भूमि अधिग्रहण बिल सरकार के गले की फांस बन गया है। एक तरफ सोनिया गांधी 14 पार्टियों को एकजुट कर राष्ट्रपति तक पंहुच गईं तो दूसरी तरफ जंतर-मंतर पर देशभर से आए किसानों ने डेरा डाल दिया है।
पंजाब, बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडुु, केरल से आए करीब 3000 ग्रामीण निवासी भारतीय किसान यूनियन की अगुवाई में देश की राजधानी में अपनी मांगों को लेकर पहुंचे हुए हैं। एनडीए सरकार ने संशोधनों के साथ ये बिल लोकसभा में तो पास करा लिया है, लेकिन राज्यसभा तक इसे लाना सरकार के लिए मुश्किल हो रहा है।
इस सत्र में पास कराना तो दूर, सवाल सरकार की नीयत पर भी उठने लगे, जब उसे संशोधन लाने पड़े। विकास के नाम पर सरकार पर पूंजीपतियों की तरफदारी के आरोप लगने लगे। लगातार बदलाव से अस्थिरता का भाव झलकने लगा। कॅन्सेन्ट क्लॉज को लेकर किसान आहत हो गया जो कि उसके अधिकार पर हस्तक्षेप-सा दिखा।
यूपीए के बिल के बाद इस एक कदम से उसके विश्वास और अहम को ठेस पहुंची। भारतीय किसान यूनियन के नेता युद्धवीर सिंह का कहना है कि देश की 64000 किलोमीटर रेलवे लाइन, सवा दो से ढाई लाख किलोमीटर नेशनल हाइवे, पांच लाख किलोमीटर स्टेट हाइवे के दोनों तरफ एक-एक किलोमिटर ज़मीन सरकार ले लेगी। भारतीय किसान यूनियन के राकेश टिकैत का कहना है कि एक परिवार में अगर चार बेटे हों तो किसको नौकरी दी जाएगी इस पर फूट पड़ जाएगी।
किसान नेताओं का कहना है कि 4 गुना तक मुआवजा दिया जा सकता है, कब तक मिलेगा ये कुछ साफ नहीं। और अगर ज़मीन लेने पर काम न शुरू हुआ तो किसान दोनों तरह से मारा जाएगा। बहरहाल मसले कई हैं। ग्रामीण भारत में बहुतों के पास ज़मीन नहीं है।
जंतर-मंतर पर मौजूद महिलाओं ने बताया कि जौनपुर के पास जिस गांव से वे आई हैं वहां न तो बिजली है, न घर और न ही उन्हें पेन्शन मिल रही है। किसी ने कहा, सरकारी स्कूल सिर्फ पांचवीं तक है, बच्चों को आगे कैसे पढ़ाएं, फसल बर्बाद हो गई, खाने के लाले पड़ रहे हैं।
सरकार का कहना है कि वह ग्रामीण इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना चाहती है। इन इलाकों में विकास करना चाहती है। मंत्रियों और संत्रियों से कहा गया है कि बिल पर फैलाये जा रहे भ्रम जनता के बीच जाकर साफ करें। अब 22 तारीख को प्रधानमंत्री किसानों से मन की बात करने वाले हैं। देखते हैं वह किसानों को कितना संतुष्ट कर पाते हैं।