पिछले दिनों देशभर में असहिष्णुता का मामला छाया रहा। अब भी कई बार ये शब्द कानों में पड़ ही जाता है। केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार बनने के बाद देश में असहिष्णुता बढ़ने की बात तमाम लोगों ने की। वैसे तो इस मुहिम के कई चेहरे हैं, लेकिन प्रमुख राजनीतिक चेहरा कांग्रेस पार्टी ही है। असहिष्णुता के मुद्दे पर बवाल करने वाली कांग्रेस ने आखिर दिखा दिया कि वो खुद कितनी असहिष्णु है।
नेशनल हेरल्ड मामले में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी की याचिका हाईकोर्ट में खारिज क्या हुई पूरी कांग्रेस पार्टी बिलखने लगी। याचिका खारिज होने का सीधा मतलब यह था कि सोनिया और राहुल गांधी को कोर्ट में पेश होना होगा। बस फिर क्या था... कांग्रेस पार्टी का असहिष्णु चेहरा बेनकाब हो गया।
एक कोर्ट द्वारा याचिका खारिज होने और दूसरी कोर्ट के आदेश पर अदालत में पेश होने के मामले को कांग्रेस के तमाम नेताओं ने केंद्र सरकार की बदले की कार्रवाई करार दिया। शायद कांग्रेस के बड़े-बड़े और अनुभवी नेता ये भूल गए कि कोर्ट के काम में किसी सरकार का दखल नहीं होता। कम से कम कांग्रेस पार्टी को तो ये पता होना ही चाहिए, क्योंकि आजादी के बाद सबसे ज्यादा सत्ता सुख कांग्रेस ने ही भोगा है।
केंद्र सरकार पर बदले की कार्रवाई का आरोप लगाते हुए कांग्रेस नेताओं ने संसद में हंगामा किया और कार्यवाही रोकने की कोशिश की। तमिलनाडु में बाढ़ पीड़ितों के हाल जानने गए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने वहां भी मीडिया से बात करते हुए इस मामले में केंद्र सरकार पर बदले की कार्रवाई का आरोप लगा दिया।
अपने किए और उस पर कोर्ट की कार्रवाई के लिए सरकार पर आरोप लगाने व संसद की कार्यवाही रोकने वाली कांग्रेस के लिए अब तो कहना ही पड़ेगा... असहिष्णुता पर बवाल करने वाले तो खुद बड़े असहिष्णु निकले।
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