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This Article is From Oct 19, 2022

नए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के सिर पर है 'कांटों का ताज'

Manoranjan Bharati
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 19, 2022 21:28 pm IST
    • Published On अक्टूबर 19, 2022 21:28 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 19, 2022 21:28 pm IST

मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के नए अध्यक्ष होंगे, वो चुनाव जीत गए हैं. चुनाव में उन्होंने शशि थरूर को हराया. खड़गे को 7897 वोट मिले, जबकि थरूर को 1072 मत प्राप्त हुए. वोटों की संख्या के लिहाज से आप देंखे तो ये कह सकते हैं कि शशि थरूर को अच्छा खासा वोट मिला है.

थोड़ा कांग्रेस के इतिहास में चलते हैं, 37 साल पुरानी पार्टी है लेकिन ये कांग्रेस में सिर्फ छठा चुनाव है. इससे पहले 1939, 1950, 1977, 1997, 2000 और अब 2022 में चुनाव हुए. 1997 और 2022 मैंने कवर किया, ये मेरे आंख के सामने हुआ है. सबसे मजेदार चुनाव 1939 का था. कांग्रेस पार्टी के इतिहास में वह सबसे दिलचस्प चुनाव था. क्योंकि पी सीतारमैया और नेता जी सुभाषचंद्र बोस के बीच मुकाबला हुआ था. पी सीतारमैया महात्मा गांधी के उम्मीदवार थे, इसके बावजूद सुभाषचंद्र बोस ने उन्हें चुनाव में हरा दिया था.

इसके बाद 1997 में जो चुनाव हुए उसके बारे में चर्चा करना चाहूंगा. इसमें सीताराम केसरी के खिलाफ शरद पवार और राजेश पायलट खड़े थे, और उस वक्त शरद पवार को 882 वोट मिले थे, जबकि राजेश पायलट को 354 वोट हासिल हुए थे. यानि इस संख्या के लिहाज से देखें तो शशि थरूर को 1000 से ज्यादा वोट मिले हैं. ये अपने आप में अच्छी बात मानी जाएगी, क्योंकि उसके लिए 2000 के चुनाव का जिक्र करना चाहूंगा, जहां सोनिया गांधी के खिलाफ जितेंद्र प्रसाद खड़े थे 
और उन्हें महज 94 वोट मिले थे, वो 100 का आंकड़ा भी नहीं छू पाए थे.

इस चुनाव में मल्लिकार्जुन खड़गे 7897 वोट लेकर जीते हैं. उनका अपना एक लंबा करियर रहा है. मजदूर नेता के रूप में उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी. इंदिरा गांधी के समय से वो राजनीति कर रहे हैं, कर्नाटक में 9 बार के विधायक रह चुके हैं. विधायक का चुनाव वो कभी नहीं हारे. दो बार लोकसभा के सांसद रहे, श्रम मंत्री रहे, रेल मंत्री भी रहे. फिर लोकसभा में कांग्रेस के नेता भी रहे. अभी मौजूदा समय में राज्यसभा के सासंद हैं और विपक्ष के नेता हैं, जिनको कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला हुआ है.

मल्लिकार्जुन खड़गे के पास 53 साल का लंबा राजनीतिक अनुभव है. 24 साल के बाद कोई गैर गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठा है. इससे पहले सीताराम केसरी कांग्रेस अध्यक्ष बने थे. यहीं नहीं खड़गे दलित समुदाय से आते हैं और जगजीवन राम जो 1970 में कांग्रेस अध्यक्ष बने थे, उनके बाद दूसरे दलित नेता हैं जो इतने लंबे अंतराल के बाद कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठेंगे.

अब क्या चीज़ है जो मल्लिकार्जुन खड़गे को विशेष बनाती है, क्या चीज़ें हैं जो मल्लिकार्जुन के फेवर में जाती हैं, सबसे बड़ी बात ये है कि उनको संगठन का अनुभव है, 53 साल तक पार्टी में रहने की वजह से अलग-अलग पदों पर रहे हैं. वो कर्नाटक के गृह मंत्री तक रहे, हालांकि कर्नाटक के मुख्यमंत्री नहीं बन पाए. नौ बार विधायक बनना और ग्रास रूट से ऊपर आना ये उनकी सबसे बड़ी खूबी है. दूसरा उनके बारे में कहा जा रहा है कि चूंकि इतना लंबा अनुभव है, लोकसभा में भी दो बार रहे हैं. राज्य सभा में भी विपक्ष के नेता हैं तो उनको आसानी होगी यदि वो जो सेक्युलर पार्टी के नेता के साथ बातचीत करते हैं. गठबंधन का या चुनाव के बाद गठबंधन का या कोई अलायंस की बात होगी तो उसके लिए खड़गे साहब सही व्यक्ति माने जा रहे हैं.

इसके अलावा खड़गे साहब के पास कई चुनौतियां भी हैं, कांग्रेस अध्यक्ष का पद कहा जाता है कि कांटों का ताज है, तो सबसे बड़ी चुनौती खड़गे साहब के पास क्या है, सबसे बड़ी चुनौती यह है कि जिस ढंग से पार्टी का वोट बैंक स्थिर हो गया है, लगातार दो चुनाव में हार के बाद एक गैर गांधी की जो आवाज़ उठी थी जी-23 की तरफ से, उसको देखते हुए गांधी परिवार ने यह तय किया था कि कोई गांधी इस बार अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लडे़गा, तो अब खड़गे साहब के पास चुनौती होगी कि 
युवाओं को वो आगे कैसे लेकर आते हैं और गैर परिवारवाद लोगों को कैसे आगे लेकर आते हैं.

सबसे बड़ा सवाल अब यह है कि क्या खड़गे संगठन में परिवर्तन करेंगे, जो कांग्रेस की एक डिसीजन मेकिंग बॉडी है, जिसको कांग्रेस कार्य समिति कहते हैं CWC कहते हैं, तो क्या CWC के लिए भी चुनाव होगा? क्या राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष के लिए भी चुनाव किए जाएंगे? क्या जो विभिन्न संगठन है, जैसे महिला कांग्रेस है, युवा कांग्रेस है, सेवा दल है, क्या इनमें भी चुनाव कराया जाएगा? क्या वहां भी यही प्रक्रिया दोहराई जाएगी? ये सबड़गे साहब के लिए चुनौती होगी. लोग इन पर उनकी राय जानना चाहेंगे कि वो क्या करना चाहते हैं.

सबसे बड़ी बात यह है कि उनको एक वर्ग को जनता को कांग्रेस से जोड़ना पड़ेगा. उनका जो वोट बैंक फिसल गया है, एक समय ट्रेडिशनल वोट बैंक हुआ करता था. ऊंची जाति के और दलित जाति के वोट होते थे, अब यह पूरा कॉम्बिनेशन जो है बिखर गया है. क्षेत्रीय दल आने के बाद कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगी है, अब अध्यक्ष बनने के साथ ही यह चुनौती होगी. अब दो राज्यों गुजरात और हिमाचल में चुनाव होने वाले हैं. दोनों जगह कांग्रेस प्रचार करती दिख नहीं रही है. एक तरह से सीन से गायब है, तो खड़गे साहब कितनी जान फूंक पाएंगे, गुजरात और हिमाचल में अपनी पार्टी में, क्योंकि उसके नतीजे के ऊपर ही उनको जज किया जाएगा.

तीसरा राज्य जो चुनाव में जाने वाला है वो है कर्नाटक, ये उनका गृह प्रदेश है. वहां पर कांग्रेस के अच्छा करने की उम्मीद है, क्योंकि राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के तहत वहां पर एक महीने से पद यात्रा कर रहे हैं. अब ये सारी चुनौतियों के बीच खड़गे साहब का अनुभव है, लंबा करियर है, इतने बड़े नेता हैं, इन सब चीजों को लेकर वो कांग्रेस को कितना आगे बढ़ाते हैं.

एक बात और अंत में यह कहना चाहूंगा कि उनके ऊपर हमेशा एक टिप्पणी की जाती रहेगी कि वो दस जनपथ के आदमी हैं, उन्होंने खुल कर इस बात को स्वीकार किया है, कि कोई भी समस्या होगी तो मैं दस जनपथ जरूर जाऊंगा. तो क्या वो दस जनपथ के दबाव में रहते हैं, या दस जनपथ के सलाह मशवरा से काम करते हैं. कैसे परफ़ॉर्म करते हैं ये उनके लिए एक लिटमस टेस्ट से कम नहीं होने वाला है. इसलिए अंत में इतना कहूंगा कि भले ही मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए हैं, लेकिन ये जो ताज है वो कांटों से भरा हुआ है.

मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में मैनेजिंग एडिटर हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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