुंबई:

वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया के हाथों हार के बाद टीम इंडिया ने साबित कर दिया कि उसके लिए 'पीटना कम और चिल्लाना ज़्यादा' की कहावत फिट होती है। साथ ही इस शिकस्त से ये भी साबित हो गया की टीम इंडिया के खिलाडी बदलते रहते हैं पर आदत नहीं।

वही आदत कि ये टीम अपने घर में शेर है। एशियाई पिचों पर दहाड़ते हैं। अपने से कमज़ोर टीमों के खिलाफ हर खिलाड़ी सुपरस्टार है। और जैसे ही कंडीशन इनके खिलाफ होती है ये टीम मुंह की खाती है। विदेशी पिचों पर और अच्छे गेंदबाजों व मज़बूत टीम के खिलाफ घुटने टेक देते हैं।

जब सचिन तेंदुलकर का दौर था तब भी ऐसा ही होता था। जब विराट कोहली का समय आया तब भी ऐसा ही हो रहा है। जब सौरव गांगुली कप्तान थे तब भी ऐसी ही परिस्थिति थी और जब महेंद्र सिंह धोनी कप्तान हैं तब भी ऐसे ही हालात हैं।

जब कभी 5 या 10 सालों में टीम इंडिया ऑस्ट्रेलिया या साउथ अफ्रीका जैसी टीमों को हरा देती है शोर मचना शुरू हो जाता है और सब चिल्लाने लगते हैं की टीम इंडिया ने लड़ना सीख लिया, टीम इंडिया बहुत मज़बूत है या टीम इंडिया ही ऑस्ट्रेलिया को टक्कर दे सकती है और फिर अगले मुकाबले में दूध का दूध और पानी का पानी साफ़ हो जाता है।

इस विश्व कप की तरफ अगर देखें हालात वैसे ही हैं। वर्ल्ड कप से पहले ऑस्ट्रेलिया से बुरी तरह हारी थी टीम इंडिया। न बल्लेबाज़ काम आए थे, न ही गेंदबाज मगर वर्ल्ड कप के पहले मुकाबले में पाकिस्तान को हराते ही टीम इंडिया को शेर का दर्जा दे दिया गया। इस बात पर शायद किसी ने गौर नहीं किया की विश्व कप में कभी ना जीतने के दबाव के साथ पाकिस्तान की टीम भी कमज़ोर थी। उसके बाद साउथ अफ्रीका पर जीत हासिल करने के बाद इंडिया को दावेदार बता दिया गया विश्व कप जीतने का। जीत का सिलसिला जारी रहा वेस्ट इंडीज, आयरलैंड जैसी कमज़ोर टीमों को हराकर भारत शेर की तरह दहाड़ने लगा। शोर मचने लगा की इंडिया से बेहतर कोई नहीं।

सभी गेंदबाज दहाड़ रहे थे और कहा जा रहा था कि ये गेंदबाज लाजवाब हैं। ये पूरी दुनियां को आउट कर सकते हैं। बल्लेबाज़ी में भी बांग्लादेश और ज़िम्बाब्वे जैसी टीमों के खिलाफ रैना और रहाणे जैसे बल्लेबाजों का बल्ला खूब बोल रहा था। मगर जैसे ही ताकतवर टीम सामने आई। तेज़ गेंदबाज से टक्कर हुई ज़मीन पर गिर पड़े।

क्वार्टर फाइनल में बंग्लादेश को हराने के बाद लगातार 7 मुकाबलों में जीत का शोर मचने लगा। मगर ये भी देखना ज़रूरी है कि ये 7 विजय किसके खिलाफ मिली। साउथ अफ्रीका के अलावा कोई भी टीम बहुत मज़बूत नहीं थी। करीब-करीब सभी टीमें दूसरे दर्जे की थीं। क्वार्टर फाइनल भी भारत को तोहफे में मिला, क्योंकि इनके सामने बंग्लादेश जैसी कमज़ोर टीम थी। यानी इस वर्ल्ड कप में सिर्फ एक मज़बूत टीम को भारत ने हराया जो साउथ अफ्रीका थी। और जैसे ही दोबारा मज़बूत टीम ऑस्ट्रेलिया का सामना हुआ टीम इंडिया ने घुटने टेक दिए।

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यानी अपनी आदत के मुताबिक पूरे टूर्नामेंट में भारत का सामना 2 बार मज़बूत टीम के साथ हुआ। पहले मुकाबले में साउथ अफ्रीका से जीते और दूसरे मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया से हार गए। तो है न टीम इंडिया अपनी आदत से मजबूर और हुआ न पीटना कम और चिल्लाना ज़्यादा?