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This Article is From Jul 07, 2017

प्राइम टाइम इंट्रो : नशे की गिरफ़्त में फंसते लोग

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 07, 2017 23:27 pm IST
    • Published On जुलाई 07, 2017 21:58 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 07, 2017 23:27 pm IST
राजनीति और कूटनीति का रास्ता अलग अलग होता है. राजनीति के रास्ते में राहुल गांधी कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी चीन पर चुप क्यों हैं. कूटनीति के रास्ते प्रधानमंत्री मोदी जर्मनी में चीन के राष्ट्रपति की तारीफ करते हैं. आप कहेंगे कि तारीफ क्या डोकलाम वाले मामले में की, बिल्कुल नहीं, चीन के राष्ट्रपति ब्रिक्स देशों के प्रमुख हैं इस वक्त, ब्रिक्स के काम की तारीफ की. बाकी सब चीज़ें वैसी ही चलती हैं जैसी राजनीति और सत्ता चलाना चाहती है. इनकी ताकत इतनी ज़्यादा होती है कि कई बार इनके सेट किये हुए एजेंडे से बाहर दुनिया ही दिखाई नहीं देती है. दिल्ली के सीमापुरी इलाके में हमारे सहयोगी सुशील महापात्रा गए थे. पूरे इलाके में जो नज़र आया, उससे वहां के लोगों को भी चिंतित होना चाहिए और दिल्ली सरकार और पुलिस को भी. कबाड़ी के कारोबार में शामिल बच्चे, किशोर और बड़े लोगों तक ड्रग्स पहुंच गया है.

alcohalrehab.com के अनुसार भारत में तीस लाख ड्रग्स एडिक्ट हैं. इस वेबसाइट पर लिखा है कि वैसे ठीक ठीक गिनती करना मुश्किल है कि कितने ड्रग्स एडिक्ट हैं और कितने का ड्रग्स भारत आता है. बहुत लोगों की हालत इतनी खराब हो जाती है कि उनके पास इलाज के लिए पैसा भी नहीं होता है. सीमापुरी इलाके में जिन नौजवानों ने, महिलाओं ने सुशील से बात की है, उन्हें आप भी सुनिये. किस दुष्चक्र में उन्हें फंसा दिया गया है.

जुलाई 2016 में सरकार ने राज्यसभा में एक आंकड़ा पेश किया था जिसके अनुसार 2014 में 3,647 लोगों ने ड्रग्स और शराब की लत के कारण आत्महत्या की थी. सबसे अधिक महाराष्ट्र में 1372 लोगों ने खुदकुशी की थी. 2014 में दुनिया भर में दो लाख से ज्यादा लोगों ने ड्रग्स के कारण दम तोड़ दिया. इसी मई महीने में दिल्ली पुलिस ने 22 करोड़ का ड्रग्स बरामद किया था. फरवरी 2017 में दिल्ली पुलिस ने 50 करोड़ का पार्टी ड्रग्स पकड़ा था. ये बड़े स्तर पर इस्तेमाल किये जाने वाले ड्रग्स का खेल तो सबको दिख जाता है मगर आम जनता को इसका शिकार बनाकर ये कारोबारी उसे सड़कों पर सड़ने के लिए छोड़ देते हैं. घरों को बर्बाद कर देते हैं. ये दृश्य हम दिल्ली वाले रोज़ ही देखते हैं. देखते देखते भाव शून्य हो चुके हैं. फिर भी एक और बार के लिए ही सही, देख लेना चाहिए.

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