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This Article is From Aug 19, 2016

ओलिंपिक में भारत और भारत में महिला खिलाड़ी...

Anita Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 19, 2016 18:49 pm IST
    • Published On अगस्त 19, 2016 16:27 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 19, 2016 18:49 pm IST
कुछ तथ्‍य-
ओलिंपिक 2016 से पहले: 1900 से समर ओलंपिक में खेलना शुरू, 1924 में पहली बार 2 महिला खिलाडि़यों ने लिया ओलिंपिक में भाग, 2012 तक कुल 26 मेडल, 26 में से सिर्फ 3 ही महिलाओं के हिस्‍से, कर्णम मल्लेश्वरी ने जीता महिला श्रेणी में पहला पदक, 2012 सबसे ज्‍यादा 6 मेडल जीते.

ओलिंपिक 2016:
भारत का अब तक का सबसे बड़ा दल, एक से एक महारथी खिलाड़ी, कई खेलों में पहली बार उतरे थे भारतीय खिलाड़ी, ओलिंपिक मेडल जीतने वाली चौथी भारतीय महिला बनी साक्षी मलिक, पीवी सिंधु का पदक भी पक्‍का हुआ.

भारत की महिला पहलवान ने जीता कांस्‍य, दीपा कर्मकार ने जीता लाखों का दिल, भारतीय महिला हॉकी टीम का शानदार प्रदर्शन...

...सच कहती हूं इस तरह की खबरें सिर्फ एक महिला को ही नहीं पुरुषों को भी रोमांचित करती हैं. देश के हर गांव, हर कस्‍बे और हर शहर में लोग अपने घर की बेटी को बड़ी उम्‍मीदों से देखने लगते हैं. पर कभी-कभी मन में एक बात आती है, कि आखिर कैसा होता होगा उस परिवार का माहौल जहां भ्रूण हत्‍या को अंजाम दिया गया होगा, क्‍या वह लोग आपस में नजर मिला पाते होंगे, क्‍या देश की बेटी की जीत से उनका सीना चौड़ा होता होगा... या ऐसे मौके पर जब देश जश्‍न मनाता है, वे अंधेरे बंद कमरे में अपने बेटों के साथ भविष्‍य की कोरी कल्‍पनाएं बुनते होंगे...

खैर, हम ऐसे लोगों को उनके अंधेरे कमरे में बंद उज्‍ज्‍वल सपनों के साथ छोड़ कर आगे बढ़ते हैं... तो कौन कहता है भारत अपनी बेटियों से प्‍यार नहीं करता. जब भी भारत का कोई खिलाड़ी ओलिंपिक पदक जीतता है, तो हर भारतीय खुश होता है. लेकिन जब वह पदक जीतने वाला खिलाड़ी कोई महिला होती है, तो खुशी की सीमाएं ही समाप्‍त हो जाती हैं...

भारत ने हर महिला खिलाड़ी का सम्‍मान किया है, चाहे वह जीती हो, न जीती हो या जीत के करीब पहुंच कर लौटी हो... सबसे पहले 1988 में भारत की एथलीट पीटी ऊषा ने अपनी प्रतिभा से सबका दिल जीत लिया था. वे 1980 में ओलंपिक में फ़ाइनल तक पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला बनी. फिर क्‍या था हर कोई पीटी ऊषा का ही उदाहरण पेश करने लगा था.

कुछ ऐसा ही 2016 के ओलिंपिक में जिम्नास्टिक्स में दीपा कर्मकार ने किया है. वह भले ही भी चौथे नंबर पर रही, लेकिन भारत की लोगों ने उन्‍हें वह जगह दी है, जो ओलिंपिक में गोल्‍ड जीतने के बाद मिलती...ओलिंपिक में पहली बार भाग ले रहीं भारत की युवा महिला गोल्फर अदिति अशोक ने भी अपने खेल से सबका ध्‍यान खींचा.

अगर कहा जाए कि कर्णम मल्लेश्वरी ने ओलिंपिक में महिलाओं के लिए खाता खोला तो गलत नहीं होगा. कर्णम मल्लेश्वरी के सिडनी ओलंपिक में मेडल जीतने से पहले भारत की किसी महिला ने ओलंपिक मेडल नहीं जीता था.

मल्लेश्वरी द्वारा 2000 में महिलाओं के 69 किलोवर्ग की भारोत्तोलन में कांस्य पदक जीतने के बाद साइना नेहवाल ने भी महिलाओं का लोहा मनवाया. उन्‍होंने 2012 ओलंपिक में कांस्य पदक जीता और वे भी बैडमिंडन में ओलंपिक मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनीं. मुक्‍केबाजी में एमसी मेरी कॉम ने 2012 में लंदन ओलंपिक में भारत को मुक्केबाज़ी में पदक दिलाया था.

किसी महिला का जीतना क्‍यों इतना अहम है. इस बात के पीछे महिलावादी विचारधारा के लोग शायद बहुत से तथ्‍य, सामाजिक असमानता और जानें कैसे-कैसे कारण बता सकते हैं. लेकिन खुद एक महिला होने के नाते मुझे किसी महिला की जीत ऐसी लगती है, जैसे वह जो करना चाहती थी उसमें सफल हुई, एक और बेटी ने अपनी जिद पूरी की...

अक्‍सर जब भी महिला खिलाड़ी जीतती है, तो वह बड़ा मुद्दा हो जाता है. यह अच्‍छा भी है, हर खिलाड़ी की जीत का सम्‍मान होना और उसे गौरवान्वित महूसस कराना भी जरूरी है. लेकिन अच्‍छा होगा अगर खिलाड़ी को खिलाड़ी ही रहने दिया जाए, उसे महिला-पुरुष में बांटा न जाए…


अनिता शर्मा एनडीटीवी खबर में चीफ सब एडिटर हैं।
 
 
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