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This Article is From Oct 01, 2019

बिहार के पानी-पानी होने की कहानी

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 01, 2019 01:58 am IST
    • Published On अक्टूबर 01, 2019 01:57 am IST
    • Last Updated On अक्टूबर 01, 2019 01:58 am IST

होना कुछ नहीं है क्योंकि हुआ ही कुछ नहीं था. लेकिन जिन्होंने कुछ नहीं किया वो उन्हें दोषी बता रहे हैं जिन्हें बहुत कुछ नहीं करना था. पटना के लोग मिलकर पटना के लोगों को कोस रहे हैं. कुर्सी वाले बादलों को कोस रहे हैं. एक दुर्घटना की तरह है पटना. अधमरा और चरमराया सा. गनीमत है कि बगल की गंगा के कारण पटना में पानी नहीं जमा है. आप सोच रहे होंगे कि इस तबाही के बाद पटना गंभीर हो जाएगा तो आप फणीश्वर नाथ रेणु को पढ़िए. बाढ़ पर उससे अच्छी रिपोर्टिंग आपको नहीं मिलेगी. 1975 की बाढ़ का रिपोर्ताज ऋणजल धनजल नाम से प्रकाशित है. उसमें जो पटना दिख रहा है वो आज भी वैसा ही है. समय की सारी अवधारणाओं को ध्वस्त करते हुए अपनी अव्यवस्थाओं से परे पटना के लोग लाचार सरकार की तरफ नहीं, पानी की तरफ देख रहे हैं. पानी कितना कम हुआ, पानी कितना आ गया. फर्क इतना है कि पहले देखते थे अब सेल्फी खिंचा रहे हैं. इसी को समझाने के लिए रेणु के दर्ज किए गए हिस्से को पढ़ना चाहता हूं. लेकिन तस्वीरें आज की होंगी. ताकि आपको सुनाई दे 1975 का पटना और दिखाई दे आज का पटना. रेणु लिखते हैं, "मोटर, स्कूटर, ट्रैक्टर, मोटरसाइकिल, ट्रक, टमटम साइकिल, रिक्शा पर और पैदल लोग पानी देखने जा रहे हैं, लोग पानी देखकर लौट रहे हैं. देखने वालों की आंखों में, ज़ुबान पर एक ही जिज्ञासा है, पानी कहां तक आ गया है? देखकर लौटते हुए लोगों की बातचीत- फ्रेज़र रोड पर आ गया. आ गया क्या, पार कर गया. श्रीकृष्णपुरी, पाटलिपुत्र कॉलोनी, बोरिंग रोड, इंडस्ट्रियल एरिया, का कहीं पता नहीं. अब भट्टाचारजी रोड पर पानी आ गया होगा. छाती भर पानी है. विमेंस कॉलेज के पास डुबाव-पानी है. आ रहा है. आ गया. घुस गया. डब गया. बह गया. " रेणु का यह हिस्सा है. आज के पटना में लोग खड़े होकर सेल्फी ले रहे हैं. ये सारे के सारे रेणु के पात्र रामसिंगार हैं जिनका एक ही सवाल है पनिया आ रहलौ ह. पटना के इन रामसिंगारों पर मुझे फक्र हैं. वे 1975 से लेकर आज तक बचे हुए हैं. वे आज भी निकलते हैं, पटना में पानी देखने के लिए. आप इस पटना से उम्मीद न करें कि वह एक नए पटना के लिए अब जागरुक हो गया है. यही वो पटना है जो फेसबुक पर शेयर हो रहा है. आइये पटना की यात्रा करते हैं. 

जो कुरसी पर बैठे हैं वो रामसिंगार नहीं हैं. जिन्हें पटना देखने की जिम्मेदारी दी गई थी वो भी पानी देखने से ज्यादा कुछ नहीं कर पाए. वे भी रामसिंगार बने हुए हैं. पनिया आ रहलौ ह. पटना नगर निगम की मेयर का नाम सीता साहू हैं। 1955 में बने पटना नगर निगम के इतिहास में वे पहली महिला मेयर हैं क्योंकि इस बार मेयर का पद महिलाओं के लिए आरक्षित था. 2017 में मेयर बनी सीता साहू के कई बयानों में पटना को सुंदर और स्मार्ट बनाना मिलता है. सीता साहू इंटर पास हैं और उनके बायोडेटा के अनुसार सरकारी कार्यक्रमों में जाने का अनुभव है. स्वच्छता अभियान चलाना भी इनके बायोडेटा में रेखांकित है. डिप्टी मेयर मीरा देवी हैं जिनके बायोडेटा में अनुभव वाले कालम में कुछ भी नहीं है. इसी जुलाई में मेयर सीता साहू के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया था जिसे उन्होंने आसानी से हरा दिया था. 75 वार्ड वाले पटना नगर निगम की वेबसाइट का पता है. pmc.bihar.gov.in इसे क्लिक करते हुए आपको अधिकारियों के नाम का ज्ञान तो होता है मगर काम का हिसाब नहीं मिलता है. पारदर्शिता का एलान करने वाली इस वेबसाइट में सूचनाओं का भयंकर सूखा है. जहां क्लिक कीजिए अंडर कंस्ट्रक्शन लिखा है.  अंत आपका समय बर्बाद होता है और आप ड्रेनेज, सीवेज, ट्रैफिक, पार्किंग, वाटर सप्लाई के कालम को क्लिक करने पर यही जानते हैं कि निर्माणाधीन है. खुशी की बात है कि इस वेबसाइट पर करीब चार लाख विजिटर दौरा कर चुके हैं. 

वेवबाइसट क्लिक होते ही सम्राट चंदगुप्त की तस्वीर सीना चौड़ा कर देती है. उसके बाद और चौड़ा करने के लिए सम्राट अशोक आ जाते हैं और फिर उससे भी अधिक चौड़ा करने के लिए चिटगौंग से काबुल तक ग्रैंड ट्रंक रोड बनाने वाले शेर शाह सूरी आ जाते हैं. भरोसा होता है कि इतने महान लोगों का पटना वर्तमान में अपने इतिहास की तरह की शानदार होगा. हम बता देना चाहते हैं कि यह वेबसाइट पर अंतिम महान सूचना है. इसके बाद की सूचनाएं लापता हैं. 

जैसे हम सर्कुलर सेक्शन में गए जिससे देखा जा सके कि निगम ने किन कामों के लिए सर्कुलर जारी किया है. सिर्फ तीन सर्कुलर वहां मिले. तीसरे पर पत्र संख्या 5662 लिखा था यानि हज़ारों सर्कुलर वाले पटना नगर निगम की वेबसाइट पर सिर्फ तीन सर्कुलर मिलते हैं. आज भले लोग पटना की व्यवस्था संभालने वालों को नकारा कह रहे हैं लेकिन पटना नगर निगम के एक सर्कुलर से ज्ञात होता है कि नगरपालिका अपने कर्मियों की क्षमता को लेकर कितनी चिन्तित थी. आपके लिए पढ़ रहा हूं ताकि आप खुशी के मारे पानी में तीन डुबकी लगा लें. 

2 मई 2019 को नगर आयुक्त के हस्ताक्षर से जारी इस पीले रंग के पत्र को पीत पत्र कहा गया है. सभी कार्यापालक पदाधिकारी को संबोधित इस पत्र में लिखा गया है कि प्राय यह देखा जा रहा है कि भीषण गरमी में पटना नगर निगम के अंचल कार्यालयों में कार्य करने वाले कर्मियों के बैठने वाले स्थानों पर एयरकंडिशन की सुविधा उपलब्ध नहीं है, जिस कारण कर्मियों की कार्य क्षमता प्रभावित होती है. उक्त के आलोक में निर्देश दिया जाता है कि यथाशीघ नगर प्रबंधन एवं कार्यालय कर्मियों के बैठने वाले स्थान पर एयरकंडिशन लगाना सुनिश्चित करें. 

इसी मई में निगम ने अपने कर्मचारियों की क्षमता बढ़ाने के लिए एयरकंडिशन लगवा दिए थे फिर भी सितंबर में जब पानी भर गया तो उस क्षमता का पता नहीं चला. निगम की वेबसाइट से कुछ पता नहीं चलता है जैसे कितनी आबादी है, नालों की लंबाई कितनी है, ड्रेनेज की सफाई के लिए एस टी पी प्लांट अभी बन रहा है यानि था नहीं. निगम के राजस्व का कोई रिकार्ड नहीं मिला. 2011 की जनगणना के मुताबिक पटना की आबादी 20 लाख है. पटना का थोड़ा इतिहास भी बताना चाहता हूं. ये सब सवाल महत्वपूर्ण नहीं है कि पिछले दिनों पटना का निगम आयुक्त कौन था, किसका खास था, क्या किया किसी को पता नहीं. मौजूदा आयुक्त क्या कर रहे हैं उनकी बात कहीं नहीं. ख़ास लोगों को ही ऐसे पद मिलते हैं जिनके कारण पूरा शहर खांसता रहता है. 

आप जिस पटना को वहां की हिन्दी में जलप्लावित देख रहे हैं, उसे आस्ट्रेलिया में पढ़े आर्किटेक्ट जोसेफ़ एफ मनिंग्स ने बनाया था. बिहार ओडिशा के पहले लेफ्टिनेंट गवर्नर चार्ल्स स्टुअर्ट बेली ने ढाका में काम कर रहे मनिंग्स को बुलाया था. उसी वक्त दिल्ली में लटियन की नई राजधानी को लेकर चर्चा थी लेकिन भारत में एक और राजधानी उससे बनकर तैयार हो गई जिसे मनिंग्स ने 1912 से 1916 के बीच पूरा किया था. E आकार का सचिवालय बना. राजभवन और पटना पोस्ट आफिस भी मनिंग्स की कल्पना है. पटना का किंग जार्ज एवेन्यु 200 फीट चौड़ा था जिसके दोनों तरफ अमलतास और गुलमोहर के पेड़ लगे थे. पटना हाईकोर्ट को छोड़ बाकी सारी इमारतों का नक्शा मनिंग्स ने बनाया था. पटना हाईकोर्ट के बारे में कहा जाता है कि न्यूज़ीलैंड के सरकारी इमारतों की तरह है. मनिंग्स के पटना के बारे में न्यूज़ीलैंड में काफी शोध हुआ है. क्योंकि मनिंग्स की पैदाइश न्यूज़ीलैंड की थी. मनिंग्स को इस बात का अफसोस था कि उसे नदी के मैदान में पटना नहीं बसाना चाहिए था. मनिंग्स ने कहा था कि उस इलाके में लोग नावों में सवार घूमा करते थे. वहां पर शहर नहीं बसाना था. सोण नदी के छोड़े हुए मैदान पर पटना को बसाया था. 1925 में मनिंग्स ने कहा था कि पटना को लेकर जो जलनिकासी का प्लान बनाया था उस पर अमल नहीं हुआ. ये सारी जानकारी हेतुकर झा, विश्वमोहन झा और विशाल शरण नाम के इतिहासकार और शोधार्थियों से मुझे मिली थी। कम समय और कम खर्चे में मनिंग्स ने एक नया शहर बना दिया जिसकी तुलना दिल्ली से होती थी. मनिंग्स के पटना बनाने के बाद ही पुराना पटना पटना सिटी कहा जाने लगा. इसी मनिंग्स के बनाए गोल मार्केट को स्मार्ट सिटी के लिए ढहा दिया गया. 

पटना के कवरेज में राजेंद नगर ज्यादा है, कंकड़बाग ज्यादा है क्योंकि वहां पटना के बचे हुए एलिट रहते हैं. अभिजन. पटना के गरीब इलाकों का क्या हाल है यह पता नहीं चल पा रहा है. वहां के लोग वीडियो बनाकर मुझे व्हाट्स एप कर रहे हैं. पटना जैसे तैसे बसाया गया शहर है.  यहां हर वक्त दुर्घटना की आशंका रहती है मगर होती कभी कभी है. 10 करोड़ की आबादी वाले बिहार की यह राजधानी सरकारी कालोनियों, रिटायर आई ए एस अफसरों और पुराने ज़माने के डाक्टरों की कालोनी में ही पहुंच कर राजधानी लगती है. बाकी पटना अपने दम पर बसता आया है. 

शनिवार को 21 घंटे के अंतराल में 140 एम एम की बारिश हुई. इसके बाद गया और भागलपुर में ज़्यादा बारिश हुई है. भागलपुर का भी हाल बुरा है. मुज़फ्फरपुर और हाजीपुर में स्थिति अच्छी नहीं है. सबका हाल पटना जैसा है. कम समय में ज़्यादा बारिश गिरने के कारण पटना का नीचला इलाका भर गया. ज़ाहिर है शहर का ड्रेनेज अच्छा नहीं होगा लेकिन बारिश भी सामान्य से ज़्यादा थी. पटना के लोग बारिश के दिनों में जल जमाव के आदि हैं. इसलिए वे सड़कों पर चलते हुए सामान्य नज़र आते हैं. बस इस बार घुटनों तक जमा रहने वाला पानी गर्दन तक ही तो आया है. शो रूम डूब गए. ज़ाहिर है कुछ लाख की बर्बादी होगी. एक डेंटल डाक्टर की क्लिनिक का सारा सामान बेकार हो गया. कितने  लाख या करोड़ का सामान बर्बाद हुआ है इसका आंकलन अभी चार पांच महीने चलेगा जिसका नतीजा निकलेगा ज़ीरो. यहां के गली मोहल्लों में लोग फंसे हैं मंत्रियों तक के घर डूब गए.  सोचिए जब बारिश का पानी इतना भर सकता है तो इतनी ही बारिश दो तीन दिन और हो जाए तो क्या होगा. मुख्यमंत्री कहते हैं कि उनके हाथ में नहीं था और अब मदद पहुंचाई जा रही है. इस बीच डिप्टी सीएम को सरकार ने उनके घर से सफलतापूर्वक निकाल लिया है.  सुशील मोदी अपने ट्विटर हैंडल से अखबारों की क्लिपिंग ट्वीट कर रहे थे कि धैर्य रखें. लेकिन खुद अपना हाल नहीं बताया कि वे अपने घर में पानी के कारण फंस गए हैं. मय सामान के साथ निकाले गए. बरसातोनुकूल परिधान में जब डिप्टी सीएम आए तो लोगों ने राहत की सांस ली. नाव से उतरते हुए उन्हें एक्शन में देखकर किसी को लग सकता है कि सुशील मोदी जी राहत व बचाव कार्य का मोर्चा संभाले हुए हैं. बाद में फैमिली के साथ यह स्टिल पिक्चर आपको भरोसा देती है कि जब उप मुख्यमंत्री बचाए जा सकते हैं तो बाकी पटनावासी भी धैर्य रखें. वे भी बचा लिए जाएंगे. 

मौसम विभाग को पता नहीं है लेकिन राजधानी पटना को पता होना चाहिए कि बारिशों के तेवर बदल गए हैं. अब कभी भी किसी भी शहर में कम समय में ज्यादा बारिश हो सकती है. शहर का शहर डूब सकता है. हजैसे चेन्नई डूब गया था. उसके पहले मुंबई डूब गया था. अभी पिछले हफ्ते पुणे शहर में बारिश ने भयंकर तबाही मचाई थी. 

25 सितंबर की रात चार घंटे में 100 मिलीमीटर बारिश हो गई. इसके कारण पुणे के नालों में तूफान आ गया और कालोनी से लेकर सड़कों पर पानी भर गया. 30000 से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना पड़ा. 22 लोगों की मौत हो गई. यहां की कई हाउसिंग सोसायटी में नाले का गाद भर गया है जिसे अभी तक लोग हटाने में लगे हैं. गली गली में गंदा कचरा फैल गया. गाड़ियां पानी में डूब गई. पानी का प्रवाह इतना तेज़ था कि लोग खुद को संभाल नहीं सके. पुणे म्यूनिसिपल कारपोरेशन ने 83 कालोनियों की सफाई के लिए विशेष योजना बनाई है. 2015 में चेन्नई में यही तो हुआ था कि जिस दिसंबर में पूरे महीने 191 मिलीमीटर बारिश होती थी वहां 539 मिलीमीटर बारिश हो गई. सामान्य से तीन गुना बारिश जमा हो गई. 500 से अधिक लोग मर गए थे. 18 लाख विस्थापित हुए थे. पहली मंज़िल तक के मकान डूब गए. ऐसी बारिश 2005 में हुई थी. 26 जुलाई 2005 की मुंबई की बाढ़ में 1000 से अधिक लोग मर गए थे. 

इसलिए अब कोई कहे कि बारिश अधिक हो गई और हमारे हाथ में नहीं था ठीक नहीं होगा. सरकारों को बताना चाहिए कि उन्होंने अपने शहर को कैसे तैयार किया है. 2017 में पटना को पहली महिला मेयर मिलीं थी उसी साल पटना स्मार्ट सिटी में शुमार हुआ था.  2019 बीतने जा रहा है. कई अखबारों में पटना के स्मार्ट सिटी बनने की खबरें छपी हैं.  उनके हिसाब से स्मार्ट सिटी का हाल बहुत अच्छा नहीं लगता है. 

जैसे नवंबर 2017 में खबर आती है कि किसी स्पेनिश फर्म को स्मार्ट सिटी बनाने का ठेका दिया जाएगा. 2700 करोड़ की योजना होगी जिसमें से 930 करोड़ केंद और राज्य सरकार देगी. बाकी पैसा पी पी पी माडल से आएगा. नवंबर 2017 में बयान आता है कि स्पेनिश फर्म को तीन हफ्ते के भीतर काम शुरू करना होगा. फिर अक्तूबर 2018 की खबर छपी मिली कि दिसंबर 2018 से स्मार्ट सिटी के पहले चरण का काम शुरू होगा. पहले चरण में 419 करोड़ खर्च होंगे. जैसे जन सुविधा केंद, गांधी मैदान में ओपन थियेटर बनेगा. 254 करोड़ की लागत से 3000 सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएंगे और 25 करोड़ की लागत से 36 सोलर पैनल लगेंगे. पटना की दो तीन सड़कों को सीसीटीवी कैमरा और लाइट से सजाकर नागरिकों के सामने माडल रोड की तरह पेश किया जाएगा. अगर ये सारी चीज़ें आज लागू हो चुकी होती और पटना स्मार्ट सिटी हो गया होता तो आप ही बताइये कि पटना की यह जो समस्या आप देख रहे हैं, उसका समाधान होता? आप मगही में भी उत्तर दे सकते हैं. इसके बाद खबर छपी मिलती है कि स्मार्ट सिटी के प्रथम चरण का काम जून 2019 से शुरू होगा. फिर एक खबर मिलती है कि पहले चरण का काम अगले साल यानि 2020 से शुरू होगा. अगर आप पूरा डिटेल देखेंगे तो पता चलेगा कि सारा पटना कभी स्मार्ट सिटी नहीं होगा. कुछ हिस्से को नुमाइश की तरह सुंदर बना कर पूरे शहर को बताया जाएगा कि आप स्मार्ट हो गए. पटना स्मार्ट सिटी की वेबसाइट पर बाकगरंज और मंदिरी नाला को साफ कर सुंदर बनाने की बात है. बस इतना ही. 

किसी को पता नहीं कि स्मार्ट सिटी सुंदरता के नाम पर खानापूर्ति से अधिक नहीं लेकिन बगैर किसी ठोस जानकारी के लोगों की लानतों में स्मार्ट सिटी प्रवेश कर गया है. पानी से तबाह लोग स्मार्ट सिटी को कोस रहे हैं जबकि सीवेज और ड्रेनेज की योजना अटल नवकरण और शहरी परिवर्तन मिशन के तहत आते हैं. जनवरी 2018 की खबरों के अनुसार राज्य कैबिनेट ने पटना में स्टार्म वाटर ड्रेनेज प्रोजेक्ट को मंज़ूरी दी थी. मीठापुर से बेऊर मोड़ तक बनना था. 85 करोड़ की यह योजना का कहां हैं पता नहीं. इसकी उचित जानकारी हमें नहीं हैं. जब तक हम ऐसी योजनाओं का मूल्यांकन नहीं करेंगे पटना के संकट और समाधान को ठीक से नहीं समझ सकते. कोस सकते हैं वो तो सब कर रहे हैं. 

संदीप धालीवाल अमरीका के टैक्सस के हैरिस काउंटी में डिप्टी शेरिफ बने थे. पहले सिख शेरिफ थे. शुक्रवार को उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई. संदीप धालीवाल की हत्या को लेकर अमरीका सदमे में है. 

एएआज संदीप धालीवाल को ह्यूस्टन के उसी एन आर जी स्टेडियम में श्रद्धांजलि दी गई जहां प्रधानमंत्री मोदी की रैली हुई थी. फुटबाल मैच से पहले संदीप को जब श्रद्धांजलि दी गई तब पूरा स्टेडियम खामोश हो गया. वहां संदीप के काम का वीडियो दिखाया गया. शनिवार को लोगों ने भी संदीप के लिए कैंडल मार्च निकाला था. पूरा शहर संदीप धालीवाल को तरह तरह से याद कर रहा है. संदीप धालीवाल को पगड़ी पहनने की इजाज़त दी गई थी. उनके शेरफि एड गोज़ालिस ने कहा है कि पगड़ी समुदाय के ईमानदारी, सम्मान और गौरव का प्रतीक थी. ह्यूस्टन के मेयर ने भी संदीप धालीवाल की तारीफ की. वह सहिष्णुता का प्रतीक थे. 

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