राज्यसभा में केंद्र सरकार की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं... पहले साध्वी निरंजन ज्योति के बयान पर बवाल होता रहा और अब महंत आदित्यनाथ के धर्म परिवर्तन के मामले पर गतिरोध बना हुआ है... मामला उत्तर प्रदेश का है तो मायावती और समाजवादी पार्टी भी एक हो जाती हैं... कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बीएसपी और लेफ्ट ने यह तय किया है कि जब तक प्रधानमंत्री राज्यसभा में आकर यह आश्वासन न दे दें कि इस तरह से धर्मपरिवर्तन नहीं किया जाएगा, तब तक राज्यसभा को नहीं चलने दिया जाएगा।
सरकार के पास राज्यसभा में बहुमत है नहीं... इसी वजह से किसी भी मुद्दे पर विपक्ष सरकार को घेर लेता है... दूसरे, बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस के काफी खराब हो चुके रिश्तों का असर भी राज्यसभा की कार्यवाही में बखूबी देखा जा सकता है... तृणमूल कांग्रेस के 12 राज्यसभा सदस्य हैं, जिनमें से दो शारदा चिटफंड घोटाले में जेल में हैं... बचे 10 में से अकेले डेरेक ओ ब्रायन राज्यसभा को स्थगित करा ले जाते हैं, और यदि मुद्दा सांप्रदायिकता से जुड़ा हो तो सारा विपक्ष हां में हां मिला देता है...
संख्या की इसी वजह से जहां सरकार लोकसभा में मजे कर रही है, वहीं राज्यसभा में उसे अलग रणनीति बनानी पड़ रही है... कई महत्वपूर्ण बिलों के लिए उसे पूरी तरह कांग्रेस पर निर्भर होना पड़ रहा है... कांग्रेस भी इन बदले हालात का फायदा उठा रही है... जिन बिलों को अपनी सरकार में पास कराने के लिए कांग्रेस बीजेपी से मिन्नतें करती थी, अब उन्हीं बिलों का वह खुद विरोध कर रही है... यही वजह है कि इंश्योरेंस बिल अटका हुआ है, हालांकि बीजेपी ने कांग्रेस को पटा लिया है और अब उसके 50 से अधिक संशोधनों को पास करने के लिए राजी हो गई है... लेकिन ऐसा सभी बिलों के साथ नहीं किया जा सकता...
दूसरा विकल्प है, संसद का ज्वांइट सेशन, यानि लोकसभा और राज्यसभा का संयुक्त सत्र बुलाया जाए, तब संख्या सरकार के पक्ष में हो जाती है... लेकिन ऐसा कितने बिलों के लिए किया जाएगा... बार-बार ज्वांइट सेशन बुलाने से सरकार की किरकिरी भी होगी... और सरकार की यही हालत अगले साल मानसून सत्र तक बनी रहेगी, क्योंकि तब कहीं जाकर सरकार के पास राज्यसभा में बहुमत होगा...