सियासत में सबसे ज्यादा वजन रखने वाला राज्य उत्तर प्रदेश पिछले दो लोकसभा चुनावों से अपनी प्राथमिकताओं के लेकर काफी सीमित रहा है. लोकसभा के दो चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली पार्टी ने 80 में से क्रमशः 62 और 71 सीटें जीत लीं. कल पार्टी ने उत्तर प्रदेश की 11 में से 9 राज्यसभा सीटें जीत लीं. इसके साथ पार्टी राज्यसभा में अब तक की सबसे बड़ी संख्या 92 पर पहुंच गई.
उच्च सदन राज्यसभा में 245 सीटें हैं. भाजपा और उसके सहयोगियों के पास 110 सीटें हैं, जबकि कांग्रेस 38 पर सिमट गई है. करीब 30 सीटें छोटे दलों के पास हैं, जिनमें नवीन पटनायक की बीजेडी और जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस शामिल है. भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, राजनीतिक समझ के तहत, ये दल नियमित तौर पर बड़े मुद्दों को लेकर बीजेपी के साथ वोट करते आए हैं. इस व्यवस्था ने भाजपा को ऐसी सुविधाजनक स्थिति में ला दिया है कि वह राज्यसभा में आसानी से बहुमत का आंकड़ा पार कर सकती है. ऐसे में जो विधेयक भाजपा के एजेंडे में हैं और जिन्हें विपक्ष के विरोध के कारण पहले ठंडे बस्ते में डालना पड़ा था, उन्हें अब आसानी से पारित कराया जा सकता है.

यूपी में भाजपा की बड़ी जीत का सबसे बड़ा परिणाम है कि उच्च सदन में विपक्ष का वीटो, जिसने कई बार मोदी सरकार के विधेयकों की राह में अड़ंगा लगाया है. वह अब इतिहास का हिस्सा बन चुका है. यहां ध्यान देने योग्य है कि विवादित कृषि कानूनों को विवादास्पद तरीके से ध्वनि मत से पारित कराया गया था. इन विधेयकों के जरिये किसानों को अपनी उपज कहीं भी बेचने जैसे कई अधिकार हैं. वास्तव में विपक्ष की मांग के बावजूद मतदान नहीं कराया गया. अगर यह कोई छिपी हुई तरकीब थी तो भी दोबारा इसकी जरूरत शायद ही पड़े.
भाजपा का दूसरा सबसे बड़ा राजनीतिक फायदा बसपा सुप्रीमो मायावती के साथ गुपचुप सहमति है. बसपा के अब 15 सांसद (दस लोकसभा और पांच राज्यसभा) बाहर हो चुके हैं. भाजपा ने मायावती की पार्टी के वरिष्ठ नेता रामजी लाल गौतम के खिलाफ प्रत्याशी नहीं उतारा. वह भाजपा की खाते में जा रही एक सीट की जगह चुने गए. यह भाजपा की मायावती के साथ भरोसा कायम करने की एक कवायद है और पार्टी चाहती है कि वह इसे ध्यान में रखें.
लेकिन दोबारा सोचिए, कोई भी चीज एकतरफा नहीं होती, संसद की एक सीट देना बड़ा राजनीतिक दबाव है और किसी भी काम में सर्वस्व झोंकने वाली भाजपा के समीकरणों में यह फिट नहीं होता. मायावती ने खुले तौर पर कहा कि उनके सात विधायकों को अपने पाले में खींचने वाले अखिलेश यादव को हराने के लिए भाजपा को समर्थन की भी जरूरत पड़ेगी तो वह ऐसा करेंगी. मायावती ने बेहद तीखे स्वरों में अखिलेश यादव के साथ पिछले लोकसभा चुनाव में की गई साझेदारी को लेकर एक लक्ष्मणरेखा भी खींच दी. दोनों दल भाजपा को उत्तर प्रदेश में जीतने से रोकने के लिए साथ आए थे, लेकिन यह प्रयास नाकाम रहा.

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव फरवरी-मार्च 2022 में होना है. भाजपा ने इसी को ध्यान में रखते हुए अपने राज्यसभा सदस्यों का चुनाव किया, ताकि अगले कुछ माह में कैडर और वोटर का समर्थन और बढ़ाया जा सके. इसमें गीता शाक्य का नाम प्रमुख है, जो प्रदेश भाजपा की अहम सांगठनिक कार्यकर्ताओं में से एक रही हैं और जिन्होंने पार्टी के पूर्व प्रमुख अमित शाह के साथ करीबी समन्वय से काम किया है. दूसरा नाम नीरज शेखर है, जो पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के पुत्र हैं, साथ ही अरुण सिंह का नाम प्रमुख है, जो पार्टी महासचिव होने के साथ मोदी और शाह के करीबी हैं.
सूत्रों के मुताबिक, यूपी में प्रचार के लिए भाजपा ने हिन्दुत्व से जुड़े सभी विवादित मुद्दों पर रुख मुखर करना शुरू कर दिया है. समान नागरिक संहिता लंबे समय से भाजपा के घोषणापत्र में शामिल रहा है. इसमें भारी समर्थन के साथ "हिन्दू फर्स्ट" पर जोर और लव जिहाद जैसे मुद्दे भी होंगे. लव जिहाद कथित तौर पर हिन्दू लड़कियों को बहला-फुसला कर इस्लाम धर्म ग्रहण कराने और मुस्लिम युवकों से शादी करने से जुड़ा मुद्दा है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में एक रैली में लव जिहाद पर कड़ा कानून लाने का ऐलान किया है. योगी ने चेतावनी भी दी कि जो भी बहनों के आत्मसम्मान के साथ खिलवाड़ करेगा, अगर वह नहीं सुधरता है तो उसे "राम नाम सत्य है" की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए.
"लव जिहाद" पहले से ही योगी की प्राथमिकताओं में रहा है, जिन्होंने अंतरधार्मिक प्रेम प्रसंगों पर रोक के लिए "रोमियो स्कवॉयड" का गठन किया था. जिस दिन योगी आदित्यनाथ ने इस योजना का ऐलान किया, हरियाणा में उनके समकक्ष एमएल खट्टर ने भी कहा कि वह भी अपने राज्य में ऐसा कानून लाने पर विचार कर रहे हैं.

जब अर्थव्यवस्था में सुधार का कोई संकेत नहीं दिख रहा हो, बड़े पैमाने पर बेरोजगारी और कमतर आंके जा रहे रोजगार संकट के साथ कोविड-19 से निपटने का सामान्य स्तर का प्रयास रहा है, तब मोदी और शाह की अगुवाई में भाजपा अपने रास्ते "सांप्रदायिकता" पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आगे बढ़ रही है. भाजपा के एक मंत्री ने मुझसे कहा, "हिन्दू हितों से जुड़े मुद्दों पर हमारा कोई राजनीतिक विरोध नहीं है. राज्यसभा के नए सदस्यों के बिना ही हमने जम्मू-कश्मीर से विशेष दर्जे को खत्म करने वाले अनुच्छेद 370 को हटा दिया. अब कमान पूरी तरह हमारे हाथों में है और मोदी जी अपने हिसाब से काम करेंगे. "
अपने मौजूदा राजनीतिक कुनबे में से अपने कुछ बड़े सहयोगी दलों से दुर्व्यवहार या उन्हें नाराज करने के बाद भाजपा के पास मायावती को खुश करने की कई वजहें हैं. मायावती का बड़ा दलित समर्थन भाजपा के उत्तर प्रदेश में दोबारा जीत की योजना में मदद कर सकता है. उत्तर प्रदेश के साथ पश्चिम बंगाल पर भाजपा का सबसे बड़ा फोकस है. यह बेहद सुनियोजित और समय का ध्यान रखते हुए किया गया है.
(स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं…)
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