पीके का पंच: क्या खिचड़ी पक रही है?

प्रशांत किशोर जो कि देश में राजनैतिक या कहें चुनावी रणनीतिकार के रूप में जानें जाते हैं, ने गांधी परिवार से मुलाकात की है. इस बैठक के बाद से ही राजनैतिक कयासों का बाजार गर्म है.

पीके का पंच: क्या खिचड़ी पक रही है?

प्रशांत किशोर जो कि देश में राजनैतिक या कहें चुनावी रणनीतिकार के रूप में जानें जाते हैं, ने गांधी परिवार से मुलाकात की है. इस बैठक के बाद से ही राजनैतिक कयासों का बाजार गर्म है. इतना बताया गया है कि ये बैठक राज्यों के चुनावों को लेकर नहीं थी बल्क‍ि यह 2024 के लोकसभा चुनाव की रणनीति को लेकर थी. कहा जा रहा है कि प्रशांत किशोर कांग्रेस में कोई बड़ा रोल निभाने वाले हैं. तो क्या प्रशांत किशोर कांग्रेस में शामिल होंगे? कांग्रेस के अगले चाणक्य क्या पीके होने वाले है? इस पर दिल्ली के राजनैतिक गलियारों में खूब चर्चा हो रही है. यह भी कहा जा रहा है कि जो जगह अहमद पटेल के गुजर जाने से खाली हुई है, क्या प्रशांत किशोर उसकी भरपाई करेंगे. क्या प्रशांत किशोर को तमिलनाडु से राज्यसभा में लाया जाएगा. डीएमके नेता स्टालिन ने तमिलनाडु से एक राज्यसभा सीट कांग्रेस को देने का वादा किया है. उधर दिल्ली में प्रशांत किशोर की एनसीपी नेता शरद पवार के साथ हुई दो मुलाकातें भी काफी चर्चा में है. यह भी कहा जा रहा है कि पवार अगले साल इसी महीने होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में क्या विपक्ष के उम्मीदवार होंगे? शायद इसी कोशिश में पीके लगे हुए हैं.

हालांकि जब प्रशांत किशोर की मुलाकात शरद पवार से हुई थी तो तीसरे मोर्चे की बात हुई लेकिन बाद में प्रशांत किशोर और शरद पवार ने इसकी संभावना को खारिज कर दिया और कहा गया कि बिना कांग्रेस के कोई तीसरा मोर्चा संभव नहीं है. कुछ ऐसी ही बातें तेजस्वी यादव और अन्य नेताओं ने भी कही. लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि पीके के पास क्या प्लान है.

कई तरह की बातें कही जा रही हैं. एक शैडो कैबिनेट की भी बात है जिसमें अलग-अलग फील्ड के लोगों को जोड़ा जाए. जिसमें रघुराम राजन, राजीव बजाज, लेफिनेंट जनरल बी एस हुडा जैसे नाम शामिल हैं जो किसी ना किसी रूप में कांग्रेस के साथ सहानुभूति रखते हैं. मगर जो कांग्रेस को जानते हैं उनका मानना है कि 100 साल से अधिक पुरानी इस पार्टी में कोई भी फैसला लेना आसान नहीं होता है. कई बार तो महीनों फैसले होते ही नहीं हैं. फिर कांग्रेस में एक जी-23 भी तो है जो एक तरह से मौजूदा नेतृत्व के खिलाफ बगावत का झंडा उठाए हुए है. उनकी मांग कांग्रेस में हर स्तर पर चुनाव कराने की है. शायद प्रशांत किशोर भी कुछ ऐसा ही सुझाव कांग्रेस आलाकमान को दें. मगर यूथ कांग्रेस में चुनाव कराने का राहुल गांधी का प्रयोग विफल हो चुका है.

देखने वाली बात होगी कि प्रशांत किशोर और कांग्रेस की शैली एकदम अलग है तो दोनों का साथ निभेगा कैसे. क्या गांधी परिवार इतने सारे बदलाव के लिए तैयार होंगे. क्योंकि प्रियंका ने ये घोषणा कर दी है कि अब उनका अधिक समय उत्तर प्रदेश में ही बीतेगा और जहां तक राहुल और प्रशांत किशोर के रिश्ते की बात है, वो नरम गरम बताए जाते हैं. उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में राहुल और अखिलेश यादव की जोड़ी की हार के बाद प्रशांत किशोर ने कांग्रेस की आलोचना की थी और हार के लिए कांग्रेस पार्टी को ही दोष दिया था. हालांकि राहुल और अखिलेश यादव को साथ लाने का करिश्मा भी केवल पीके ही कर सकते हैं. कहा जा रहा है कि तभी से उनकी और राहुल गांधी की मुलाकात कम ही हुई है. मगर प्रियंका गांधी से संर्पक में प्रशांत किशोर हमेशा से रहे.

वैसे आपको बता दूं कि प्रशांत किशोर ने अपने करियर की शुरुआत राहुल गांधी की टीम के साथ की थी मगर बाद में 2012 में नरेंद्र मोदी ने उन्हें गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए बुला लिया. वहां उन्हें सफलता मिली, फिर 2014 का लोकसभा का चुनाव आया जिसमें किशोर ने अहम भूमिका निभाई. उनके द्वारा बनाया गया प्रोग्राम 'चाय पे चर्चा' और 3डी रैलियां काफी सफल रहीं और बीजेपी को अपने बलबूते पर लोकसभा में बहुमत मिला. फिर दोनों के रास्ते अलग हो गए. 2015 में प्रशांत किशोर ने लालू यादव और नीतीश कुमार को साथ ला कर एक और राजनैतिक बवंडर खड़ा कर दिया और बिहार में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा. बिहार में इन दो नेताओं का मिलना एक ऐसी घटना थी जिसकी आप केवल कल्पना भर कर सकते थे. मगर पीके की वजह से यह संभव हो पाया. फिर 2017 में प्रशांत किशोर पंजाब गए और कैप्टन या कहें कांग्रेस को अपार सफलता मिली. 117 की विधानसभा में कांग्रेस को 77 सीटें मिलीं. इस बार भी कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पीके को अपना प्रिसिंपल एडवाईजर बनाया है और उनको कैबिनेट मंत्री का दर्जा हासिल है.

हालांकि 2017 में ही प्रशांत किशोर उत्तर प्रदेश में यूपी के दो छोरे यानी राहुल और अखिलेश वाली मुहिम में फेल रहे. फिर 2019 में आंध्र प्रदेश में जगन रेड्डी को जितवाया तो 2020 में दिल्ली में केजरीवील के साथ हो लिये और आम आदमी पार्टी को दिल्ली में फिर सफलता मिली. फिर इसी साल तमिलनाडु में स्टालिन की और बंगाल में ममता बनर्जी की अपार सफलता ने प्रशांत किशोर की काबिलियत पर मुहर लगा दी. बंगाल चुनाव के बाद प्रशांत किशोर ने एनडीटीवी से कहा था कि अब वो चुनाव का काम नहीं करेगें मगर आईपैक्स जो उनकी ही बनाई कंपनी है, अपना काम करती रहेगी. इसी के तहत ये कंपनी अभी पंजाब चुनाव का काम देख रही है. सवाल फिर वही है कि गांधी परिवार की बैठक में क्या तय हुआ. हमें बताया गया कि यह एक बड़े लक्ष्य के लिए है तो क्या हम आने वाले दिनों में प्रशांत किशोर को संसद में देखेगें या कांग्रेस पार्टी में संगठन के किसी बड़े पद पर?

मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में मैनेजिंग एडिटर हैं...

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